फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : तौफ़ीक़ ज़य्याद (अनुवादक : राधारमण अग्रवाल)

Palestinian Poetry in Hindi : Tawfiq Zayyad


मेरी आवाज़, मेरी ख़ुशबू, मेरा जिस्म

जहाँ जमी हैं मेरी जड़ें मैं लौटूँगा वहीं बस, इन्तज़ार करो मेरा मैं ज़रूर लौटूँगा चट्टानों की दरारों में काँटों में, पत्तियों में रंगीन तितलियों में गूँज में, सायों में जाड़े की सोंधी मिट्टी में गर्मी की धूल में मस्त हिरनियों के रास्तों में चिड़ियों के घोंसलों में गरजता तूफ़ान दिखायेगा रास्ता मेरी नसों में धड़कती है मेरे वतन की अज़ान पुकारती है हर घड़ी हाँ, मैं ज़रूर लौटूँगा फूलो, रखना तब तक बरक़रार मेरी आवाज़, मेरी ख़ुशबू, मेरा जिस्म

कोई कैसे करे बर्दाश्त

ऐ मेरे वतन ऐ मेरे घर ऐ मेरे लुटे ख़ज़ाने ऐ मेरे ख़ूनी इतिहास जहाँ दफ़्न हैं मेरे अब्बा उनके वालिद उनके भी पुरखे पहुँच नहीं सकता उन तक कैसे कर लूँ बर्दाश्त कैसे कर दूँ माफ़ जकड़ दिया जाऊँ शिकंजे में फिर भी, नहीं कर पाऊँगा माफ़ उगलते थे सोना जो खेत पड़े हैं उजाड़, वीरान आज पड़ी हैं यहाँ वहाँ हड्डियाँ पत्थरों के साथ जूझ रहे हैं अब भी कुछ मर्दाने कुछ दीवाने हौसला है उन दरिन्दों को फाड़ खाने का ख़ून पी जाने का कुछ न कहो, कुछ भी नहीं मक़बरों तक को नहीं बख़्शा रौंद डाला उन्हें भी बूटों तले

सतह से नीचे

मुझे कुछ भी न बताओ कुछ भी नहीं मैं आ गया हूँ उस जगह जहाँ न पीछे कुछ था न आगे कुछ होने की गुंजाइश जहाँ तौला जाता है एक एक लफ़्ज़ साया पीछा करता है साये का ख़ुदाई हुक्म बदल जाते हैं सुविधाजनक क़ानून, धर्म में बंदा नेस्तनाबूद कर देता है ख़ुदा को बस भी करो, मुझे कुछ और न बताओ मैं आया हूँ वहाँ से जहाँ एक आग सुलगती है सीने में, तेज़ाब बहता है विद्रोही नसों में, सड़कें उफनती हैं बेहिसाब आदमी औरतों से एक कभी न ख़त्म होने वाला सिलसिला, जहाँ पेड़ लहरा रहे हैं वतन के झंडे जैसे जायेंगे यहाँ से भला कहाँ, जहाँ हर हादसा ललकारता है और कुर्बानी के लिए, जहाँ शिकायत मानी जाती है कमज़ोरी, जहाँ के बच्चों, शायरों और मज़दूरों की आवाज़ें रौशन करती हैं दिलों को- जागती हैं आस, मत बतलाओ मुझे कुछ और देखी है मैंने ज़िन्दगी भरपूर जी है मैंने ज़िन्दगी भरपूर क्या जो दिख रहा है उसने बनाया बेवकूफ़ मुझे शायद बूढ़ा हो रहा हूँ रोओगे तो मरोगे जल्दी करो क्योंकि सच यह है कि जल्दी कुछ भी नहीं बदलता वक़्त बढ़ता जाता है आगे धीरे धीरे हमेशा

अमृत

(मर्ज-बिन-उमर के नाम) तुम्हें मालूम था कि ये मैं ही था लौटा बरसों बाद किसी अजनबी की तरह यादों के डंक रोते बिन आँसुओं के घिसटते कदम जैसे ढोये हों ग़म की लाश तुम मुड़ीं मेरी तरफ़ देखा, एक नश्तर सा लगा सीने में अनमने सलाम किया कोशिश करने लगीं उठने की पर सैकड़ों जंजीरों की जकड़न पकड़े रही तुम्हें, कस कर तुम्हारी आवाज़ खो गई कहीं मेरा नाम लेने में खो गई मेरी भी आवाज़ गूँजती थी जो कभी, झरने सी कुछ मत कहो मैंने पी लिया है दुख का अमृत मेरी प्यारी, मर्ज-बिन-उमर

नाज़रेथ की लड़कियाँ

कितनी बार, कितनी बार गुज़र गई हैं बग़ल से काली आँखों वाली नाज़रेथ की ख़ूबसूरत लड़कियाँ भले घरों जैसे चाल-ढाल वाली कुछ उठाये बच्चे गोद में कुछ कुँवारी लड़कियाँ मानो फूल तैर रहे हों सड़कों पर कुछ के बच्चे बँधे हैं पीठ पर नाज़ुक कमर की पट्टी के सहारे काँख में दबी हैं गेहूँ की बालियाँ आ रही हैं आवाज़ें खेतों से, खलिहानों से शामें गुज़रती हैं तालाब के किनारे गाते गीत बाबा आदम के ज़माने के तुर्की लड़ाई और भगोड़े सैनिकों के बारे में अफ़सरों की नाइन्साफ़ी के बारे में कैसे बेच डाले गये बाज़ूबन्द हथियारों के लिए और भी न जाने क्या-क्या न बताओ मुझे कुछ और अगर ये दरिन्दे वही हैं चुरा लिया जिन्होंने हमारे वतन को यक़ीनन, तब हमारी हिम्मत चूमेगी आसमान

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : तौफीक ज़य्याद (अनुवादक : कर्मजीत सिंह गठवाला)


हम यहीं रहेंगे

लिड्डा में, रामला में, गलील में, हम रहेंगे आपके सीने पर एक दीवार की तरह, और आपके गले में कांच के टुकड़े की तरह, कैक्टस के कांटे की तरह, और आपकी आँखों में एक रेतीला तूफ़ान। हम रहेंगे आपके सीने पर एक दीवार की तरह , आपके रेस्तरां में बर्तन साफ करेंगे, आपके बार में पेय परोसेंगे, आपकी रसोई के फर्श साफ़ करेंगे हमारे बच्चों के लिए खाना छीनने के लिए तुम्हारे नीले दांतों से। यहीं हम रहेंगे, हमारे गीत गाओ, क्रोधित सड़कों पर उतरो, जेलों को गरिमा से भरें। लिड्डा में, रामला में, गलील में, हम रहेंगे, अंजीर की छाया की रक्षा करें और जैतून के पेड़, हमारे बच्चों में विद्रोह पनप रहा है आटे में खमीर के रूप में। English Version Here We Will Stay In Lidda, in Ramla, in the Galilee, we shall remain like a wall upon your chest, and in your throat like a shard of glass, a cactus thorn, and in your eyes a sandstorm. We shall remain a wall upon your chest, clean dishes in your restaurants, serve drinks in your bars, sweep the floors of your kitchens to snatch a bite for our children from your blue fangs. Here we shall stay, sing our songs, take to the angry streets, fill prisons with dignity. In Lidda, in Ramla, in the Galilee, we shall remain, guard the shade of the fig and olive trees, ferment rebellion in our children as yeast in the dough.

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