नज़्में : सुग़रा सदफ़

Nazmein in Hindi : Dr. Sughra-Sadaf


इख़्तिताम

दिल के फ़साने ख़्वाब सुहाने बहकी बातें महकी रातें भूले-बिसरे सारे क़िस्से दो आँखों में डूब गए हैं

एक नज़्म

तू ने देखी हैं फ़क़त मेरी ये हँसती आँखें और हँसती हुई आँखों में शगुफ़्ता बातें तू कभी आँख में रक्खी मिरी बरसात भी देख मेरे अश्कों में छुपी हिज्र की इक रात भी देख तू ने चाहा है कि मैं ख़्वाब बनूँगी तेरा तू ने देखा है फ़क़त फूल सा पैकर मेरा तू ने देखा ही नहीं फूल बिखरता भी है तुझ को मालूम नहीं बाग़ उजड़ता भी है अपने वा'दों का ज़रा आप ही तुम पास करो मेरे ग़मनाक से लम्हों का भी एहसास करो

क्यों

कैसे दिन हैं कैसे दुख हैं और हम कैसे दोराहे पर बिछड़े खड़े हैं इक जानिब तो दूसरी जानिब फूल खिले हैं आँख भी अपना काम करे है ख़्वाबों से क्यों दिल तड़पे है सोचने में क्यों दम निकले है

धुंद

दिल की सब दीवारों पर ख़्वाहिश के मीनारों पर नाम को तेरे लिखती हूँ तेरा नाम जो आँखों में इक बुत सा बन जाता है उस को मैं चमकाती हूँ चाँद की रौशन किरनों से फिर कुछ ऐसे होता है दम-ए-सहर जब देखती हूँ धुंद में तुम आ जाते हो मुझे बहुत ही रुलाते हो

मन का सूरज

चाँद के पीछे भागती लड़की जो कभी धुंद के तूफ़ानों में खोई हुई थी उस को कैसे मन सूरज ने ज़ाहिर कर के चमकाया है

मेरा वजूद भी रोने लगा है

जब से दिल के तूफ़ाँ थमे हैं जब से आँख के अश्क रुके हैं तब से ऐसा होने लगा है मेरा वजूद भी रोने लगा है

शर्त

हम दोनों बे-शक अलग अलग राहों पे चलें अलग अलग ज़ेहनों से सोचें फ़िक्र-ओ-ख़याल की दुनिया में इक दूजे को झुटलाएँ इक-दूजे को पसपा करें लेकिन देखो इक-दूजे के सारे ग़म और सारी ख़ुशियाँ बाँट सकें तो अपना राब्ता रह सकता है

उस्ताद का डंडा

छीन ले हाथ से उस्ताद के डंडा कोई बदले डंडे के खिला दे हमें अण्डा कोई अण्डा खाने से लहू जिस्म में बढ़ जाता है चुस्त होता है बदन ज़ेहन निखर जाता है डंडा लेकिन हमें क्या फ़ाएदा पहुँचाता है जिस्म को देता है दुख ज़ेहन को उलझाता है छीन ले हाथ से उस्ताद के डंडा कोई बदले डंडे के खिला दे हमें अण्डा कोई किस क़दर देते हैं दुख हम को ये हाए डंडे सारी दुनिया से ख़ुदा अब तो मिटा दे डंडे है वो उस्ताद बुरा जो कि जमाए डंडे है वो शागिर्द भी बुद्धू कि जो खाए डंडे छीन ले हाथ से उस्ताद के डंडा कोई बदले डंडे के खिला दे हमें अण्डा कोई अब न स्कूल में डंडे की ख़ुदाई होगी सारे डंडों की ज़माने से सफ़ाई होगी ज़ोर से डंडे के हरगिज़ न पढ़ाई होगी अब तो स्कूल में अंडों की खिलाई होगी छीन ले हाथ से उस्ताद के डंडा कोई बदले डंडे के खिला दे हमें अण्डा कोई लद गया अब तो वो अंडों का ज़माना साहब हो चुका अब तो तरीक़ा ये पुराना साहब जो मोहब्बत का न गुर आप ने जाना साहब फिर तो दुश्वार हुआ पढ़ना पढ़ाना साहब छीन ले हाथ से उस्ताद के डंडा कोई बदले डंडे के खिला दे हमें अण्डा कोई सर पे डंडे पड़ें हरगिज़ न ये उफ़्ताद आए तालिब-ए-इल्म न करता हुआ फ़रियाद आए काश भूला हुआ शफ़क़त का सबक़ याद आए बाप के रूप में स्कूल में उस्ताद आए छीन ले हाथ से उस्ताद के डंडा कोई बदले डंडे के खिला दे हमें अण्डा कोई

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