Mela Ram Tayyar
मेला राम तायर

मेला राम तायर (2 जनवरी, 1901 से 5 मई, 1976) का जन्म बटाला में मां मलावी देवी और पिता दौलत राम के घर हुआ था। उन्होंने नादौन (हिमाचल प्रदेश) की शीला रानी से विवाह किया। स्वयं शीला रानी और उनके भाई किशनचंद भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे। यह भी प्रचलित है कि लाहौर जेल में शीला रानी की मुलाकात मेला राम तायर से हुई थी। मेला राम तायर, शीला रानी और किशन चंद को भी 'ताम्र पत्र' से सम्मानित किया जा चुका है। 1947 में देश के विभाजन के बाद वे बटाला तहसील के सब-रजिस्ट्रार भी रहे। वे पंजाब कांग्रेस गुरदासपुर के महासचिव भी रहे और 1969 में ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें जिला गुरदासपुर की पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अध्यक्ष भी थे।
13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाले बाग हत्याकांड के समय मेला राम तायर भी वहीं थे और उन्हें भी गोलियों के छर्रे लगे थे । मेला राम तायर और उनकी पत्नी ने अपनी स्वतंत्रता गतिविधियों के लिए पेंशन लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि हमने पैसे के लिए देश की सेवा नहीं की। उनके पुत्र कृष्ण कुमार रांझा कहते हैं कि मेला राम तायर धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनके घर में दर्शनार्थियों का मेला लगा रहता था। उस घर में बड़े-बड़े लेखक और कांग्रेसी नेता आते थे। प्रताप सिंह कैरों ने उनकी की पत्नी शीला रानी को बहन बनाया हुआ था।
उन्होंने पंजाबी, हिंदी और उर्दू भाषाओं में गीतों, ग़ज़लों, रुबाईओं और कविताओं की रचना की है। उनकी आत्मा देशभक्ति से ओत-प्रोत थी। वे आज भी पंजाबी साहित्य जगत में अपनी 'भगत सिंह की घोड़ी' के रूप में ही जाने जाते हैं ।उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। उन्होंने राम, कृष्ण, मां, देश प्रेम, मनुष्य और समाज के हर रंग को प्रस्तुत करने वाली रचनाएँ लिखीं । मेला राम तायर उन लोगों में से एक है जिन्होंने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया और एक स्वतंत्र देश, एक समृद्ध समाज का सपना देखा, लेकिन 1947 के विभाजन के बाद भ्रष्ट नेताओं ने क्या किया, यह पूरी गाथा मेला राम तायर की रचनाएँ सुनाती हैं। वह तीन भाषाओं पंजाबी, हिन्दी और उर्दू के विशेषज्ञ थे। उनकी भाषा और मुहावरा श्रोता-उन्मुख संबोधन शैली में है और वे सीधे पाठक/श्रोताओं को सम्बोधित करते हैं।-डॉ. नरेश कुमार