हिन्दी/उर्दू कविताएँ : मेला राम तायर
Hindi/Urdu Poetry : Mela Ram Tayyar


वो बच्चे बाप से पूछें

वो बच्चे बाप से पूछें हमारी कब दीवाली है । निशते बज़मे इशरत है हसीं चेहरों पे लाली है। किसी के गुदगुदे जानों पे बिखरी जुलफ काली है । अंगूरी जाम लब पे शेयर और रोशन ख़्याली है । अभी दोशीज़गीयां पर परीशां होने वाली है। जहीं जूए की चौसर है यह कैसी बद अमाली है । इधर देखो उधर देखो अमीरों की दीवाली है । वो बच्चे बाप से पूछें हमारी कब दीवाली है । यहां तहज़ीब रोती है मुल्क के रहनुमाओं को । सुनाई कुछ नहीं देता वतन के रहनुमाओं को । वो बाज़ारों में देखो तो हसीनों की अदाओं को । लपट में आग जैसे ले चुकी है सारे गाओं को । कभी हुस्ने फिरोज़ा बिरहना ऐसा न देखा है । किसी ने आज तक इसके मुतल्लक कुछ न सोचा है । बला की रोशनी में है कहीं नगमें कहीं कहकहे। सरेराह इश्क की बातें हसीनों के कहीं चर्चे । उधर नादार बेकस गमज़दा लोगों के है मज़में । किनकी ज़िंदगी अब गिन रही है मौत के लमहें । सरद चुल्हा है घर में कौल ना कोई थाल थाली है। इधर देखो उधर देखो अमीरों की दीवाली है । वो बच्चे बाप से पूछें हमारी कब दीवाली है । किसी की रेशमी साड़ी पे झिलमिल है सितारों की । किसी का हुस्न झुर्रियां बन गया ज़ीनत बाज़ारों की । चौराहों में दुकानों पर है शॉपिंग ताजदारों की । कभी जब बात करते हैं तो करते हैं हज़ारों की । इधर नर पैरहन 'तायर' बदन की जिलद खाली है। वो बच्चे बाप से पूछें हमारी कब दीवाली है।

इस शहर में सब कुछ जायज़ है

इस शहर में सब कुछ जायज़ है, इस शहर में सब कुछ चलता है। इस शहर के मुल्को मिल्लत के हमदर्द भी है तजार भी है। कुछ सरमाए के सांप भी है कुछ मोहताजो नादार भी हैं । इस शहर में इबअन अलवक्त भी है मज़हब के उजारेदार भी हैं । बेटेंडर ही ठेके लेलें कुछ ऐसे ठेकेदार भी हैं । इस शहर में सब कुछ जायज़ है, इस शहर में सब कुछ चलता है I इस शहर में रेहड़ी वाले भी चलते हैं मोटर वाले भी । दिलदार भी हैं दिलफेंक भी है बेदिल भी दिल वाले भी। मच्छरा खटमल है सटेजों के और वोटों के मतवाले भी। है नोके कलम पर पहरे भी फनकार के लब पर ताले भी। इस शहर में सब कुछ... इस शहर में गूंजा करते हैं नाले भी आहो ज़ारा भी। बीमारी भी गमखारी भी ज़रदारी भी बेकारी भी। मज़दूर के घर में टी.बी. भी और आंसू किसी के जारी भी। इस शहर के गुलशन गुलशन पर है कौवों की सरदारी भी। इस शहर में सब कुछ ... इस शहर के मंदिर मस्जिद में चोरी होती है दरीयां भी। और फर्शों में कहीं मखमल भी और जिस्म यहां पर। आंखों में किसी के काजल भी और आंख किसी की । कॉलेज में मिलेंगे क्यूपिड भी और सड़कों पर हैं परियां भी। इस शहर में सब कुछ.... इस शहर में आदमज़ाद भी है इस शहर में आदमखोर भी हैं । है एंटीकरप्शन वाले भी मुनसफ भी काले चोर भी हैं। कुछ कटे हुए वज़रा भी है जो बरहम हैं और बोर भी हैं। इस शहर में मसले ऐसे हैं कई सालों से ज़ेरेग़ौर भी हैं । इस शहर में सब कुछ ... इस शहर में ग़म हैं दुनिया के इक तरफ नज़ारे दुनिया के। मज़दूर के घर में भूख बड़ी झनकार है बड़ी है बनिया के । वो रहबर हैं कमज़ोर हुए पीकर के प्याले धनिया के । झूठी तकरीरें करते हैं ये लीडर झूठे दुनिया के I इस शहर में सब कुछ...

अब न प्यारी बटन लगेंगे

अब न प्यारी बटन लगेंगे इस सूसी की जैकट पर। तेल रेल से न उतरेगा गांधी चढ़ा है रॉकेट पर । अब न प्यारी नज़र करो तुम गुसलखानों के फर्शो पर । ईंटों वाले आल बलैकी सीमेंट गया है अर्शों पर । बम बम बम बम बम लैहरी लहर लहर नदिया गहरी । आटा नमक मिलाकर खावो गया ज़माना दालों का । सौ जन्म सपना न लेना हल्दी गर्म मसालों का। गुच्छा एक बनालो प्यारी अपने काले बालों का । इस युग में तुम नाम न लेना अतर, फुलेल, रुमालों का । बम बम बम बम बम लैहरी लहर लहर नदिया गहरी । किया भरोसा है अब प्यारी इन काले अंग्रेज़ें पर । दूध दहीं और लस्सी माखन चले गए हैं मेज़ों पर । रब्बी नूर है चल कर आया सिनेमा पर या होटल पर । हर अय्याश की नज़र लगी है औरत पर या बोतल पर । कल का रूप है कोयले वाले बाज़ है जैसे छत्ते पर । लोहे वाले देश द्रोही नज़रें हैं कलकत्ते पर । बम बम बम बम बम लैहरी लहर लहर नदिया गहरी । दो नंबर में लाखों हैं और रोकड़ में कंगाल हैं ये । खून चूसने वाले हैं और भारत मां के लाल हैं ये । रूप बिगाड़ो रंग बदल दो आंच न आए जीने पर । इन धनियों की कानी नज़रें लगी हैं उभरे सीने पर । मातृशक्ति युग को बदलो पैदा नई आवाज़ करो । सबर से काटो दिन जिंदगी के कभी न दसत दराज़ करो । कंघी अंधी सुरमा बिंदी फैशन 'तायर' जाने दो। वोट नोट को हाथ जोड़ दो गोली वाले आने दो। बम बम बम बम बम लैहरी लहर लहर नदिया गहरी ।

दिल को बदलो

दिल को बदलो दिमाग बदलो ज़बां को बदलो बयां को बदलो । ज़मीं को बदलो आकाश बदलो ज़माना बदलो जहां को बदलो । वली पैग़म्बर फकीर हो तो वतन से रंजो मैहन को बदलो । ये कट रहे हैं गुलपरीशां उठो के सहने चमन को बदलो । ज़रा सा खोलो दिमाग अपना के बदलो जीवन सोदा को बदलो । उठो के कोई यह कह रहा है कि खौफे कहरों बला को बदलो । ज़मीर बदलेगी लोहे किस्मत खाध्श बदलो गुमा को बदलो । गरज़ को बदलो अरज़ को बदलो अब अपनी तर्जे फगां को बदलो । सदा को बदलो दुआ को बदलो रज़ा को बदलो कज़ा को बदलो । जो सुन सके न आवाज़ अपनी खुदा भी हो तो खुदा को बदलो। आवाज़ बदलेगी लोहे किस्मत तुम अपने रंगे सुखन को बदलो । अदीब हो तो नसीब बदलो आदात बदलो चलन को बदलो । हयातनों के ए खाहशमंदो उठो कि अपनी हयात बदलो । अमल को बदलो ऐमाल बदलो शुगल का आदात बदलो। जो हौसले में है पुख्तगी तो उठो उठो कायनात बदलो । सुबह को बदलो ये शाम बदलो दोपहर और रात बदलो । ये बेसबाती की जिंदगी क्या बेसबाती की बात बदलो । लुटा दो अपनी जवां उमंगे हालात बदलो हालात बदलो । ये स्वर को बदलो और राग बदलो ये तान बदलो और साज़ बदलो । क्यों सब के चेहरे पर मुर्दनी है वजा को बदलो जवाज़ बदलो । मिज़ाज बदलो हजाब बदलो सलाम बदलो नमाज़ बदलो । अकेले कुछ भी न कर सकोगे मिला के अपनी आवाज़ बदलो। ये रंग बदलो ये ढंग बदलो यह बेकसों की नवा को बदलो । जो आशियाना जला रही है उठो के ऐसी हवा को बदलो। बदल दो इफलास बेकसी को यह रंज बदलो अलाम बदलो । भरा हुआ है जो नफरतों का ज़हर का खूनी हजाम बदलो । सुबह तलख है सुबह को बदलो और ग़म आलूदा है शाम बदलो । ये हसरतें जो मुजरमानां ये आरज़ूएं नाकाम बदलो । ये शहर बदलो ये गांव बदलो बदल दो लीडर आवाम बदलो । तूफान कहता है ऐ मल्लाहो उठा लो लंगर मुकाम बदलो । खलिश को बदलो तपिश को बदलो रवश को बदलो ये चाल बदलो । उठो कि नफरत की जड़ हिला दो सब अपने अपने एमाल बदलो। वतन की तामीर हो रही है तुम अपने फने कुमाल बदलो । ये हिन्दू सिक्ख और ईसाई मुस्लिम सब ऐसे नाकस ख्याल बदलो । बदल दो कैफो सरुर 'तायर' रिवाज बदलो समाज बदलो। जो कल पे छोड़ी तो कल न होगी बदलना जो है वो आज बदलो ।

कहते हैं भारत के नेता

कहते हैं भारत के नेता कष्ट कटेंगे सारे । देश की धरती चमक उठेगी खुलेंगे भाग हमारे । प्यार बढ़े सत्कार बढ़े व्यापर बढ़ेगा आपस में । मेहनत रानी जाग पड़े इतबार बढ़ेगा आपस में । धरती पर भी चमक पड़ेंगे नील गगन के तारे । कहते हैं भारत के नेता .... ... ... । नई रोशनी नया प्रेम इक दुनिया नई बनाएगा । हो जाएगा खत्म अंधेरा नया उजाला आएगा। छठ जाएगी ग़म की बदली खुशी आएगी द्वारे । कहते हैं भारत के नेता .... ... ... । धीरज आशा प्रकट होगी और निराशा भागेगी। आत्मशक्ति प्रबल होगी मेहनत हिम्मत जागेगी । बहन भाई सब खुशी के मिलकर बोलेंगे जयकारे । कहते हैं भारत के नेता .... ... ... ।

सुनो कहानी दुनिया वालो

सुनो कहानी दुनिया वालो वीरों के बलिदान की । यह कथा है इस भारत के गौरव की अभिमान की । आज़ादी की ख़ातिर ये तो योद्धे लड़ने वाले थे । जय भारत की कहकर ये तो फांसी चढ़ने वाले थे । कुछ मौत से लड़ने वाले थे कुछ आग में सड़ने वाले थे। ये कुर्बानी के पुतले थे न डर से डरने वाले थे। राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह ला गए बाज़ी जान की। यह कथा है... ... ... ... ... ... ... । कफन सिरों पे बांधे थे और निकले थे मैदानों में । आग लगाते जाते थे ये उभरे से अरमानों में I सब जीवन अपना गर्क किया सड़ सड़ के बंदीखानों में । मरने मिटने की खुबी इक भरी थी इन इंसानों में। दास, गोखले, तिलक, लाजपत जिन्होंने पैदा शान की । यह कथा है... ... ... ... ... ... ... । ज़ंजीरों की झनकारों में गीत वतन के गाते थे I पूजक आज़ादी के थे और शीश की भेट चढ़ाते थे । तुफानो और कहरों से ये जानबूझ कर टकराते थे। देश के जीवन के बदले ये अपने सर कटवाते थे । सुर्ख सुर्ख मिट्टी देखो वो झांसी के मैदान की । यह कथा है... ... ... ... ... ... ... । गोली, लाठी, कैद, फांसियां खेल समझने वाले थे। ज़हर चूसने वाले थे और देश के ये मतवाले थे। पीते थे जीवन की मदिरा ऐसे प्रेम प्याले थे। अंधेरों को दूर हटाकर करते नए उजाले थे। गांधी और सुभाष थे 'तायर' झांकी हिन्दुस्तान की । यह कथा है... ... ... ... ... ... ... ।

आगे बढ़ते जाएं

आगे बढ़ते जाएं हो रही है देश की उन्नति हम भी हाथ बंटाएं । आगे बढ़ते जाएं... ... ... ... ... ... ... । हम सब आज़ादी के पूजक देश के सेवक सच्चे । नर नारी सब देश सिपाही बुढ़े, बाल और बच्चे । ऐहद करें करने मरने का सारे फर्ज़ निभाएं। आगे बढ़ते जाएं... ... ... ... ... ... ... । अब मोहताजी दूर करेंगे कलाकार और हाली । पश्चिम को उजाला देगी ये पूरब की लाली । अमन, प्यार, मुहब्बत का एक रिश्ता नया बनाएं। पंचशील के रॉकेट बनकर एटम से टकराएं। आगे बढ़ते जाएं... ... ... ... ... ... ... ।

तूफानों में है कश्ती

तूफानों में है कश्ती मल्लाहो पार करो । भारत के वासी हो भारत से प्यार करो । लाखों बलाएं आएं आगे ही बढ़ते जाएं । मुश्किल में मन ना डोले पर्वत पे चढ़ते जाएं । तुम देश के सेवक हो तुम देश से प्यार करो । तूफानों में है... ... । करनी है दुनिया बस में हमरी है ऐसी रस्में । देश पे जान वारें खाएं सब मिलकर कसमें । उन्नति के मार्ग की कोई तो कार करो । तूफानों में है... ... । देश के वीर जागे योद्धे बलबीर जागे । भागे हैं देखा भागे हैं दुःख दलिद्र भागे । अब प्यार के पथ है खुले तुम प्रेम से पार करो । तूफानों में है... ... । हाथों में हाथ लेकर साथी को साथ लेकर । झूमें तिरंगा प्यारा इस को सलामी देकर । टूटे हुए दिल 'तायर' जी अब इकसार करो । तूफानों में है... ... ।

वो आने लगे और जाने लगे

वो आने लगे और जाने लगे, हमें देखकर मुस्कुराने लगे । हिना मलके हाथों में क्या कर रहे हैं, वो पानी में आतिश लगाने लगे । यादों में जो गीत मैंने लिखे थे, सुना है किसी को सुनाने लगे । नकाब उनका सरका तो क्या देखते हैं, सितारे फलक के थर्राने लगे। हंसे तो शगूफे चटकने लगे, वो रोए तो दरिया बहाने लगे । किसी को है अपनी नज़र से उठाया, किसी को नज़र से गिराने लगे । इलाही ये क्या इन्कलाब आ गया, वो ख्वाबों में आकर मनाने लगे । यकीन आ गया उनके वादों से 'तायर', मेरी कसम खाकर वो जाने लगे ।

दुनिया-ए-मुहब्बत

दुनिया-ए-मुहब्बत में हमदम तकदीर बिगड़ कर बनती है । फनकार के दस्ते नाजुक से तस्वीर बिगड़ कर बनती है। मासूम जवानी के इनवां जब रंग बदल कर आते हैं । अफसाना-ए कैफे हस्ती की ताबीर बिगड़ कर बनती है । परवानों की खाके हसरत पर आंसू न बहा ऐ शमां सैहर । इस सोज़ से शामें उल्फत की अकसीर बिगड़ कर बनती है । तखरीबे ख़िज़ां के परदों में कलियों का फसाना होता है । दौराने बहारां फूलों की तामीर बिगड़ कर बनती है । अफसाना-ए कैफे हुस्नो कुमर ऐ डूबते तारो कुछ न कहो। हंगामा शगुफता नूरे सहर तनवीर बिगड़ कर बनती है । ऐ महरमे राजे जज्बे असर हंगामा - ए जोशे वहशत में । एहसास की हद से आगे तासीर बिगड़ कर बनती है। जज़बात को ठोकर लगती है जब जोमें खुदी से दुनिया में । खुददारिए ज़रफे इन्सां की तोकीर बिगड़ कर बनती है। ख़ामोश शबस्तां होता है और चैन की नींदें आती हैं। जब आलें ख़ाबे हस्ती की ताबीर बिगड़ कर बनतीहै । जज़बात के रंगीं मंज़र में एहसास की पैहम चोटों से । इलहामकदे में शायर की तस्वीर बिगड़ कर बनती है। I

ओ संतरी सिपाही

ओ संतरी सिपाही ओ काफिले के राही आबाद से वतन में बर्बाद सा चमन क्यूं क्या तुझ को कुछ खबर है तेरी कहां ओ संतरी सिपाही... ... I दुश्मन को तूने टोका तेगों को तुने रोका जिस जिस जगह गिरा है तेरे लहू का कतरा वो चांद बनके चमका तुफान बन के उभरा गैरों की सरज़मीं पर इक धूम सी मचाई, ओ संतरी सिपाही... ... I वो दिन गुलामियों के अब तो हवा हुए हैं सपने जो थे तुम्हारे वो दिन नवां हुए हैं दुश्मन थे जो कभी के वो दिलरुबा हुए हैं तामीर का वक्त है गर्दन है क्यूं झुकाई ओ संतरी सिपाही... ... I मैदां में लड़ने वालो महलों में रहना कैसा, तलवार के धनी को फूलों का गहना कैसा, हूरों का हुस्न तेरी छीनेगा सब दानाई ओ संतरी सिपाही... ... I दो गठीले बाजू देखो ना उभरे सीने, काजल भरे ये नैना उल्टेंगे सब सफीने, संभलो अभी से संभलो बदले अभी करीने, ये हुस्न है बाज़ारी ये इश्क है तबाही ओ संतरी सिपाही... ... I भीगी लबों की सिलवट मुस्कान से बचो तुम, इश्को हुस्न के ऐहदा पैमान से बचो तुम, ख्वाबों में रहने वालो शैतान से बचों तुम, इस रास्ते में कांटे इस रास्ते में खाई ओ संतरी सिपाही... ... I दो रास्ते है इन से इक रास्ते को चुन लो छोड़ो यह ऐश इशरत ऐहले वतन की सुन लो तलवार उठाओ या चूड़ियां पहन लो भूखे बिलख रहे हैं 'तायर' हज़ारों भाई ओ संतरी सिपाही... ... I

हम देश को स्वर्ग बनाएंगे

हम देश को स्वर्ग बनाएंगे झनक झनक पायल झनके और मधुर मधुर मुरली बाजे सँवर सँवर बावरिए मन अब मनों से मिलने जाएंगे हम देश को .... ठुमक ठुमक हृदय ठुमकें और झुमक झुमक झूमर झूमें, रुमक रुमक कर मेघ कहें हम सब की प्यास बुझाएंगे, हम देश को.... वो बलखाती निर्मल नदियां आई मानसरोवर से, और बास भरे ठंडे झोंके इक मस्ती सी बिखराएंगे, हम देश को.... हर कली कली मुस्कराएगी और फूल फूल कर फूलेगा, इक नृत्य हंसी करती होगी सब देख देख मुस्कराएंगे, हम देश को.... तब छोरियां घर से निकलेंगी नरमे की कलियां चुनने को चरवाहे अपनी बंसी पर ये गीत 'तायर' जी गाएंगे, हम देश को ....

आगे कदम बढ़ाओ साथी

आगे कदम बढ़ाओ साथी, आगे कदम बढ़ाओ, कदम कदम पर खुशी खड़ी है मुस्काती मनभाती है। तेरे इस्तकबाल को वो अब आशा रानी आती है, अंधियारे में कोई देवी देखो दीप जगाती है । ये स्वप्नों की रानी मेहनत इस से प्रीत लगाओ साथी, आगे कदम बढ़ाओ... ... I मधुर मधुर गीतों की रानी नगमों की तस्वीर है यह । सुनो सुनो झंकारें इसकी निर्धन की तकदीर है यह । इसके आंचल में छिप जाओ रुप की रानी हीर है यह । यह मेहनत की रानी है तुम इसको पीड़ सुनाओ साथी, आगे कदम बढ़ाओ... ... I रंग रूप सुन्दरता इसकी आंखों को चुंधियाएगी। छू जाओगे साथ जो इसके जीवन को पलटाएगी । इसकी बास आकाश में जाकर तारों से टकराएगी। यह मेहनत की रानी है तुम इसको तिकल लगाओ साथी, आगे कदम बढ़ाओ... ... I लाख किस्म फूलों के हैं सुन्दर गहने पड़े हुए। इसकी मांग सिंदूरी में है माणिक मोती जड़े हुए। इसके दो नैनों में देखो अमृत सागर भरे हुए । यह तो कुसुम लता है ‘तायर' मेहनत करो तो पाओ साथी, आगे कदम बढ़ाओ... ... I

ये उजले उजले लोग हैं जो

ये उजले उजले लोग हैं जो ये मन के काले काले हैं। ये आफत पैदा करते हैं और खून चूसने वाले हैं। मैखाने में तो रिंद हैं ये और भगत है ये बुतखानों में । दौलत ने अपने दामन में ये सांप निराले पाले हैं। ये दाता और सखी भी है और जगत लूटने वाले हैं। काबल हैं य जराही के ये उभरे उभरे छाले हैं। ये पाकबाज़ परहेज़गार तौब तौबा मेरी तौबा । यह सुबह समाज के रहबर है और शाम को पीने वाले हैं। लीडर है सियासतदान हैं ये काज़ी चोर लुटेरे हैं । हां यही समाज के कातिल हैं ये खंजर नेज़े भाले हैं। ये दौलतमंद और शहज़ोर भगवान भगत हैं क्या कहने। हर बात बात बात छिपी हर काम में घाले माले हैं । ये अधखिली सी कलियों से कुछ ऐसे जुआ खेलते हैं । इज़्ज़त को लूटने वाले हैं और इज़्ज़त के रखवाले हैं। ये अक्सर पाए जाते हैं या सिनेमा में या होटल में । दिल फेकने वाले आशिक हैं और लब पे आहो नाले हैं। ये भून भून कर खाते हैं 'तायर' जिगर परिंदों के । है मेरी रग का गर्म लहू जो इनके भरे प्याले हैं ।

तुमने किसी की याद में

तुमने किसी की याद में दीये जला दिए, हमने किसी की याद में आंसू बहा दिए । हमने वतन के नाम पे है जान वार दी, तुमने वतन के नाम पे फितने जगा दिए । ऐ जलने वाले दीपकों तुम ही ज़रा कहो, कितने दीये जले थे जो तुमने बुझा दिए । खंडहर से हो गए हैं शहीदों के मकबरे, दो चार फूल हमने वहां पर चढ़ा दिए । कब्रों पे कर रहे महलों की अब तामीर, और देश भक्त सारे तुमने भुला दिए । उनकी कब्र पे आज भी दीया न फूल है, गैरों ने जिनके नक्श जहां से मिटा दिए । ये आशियाना हो गया 'तायर' सुपुर्दे ख़ाक, तिनके जले हुए भी हवा ने उड़ा दिए।

इस भारत का तारा हूं

इस भारत का तारा हूं, सड़कों पर आवारा हूं । कोई मेरा रोज़गार नहीं, किसी का मुझ को प्यार नहीं । धनियों ने धित्कार दिया, मैंने सब कुछ देख लिया । इन पाप पुण्य बाज़ारों में मैंने सब कुछ देख लिया। इज़्ज़त को लुटते देखा, अस्मत को बिकते देखा, दौलत की क्या कहने, जिस्मों की तजारत क्या कहने। खामोश है यह सारी दुनिया, पाप पुण्य बाज़ारों में, मैंने सब कुछ देख लिया.... ... I मुझे सिसकियां भरने दो, बिना नफरत के मरने दो, देखो तो ज़रा तमाशे को, फुटपाथ पे सड़ने को । ये किसी का गुल चिराग हुआ, पाप पुण्य बाज़ारों में, मैंने सब कुछ देख लिया.... ... I कोसो न और गरीबों को पूछो न सड़े नसीबों को, तुम आग लगाने आए हो, तुम ऐश उड़ाने आए हो । मोहताज फिर मैं दाने का, इन पाप पुण्य बाज़ारों में, मैंने सब कुछ देख लिया.... ... I यह मय्यत है परवाने की कोशिश न करो उठाने की, रहने दो जहां जनाज़े को रहने दो मुर्दे ताज़े को । कोई देगा इस को दफना, इस पाप पुण्य बाज़ारों में, मैंने सब कुछ देख लिया.... ... I ऐ ओस के कतरो आग बनो, गीतो तुम आग के राग बनो, खत्म हुई जीवन की लै, दुनिया में क्या 'तायर' है। जलेगे दीया कब्रें का, इन पाप पुण्य बाज़ारों में, मैंने सब कुछ देख लिया.... ... I

कोई दिल में हसरत

कोई दिल में हसरत लिए जा रहा हूं, तेरे आसरे में जिए जा रहा हूं । उजड़ जो चुकी है तमन्ना की दुनिया, मैं वो दाग दिल में लिए जा रहा हूं। मुझे देख लो और हंसो दुनिया वालो, मैं खूने जिगर को पिए जा रहा हूं। जो ढूंढो तो मिल जाए मंज़िल का रस्ता, निशा उसके मैं तो दिए जा रहा हूं। मैं चाके जिगर चाक दिल हूं तो क्या है, मगर चाक दिल को सिए जा रहा हूं । नज़ारों को कहना ज़रा हट के रहना, मैं बंद अपनी आंखें किए जा रहा हूं। खुदारा न चेहरे से पर्दा हटाना, मैं पर्दों से जलवे लिए जा रहा हूं । ये हर सांस 'तायर' जो है जिंदगी का, निछावर किसी पे किए जा रहा हूं।

कुछ दीये और जलाए हैं

कुछ दीये और जलाए हैं वतन हमने। कुछ चमन और सजाए हैं वतन हमने । हमने मुरझाए हुए फूलों को ज़ीनत दी है। हमने अफसुरदा सी कलियों से मुहब्बत की है। नाज़ कुछ और उठाए हैं वतन हमने, कुछ दीये और... ... ... I हमने इफलास की वो काली घटा रोकी है I हमने नफ्फाक की ज़हरीली हवा रोकी है। अमन के पेड़ लगाए हैं वतन हमने, कुछ दीये और... ... ... I हमने कश्मीर में लद्दाख की उस वादी पर। उस हिमालय की वो बिखरी हुई उस वादी पर। खून के कतरे गिराए हैं वतन हमने, कुछ दीये और... ... ... I

मैं जब रौशन सितारों में

मैं जब रौशन सितारों में चमकता चांद पाता हूं। तो हुब्बे वतन के अक्सर नवीले गीत गाता हूं। गोये पुरानी दुनिया है पर नई तमन्ना मेरी है। मेरा मुस्तकबिल तो रौशन है आफत की मगर अंधेरी है, इस आज़ादी में छाए हुए हैं साए अभी गरीबी के, क्या करूं मुकद्दर पे शिकवा तकदीर अभी कुछ टेढ़ी है, गोये पुरानी... ... ... I अभी चश्में लहू उगलते हैं और नदिया खून की बहती हैं मौजों ने साहिल बनना है गरदाब ने करती घेरी है, गोये पुरानी... ... ... I बदलेगा ज़माना बदलेगा आकाश और सूरज बदलेगा, यह उफ्क की लाली कहती है ऐ 'तायर' तेरी देरी है, गोये पुरानी... ... ... I

वो सर ही क्या

वो सर ही क्या है जिस सर में सोदाए हुब्बे वतन नहीं । वो दिल ही क्या है जिस दिल में कुछ तड़प नहीं और जलन नहीं। वो घर ही क्या है जिस घर में सामां हो फितना साजी के वो देश ही क्या जिस देश में सुख चैन आराम और अमन नहीं। वो सर ही... ... ... I कमज़ोर इरादे होते हैं मंज़िल की तरफ जो बढ़ न सके । वो जोश ही क्या जिस जोश में कुछ कोई तड़प नहीं और लगन नहीं तदबीर वो क्या जो बिगड़ी हुई तकदीर को फिर से बना न सके। वो मन ही क्या जो देश प्रेम में मग्न नहीं प्रसन्न नहीं वो गीत है क्या जिन गीतों में संगीत नहीं और सोज़ नहीं । जो दिल में उतर न सके 'तायर' वो शेयर नहीं और सुखन नहीं। वो सर ही... ... ... I

हुई जा रही हैं नज़दीक राहें

हुई जा रही हैं नज़दीक राहें, सफर ये ख़त्म है कदम को बढ़ाएं। चलो साथियो अब तो बांधें कतारें, फर्ज़ है कर्ज़ अपने सर से उतारें । वतन के लिए कुछ जो करके दिखाएं, सफर ये ख़त्म... ... ... I ये कोह और सहरा यह सागर यह दरिया, अगली तरफ चीर कर तू निकल जा । तेरे साथ होंगी यह खुशकुन हवाएं, सफर ये ख़त्म... ... ... I अगर हौसले में कमी आ गई तो, ख्यालों में कोई गमी आ गई तो । तुझे घेर लेगी ये आकर बलाएं, सफर ये ख़त्म... ... ... I तेरी अक्ल से ही यह इज़्ज़त बनेगी, तेरे अमल से ही यह किस्मत बनेगी । तेरी तरफ 'तायर' है सबकी निगाहें, सफर ये ख़त्म... ... ... I

यह आज़ादी की देवी

यह आज़ादी की देवी कुछ चाहती है कुर्बानी। जब तलवारों से खेलें तब मिलती है जिंदगानी। लब पे था नाम आज़ादी और सीने में थी गोली। मैदान था वो अफल का यहां खून की खेली होली । इक अजब सा था वो आलम इक बनी थी नई कहानी । जब तलवारों से खेलें... ... ... । जब चली थी लाठी गोली और खुले थे बंदीखाने । जब फांसी से थे लटके ए देश तेरे दीवाने। उजड़ी थी किसी की दुनिया टूटी थी कोई जवानी । जब तलवारों से खेलें... ... ... । वो आज़ादी के पुतले वो देश पे मरने वाले। बलिदान वो देने वाले दुश्मन से लड़ने वाले। अब हमने मिलकर 'तायर' उनकी है याद मनानी । जब तलवारों से खेलें... ... ... ।

तूफान उठ रहा है

तूफान उठ रहा है सागर उबल रहा है। इस तेज सी हवा में इक दीप जल रहा है। मंज़िल में चलने वाले सब काफिले रुके हैं । भूचाल आ रहे हैं शोले धुएं उठे हैं । मैदान मौतगाह है पर्वत दहल रहा है । इस तेज सी हवा... ... ... I वो खोए जा रहे हैं वादी के सब नज़ारे । और मौत कर रही है कुछ तल्ख से इशारे । आकाश आग के अब गोले उगल रहा है । इस तेज सी हवा... ... ... I कुदरत नजाम अपना सारा पलट रही है। शीतल सा चांद भी अब आतिश उगल रहा है। धरती भी रुख को देखो जैसे पलट नहीं है। इस तेज सी हवा... ... ... I नूरे नज़र ये किसका किस मां का है यह बेटा । तूफान में दीए को 'तायर' है लेके बैठा । इस दौरे नारसा को नेहरू बदल रहा है। इस तेज सी हवा... ... ... I

चंपत हो गई निंद्रा रानी

चंपत हो गई निंद्रा रानी जाग उठे थे संत सिपाही । पग पग ठोकर खाते खाते चलते गए थे सब हमराही । तूफां आए बिजली कौंधी उभरी लहरें डूबा साहिल । कोमल कोमल कलियों का जलने लगा था हृदय शीतल । व्याकुल हुई थी देश की जनता गीत मधुर थे भूल गए । इधर थी लाठी उधर थी गोली इधर मौत और उधर तबाही। चंपत हो गई... ... ... I जाल के नीचे बिखरे दाने भोले पंछी कुछ न जानें। फांदी हाथ था मौत का पिंजरा लाख बने थे बंदीखाने । आग ने थी इक आग जलाई मौत ने ऐसे नगमें गाए । इनमें से निकला था तिरंगा जिस ने ज्योति अमर जगाई। चंपत हो गई... ... ... I तोड़ी कड़ियां और ज़ंजीरें गर्म रक्त की धारों ने। चूमी थी बलिदान की वेदी अपने वीर जवानों ने। पुण्य कर्म से 'तायर' गांधी, नेहरू और सुभाष मिले। एक थी मंज़िल एक निशाना, एक था रस्ता एक थे राही । चंपत हो गई... ... ... I

दीप जगाना दीप जगाना

दीप जगाना दीप जगाना गाना खुशी मनाना । नाचो उछलो खेलो कूदो नेहरू का फरमाना । ढोलक बजे कहे शहनाई सुंदर ऋतु है आई । धरती रानी केश संवारे चारों तरफ हरिआई । शाम निराली सुबह है उजली कैसा समां सुहाना । दीप जगाना... ... ... । पंछी जागे प्राणी जागे जागे भाग अभागे । माला पीछे बनी है 'तायर' पहले जुड़े थे धागे । एकता, अमन, आज़ाद का यह कैसा सुंदर गाना । दीप जगाना... ... ... ।

यह दिल कांटों को बिस्तर है

यह दिल कांटों को बिस्तर है जिगर छालों की बस्ती है । है मजमां इल्तजाओं का यहां हसरत बरसती है। यहां जीने पे पाबंदी है यहां मरने पे पाबंदी, यहां आटे का तोड़ा है यहां पर फाका मस्ती है है । यह दिल... ... ... I पुरानी यादगारों में वो छिप कर कौन बैठे हैं I बाहर बादल गरजता है बड़ी बिजली कड़कती है I कतारों में दुकानों पर खड़े हैं मांगने वाले । खुदाया क्या यही आज़ाद इंसानों की बस्ती है I सदा गलियों में आती है हाय रोटी हाय कपड़ा । ये मंज़र है जिसे देखो तो रूह अपनी बिलखती है। न कोई रोने वाला है जनाज़ा किस का उठा है I कलेजा चीरती यह बेकफन मईयत निकलती है I कड़कती धूप जलती रेत यूं बैरूत का साहिल । यह नंगे पांव दोशीज़ा खुदाया कैसे चलती है। फटे कपड़े सड़क पर फिर रहा है शायर आवारा। रंगी सी कार मैखाने के आगे से निकलती है। मुहाफिज़ कौम के बैठे हैं वो एयरकंडीशन में । बाहर वो बेबसी रोती तड़पती है बिलखती है। यह मेरा देश है 'तायर' मुझे कुछ शक गुजरता है। सियाकारों का मसकन है रियाकारों की बस्ती है।

ये बंधे नोटों का बंडल

ये बंधे नोटों का बंडल बंद सी तिजौरियां । चांदी और सोने के सिक्कों से भरी हुई बोरियां । कत्लोगारत बेपनाह और सीना जोरियां । लंबी लंबी दाढ़ियां और अस्मतों की चोरियां । ये रियाकारों के पुतले हैं खड़े हर गांव पर । और सब कुछ चल रहा है उस खुदा के नाम पर । ये मसजद गुरुद्वारे खानगाहें दमदमें । वो कालीने फर्श पर और वो गद्दे हैं गुदगुदे । दौलतों से ले रहे हैं सब खुदाई के मज़े । कर रहे हैं कर रहे हैं ऐश दुनिया के गधे । आंखें चिलमन की तरफ हैं और निगाहें जाम पर । और सब कुछ चल रहा है उस खुदा के नाम पर।

जिगर है चाक धरती का

जिगर है चाक धरती का जनाज़ा किस का उठा है, मेरे गंजीनायें दिल से ये मोती कम नहीं होते । अभी जोके अजीयत जाने क्या क्या गुल खिलाएगी, हमें उनसे शिकायत है कि वो बरहम नहीं होते । नियाज़ो नाज़ में पहले पहल की शिद्दतें तौबा, इरादे आतशीं होते हैं जब मोहकम नहीं होते । मिलकर अश्क पीते हैं मुस्सरत खेज़ बादा में, हज़ूरे हुस्न भी हम से नियाज़े ग़म नहीं होते । किसी का नाम अब भी खुद ही आ जाता है होठों पर, कुछ ऐसी चोट खाई है कि जलवे कम नहीं होते । उन्हीं के दम से कायम है वकारे बेखूदी अपनी, वो दीवाने मयस्सर जिन को जामों जम नहीं होते । इधर आंखों में आंसू हैं उधर इक हशर बरपा है, नहायत ग़मज़दा साहिल है त्रिवेणी के साहिल का । घटाओं में उदासी है फ़िज़ाओं में अंधेरा है, ठिकाना मिल गया बापू को उस जन्नत के गोशा में। यहां परदा भी जलवा है यहां कतरा भी दरिया है, तुम्हें परमात्मा दे शांति ऋषियों की दुनिया में यही है आरजू मेरी यही मेरी तमन्ना है। तेरी फुरकत से ऐ प्यारे वतन के राहबरे आज़म, तेरा दिल क्या है पहलू में कोई नन्हा सा छाला है। अगर तू हम से रुख़्सत हो गया ऐ मोहसिने भारत, तेरे हर नक्श पर बसजदा 'तायर' यह दुनिया है ।

अब उठो उठो इक बार

अब उठो उठो इक बार बढ़ाओ प्यार, उठो हिंदीओ गाएं जी मिल मिल के तराना गाएं जी जिस सारा ज़माना । एकता की कोई तार न टूटे वीणा मधुर बजाना गाएं, जी मिल वीरों के हों केसरी बाणे बहनों हाथ हो गानें देश के रोशन दीपक पर जल जल के मरें परवाने जल जल के मरें परवाने हम रल मिल कदम उठाएं विजय को पाएं उठो हिंदीओ आशाओं के उठे उछारे झूम उठें मतवारे नील गगन पर चमक रहे हैं नए नए चांद सितारे अतरीली चलेंगी हवाएं कमल खिल जाएं, उठों हिंदीओ... झनक झनक पायल बाजे और मांग सिन्दूर भरे, भाई बहन मिलजुल कर सारे देश का काज करें हिम्मत कुछ करके दिखाएं 'तायर' सुख पाएं उठो हिंदीओ....

यह दुनिया बुरी है

यह दुनिया बुरी है, यह दुनिया बुरी है। खुदाया ये तेरे कारिन्दों की दुनिया । यह मुर्दों से बढ़कर है जिन्दों की दुनिया । कफश में तड़पते परिन्दों की दुनिया । शैतानों, हैवानों, दरिन्दों की दुनिया । यह कैसा है जीवन यह कैसी है दुनिया। यह दुनिया... ... ...। न राहत का कोई सामान रह गया है I न जीने का कोई निशान रह गया है I यह मेहरों बफा अब कहां रह गया है I यह सूना सा तेरा जहां रह गया है I शराफत के अंदर शरारत छुपी है I यह दुनिया... ... ...। ये गिरजे शिवाले ये मंदिर ये मस्जिद । कभी जोत भक्ति की थी यां थी उजागर । है अब इनके अंदर कबाहत की चौसर । बाहर बिलखते है भूखे गदागर । अनब अबतरी है यह क्या जरगरी है, यह दुनिया... ... ...। महलों में जाओ जमालों को देखो। ये परियों के रोशन ख्यालों को देखो। उधर जाओ फिर अस्पतालों को देखो। बिना कफन के मरने वालों को देखो । वो लाशों पे इक बेबसी रो रही है, यह दुनिया... ... ...। बाज़ारों में चोरों लुटेरों को देखो। सांपों को देखो सपेरों को देखो। ये दौलत परस्तों के घरों को देखो । ये उजाले में काले अंधेरों को देखो । कि जर से ही अब सब को दिल बस्तगी है, यह दुनिया... ... ...। ये कांटों से भरपूर सेहने चमन । झुलसती है कलियों को चलती पवन। हां बिगड़े जहां साधुओं के चलन । अय्याशों के बाजू हसीनों की गर्दन । ऐ दौलत तेरा नाम अस्मत बरी है, यह दुनिया... ... ...। सियाकार बिगड़े रिवाजों की दुनिया । उजाले में अंधे समाजों की दुनिया । इधर देखो भूखे प्यासों की दुनिया । यह मरघट से बढ़कर मोहताजों की दुनिया । यहां कैसी मातम की सी सफ बिछी है, यह दुनिया... ... ...। मयखानों साकी अदाकार देखो। हुस्न का वो होटल में सरशार देखो। इधर तो जरा मेरी सरकार देखो । सड़क पर मरा कोई लाचार देखो। खरी बात 'तायर' ये तुमने कही है, यह दुनिया... ... ...।

ग़ज़ल-यह जवानी ढूंढती रह गई हयाते जाविंदा

यह जवानी ढूंढती रह गई हयाते जाविंदा और ज़िदगी मौत की लेती रहीं अंगड़ाईयां । चार दिन की ज़िंदगी में क्या भरोसा कीजिए दर हकीकत ज़िंदगी है सूरते परछाईयां । लाख नेकी इक बुराई का असर जायल करे एक गलती दूर कर देती है सब अच्छाईयां । मेहरबानी और दुश्मन बात यह मुतज़ाद है जिंदगी को जिंदगी देती है खुद आराईयां । मौत 'तायर' किस कदर साबित हुई बंदा नवाज़ माफ कर देती है जो इंसान की बदराईयां ।

ग़ज़ल-ग़मे हयात में डूबा हुआ वो जाम न हो

ग़मे हयात में डूबा हुआ वो जाम न हो, नसीब में हो जो लुकमां कहीं हराम न हो । तुम्हारी मेहरो मुरव्वत का इख्तताम न हो, वो फेज फेज ही क्या जो कि फेजो आम न हो । निगाह निगाह है वो क्या जो तुझको न पहचान सके, दिल वो दिल क्या है जिसे तेरा एहतराम न हो । इसी तमन्ना में गुज़री है अपनी शामो सैहर, मिले जो खाने को दाना तो साथ दाम न हो । चिारग और न वो आंसू न आरजूए सैहर, खुदा करे कि किसी घर की ऐसी शाम न हो ।

ग़ज़ल-दिललगी भी चाहिए इस जिंदगी के वास्ते

दिललगी भी चाहिए इस जिंदगी के वास्ते । जिस तरह दीये है जलते रोशनी के वास्ते । रोशनी हो या अंधेरा नूर या जुल्मात हो, मौत का लम्हा मुकर्रर है सभी के वास्ते । आरजूएं और उमंगें और कतरे खून के, ऐसे तोहफे चाहिए बस दोस्ती के वास्ते । नीची नज़रें और तबस्सुम बांकपन शर्मो हया, पांच बातें लाज़मी है कमसिनी के वास्ते । फूल हो कांटे बहारें या खिजां का दौर हो, एक है गुलशन फिराने अजनबी के वास्ते । गर किया अपने लिए ऐहले खिरद तो क्या किया, बात तब है कर दिखाओ तुम किसी के वास्ते । थोड़ा ज़र आबाद घर सबरो-तहम्मल है, दैहर में लाजिम है 'तायर' आदमी के वास्ते ।

ग़ज़ल-नहीं होता जिसे एहसास औरों की मुसीबत का

नहीं होता जिसे एहसास औरों की मुसीबत का, वो दिल पत्थर तो हो सकता है लेकिन दिल नहीं होता । मुहब्बत में खलूसे दिल अगर शामिल नहीं होता, इश्क वो इश्क क्या है जो इश्क कामिल नहीं होता । वक्त की तेज रफ्तारी से जो खेला नहीं करते, कभी भी खूबसूरत उनका मुस्तकिबल नहीं होता । जो मौजों के सहारे पर भी कश्ती ठेल देते हैं, उन्हें तूफान के गम में गमें साहिल नहीं होता । अमीरों के लिए बंद है खुदा के घर के दरवाज़े, कोई ज़रदार जन्नत में कभी शामिल नहीं होता । कुफर, बातल रियाकारी फरेबों मकर का इन्सान, ज़माने भर महफिल के कभी काबिल नहीं होता । खूदा का शुक्र कर 'तायर' जो सबको रिज़क देता है, सकूने शब बिलासब्रो शुक्र हासिल नहीं होता ।

ग़ज़ल-गिरती रही बिजली जलते रहे काशाने

गिरती रही बिजली जलते रहे काशाने, आबाद ही रहे हैं यूं ही तेरे घराने। आई कभी जो मुश्किल टकरा गए दीवाने, यूं दासताने गम के बनते है फसाने । बज़में निशात की तो है बात याद इतनी, उल्टे हुए थे सागर टूटे हुए पैमाने । फूलों की आरजू थी मेरे इश्क पारसा को कांटे बिखेरे राह में इस बख्ते नारसा ने। पत्थर के सनम पूजे सोने के बुत तराशे, कोई कर्म किया न फिर भी तेरी अदा ने । तेरे सिवा किसी का मैं मोतकिद नहीं हूं, मेरी नमाज़ क्या थी मिलने के थे बहाने । एहले इश्क तो था ही एहले सुखन बना कर, माहशर से कर दिया है वापिस मुझे खुदा ने । बर्बाद से चमन की रूहदाद है यह 'तायर', जलने लगे थे पत्ते तो आग दी हवा ने ।

ग़ज़ल-मस्जिद में हम तो जाके कह देंगे यह खुदा को

मस्जिद में हम तो जाके कह देंगे यह खुदा को । अब हाथ न उठेंगे हरगिज़ तेरी दुआ को । सजदे बजा के तेरे अब कौन भीख मांगे, हम खुद ही बना लेंगे अब बख्ते नारसा को । यह जिंदगी की नेमत सद शोक ले लो वापिस, हम दे रहे हैं दावत खुद ही तेरी कज़ा को । बेचैनिया है लेकिन राहत सकूने शब है, घर में बुला लिया है खुद हमने करबला को। ये है फरेब पूरा तसबी नमाज़ माला, जामे सबर है काफी मेरे इश्क पारसा को । इक जिंदगी को देकर सौ गम को देने वाले, करते हैं हम गवारा फिर भी तेरी रज़ा को ।

ग़ज़ल-अफसुर्दा शब को सलाम देकर सुबह हुई तो करा रहे हैं

अफसुर्दा शब को सलाम देकर सुबह हुई तो करा रहे हैं। नई मुसीबत की शौक से हम तलाश करने को जा रहे हैं। यहां मुरव्वत की बात कैसी यहां मुहब्बत की बात बंद है, हम जिनसे रज़रें मिलाना चाहें वो हमसे नज़रे चुरा रहे हैं I हमारे शौके जनून ही से में उबरे है खुशनुमा से कांटे, हम अपने हाथों का खून ताज़ा अभी भी उनको पिला रहे हैं । हमारे ताजे गदागरी पर है पारसाई के लाख हीरे, तुम्हें नहीं तो किसी-किसी को वो राहे मंज़िल दिखा रहे हैं I तमाम दुनिया के गमज़दों को यह अपना दे दो पैगाम 'तायर', कि शहनशाहियत का हम जनाज़ा तरुए सुबह उठा रहे हैं ।

ग़ज़ल-यही है शोर पहलू में यही हंगामा आराई

यही है शोर पहलू में यही हंगामा आराई । तेरी बज़में तगाफल में नहीं होती है सुनवाई । बड़े मनहूस साए है अमीरों के गरीबों पर, अभी तो आग बरसाए तवानों की तवानाई । यह दिल नन्हा सा शाला है अभी हसरत की ज़द में है, अभी तो दर्द में हमदर्द है इक अपनी तनहाई । दीवारों के परे कुछ कमकमों की अजब झिलमिल है, हमारी झोंपड़ी में आज तक न रोशनी आई । कहीं दिलचस्प वादे हैं कहीं रंगीन धोखे हैं, गुलों की आरजू में चांदनी शोले उठा लाई । हमारे दिल शिकस्ता पर गिरी जब बर्फ ऐ 'तायर', किसी ने मुस्कुरा कर कह दिया कि यह है सौदाई ।

ग़ज़ल-नज़र नज़र से मिलने की बात जाने दो

नज़र नज़र से मिलने की बात जाने दो। किसी से दिल को मिलाने की बात जाने दो । किसी तरह तो बहाने की बात जाने दो। किसी पुराने फसाने की बात जाने दो। हदूदे इश्क पे अब तक नज़र नहीं पहुंची, निशाने हस्ती मिटाने की बात जाने दो। तुम अपनी मेहरो मुहब्बत की बात बंद करो, और आज कल के ज़माने की बात जाने दो। अभी तो सजदे लिखे हैं हमारी किस्मत में, अभी तो सर के उढ़ाने की बात जाने दो। पिलाओ ऐसा नशा चढ़ के जो न उतर सके, सुराही शीशा पैमाने की बात जाने दो। ये रंजो ग़म व मुसीबत के दौर दौरा में, किसी को दिल के सुनाने की बात जाने दो। हमारे गोशाए दिल में नहीं जगह 'तायर', हमारे दिल में समाने की बात जाने दो ।

ग़ज़ल-तुम्हारा जब कभी महफिल में नाम आता है

तुम्हारा जब कभी महफिल में नाम आता है । सुराही झुकती है गर्दिश में जाम आता है। निगाह के तीर का जब दिल पे वार होता है, तो समझो प्यार का पहला पैग़ाम आता है। दिखाई देता नहीं है मगर खुदा है वो, जो मुश्किलों में हज़ारों के काम आता है। फराके दर्द में रंजो मेहन की बातों को, सुना सुना के किसी को आराम आता है। करूं मैं वादाकशी यां अदा नमाज़ करूं, ध्यान दोनों का ही वक्त शाम आता है। हमारी उनकी मोहब्बत की बात इतनी है, सलाम जाए जो ‘तायर' सलाम आता है।

ग़ज़ल-न बनी बात तो फिर और भी मुश्किल होगी

न बनी बात तो फिर और भी मुश्किल होगी। आज की रात तो फिर और भी मुश्किल होगी । सैंकड़ों लोग सुबह होते बिछुड़ जाएंगे, कल मुलाकात तो और भी मुश्किल होगी । कोई भी काम कशीदा न हो इस दुनिया में, न लगी घात तो और भी मुश्किल होगी। खेलो तुफां मुश्किल व बला से वरना, आई औकात तो और भी मुश्किल होगी । आज की शब और भी मुश्किल होगी, हुई प्रभात तो और भी मुश्किल होगी। लगा के प्यार की बाज़ी तू जीत ऐ 'तायर', गर हुई मात तो और भी मुश्किल होगी ।

ग़ज़ल-अब के जब ये दीदा ए तर हो गया

अब के जब ये दीदा ए तर हो गया । जो भी होना था वो बेहतर हो गया । अब उम्मीदे पास का झगड़ा ही क्या, दिल का एक टुकड़ा था पत्थर हो गया। दागे दिल दाग तमन्ना के सबब, ज़ख़्म था नासूर रस कर हो गया । चोट जब खाई उम्मीदो लतब ने, हाले दिल कुछ और बदतर हो गया । आरज़ूओं का वा मोमा और हज़ूम, इक सराफा दर्दे मुजतिर हो गया । दो कदम मंज़िल थी 'तायर' क्या करें, राह में गुमराह मुसाफिर हो गया ।

ग़ज़ल-कुछ गुनाहों स्वाब में गुज़री

कुछ गुनाहों स्वाब में गुज़री । जितनी गुज़री हिसाब में गुज़री । याद आए हुसीन ख्याल मुझे, जो जवानी शवाब में गुज़री । कुछ उमर कट गई सवालों में, कुछ उम्मीदे जवाब में गुज़री । चिरागे हरम में वो रात जो कि देखी थी रात वो ही ख्वाब में गुज़री । अच्छी जन्नत से रहीं वो 'तायर', जो कि सौहबत ऐ हबाब में गुज़री ।

अंतिम ग़ज़ल-तमाम उम्र तुम्हारी ही बंदगी की है

(तायर जी की अंतिम ग़ज़ल) तमाम उम्र तुम्हारी ही बंदगी की है। सपुर्द आपके सारी यह जिंदगी की है । हमारे ज़ौके मुहब्बत की शान तो देखो, हमने दुश्मन से दोस्ती की तमन्ना की है । गमें हयात की गर बात है तो है इतनी, वक्त ने साथ हमारे बड़ी हंसी की I किसी भी एक की मेरास नहीं है उलफत, यह वो दौलत के दहर में जो हर किसी की है I हसीन वादा रंगी धोखा फरेबे दौलत, यह बात अपनी है लेकिन यह कमसिनी की है । न चढ़ सका कभी चांदी पे मुतलमा कोई, हमने इस बात कोशिश तो बहुत की है । सुबह व शाम मिला जाम जिसे ऐ 'तायर' ऐसी किस्मत तो यहां पर किसी किसी की है।