Ibn-e-Insha
‎इब्न-ए-इंशा

इब्न-ए-इंशा (15 जून 1927-11 जनवरी 1978) का मूल नाम शेर मुहम्मद ख़ान था । उनका जन्म पंजाब के जालंधर जिले की फिल्लौर तहसील में को हुआ था। उनके पिता राजस्थान से थे। उन्होंने 1946 में पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए और 1953 में कराची यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई की। इब्न-ए-इंशा पाकिस्तान के मशहूर वामपंथी कवि और लेखक हैं। कविता के साथ-साथ उन्होंने बेहतरीन व्यंग्य लिखे। इब्ने इंशा पाकिस्तान की कई सरकारी सेवाओं से भी जुड़े रहे जिसमें रेडियो पाकिस्तान, नेशनल बुक सेंटर और संस्कृति मंत्रालय शामिल हैं। वो कुछ दिनों तक संयुक्त राष्ट्र में भी नियुक्त किए गए। वो हबीबुल्लाह गज़नफर अमरोहवी, डॉ गुलाम मुस्तफा और डॉ अब्दुल कय्यूम से काफी प्रभावित थे। उनकी मृत्यु लंदन में हुई थी। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : इस बस्ती के एक कूचे में, चाँद नगर, दुनिया गोल है, उर्दू की आख़िरी किताब ।

‎इब्न-ए-इंशा की ग़ज़लें

Hindi Ghazlein : Ibn-e-Insha

  • कल चौदहवीं की रात थी
  • 'इंशा'-जी उठो अब कूच करो
  • उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा
  • शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती
  • दिल हिज्र के दर्द से बोझल है
  • कुछ कहने का वक़्त नहीं ये
  • दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो
  • जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
  • सुनते हैं फिर छुप छुप उन के
  • सब को दिल के दाग़ दिखाए
  • किस को पार उतारा तुम ने
  • और तो कोई बस न चलेगा
  • रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को
  • देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब
  • अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
  • देख हमारी दीद के कारन
  • हम जंगल के जोगी हम को
  • दिल किस के तसव्वुर में जाने रातों को
  • जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली
  • जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है
  • हम उन से अगर मिल बैठे हैं
  • राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा
  • लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर
  • ऐ दिल वालो घर से निकलो
  • जंगल जंगल शौक़ से घूमो
  • दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक
  • पीत करना तो हम से निभाना सजन
  • हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था
  • इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही
  • सावन-भादों साठ ही दिन हैं
  • जोग बिजोग की बातें झूठी
  • ऐ मुँह मोड़ के जाने वाली
  • अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो
  • ख़याल कीजिये क्या काम आज मैं ने किया
  • फ़क़ीर बन कर तुम उनके दर पर