Himayat Ali Shair
हिमायत अली शाएर

हिमायत अली शाएर का जन्म औरंगाबाद ब्रिटिश भारत में हुआ। वह पाकिस्तान से उर्दू के कवि, लेखक, फिल्मी गीतकर थे। इन्हें उर्दू अदब में योगदान के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने प्राइड ऑफ़ परफॉरमेंस से नवाजा। मिट्टी का क़र्ज़, तिश्नगी का सफर, हारून की आवाज़ आदि इनके प्रमुख सन्ग्रह हैं।

हिमायत अली शाएर की ग़ज़लें

  • अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं
  • अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो
  • आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम
  • आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना
  • आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना
  • इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए
  • इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और
  • इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे
  • उस के ग़म को ग़म-ए-हस्ती तू मिरे दिल न बना
  • कब तक रहूँ मैं ख़ौफ़-ज़दा अपने आप से
  • क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए
  • चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब
  • जब तक ज़मीं पे रेंगते साए रहेंगे हम
  • जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए
  • तख़ातुब है तुझ से ख़याल और का है
  • दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो
  • नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए
  • पिंदार-ए-ज़ोहद हो कि ग़ुरूर-ए-बरहमनी
  • बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है
  • मंज़िल के ख़्वाब देखते हैं पाँव काट के
  • मेरा शुऊ'र मुझ को ये आज़ार दे गया
  • मैं जो कुछ सोचता हूँ अब तुम्हें भी सोचना होगा
  • मैं सो रहा था और कोई बेदार मुझ में था
  • यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ
  • ये बात तो नहीं है कि मैं कम स्वाद था
  • ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के
  • रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश
  • शाएर साहब इस बस्ती में किसको गीत सुनाते हो
  • साए चमक रहे थे सियासत की बात थी
  • हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
  • हो चुकी अब शाइ'री लफ़्ज़ों का दफ़्तर बाँध लो