हरिकेश पटवारी Harikesh Patwari

लोक कवि पं हरिकेश पटवारी (7अगस्त 1898 - 18 फरवरी 1954) का जन्म गांव धनौरी, तहसील नरवाना, जिला जींद (हरियाणा) में हुआ, जो कि एक रेडियो सिंगर थे। इनके पिता का नाम उमाशंकर व माता का नाम बसन्ती देवी था। उस समय धनौरी पटियाला रियासत में पड़ता था। पं हरिकेश ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव धनौरी में और माध्यमिक शिक्षा खन्ना पंजाब से प्राप्त की। इसके बाद कई दिनों तक वो खन्ना में रहे। फिर उन्होंने लोरी बस ली, जो आसपास के मार्गो पर चलती थी। इसके बाद बस को बेच कर आपने राजस्व विभाग में पटवारी के पद पर कार्य किया। पंडित जी हाजिर-जवाबी के लिए भी प्रसिद्ध थे, आपने कई भाषाओ में लेखन का कार्य भी किया।आजादी के बाद आपने हरियाणा के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक परिवेश को बहुत विश्वसनीय ढंग से अपनी रचनाये प्रस्तुत की। रचनाओं में व्यक्त सच्चाई और सहज कला के कारण रागनियां लोकप्रिय हुईं। आपने लेखन काल में कई रचनाये लिखी, जिसमे से निम्नलिखित चार पुस्तके देहाती बुक स्टोर नरवाना द्वारा प्रकाशित हुई-
1 वैराग्य रत्नमाला 2 आजादी की झलक 3 हरिकेश पुष्पांजलि 4 प्रश्नोतरी
अप्रकाशित रचनाये:- 1 सत्यवान-सावित्री किस्सा 2 जानी चोर 3 हरफूल जाट 4 ऊखा-अनिरुद्ध
पं हरिकेश पटवारी रेडियो सिंगर थे, सन् 1952 में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं जवाहरलाल नेहरू के नरवाना आगमन के समय भी पं हरिकेश पटवारी ने अपनी रचनाये प्रस्तुत की । पं नेहरू ने उनकी बहुत प्रशंसा की और उन्हें बहुत सराहा गया। उसके बाद नेहरु जी ने पं हरिकेश पटवारी को दिल्ली आने का न्योता दिया।

हरियाणवी कविता : हरिकेश पटवारी

Haryanvi Poetry : Harikesh Patwari

  • सन् 47 मैं हिन्द देश का बच्चा बच्चा तंग होग्या
  • ऊत पूत के होने में दुःख भारी
  • कर्म लिख्या फल पडै भोगणा, नही कोई तबदीर बणै
  • के मन का इतबार
  • गुरु दयालु कृपालु, कोई सरल सत्य उपदेश करो
  • चिन्ता चिता समान कहैं ?
  • छोटेपन की जड़ क्या है गुरु कौन पुरुष है छोटा
  • जन्म-मरण के बन्ध छुटज्या इतने काम किया कर
  • जब से दुनियां बसी आज तक ना ऐसा हाल हुआ
  • जर-जोरू-जमीन के कारण, बड़े- बड़े मर खपगे
  • ना कोई मेरै खिलाफ शिकायत, डायरी नही रिपोट पिता
  • नेता सुभाष बोस तेरी, सारा हिन्द करै बडाई
  • पूर्णमल बेईमान तनै, भक्ति कै ला दिया दाग
  • बिगड़ी मैं कोई बाप बणै ना, चलती मैं सौ साळे देखे
  • बेकदरे क्या करैं सनाखत
  • भूखे मरते भक्त, ऐश करते ठग चोर जवारी क्यूं
  • मन्दिर मस्जिद गिरजाघर, और देख्या गुरुद्वारा मनै
  • माल मस्त कोई खाल मस्त कोई रोणे मैं कोई गाणे म्हं
  • मुँजी के घर बिन दान पुन्न, व्यर्था धन सुन्ना है
  • मूर्ख का सत्संग इसा, जिसा लौहे कै जर लागै
  • यज्ञ-हवन पुन्न-दान धर्म म्ह, बंदे श्रूत जचाले
  • सतयुग त्रेता द्वापर से, कलियुग का पहरा खोटा
  • सदा एक सी रहै ना
  • सीख मानकै राणी की, राई तै पहाड़ करै मतन्या