हरियाणवी कविता : हरिकेश पटवारी

Haryanvi Poetry : Harikesh Patwari


सन् 47 मैं हिन्द देश का बच्चा बच्चा तंग होग्या

सन् 47 मैं हिन्द देश का बच्चा बच्चा तंग होग्या राज्यों का जंग बन्द होग्या तो परजा का जंग होग्या जिस दिन मिल्या स्वराज उसी दिन पड़गी फूट हिन्द म्हं जितने थे बदमास पड़े बिजळी ज्यों टूट हिन्द म्हं छुरे बम्ब पस्तौल चले कई होगे शूट हिन्द म्हं पिटे कुटे और लूटे बड़ी माची लूटे हिन्द म्हं एक एक नंग साहूकार हुआ एक एक सेठ नंग होग्या कलकत्ता बम्बई कराची पूना सूरत सितारा गढ़ गुड़गांवा रोहतक दिल्ली बन्नू टांक हजारा हांसी जीन्द हिसार आगराअ कोटा बलख बुखारा लुधियाणा मुलतान सिन्ध बंगाल गया सारा भारत भूमि तेरा रक्त में गूढ़ सुरख रंग होग्या कुछ कुछ जबर जुल्म नै सहगे कुछ कमजोर से डरगे कुछ भय में पागल होगे कुछ खुदे खुदकशी करगे कुछ भागे कुछ मजहब पलटगे कुछ कटगे कुछ मरगे खाली पड़े देखल्यो जाकै लाहौर अमृतसर बरगे जणों दान्यां नै शहर तोड़ दिए साफ इसा ढंग होग्या ऊपर बच्चे छाळ छाळ कै नीचे करी कटारी पूत का मांस खिला दिया मां नै इसे जुल्म हुए भारी जलूस काढे नंगी करकै कई कई सौ नारी एक एक पतिव्रता की इज्जत सौ सौ दफा उतारी जुल्म सितम की खबरें पढ़ पढ़ हरिकेश दंग होग्या

जब से दुनियां बसी आज तक ना ऐसा हाल हुआ

जब से दुनियां बसी आज तक ना ऐसा हाल हुआ हिंद के लिए बुरा साबित दो हजार चार का साल हुआ अंग्रेजां नै म्हारे देश का बिल्कुल चकनाचूर किया लूट लिया धन माल हिंद का अपणा घर भरपूर किया ऐसी डाली फूट सगा भाई भाई से दूर किया बंधी बुहारी खोल बिखेरी कितना बड़ा कसूर किया रंगा गादड़ बैठ तख्त पर जिन्हां शेर की खाल होया इस वजह से सत्पुरुषों का बुरी तरह से काळ होया ऐसा आया इंकलाब कोई उजड़्ग्या कोई बसण लाग्या कोई मरग्या कोई कटग्या भाग्या कोई फसण लाग्या कोई हारग्या कोई जीतग्या कोई रोवै कोई हंसण लाग्या किसे का दीवा गुल होग्या किसी कै लैम्प चसण लाग्या कोई मिटग्या, पिटग्या, कुटग्या कोई लुटग्या कंगाल होया कोई-कोई जो जबरदस्त था लूट कै मालामाल होया किसे की लाकड़ी किसे नै ठाई किसे का धन घर धरै कोई कोई कमजोरा कोई जोरावर कोई डरावै डरै कोई कहते सुणे लिख्या भी देख्या भरे वही जो करै कोई अपणी आंखां देख लिया अब करै कोई और भरै कोई करोड़ों लाश बही दरिया मैं नहरों का जल लाल होया सरसा की जा ढाब देखिए जमा खून का ताल होया सतयुग मैं तो मिथुन-मिथुन नै विकट रूप धर मार दिया त्रेता मैं तुल नै तुल का कर हनन धरण मैं डार दिया द्वापर मैं भी मिथुन-मिथुन नै पकड़ कै केश सिंहार दिया कळयुग में बिन जंग कुंभ नै कुंभ तख्त से तार दिया अब मकर के मकर हनेगा निश्वय “हरिकेश” को ख्याल होया हिंद हमारा बिना वजह जेर बे अलीफ और दाल होया

भूखे मरते भक्त, ऐश करते ठग चोर जवारी क्यूं

भूखे मरते भक्त, ऐश करते ठग-चोर जवारी क्यूं, फिर भगवान तनैं न्यायकारी, कहती दुनिया सारी क्यूं ।৷ टेक ।৷ नशे-विषय में मस्त दुष्ट, सुख की निद्रा सोते देखे, सतवादी सत पुरुष, भूख में जिन्दगानी खोते देखे, एम.ए. बी.ए. पढ़े लिखे, सिर पर बोझा ढोते देखे, महा लंठ अनपढ़ गंवार, कुर्सीनशीन होते देखे, फूहड़ जन्मै बीस एक नै, तरसै चातुर नारी क्यूं ।৷ शुद्ध स्वतंत्र संतोषी, महाकष्ट विपत भरते देखे, डूबे सुने तैराक बली, कायर के हाथ मरते देखे, चालबाज बदमाश मलंग से, बड़े-बड़े डरते देखे, शील संत और साधारण का, सब मखौल करते देखे, सूम माल भरपूर दरबार, दाता करे भिखारी क्यूं ।৷ कोई निरगुण गुणवान तनै, कोई साहूकार कोई नंग करया, कोई रोवै कोई सुख से सोवै, कहीं सोग कहीं रंग करया, कोई खावै कोई खड्या लखावै, सर्वमुखी कोई तंग करया, ना कोई दोस्त ना कोई दुश्मन, फिर क्यूं ऐसा ढंग करया, कोई निर्बल कोई बली बना दिया, कोई हल्का कोई भारी क्यूं ।৷ जीव के दुश्मन जीव रचे, क्यूं सिंह सर्प और सूर तनै, संभल वृक्ष किया निष्फल, केले में रच्या कपूर तनै, कोयल का रंग रूप स्याह कर दिया, बुगले को दिया नूर तनै, सांगर टींड बृज में कर दिए, काबुल करे अंगुर तनै, बुधु कानूनगो होग्या, रहा “हरीकेश” पटवारी क्यूं ।৷

बिगड़ी मैं कोई बाप बणै ना, चलती मैं सौ साळे देखे

बिगड़ी मैं कोई बाप बणै ना, चलती मैं सौ साळे देखे बिगड़ी पीछे ठोकर खाते लाख करोड़ों वाळे देखे चलती मैं छोटे छोट्यां की बड़े-बड़े पैंद तोड़ते देखे बिगड़ी पीछे बड़े बड्यां के छोटे सिर फोड़ते देखे चढ़ी हुई मैं दुश्मन आगे दुश्मन हाथ जोड़ते देखे बिगड़ी मैं सुत-नार-जार मां जाए पीठ मोड़ते देह्के चढ़ी हुई मैं गोरे पर पाणी भरवाते काळे देखे चढ़ी हुई मैं खून करणिये डाकू बरी छूटते देखे बिना खोट ही सड़ैं जेळ मैं जिनके करम फूटते देखे चढ़ी हुई मैं दुष्ट पुरुष भी असरत ऐश लूटते देखे बिगड़ी मैं सुख संपति के सारे प्रबंध टूटते देखे चढ़ी हुई मैं चोर लुटेरे डाकू भी रखवाले देखे चढ़ी हुई मैं पांच जणे कितनी बड़ी मार-मार गए थे बिगड़ी मैं कोतर सुअ कैरौं बड़े-बड़े वीर हार गए थे चढ़ी हुई मैं जापान जर्मन कई-कई मुल्क पार गए थे जब बिगड़ी एक पल मैं सब योद्धा हथियार डार गए थे चढ़ी हुई मैं अमरीका के सिक्के अजब निराळे देखे चढ़ी हुई मैं एक तीर से मछली की चक्षु फूटी जब बिगड़ी वही बाण चले ना गोपी भीलां नै लूटी चढ़ी हुई मैं निगल दिया बिगड़ी मैं निगल गई खूंटी नहीं चढ़ी का मोल-तोल और टूटी की कोई ना बूटी “हरिकेश” नै चितौड़ मैं मण-मण के लागे ताळे देखे

माल मस्त कोई खाल मस्त कोई रोणे मैं कोई गाणे म्हं

माल मस्त कोई खाल मस्त कोई रोणे मैं कोई गाणे म्हं खुद मस्ती मैं मस्त रहो चाहे कोई कुछ करो जमाने म्हं कोई अनुरागी कोई त्यागी कोई बल और धन म्हं मस्त कोई कोई ज्ञानी कोई ब्रह्मज्ञानी खल मूर्खपण म्हं मस्त कोई रज्या मरै कोई-कोई बरत करै और पौ भर अन्न म्हं मस्त कोई झक मारै कोई बक मारै रह मोनी मन म्हं मस्त कोई कोई घर कोई बण म्हं मस्त कोई अलमस्त फकीरी बाणे म्हं पाप करै कोई जाप करै हर के गुण गाकै मस्त रहै गुरुद्वारे अंदर कोई मस्जिद अंदर जाकै मस्त रहै घरबारी कोई ब्रह्मचारी कोई राख रमाकै मस्त रहै लठधारी कोई मठधारी कोई धूणा लाकै मस्त रहै कोई जटा बढ़ाकै मस्त रहै कोई राजी मूंड मुंडाणे म्हं कोई नशे म्हं कोई विषे म्हं खोदे धन माया सारी पड़ी चढ़ी का घटी बढ़ी का पता नहीं पता मस्तैं भारी मगन रहै कोई नगन रहै कपड़े मैं मस्त कपड़धारी कोई रहै लटपट कोई खटपट खोपरी की मत न्यारी कोई पुरुष से बणता नारी राजी भेष जनाने म्हं कोई-कोई पेट्टू पेट का टट्टू पीण खाण म्हं मस्त रहै कोई भसूरा मूर्ख पूरा आण जाण म्हं मस्त रहै हो निर्बल वो खल जो बोझ ठाण म्हं मस्त रहै मुंह बावै ना गाणा आवै फेर गाण म्हं मस्त रहै “हरिकेश” यूं ही मस्त रहा सदा पिलसण कलम घिसाणै म्हं

पूर्णमल बेईमान तनै, भक्ति कै ला दिया दाग

पूर्णमल बेईमान तनै, भक्ति कै ला दिया दाग, क्यूं राज घर जन्म लिया था, ओ पापी निर्भाग ।৷ टेक ।৷ हाथ बीच म्ह दिखै, तेरै झुठ सुमरणी सै, मीठी तेरी जुबान, पेट म्ह लगी कतरणी सै, माता उत्तम धाम देख, वेदा नै बरणी सै, इसे पापां नै देख रात नै, कापै धरणी सै, ब्रह्मचारी कै किस तरैया, यू इश्क गया था जाग ।৷ पढ़-लिखकै नै बेईमान, तनै ल्हाज शर्म खोई, चढ़या पिता की सेज पै, रै पूर्णमल धौही, करग्या घायल रात नै, वा नूणादे रोई, नीच मलंग भी नही करै, जो कार तनै टोही, बुरी करणीया जगत बीच म्ह, बणै हंस तै काग ।৷ सलेभान की दुनिया म्ह थी, सबतै ऊंची लाज, बुरी बात नै सुणकै, दुख मानैगा सकल समाज, जाम्या पूत-कपूत कोख तै, तार लिया सै ताज, तेरी करणी की सुणकै, के थुकैगा महाराज, ईश्वर के करणे होज्या, तेरै लड़ियो काला नाग ।৷ आग्या बख्त आखरी पूर्णमल, करणी का फल पा ले, तारदे पोशाक वस्त्र, पहर लिये तू काले, जिस माणस तै मिलणा चाहवै, दरबारा म्ह बुलवाले, फेर नही थ्यावैगा पूर्ण, खाणा हो सो खा ले, हरिकेश तेरी बदनामी का, खूब बणावै राग ।৷

ना कोई मेरै खिलाफ शिकायत, डायरी नही रिपोट पिता

ना कोई मेरै खिलाफ शिकायत, डायरी नही रिपोट पिता, हाथ जोड़कै मैं न्यू बुझु, के कुछ देख्या खोट पिता ।৷ टेक ।৷ चोरी ठग्गी बेईमानी, और ना बदमाशी करी मनै, काटटे नहर नही रजबाहे, ना कोई पासी करी मनै, जेल तोड़ कै मुलजमान, नही निकासी करी मनै, फीम, तम्बाकू, भंग, चरस, नही खुलासी करी मनै, नही शराब नाजायज के, भर-भर बेचे बोट पिता ।৷ ना लाइन, ना तार कटाये, ना बन्द टेलीफून करया, ना चोरी ना ठगी डाका, ना कोए मनै खून करया, ना दुखिया ना गरीब सताया, ना तंग अफलातून करया, राज विरोध कानून मनै, नही त्यार मज़बून करया, नही ख़रीज ना भरे रुपये, नही बणाये नोट पिता ।৷ ना तागू ना गठकतरा, ना राहजन जुएबाज कोई, इश्तिहारी मफरुर ठगों से, ना मैं रखता साझ कोई, एक तरफा ना करी बगावत, नही दबाया राज कोई, राज विरोधी कांग्रेस काउंसिल, नही बणाया समाज कोई, बिना टिकट गाड़ी म्ह बैठकै, चाल्या नही विदोट पिता ।৷ मेरी आखरी सुणो पिता जी, प्राण पवन म्ह लौ होंगे, बिना सबूत सफाई के, मेरे गवाह शहर म्ह सौ होंगे, ताज इंद्रराज किताब पढे बिन, गलत फैसले जो होंगे, साच्ची करकै मान पिताजी, एक खून नही दो होंगे, हरिकेश भी गेल चिता कै, जलै जोट की जोट पिता ।৷

सीख मानकै राणी की, राई तै पहाड़ करै मतन्या

सीख मानकै राणी की, राई तै पहाड़ करै मतन्या, बालक के प्राण लिकड़ज्यांगे, इसी खोटी ताड़ करै मतन्या ।৷ टेक ।৷ बिना कजा बालक मरज्यागा, तनै राव जी के थ्याज्या, पूनम कैसा चाँद छिपाकै, तनै सबर क्यूकर आज्या, अपणे आप खेत नै खाज्या, ऐसी बाड़ करै मतन्या, बिगडै नीत रुखाले की, तू इसा उजाड़ करै मतन्या ।৷ बात हाथ तै छुट्टे पाछै, फेर वापस कोन्या आवै, लाया होया रुख तेरा, क्यूँ आपणे हाथां कटवावै फेर पाछे तै पछतावै, कुणबे का भाड़ करै मतन्या, आपणे हाथां अपणे घर की, दोसर पाड़ करै मतन्या ।৷ बारां साल का बच्चा सै, इसनै कामदेव की सार नही, मैं नेम उठाकै कहूं राव तेरा, गन्दा राजकुमार नही, इसी त्रिया का इतबार नही, इज्जत दोफाड़ करै मतन्या, महल हवेली कमरया के तू, बन्द किवाड़ करै मतन्या ।৷ घर का नाम जरूरी होगा, हाम डर रे सां इस डर म्ह, बिगड़ी बात संभाल राव, तेरै कल्ह्या जाग रही सै घर म्ह, हरिकेश जग भर म्ह सबकी, निच्ची नाड़ करै मतन्या, जुल्म का फल खुवाकै सबकी, खाटटी जाड़ करै मतन्या ।৷

मुँजी के घर बिन दान पुन्न, व्यर्था धन सुन्ना है

मुँजी के घर बिन दान पुन्न, व्यर्था धन सुन्ना है, शील सब्र सन्तोष दया बिन, आदम तन सुना है ।৷ टेक ।৷ सुन्नी राजा बिन राजधानी, रैयत सारी सुन्नी, मतलब कारण प्रेम करै, वह प्रीति यारी सुन्नी, किले कोट घर पड़े पुरुष बिन, महल अटारी सुन्नी, सुन्ने फूल बिना खुशबोई, केशर क्यारी सुन्नी, पति बिन नारी सुन्नी, दामन बिन धन सुन्ना है ।৷ हिरदा सुन्ना ज्ञान बिन, और दान बिना कर सुन्ना, कुआ जोहड़ तालाब नीर बिन, समझ सरासर सुन्ना, ज्ञान अक्ल चतुराई विद्या बिन, मूर्ख सुन्ना, पूत सपूत और पतिव्रता नारी बिन, घर सुन्ना, शुरवीर बिन शस्त्र सुन्ना, शुरे बिन रण सुन्ना है ।৷ सेल सिपर तलवार कटारी, तीर अणि बिन सुन्ने, खेल तमाशे मेले झेले, भीड़ घणी बिन सुन्ने, सुन्ने बालक मात पिता बिन, ढोर धणी बिन सुन्ने, बड़े बड़ेरे सुन्ने बताते, नाग मणि बिन सुन्ने, शेर बणी बिन सुन्ने, और केहरी बिन बण सुन्ना है ।৷ जहाँ पुरुष की कदर नही वहाँ, आणा जाणा सुन्ना, शर्म लिहाज बिन बुढ़ा, बालक याणा स्याणा सुन्ना, विधवा नारी का गिरकणा, बाणा लाणा सुन्ना, सुन्नी पिंगल बिन कविताई, मुह बाणा गाणा सुन्ना है, कहै हरिकेश खाणा सुन्ना, घी बिन भोजन सुन्ना है ।৷

जर-जोरू-जमीन के कारण, बड़े- बड़े मर खपगे

जर-जोरू-जमीन के कारण, बड़े- बड़े मर खपगे, घर लुटगे बरबाद हुए, मुल्कों में बेरे पटगे ।৷ टेक ।৷ जर के कारण पुत्र-पिता, माँ जाये लड़ते देखे, जर कर कारण हवालात म्य, मुलजम सड़ते देखे, जर के कारण चोर-लुटेरे, परधन हड़ते देखे, जर के कारण खून तलक हो, डाके पड़ते देखे, जर के कारण एक-एक के, सो-सो के हिस्से बटगे ।৷ जोरू के बस ब्रह्मा-विष्णु, कृष्ण मुरारी होगे, जोरू के कारण ऋषि-मुनि, योगी घरबारी होगे, जोरू के कारण राव-बादशाह, सेठ भिखारी होगे, जोरू के कारण शूरवीर, तेग दुधारी होगे, आगा रोपण वाले, जोरू कारण पीछै हटगे ।৷ जमीन के कारण लाखो मरगे, नर और नारी जहर घुटगे, जमीन के कारण रामचन्द्र जी के, घरबार छूटगे, जमीन के कारण बड़े-बड़े, प्यारा के प्रेम टुटगे, जमीन के कारण कौरव और पांडवों के, मोन्ड फुटगे, जमीन के कारण मिनटों म्य कुछ के, कुछ ढंग पल्टगे ।৷ सबका कारण लोभ मूल फंसा देश, लोभ के बस म्य, त्यागी - बैरागी देखे, दरवेश लोभ के बस म्य, नर करते देखे नारी का भेष, लोभ के बस म्य, गाम कसुहन कैद रहा हरिकेश, लोभ के बस म्य, जर्मन रूस जापान लोभ के कारण, जंग म्य डटगे ।৷

सतयुग त्रेता द्वापर से, कलियुग का पहरा खोटा

सतयुग त्रेता द्वापर से, कलियुग का पहरा खोटा, चार वर्ण एकसार होए, कोई बड़ा रह्या ना छोटा ।৷ टेक ।৷ सतयुग मै हमारी विप्र कौम, केहरी ज्यूँ कुक्या करती, त्रेता में जो बात कही, कोन्या उक्या करती, द्वापर मै इनकी धोती, अम्बर में सुक्या करती, कलयुग में ऐसे कर्म करे, जिन्हे दुनिया थूक्या करती, करै भेष जनाना, अब नाचण का मारै जोट्टा ।৷ सतयुग में क्षत्री बच्चे थे, मरदाने करतूती, त्रेता में गऊ विप्र रक्षक, महक गई राजपूती, द्वापर में सिंह मारया करते, ऐसी थी मजबूती, कलियुग के राजपूत इसे, जिनसे नही मरती कुती, ठा ले साफा धोती जुती, बेला थाली लोटा ।৷ सतयुग में धर्मार्थ सेठ, भण्डारे खोलण लागे, त्रेता में पुनः दान के तप से, निर्भय डोलण लागे, द्वापर में सब झूठ तजी, बिल्कुल सच बोलण लागे, कलयुग में सब साहूकार झुठ बोलै, कम तोलण लागे, दमड़ी पर सो-सो नेम करै, सबका गया लिकड़ लँगोटा ।৷ सतयुग में खाते शुद्र, मेहनत से उदर भरकै, त्रेता में गुजारा करै थे, खिदमतदारी करकै, द्वापर में तीनों वर्णों से, रहया करै थे डरकै, कलयुग में शूद्रों का झंडा, सबसे ऊंचा फरकै, हरिकेश से नही खुलै, ये बंध गया भरम भरोटा ।৷

जन्म-मरण के बन्ध छुटज्या इतने काम किया कर

जन्म-मरण के बन्ध छुटज्या इतने काम किया कर, यज्ञ-हवन तप-दान भजन-संध्या, सुबह शाम किया कर ।৷ टेक ।৷ शील सब्र धारण करकै, सन्तोषी रहया कर, चोरी-जारी बदकारी से, सो-सो कोस दूर रहया कर, अफीम-शराब चरस-भंग पीकर, मत बेहोश रहया कर, कंच पात्रसम शुद्धचित्त, निर्मल-निर्दोष रहया कर, काम-क्रोध लोभ-मोह की, रोकथाम किया कर ।৷ मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे म्य, मजहब वार जाया कर, बारा मास राख अन्नक्षेत्र, खुद सूक्ष्म खाया कर, सर्दी में वस्त्र का दान, गर्मी में पो लाया कर, चतुर्मास में कुरुक्षेत्र म्य, बस तीर्थ नहाया कर, जगन्नाथ बद्री बिशाल, रामेश्वर धाम किया कर ।৷ धर्म दया सुखरतपन म्य, कुछ नाम बढ़ाया कर तू, योगाभ्यास क्रिया का, कुछ अभ्यास किया कर तू, गीतादि अंग योग के, पढ़ा पढ़ाया कर तू, नेत्र मूंद पद्मासन ला, श्वास चढ़ाया कर तू, बैठ स्वतंत्र लगा समाधि, प्रणायाम किया कर ।৷ हानि लाभ समान जाण, सच्चा उपदेश किया कर, दुःख सुख शोक वियोग रंज गम, मत कर्म शेष किया कर, क्रोध विरोध को त्याग गुजर, बनके दरवेश किया कर, व्यर्था करै नशीहत कुछ, खूद भी हरिकेश किया कर, ढाई हरफ का मूलमंत्र जप, राम ही राम किया कर ।৷

मन्दिर मस्जिद गिरजाघर, और देख्या गुरुद्वारा मनै

मन्दिर मस्जिद गिरजाघर, और देख्या गुरुद्वारा मनै, तेरा गांव घर तू ना मिल्या, ब्रह्मांड ढूंढ लिया सारा मनै ।৷ टेक ।৷ काशी मक्का हरिद्वार, ननकाणे धक्के खाए प्रभु, पूरी द्वारका अयोध्या ढूंढ़ी, नही बृज में पाए प्रभु, चार धाम अड़सठ तीर्थ सब, कुरुक्षेत्र में नहाये प्रभु, श्री गंगा यमुना सरस्वती म्य, सौ-सौ गोते लाये प्रभु, जो बिन जल तीर्थ आये प्रभु, लिया लीप बदन कै गारा मनै, खूब लगाया पापनाशिनी, हर हर गंगे नारा मनै ।৷ पैर बांध गया लटक कुए म्य, नही मरण तै डरया प्रभु, क्षुधा तृषा निंद्रा तजकै, मनै ध्यान आपका धरया प्रभु, मौन धारया फिरया नग्न बणा म्य, विकट कष्ट दुख भरया प्रभु, एक महीना तलक व्रत मनै, चन्द्रायण का करया प्रभु, मैं व्यर्था भूखा मरया प्रभु, न्यू ही करी एकादशी 12 मनै, मस्टंडे ठग पाखंडियो नै, ठग लिया दे दे लारा मनै ।৷ काली भैरव हनुमान और, सप्तशति दुर्गे माई, सब पूजे ब्रह्मा विष्णु, शिव शंकर की महिमा गाई, सिख समाजी जैन बण्या मैं, मुसलमान और ईसाई, गिरी पूरी रोड़े कुलके, सब पन्थों म्य ठोकर खाई, धुणी पांच जेठ में लाई, पोह में ली जलधारा मनै, ग्रन्थ कुरान अंजिल शास्त्र, खोजे पुराण अठारा मनै ।৷ पीर पादरी अकालियों की, सेवा करी हमेश प्रभु, काम क्रोध मद लोभ मोह का, संग म्य मिल्या क्लेश प्रभु, योगी मुनि महात्माओं का, खूब सुण्या उपदेश प्रभु, पण्डित गुणी कवि सब, देख लिया हरिकेश प्रभु, एक मंत्रमूल विशेष प्रभु, बतला दिया मम्मा रारा मनै, पांच तीन दो दमन करण, काफी मिल्या सहारा मनै ।৷

नेता सुभाष बोस तेरी, सारा हिन्द करै बडाई

नेता सुभाष बोस तेरी, सारा हिन्द करै बडाई, कलियुग के अवतार तनै, भारत की फंद छुड़ाई ।৷ टेक ।৷ साल आठ सौ से, श्री भारत माता कैद पड़ी थी, आजादी की ख़ाहिशमन्द, जोड़े दो हाथ खड़ी थी, सब नै जोर लगा लिए, जो हस्ती बड़ी-बड़ी थी, सेठ बहादुर अक्लमंदों की, कोन्या अक्ल लड़ी थी, तनै अपने सिर बोझ उठा लिया, सबकी पीठ झड़ाई ।৷ कटक शहर और जिला खास, सूबा बंगाल बताया, बोस गोत्र धनाढ़य विप्र घर, जन्म आपने पाया, नाम जानकीनाथ पिता का, जिसने लाड लड़ाया, बचपन से था होनहार, अवतार त्रिगुणी माया, साल सोहलवे में करली तनै, बी.ए. तलक पढ़ाई ।৷ वतन छोड़कर चले दिवाने, अन्तर ध्यान होये थे, भेष बदलकर मौन धार, खुद असल पठान होये थे, काबुल गये कंधार, जर्मनी के महमान होये थे, गुप्त रुप से चले फेर, प्रकट जापान होये थे, स्वतंत्रता के कारण, ब्रटिश से करी लड़ाई ।৷ महा भयंकर युद्ध किया, दिन में किया अंधेरा, तोप रफल बन्दूक अगन, बम्ब बरसंण लगै चौफेरा, अंग्रेजो ने चारो तरफ से, जब दे लिया था घेरा, हरिकेश कहै सर-सर करता, जहाज उड़ग्या तेरा, नही पता उस दिन से, कर गये कौन लोक चढ़ाई ।৷

कर्म लिख्या फल पडै भोगणा, नही कोई तबदीर बणै

कर्म लिख्या फल पडै भोगणा, नही कोई तबदीर बणै, कर्म से राजा सेठ बादशाह, कर्म से नंग फकीर बणै ।৷ टेक ।৷ कर्म उतारै गद्दी पर से, कर्म से तख्त व ताज मिलै, कर्म से बग्गी पिनस पालकी, मोटर हवाई जहाज मिलै, कर्म चढ़े तो फौज रिसाले, भूमण्डल का राज मिलै, कर्म उतरज्या किसे खजाने, नही पेट भर अनाज मिलै, भाग्यवान के सदावर्त मै, हलवा पूरी खीर बणै ।৷ कर्म से मूर्ख कर्म से ज्ञानी, कर्म से कायर शूरा हो, कर्म से डाकू जालसाज, बदमाश चोर ठग पूरा हो, कर्म से भोगी कर्म से रोगी, कर्म से कबरा कूरा हो, कर्म से सोहणा कर्म से भुण्डा, कर्म से काला भूरा हो, कर्म से निर्बल कर्म से योद्धा, बलि पिगम्बर पीर बणै ।৷ कर्म से हजूर सरीफ कर्म से, बैली लड्डू खाणा हो, कर्म से लंगड़ा लुल्ला, गूँगा अंधा काणा हो, कर्म से दुखिया कर्म से सुखिया, कर्म से पागल स्याणा हो, कर्म से ओढे शाल दुशाले, कर्म से भगवां बाणा हो, बिना कर्म ना बणै सिपाही, कर्म से बड़ा बजीर बणै ।৷ कर्मरेख की चाल नही, समझी मूढ़ ग्वार तनै, झोक्या भाड़ रहा दिल्ली म्य, ढोई मुफ्त बिगार तनै, कर्तव्यं सो भोक्तव्यं, न्यू बतलाते छः च्यार तनै, जिसे कर्म तू करे उसा, हरिकेश मिल्या पटवार तनै, पहले कर्म लिख्या जा मूर्ख, पीछे तेरा शरीर बणै ।৷

गुरु दयालु कृपालु, कोई सरल सत्य उपदेश करो

गुरु दयालु कृपालु, कोई सरल सत्य उपदेश करो, चतुर शिष्य तेरा भरम मिटै, मन मे शंका पेश करो ।৷ टेक ।৷ इस अपार संसार सिंधु से, तिरने का क्या इलाज है ? विश्वपति परमपिता के चरण कमल का जहाज है, कौन बन्धन में बंधा हुआ, जिससे सब जनता नाराज है? सब विषयो में फंसा हुआ, जो तृष्णा मन का मोहताज है, कैसे विमुक्त जगत में हुं, मेरे मन का दूर क्लेश करो? सकल विषयो का त्याग, शिष्य तृष्णा की यही मेश करो ।৷ घोर नर्क है कौन गुरु? बस चेले अपना शरीर है, स्वर्ग का पद क्या है? जिसे तृष्णा की काटी जंजीर है, कौन संसार हरन वाला? जो आत्मज्ञानी गम्भीर है, मोक्ष का करण बता गुरु? जो शुद्ध आत्म शरीर है, कौन प्रधान नर्क का? मत नारी से प्यार विशेष करो, स्वर्ग को देने वाल क्या? मत जीव हिंसा दरवेश करो ।৷ इस संसार में गुरु जी कौन आनंद से सोता है ? जो ईश्वर के रूप में शिष्य हरदम स्थित होता है, कौन जागरण करे सदा और क्या जागरण में टोटा है, सत्य असत्य जानने वाला त्याग नींद मल धोता है, शत्रु कौन जगत में मुरशद हृदय ज्ञान प्रवेश करो? कर्म इन्द्रिय ज्ञान इन्द्रिय इन का नामुद नेश करो, सबसे दरिद्र कौन बताओ मेरे गुरु वेदाचारी? वही दरिद्री सबसे बढ़कर आशा तृष्णा है भारी, कौन सेठ है धनवाला जिसे मान रही जनता सारी? वह संतोषी पुरुष जिसे आशा तृष्णा दोंनो मारी, जीते जी है मरा कौन ? पुरुषार्थहिन हितेष करो, अमृत क्या है कहो? निराशा मत आशा हरिकेश करो ।৷

छोटेपन की जड़ क्या है गुरु कौन पुरुष है छोटा

छोटेपन की जड़ क्या है? गुरु कौन पुरुष है छोटा । जो मंगता हर वक्त, मंगत रहे नीत में टोटा।। टेक ।। बड़पन की जड़ क्या है सतगुरु? जो बिल्कुल सवाल करै ना, किसका जन्म सराहने लायक? हटकै जन्म धरै ना, किसकी मृत्यु अच्छी है? जो मरज्या फिर मरै ना, गूंगा कौन? समय पर जो चुप खिंचे, कतई डरै ना, बहरा कौन है? सुनै ना हितकर, वह सबसे खोटा। किसका नही इतबार? स्त्री है मिटटी का लोटा ।। एक तत्व क्या है स्वामी? ईश्वर आचरण काम सही है, सबसे उत्तम क्या है? जो उत्तम आचार काम सही है, देने योग्य दान क्या है? सदा अभय परिणाम सही है, शत्रु कौन है ? क्रोध झूठ तृष्णा सहित काम सही है, विषयों से तृप्त नही कौन? वही कामदेव बड़ा खोटा । दुःख की जड़ क्या है? सिर पर मोह ममता का सोटा।। मुख का भुषण क्या सतगुरु? सिर तोड़ पढ़ाई कर ले, ना पछतावै कर्म कौन सा? प्रेम लड़ाई कर ले, सच्चा कर्म कौन प्राणी हित? सहम चढ़ाई कर ले, शिव भगवान विष्णु का पूजन? और कढ़ाई कर ले, किसके नाश करने में सूक्ति? मन का पकड़ो चोटा। किसमे भय नही ? साफ मोक्ष मे मिलै ना मम को झोटा ।। बाकि और सवाल निरन्तर, डरणा चाहिए किस जन से? लोक निंदा का डर ज्यादा, और दुनिया रूपी वन से, अति प्यारा बन्धु कौन शिष्य? पूछ रहा भोलेपन से, वही बन्धु हरिकेश विपत म्य,करै सहाई तन-मन से धन सतगुरु प्यारा, पिता कहो कौन हमारा ? पालन पोषण करे जौन, वही पिता तुम्हारा।।

मूर्ख का सत्संग इसा, जिसा लौहे कै जर लागै

मूर्ख का सत्संग इसा, जिसा लौहे कै जर लागै, शेर-सांप का डर ना, मूर्ख मुसळ तै डर लागै ।৷ टेक ।৷ यह मूर्ख का पहला लक्षण, बोझ तीन मण ठावै, पाणी पिन्दा हाँसै, रसोई रस्ते चलता खावै, गुप्ती सलाह करै दो बैठे, बिना बलाया आवै, ना समझें ना आँख पिछानै, ना उठै ना जावै, के उसकी जिन्दगी जिसकै, इसा ऊत जन्म भर लागै ।৷ कुल दुनिया की खबर सुणै, टूनिंग रेडियो डौलै, घड़-घड़ गड़ग तुरंत पेलै, राई तै पर्वत तोलै, बिना बात ले मोल लड़ाई, लठ मारै घा खोलै, बड़े बड्या नै भरी सभा म्य, मूर्ख कहै-कहै बोलै, बोखरड़ बोल चुभै तन म्य, जणो आर गरागर लागै ।৷ पिछै जंगल जावै तड़कै, उठ सपोडै बासी, दलिया खुरच तविया भरले। एक धड़ी भर लासी, 15 रोटी हड़प करै, दलदार गुदगुदी खासी, साबत गुड़ की भेली खाकै, खोदे सत्यानाशी, साफ पशु बिन सींग रींग बिन, और शक्ल खर लागै ।৷ ढेला पेट भूत सी काया, ऊं काला रठ पूरा, कहै झूठ नै साच, साच नै झूठ कहै सठ पूरा, ना लरजै ना मुडै टूटज्या, कीकर का लठ पूरा, हरिकेश बिन पतै खामखा, करण लगै हठ पूरा, एक दिन मूर्ख की सेवा कर, फिर रोजाना कर लागै ।৷

यज्ञ-हवन पुन्न-दान धर्म म्ह, बंदे श्रूत जचाले

यज्ञ-हवन पुन्न-दान धर्म म्ह, बंदे श्रूत जचाले, बेईमानी छल-कपट छोड़कै, ध्यान हरि म्ह ला ले ।৷ टेक ।৷ अमर रह ना सदा कोई, या दो दिन की जिन्दगानी, बुरे कर्म से नरक मिलै, शुभ से स्वर्ग निशानी, भजनानन्दी तिरते देखे, डूबैगे अभिमानी, धर्मराज कै रह ना जाकै, पाप-पुन्न कोई छानी, करणी के फल मिलै जरूरी, चाहे जितना जतन बणालें ।৷ अवधपुरी म्ह हरिश्चंद्र नै, आच्छा कर्म करया था, धर्म समझ कै भंगी के घर, जाकै नीर भरया था, श्मशाना की चौकी ओटी, मन म्ह नही ड़रया था, खीच कटारा रानी के, गल ऊपर आप धरया था, काशी पार करी संग राजा, रैयत-फ़ौज रिसाले ।৷ मोरधज से दानी हो गये, जाणै प्रजा सारी, लेण परीक्षा गये द्वारे, अर्जुन-कृष्ण मुरारी, लड़के का लिया खून मांग, धरी कंवर पै आरी, खुद लड़के नै चिरण लागे, आप पिता-महतारी, शुभकरणी कर पदवी पागे, इसी और कौणं पाले ।৷ ध्रुव भगत से बालकपण म्य, यश दुनिया म्ह करगे, बहोत घणे इस दुनिया के म्ह, मौत गधे की मरगे, व्यपारी व्यपार करै थे, धन जोड़ कै धरगे, पापी डुब्बे मझधार म्ह, राम भजनिये तिरगे, गाम धनौरी हरिकेश तू, लयदारी में गाले ।৷

चिन्ता चिता समान कहैं ?

चिन्ता चिता समान कहैं मुझे चिता से चिन्ता बड़ी लगै चिंता फूके जन्म मरण तक चिता फूकदे घड़ी लगै ।৷ टेक ।৷ पड़े चिता में एक लख्त जल कर खाक भस्म होजा, जीवन दे ना मरण दे, जड़े चिंता खड़ी खसम होजा, चिंता में कुछ लगै ना अच्छा खाना टूक कसम होजा, बल, शान्ति रंग रूप रहै ना गीदड़ किसा पशम होजा, चिन्ता बेहम बीमारी कै कोई ना बूंटी ना जड़ी लगै । चिन्ता फूकै जन्म मरण तक.......... चिंता घुण एकसार समझ खपरा डीमक सुरसी, ढोरा, जहाँ छःओंका मुंह पड़ज्या वहाँ काढ धरैं कालर कोरा, चिंता लगी भैंस दो तूगी मरया बैल सोहरणा गोरा, ढूंढ ढहा, ना घास रहा, एक फूकै भात, ब्याहना छोरा, चिंता लगी कहाँ से लाऊँ नाज रोज दो घड़ी लगै । चिन्ता फूकै जन्म मरण तक.......... गुजर गई सो गुजर गई गुजरी का फिकर करै ठाली, गुजर रही सो गुजर रही है झुर झुर मूढ मरै ठाली, गुजरेगी सो गुजर जायेगी पहले वृथा डरै ठाली, होनी हो अवश्य होगी चिंता चित चरै ठाली, वहाँ कहाँ सुख चैन जहाँ चिंता की डयूटी खड़ी लगै । चिन्ता फूकै जन्म मरण तक.......... चिंता त्याग क्षुधा तृषा और शील सहन करके पक ले, मोहनभोग चै बासी दलिया जिसा मिले उसा अन छकले चाहे अलफी चाहे मिले दुसाला वस्त्र से तन को ढकले, कर्म लिखा सोई मिलै जरूरी चिंता करते बेअकले, "हरिकेश" को यह चिंता कभी महालंठ से अड़ी लगै । चिंता फूके जन्म मरण तक चिता फूकदे घड़ी लगै।

बेकदरे क्या करैं सनाखत

बेकदरे क्या करैं सनाखत अच्छे बुरे माल की । कहैं लाल ने कंच कंच में करदे सिफत लाल की ।। बिना कदर बेअर्थ गधे के इतर लगाना अंग में । लिटैं गंद में सूर कभी नहीं नहाते देखे गंग में । बहरे ने क्या पता साज रहे बाज कौन से रंग में । अन्धे आगे करै रोशनी बात बनी किस ढंग में । गुण मूर्ख का मेल जिसा बन्दर दिया बिठा पालकी । कहैं लाल ने कंच कंच में करदे सिफत लाल की ।। रणभूमि की कदर जंगजू होती शूरवीर नै। के हिजड़े ने पता चलाया क्यूकर करैं तीर नै । मोती परखै हंस दूध से करदे अलग नीर नै । विष्टा पर जा बैठे काग तज कै घी खांड खीर नै । परखै स्वर्ण सुनार परख मोची नै चरम खाल की । कहैं लाल ने कंच कंच में करदे सिफल लाल की । ज्ञान बिना क्या पता ब्रह्म का हल्का है या भारी । क्या खुसरे नै पता काम का नहीं पुरुष नहीं नारी । के घुघू नै पता जलेबी मीठी हो या खारी । निर्गुण की परख भला कब जाणें लंठाचारी । कुएं का मेंढक हस्ती कब मानै बड़ी ताल की । कहैं लाल ने कंच कंच में करदे सिफत लाल की ।। जहां पुरुष की कदर नहीं वहाँ आणा और जाणा के । जहाँ जूत लगैं और मिले मिठाई वो अणखज खाणा के । जो कह के गुरु बणजै इसे सतसंग का पाणा के । आप जहां मूर्ख लठराज बैठे वहाँ निर्गुण का गाणा के । हरीकेश बिना कदर पकड़ली कविता मूठ ढालकी । कहैं लाल ने कंच कंच में करदे सिफत लाल की ।।

के मन का इतबार

के मन का इतबार करूँ मन नहीं रहे एक ढंग मैं। मन पापी बदमाश चलाला खेलै सौ सौ रंग मैं ।। मन चाहवै दुनियां तै बढ़कर काम करूं अन चरजा । मन चाहवे मेरा दूध पूत धन माया तै घर भरजा । मन चाहवे इन्द्र से भी बढ़कर ऊंचा दरजा । चक्रवर्ती राज मेरा हो जय बोलै सब परजा । मन चाहवै मैं जगत जीत ल्यूं कुल आलम की जंग मैं मन पापी बदमाश चलाला खेलै सौ सौ रंग मैं ।। मन चाहवै मदमस्त रहूँ बल बुद्धि विद्या धन मैं । पीर फकीर अमीर बणूँ जो कुछ आवै मन मैं । मन चाहवे दूं सर्वस त्याग कहीं करूँ तपस्या बन मैं । मौन धारका नग्न फिरू नहीं रखूँ लंगोटी तन मैं । पीऊं गाँजा मादक चरस जणों गोते लालूँ भंग मैं । मन पापी बदमाश चलाला खेलै सौ सौ रंग मैं ।। मन चाहवे मेरे कान सुणै कोई गन्धर्वी गाना हो । मन चाहवे जिभा खातर खटरस मिठरस खाना हो । मन चाहवै दो टैम सैर को गैर मुलक जाना हो। मन चाहवै मेरी नाक सुगन्धी इतर सैन्ट लाना हो । मन चाहवै हर बखत मेरे कई रहैं पदमनी संग में । मन पापी बदमाश चलाला खेलै सौ सौ रंग मैं ।। मन को ना कोई मार सक्या इनै मारी अकल देशकी । मन नै बात बिगाड़ी ब्रह्मा विष्णु और महेश की । एक सौ छः मारे मन फड़वादी नाक शेष की । मन ने रावण जीत लिया के ताकत हरिकेश की । सब मारे मन मजनू कै दाभ जमा दो अंग मैं । मन पापी बदमाश चलाला खेलै सौ सौ रंग मैं ।।

सदा एक सी रहै ना

सदा एक सी रहै ना बन्दे दुख सुख विपद आराम कदे । एक दिन में कई -2 लौ बितैं सुबह दुपहरा शाम कदे । अमन चैन रहे सुख शांति और सम्मत होता टाल कदे । छिड़े जंग महा घोर, बीमारी पड़े भयंकर काल कदे । विछू, मच्छर, खैद, चोर और सर्प अगन का छाल कदे । लू चालैं कदी सरद हवा आँधी उहले भुंचाल कदे । सर्दी गर्मी कदी चौंमासा धूप अबर और छांव कदे । एक दिन में कई-कई...............I रण रेही जहां कालर थे वहां ऊंचे वृक्ष ताड़ हो गये । पहाड़ी थी जहाँ खेत बने खाड़ी थी वहाँ पहाड़ हो गये । कर्ण बली के किले जड़े थे पैदा झुण्ड झाड़ हो गये । पैरस कैसे द्वीप बमों से जल कर साफ फाड़ हो गये । नीलोखेड़ी शहर बणा उजड़ा अगरोहा गाम कदे । एक दिन में कई-कई...............I राजतिलक के रंग चाह हो रहे उसी टेम बनवास हुआ । हार निगलगी खूंटी नल पर चोरी का विसवास हुआ। मिटी ऊत की पेड़ भविषण मामूली से खास हुआ । बाल्मीक साधारण था भक्त हरि का दास हुआ। हो जाते बदनाम पुरुष फिर वही पा जाते नाम कदे । एक दिन में कई-कई...............I चढ़ै छिपै और छिपै चढ़ै फिर चढ़न छिपन को तैयार रहै खाली भरया भरया फिर खाली लगी हरट ज्यू लार रहै जनमैं मरैं फिर जनमैं यही कष्ट हर बार रहै । चढ़ै पड़ै फिर चढ़ै सदा हरिकेश नहीं एकसार रहै । भारतवर्ष आजाद हुआ पहले था हिन्द गुलाम कदे । एक दिन में कई-कई...............I

ऊत पूत के होने में दुःख भारी

जूत ऊत और भूत पूत से तीनों हैं सुखकारी । सुखी पूत बिन ऊत पूत के होने में दुःख भारी । जिस दिन जन्मैं पूत पिता के जी नै हो जै सापा । बनै दसूठन कई सौ मैं नौ सौ मैं लिकड़े जापा । ढोलू पूत पेट का दुःखिया तड़कई मांगौ भापा । किलकी मार घरूँटै खाले पिट्टे अपना आपा | रोकै सिर पर चढ़ै मूत कै दाढ़ी धो दे सारी । सुखी पूत बिन ................... । खोया द्रव्य फजूल हरफ एक सीखा नहीं नखट्टू । नशे विषय की उलट पुलट के पढ़ गया पट्टी पट्टू । हो मदमस्त फिरै गलियों में खाता थप्पड़ चट्टू । गया पैखड़ा तूड़ा बना हिजड़यां का अड़यल टट्टू । ना घर का रहा ना घाट का लाज शर्म सब तारी । सुखी पूत बिन ................... । लगी पिता कै लगन करूँ अब शादी झटपट करके । नकद मात्रा दी सट पट रिशता लिया अटपट करके । पढ़ गया चारों वेद बहू सै दो दिन गटपट करके । धरै ठीकरे अलग पिता से खटपट करके । ना दुःख सुख का साँझी पूत कुपात्र अत्याचारी । सुखी पूत बिन ................... । बिन छाया फल पेड़ अरण्ड का किस करतूत भला हो । छाया भी और फल मीठा दे उससे तूत भला हो । श्रवण राम किसा सेवक कोई हो तो पूत भला हो। नहीं मलंग कुपात्र ऊत पूत से बिल्कुल ऊत भला हो हरिकेश कहे जलम जलेवा घुन की लगै बीमारी । सुखी पूत बिन ................... ।

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