हरियाणवी कविता : पंडित लखमीचंद

Haryanvi Poetry : Pandit Lakhmi Chand


अरे ज्ञान बिना संसार दुखी

अरे ज्ञान बिना संसार दुखी, ज्ञान बिना दुःख सुख खेणा, ज्ञान से ऋषि तपस्या करते, जो तुझको पड़ा पड़ा सहणा! ज्ञान से कार व्यवहार चालते, साहूकार से ऋण लेना! ज्ञान से प्रजा का पालन करके, ब्याज मूल सब दे देना! अरे ले कर्जा कोए मार किसे का, जो रहती ये सच्ची शान नही! अधर्म करके जीना... एक सत्यकाम ने गुरु की गउओं को इतने दिन तक चरा दिया, जहाँ गई वो साथ गया, उसने प्रेम से उदर भरा दिया! सत्यकाम ने गुरु के वचन को धर्मनाव पर तिरा दिया, फ़िर से बात सुनी सांड की यम् का दर्शन करा दिया! ज्ञानी पुरूष कोण कहे, पशुओं में भी भगवान् नही ! अधर्म करके जीना... होए ज्ञान के कारण पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश खड़े: ज्ञान के कारण सो कोस परे, ज्ञान के कारण पास खड़े! मुझ को मोक्ष मिले होण ने, न्यू करके पूरी आस खड़े जान जाओ पर रहो धर्म पे, इस देह का मान गुमान नही! अधर्म करके जीना... फेर अंत में क्या कहती है भला: ज्ञान बिना मेरी टांग टूटगी, ज्ञान बिना कूदी खाई! ज्ञान बिना में लंगडी होगी, ज्ञान बिना बुड्ढी ब्याई! ज्ञान बिना तू मुझको खाता, कुछ मन में ध्यान करो भाई! लख्मीचंद कह क्यों भूल गए सब, धर्म शरण की यो राही! इस निराकार का बच्चा बन ज्या, क्यों कह मेरे में भगवान् नही! अधर्म करके जीना चाहता, राजधर्म का ध्यान नही! मोंत भूख का एक पिता है, फ़िर तुझे कैसे ज्ञान नही अधर्म करके जीना चाहता, राज धर्म का ध्यान नही

अलख अगोचर अजर अमर

अलख अगोचर अजर अमर अन्तर्यामी असुरारी गुण गाऊं गोपाल गरुडगामी गोविन्द गिरधारी परम परायण पुरुषोत्तम परिपूर्ण हो पुरुष पुराण नारायण निरलेप निरन्तर निरंकार हो निर्माण भागवत भक्त भजैं भयभंजन भ्रमभजा भगवान धर्म धुरंधर ध्यानी ध्याव धरती धीरज ध्यान सन्त सुजान सदा समदर्शी सुमरैं सब संसारी (लखमीचंद की एक मशहूर रागनी जिसमे एक ही अक्षर से शब्द और पूरी पंक्ति की छन्द रचना की गई है।)

आधी रात सिखर तैं ढलगी

आधी रात सिखर तैं ढलगी हुया पहर का तड़का। बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का। जब लड़के का जन्म हुया ये तीन लोक थर्राए। ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनू दर्शन करने आये। सप्त ऋषि भी आसन ठा कै हवन करण नै आये। साध सती और मन मोहनी नै आके मंगल गाये। जब नाम सूना था उस लड़के का हुया काल मुनि कै धड़का। बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का। साठ समन्दर उस लड़के नै दो टैम नहवाया करते। अगन देवता बण्या रसोई, भोग लगाया करते। इंद्र देवता लोटा ले कै चल्लू कराया करते। पवन देवता पवन चला लड़के ने सूवाया करते। जब लड़के नै भूख लगी वो पेड़ निगल गया बड़ का। बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का। कामदेव पहरे पै रहता चारों युग के साथी। अस्ट वसु और ग्यारा रूद्र ये लड़के के नाती। बावन कल्वे छप्पन भैरो गावें गीत परभाती। उस के दरवाजे के ऊपर बेमाता साज बजाती। गाना गावे साज बजावे करै प्रेम का छिड़का। बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का। सब लड़कों मै उस लड़के का आदर मान निराला। गंगा यमुना अडसठ तीरथ रटे प्रेम की माला। चाँद सूरज और तारे तक भी दे रहे थे उज्याला। वेद धरम की बात सुणावै लखमीचंद जांटी आळा। उस नै कवी मै मानूं जो भेद खोल दे जड़ का। बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।

एक चिड़िया के दो बच्चे थे

एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!! एक चिड़े की चिड़िया मरगी, दूजी लाया ब्या के! देख सोंप के बच्चों ने, वा बैठ गयी गम खा के!! चिड़ा घर ते चला गया, फेर समझा और बुझा के!! उस पापन ने वो दोनों बच्चे, तले गेर दिए ठा के! चोंच मार के घायल कर दिए, चिड़िया ने जुलम गुजार दिए!! एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!! मैं मर जा तो मेरे पिया तू, दूजा ब्या करवायिए ना! चाहे इन्दर की हूर मिले, पर बीर दूसरी लाईये ना!! दो बेटे तेरे दिए राम ने, और तन्नै कुछ चायिए ना!! रूप - बसंत की जोड़ी ने तू, कदे भी धमकायिये ना! उढ़ा पराह और नुहा धूवा के, कर उनका श्रृंगार दिए!! एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!! याणे से की माँ मर जावे, धक्के खाते फिरा करे! कोई घुड़का दे कोई धमका दे, दुःख विपदा में घिरा करे!! नों करोड़ का लाल रेत में, बिन जोहरी के ज़रा करे!! पाप की नैया अधम डूब जा, धर्म के बेड़े तिरा करे! मरी हुई ने मन्ने याद करे तो, ला छाती के पुचकार दिए!! एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!! मेरा फ़र्ज़ से समझावन का,ना चलती तदबीर पिया! रोया भी ना जाता मेरे, गया सुख नैन का नीर पिया!! मेरी करनी मेरे आगे आगी, आगे तेरी तक़दीर पिया!! लख्मीचंद तू मान कहे की, आ लिया समय आखिर पिया!! मांगे राम ते इतनी कह के, रानी ने पैर पसार दिए!! एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!!

कदे ना सोची आपतै

कदे ना सोची आपतै के दो-च्यार आने ले ले मेरा खर्च डेढ़ पा चून का, कीमत ना दो धेले कंगला लड़का नीवै सै रै, जख्म जिगर नै सीवै सै रै तूं मुंह ला ला कै पीवै सै रै भर दूधां के बेले क्यूं होरया सेठ जाण नै रै, तू ना छोड़ै बुरी बाण नै रै मनै सुखी रोटी दे खाण नै रै, तू छ्यौंके रोज करेले मैं बिरथा जिन्दगी खोया करता, सांस मारकै रोया करता मैं सिर पै लकड़ी ढोया करता, तू बेचे भर-भर ठेले ईब तू सेठ बदी तै टळीए, करके हिसाब मेरै तै मिलिए ’लखमीचन्द’ सोच कै चलिए, गुरू मानसिंह के चेले

कर कै खाले ले कै देदे

कर कै खाले ले कै देदे उस तै कौण जबर हो सै नुगरा माणस आंख बदलज्या समझणियां की मर हो सै नुगरा कुत्ता रेतली धरती खुद इंसान डरै इस तै सप्त ऋषि और धुरू भक्त का खुद ईमान डरै इस तै रामायण महाभारत गीता बेद और पुराण डरै इस तै और किस किस का जिक्र करूं खुद भगवान डरै इस तै खानदान का बाळक हो उसनै जात जाण का डर हो सै दुनिया मैं दो चीज बताई टोटा और साहूकारा जिस माणस मैं टोटा आज्या भाई दे दे दुत्कारा जिस धोरै दो आने होज्यां लागै सब नै प्यारा एक बेल कै कई फल हों सैं कोए मीठा कोए खारा भीड़ पड़ी मैं देख्या जा ना तै किसकै कौण बिसर हो सैं एक पेड़ के सरवे पै बण्या करतब न्यारा-न्यारा एक हिस्से की कलम बणै सै एक हिस्से का डारा एक मिट्टी के दो बर्तन सैं एक नूण का खारा एक बणै बेहू का भाण्डा एक बणै घी का बारा टोटे के मैं बालक बिकज्यां यो पेट बिकाऊ घर हो सैं आदम देह नै जन्म धार कै करकै खाणा चाहिए जैसी पड़ज्या वैसी ओटले परण निभाणा चाहिए गिरता-गिरता गिर भी जा तै कितै ठिकाणा चाहिए लखमीचन्द जिसा गाया करै उसा कर्म का गाणा चाहिए गांव बिचाळै तख्त घलै जब पहलम चोट जिकर हो सैं

कर जोड़ खड़ी सूं प्रभु

कर जोड़ खड़ी सूं प्रभु लाज राखियो मेरी मर्यादा को भूल गए दरबारां मैं शोर होग्या दादा भीष्म द्रोणाचारी का हिरदा क्यूं कठोर होग्या दुर्योधन दुशासन शकुनी कौरवों का जोर होग्या अधर्मी राजा की प्रजा गैल दुख पाया करै पाप की कमाई पैसा काम नहीं आया करै सताए जां आप जो कोए ओरां नै सताया करै हे कृष्ण हे कृष्ण कहकै ऊंचे सुर तै टेरी सभी के मैं प्रश्न किया धीरे-धीरे फिरण लागी कांपता शरीर रोई कौरवों से डरण लागी भीष्म की तरफ कुछ इशारा सा करण लागी नीति को बिसारा पिता क्यूं बैठे चुपचाप कहो हारी सूं अक ना हारी सूं खोल कै नै साफ कहो ये भी काम आपका है तोल कै इंसाफ कहो मेरे प्रश्न का उत्तर दो थारी इतनी दया भतेरी धर्म के विषय की बात समझकै बताई जा सै धन की भरी थैली के अपणे हाथ से रिताई जा सै दूसरे की चीज के जूए मैं जिताई जा सै धर्मसुत बैठे जहां मैं के बेईमान हूंगी आदि शक्ति फैसले पै बोलती जबान हूंगी बीर का शरीर चीर मैं भी तो इंसान हूंगी ये कौरव चीर तारणा चाहवैं करकै हेरा फेरी लंका पै चढ़ाई करी सीता से मिलाए राम जरतकारु फेर मिले छोड़ गए घर गाम अनुसूईया अहिल्या तारा प्रेम से रटैं थी नाम दमयंती की टेर सुणी नल को मिलाया फेर देवयानी नै रट्या सखी कुए मैं गई थी गेर सावित्री की बिनती सुणी पल की ना लगाई देर कहै ‘लखमीचन्द’ भजन बिन यो तन माटी की ढेरी

कलियुग बोल्या परीक्षित ताहीं

कलियुग बोल्या परीक्षित ताहीं, मेरा ओसरा आया। अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया॥ सोने कै काई ला दूंगा, आंच साच पै कर दूंगा - वेद-शास्त्र उपनिषदां नै मैं सतयुग खातिर धर दूंगा। असली माणस छोडूं कोन्या, सारे गुंडे भर दूंगा - साच बोलणियां माणस की मैं रे-रे-माटी कर दूंगा। धड़ तैं सीस कतर दूंगा, मेरे सिर पै छत्र-छाया। अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया॥ मेरे राज मैं मौज करैंगे ठग डाकू चोर लुटेरे - ले-कै दें ना, कर-कै खां ना, ऐसे सेवक मेरे। सही माणस कदे ना पावै, कर दूं ऊजड़-डेरे - पापी माणस की अर्थी पै जावैंगे फूल बिखेरे॥ ऐसे चक्कर चालैं मेरे मैं कर दूं मन का चाहया। अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया॥

जगह देख कै बाग़ लगा दिया

जगह देख कै बाग़ लगा दिया छोटी-छोटी क्यारी। तरह तरह के फूल बाग में, खुश्बो न्यारी-न्यारी।|(टेक) दो दरवाजे गड़े बाग़ में देख्या भीतर बड़-कै, एक पानी का चलै फुहारा, मन चाहवै जब छिडकै, माणस राख लिया बाग़ बीच में, बाग़ का माली घड़ कै, पत्ता तक भी तोड़ण दे ना, देखीं जा गिर-पड़ कै। ना देखै तै किस नै बतावै, उस्सै की जिम्मेवारी। तरह तरह के फूल बाग में खुश्बो न्यारी-न्यारी।| दो दरवाजे लगे बाग़ में न्यारे न्यारे पाग्ये। एक दरवाजा इसा लग्या, जो भीत्तर चीज पहुन्चादे। दो दरवाजे और लगे जो सारी खबर सुनादे। एक दरवाजा इसा लग्या जो गंदगी बाहर बगा दे। दो दरवाजे इसे बाग़ में या दीखै दुनिया सारी। तरह तरह के फूल बाग में खुश्बो न्यारी-न्यारी।| बाग़ बीच में फिर कै देख्या, काफी चीज खाण नै। एक पानी का पम्प चलै था, पीवण और नहाण नै। जितना पानी गन्दा हो, एक रास्ता बाहर जाण नै। एक दरवाजे पै लौड़ स्पीकर आनंद राग गाण ने। छुट्टी के दिन पूरे होग्ये, फिर आ पहुंचा दरबारी। तरह तरह के फूल बाग में खुश्बो न्यारी-न्यारी।| तार टूट-कै कटा कनेक्सन, देता नहीं सुनायी। अंख्या के दर बंद होग्ये, कुछ देता नहीं दिखाई। सारी चीज मिली बाग़ में, ना चीज बहार तैं आई। बाग़ छोड़ कै बहार लिकड़ गया कुछ ना पार बसाई। कह लखमीचंद इस बाग़ नै या दुनिया सिर पै ठा-री। तरह तरह के फूल बाग में खुश्बो न्यारी न्यारी।।

तेरी झांकी के माहं गोल मारूं मैं

तेरी झांकी के माहं गोल मारूं मैं बांठ गोफिया सण का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का लांबे-लांबे केश तेरे जंणू छारहि घटा पटेरे पै ढुंगे ऊपर चोटी काली जंणू लटकै नाग मंडेरे तै घणी देर मैं नजर गयी तेरे चंदरमाँ से चेहरे पै गया भूल पाछली बातां नै मैं इब सांग करूँगा तेरे पै मैं ख़ास सपेरा तू नागण काली, तेरा जहर दीख रह्या सै फण का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का बिन बालम के तेरे यौवन की रेह-रेह माटी हो ज्यागी कितै डूबण की जानैगी तेरै गात उचाटी हो ज्यागी कितै मरण की सोचैगी तेरी तबियत खाटी हो ज्यागी मेरी गेल्याँ चाल देख मेरी राज्जी जाटी हो ज्यागी हठ पकड़ कै बैठी सै रै जंणू शेर सै यो बब्बर का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का दुनिया मैं लिया घूम मिली मनै इसी लुगाई कोन्या इतनी सुथरी शान शिकल की कोए दी दिखाई कोन्या खुनी खेल तेरे गारू मैं दर्द समाई कोन्या कुंवारापण तेरा दिखै सै तू इब लग ब्याही कोन्या हाली बिन समरै ना यो तेरा खेत पड़या सै रण का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का छाती खिंचमां पेट सुकड़मां आँख मिरग की ढाल परी नाक सुआसा मुहं बटुवा सा होठ पान तै बी लाल परी लेरी रूप गजब का गोल, तू किसे माणस का काल परी लख्मीचंद था न्यूं सोचैगी करकै दुनिया ख्याल परी मेरा गाम सै सिरसा जाटी, मैं चेला मानसिंह बामण का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का

दुख मैं बीतैं जिन्दगी न्यूं

दुख मैं बीतैं जिन्दगी न्यूं दिन रात दुखिया की के बूझैगी रहणदयो बस बात दुखिया की के बूझो छाती मैं घा सै बोलतेए हिरदा पाट्या जा सै और दूसरा नां सै दुख मैं साथ दुखिया की मेरा ना किसे चीज मैं मोह सै, कुछ भी नहीं जिगर मैं धो सै टोटे में के इज्जत हो सै, के जात दुखिया की या होणी अपणे बळ हो सै, बात मैं सब तरियां छळ हो सै दुख मैं निष्फल हो सै, जो करामात दुखिया की ‘लखमीचन्द’ कहै बेदन जगी, मैं धोखें मैं गई थी ठगी थारे संग कैसे होण लगी मुलाकात दुखिया की

देखे मर्द नकारे हों सैं

देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं भीड़ पड़ी मैं न्यारे हों सैं तज के दीन ईमान नैं जानकी छेड़ी दशकन्धर नै, गौतम कै गया के सोची इन्द्र नै रामचन्द्र नै सीता ताहदी, गौरां शिवजी नै जड़ तै ठादी हरिश्चन्द्र नै भी डायण बतादी के सोची अज्ञान नै मर्द किस किस की ओड़ घालदे, डबो दरिया केसी झाल दे निहालदे मेनपाल नै छोड़ी, जलग्यी घाल धर्म पै गोड़ी अनसूइया का पति था कोढ़ी वा डाट बैठग्यी ध्यान नै मर्द झूठी पटकैं सैं रीस, मिले जैसे कुब्जा से जगदीश महतो नै शीश बुराई धरदी, गौतम नै होकै बेदर्दी बिना खोट पात्थर की करदी खोकै बैठग्यी प्राण नै कहै सैं जल शुद्ध पात्र मैं घलता ‘लखमीचन्द’ कवियों मैं रळता मिलता जो कुछ करया हुआ सै, छन्द कांटे पै धरया हुआ सै लय दारी मैं भरया हुआ सै, देखी तो मिजान नै

भाईयो बेरा ना के चाला रै

भाईयो बेरा ना के चाला रै ये घडी मै दे सें गर्द मिला।(टेक) ब्रह्मा विष्णु सारे मोहे भस्मासुर से मारे गए। जमदग्नि पुलिस्त मुनि पतंजली बिचारे गए। मेर और सुमेर सुनो सीस जिन के तारे गए। बारासूर बनाद भाई गौतम जी का फेरा मन। बाल्मीकि गुरुवासा से मार डाले योगी जन। अत्तरी और बतीस ऋषि चंदरमा का बिगाड़ा तन। जिनकी खुडकै दिन रात माला रै शिवजी की लई खींच कला। भाईयो बेरा ना के चाला रै ये घडी मै दे सें गर्द मिला। परचेता और परसूराम रावण नै भी भेष भरा। देवातावों से जत्ती मोहे आशकी मे बाली मरा। कर्ण जैसे योधा खपगे माया तै ना कोए टरा। दुर्योधन दुशाशन और जरासंध की बुधी हर ली। जन्मय जी भी पुष्टि होगये किस्सी की ना पेश चली। कीचकों का ढेर करया पांडों में था भीम बली| वो था जग भूप का साला रै अग्नी मे दिया तुरत जला। भाईयो बेरा ना के चाला रै ये घडी मै दे सें गर्द मिला।| यादुवंशी कट कै मरगये अगड कै था कुटम्ब घना। ऐसा भी कहाँ सें लोग पटेरे का लोहा बना। चाल के चक्कर में आके संग पिस्से घुन और चना। लैला और मजनू होगये लगी रही नैना झड़ी। ऐश और अमीरी छुट्टी सुख तै कोन्या बीत्ती घडी। राजा रोड पागल होगया लौलता लगी थी बड़ी। जर जोरू जमीन हवाला रै ये रोग नै दें सें तुरत फला। भाईयो बेरा ना के चाला रै ये घडी मै दे सें गर्द मिला।| चोरी जारी जामनी झूठ बोलें करै ठगी। देख पराया माल भाई तनमे बेदन आन जग्गी। सारी दुनिया निंदा करै खोट्टी शामत आन लगी। लख्मीचंद छंद कहै आशकी कै जात नहीं। भूख प्यास जावो पर पड़े चैन दिन रात नहीं। हाथ जोड़ माफ़ी मांगूं कोए बड़ी बात नहीं। सतगुरु कहै बसौधि आला रै बड्यां की लियो मान सलाह। भाईयो बेरा ना के चाला रै ये घडी मै दे सें गर्द मिला।

मत चालै मेरी गेल तनै

मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा मैं निर्धन कंगाल तनैं परिवार चाहिएगा लाग्या मेरै कंगाली का नश्तर, सूरा के करले बिन शस्त्र तनै टूम ठेकरी गहणा वस्त्र सब सिंगार चाहिएगा एक रत्न जड़ाऊ नौ लखा गळ का हार चाहिएगा मेरे धोरै नहीं दमड़ी दाम, दुख मैं बीतै उमर तमाम तू खुली फिरै बच्छेरी तनै असवार चाहिएगा एक मन की बूझण आळा तनै दिलदार चाहिएगा मैं बुरा चाहे अच्छा सूं, बख्त पै कहण आळा सच्चा हूं, मैं तो एक बच्चा सू तनै भरतार चाहिएगा ना बूढ़ा ना बाळक मर्द एक सार चाहिएगा मेरै धोरै नहीं दमड़ी धेला, क्यूं कंगले संग करे झमेला तनै मानसिंह का चेला एक होशियार चाहिएगा वो ‘लखमीचन्द’ गुरू का ताबेदार चाहिएगा

माता बणकै बेटी जणकै

माता बणकै बेटी जणकै बण मैं गेर गई पत्थर केसा दिल करके नै तज बेटी की मेर गई नौ महीने तक बोझ मरी और पेट पाड़ कै जाई लहू की बून्द गेर दी बण मैं शर्म तलक न आई न्यारी पाट चली बेटी तै करली मन की चाही पता चल्या न इसी डाण का गई कौणसी राही ऊंच नीच का ख्याल करया ना धर्म कर्म कर ढेर गई लड़की का के खोट गर्भ तै लेणा था जन्म जरुरी नो महीने मैं पैदा हुई और कोन्या उमर अधूरी इसी मां कै होणा था जो बेअक्कल की कमसहूरी या जीवै जागै सफल रहै भगवान उमर दे पूरी जननी बणकै बेटी सेती किस तरियां मुंह फेर गई मनै ज्यान तै प्यारी लागै पालन पोषण करूं इसका कती नहीं तकलीफ होण दयूं पेटा ठीक भरूं इसका पुत्री भाव नेक नीति बण आज्ञाकार फिरूं इसका शकुन्त पक्षी का पहरा सै तै शकुंतला नाम धरूं इसका ‘लखमीचन्द’ कहै दया नहीं आई दिन मैं कर अंधेर गई

यो भारत खो दिया फर्क नै

यो भारत खो दिया फर्क नै इसमैं कोए कोए माणस बाकी सै घणे मित्र तै दगा कुमाल्यें, चीज ल्हुकमां प्यारे की ठाल्यें बेटी बेच-बेच धन खाल्यें, मुश्किल रीत बरतणी न्या की सै नहीं कुकर्म करणे तै डरते, दिन-रात नीत बदी पै धरते शर्म ना बुआ बाहण की करते, या मेरी ताई दादी काकी सै बन्दे जो अकलबन्द होंगे चातर, नहीं मारैंगे ईंट कै पात्थर सोच ले मनुष दळण की खातर, सिर पै काल बली की चाकी सै गुरू मानसिंह शुद्ध छन्द छाप तै, ‘लखमीचन्द’ रहो जिगर साफ तै कळु का कुण्डा भरैगा पाप ते, ब्यास नै महाभारत मैं लिख राखी सै

रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म

रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।|(टेक) भय भूल भ्रम ने त्याग, विषय वासना बैर की लाग। अरै जा जाग जरा नाजोश जहर जड़ जबर जमाई सै यो जोबन जाल जंजीर का। रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।| लागी लगन ले लिया योग होकै लौलीन रहे जो लोग। ऋषि कै रोग रहा ना रोष रमता राख रमाई सै यो रंग रचज्या रंगबीर का। रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का। या दुनिया दुःख की दारण लगे देह धार धर्म ने हारण। करतब कारण करनी ने कोस कुकरम कुबध कमाई सै गुनाह कुण कमशीर का। रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का। मुक्ति मिलै मतिमंद मरले लखमीचंद सहम में फिरले। अरै करले तजकै त्रिया दोष थोड़ी सी तपा तपाई सै फेर जप तप तकदीर का। रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।

लाख-चौरासी खतम हुई

लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए। नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए॥टेक॥ बहुत सी मां का दूध पिया पर आज म्हारै याद नहीं - बहुत से भाई-बहन हुए, पर एक अंक दर याद नही। बहुत सी संतान पैदा की, पर गए उनकी मर्याद नहीं - बहुत पिताओं से पैदा हुए, पर उनका घर भी याद नहीं॥1॥ शुभ-अशुभ कर्म करे जग में, स्वर्ग-नरक कई बार गए। नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए॥ कहीं लिपटे रहे जेर में अपने कर्म करीने से - कहीं अंडों में बंद रहे कहीं पैदा हुए पसीने से। कहीं डूबे रहे जल में, कहीं उम्र कटी जल पीने से - फिर भी कर्म हाथ नहीं आया, मौत भली इस जीने से॥2॥ कभी आर और कभी पार, डूब फिर से मंझधार गए। नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए॥ कभी तो मूल फूल में रम-ग्या, कभी हर्ष का स्योग लिया - कभी निर्बलता कभी प्रबलता, कभी रोगी बण-कै रोग लिया। कभी नृपत कभी छत्रधारी, कभी जोगी बण-कै जोग लिया - भोग भोगने आये थे, उन भोगों ने हमको भोग लिया॥3॥ बड़े-बड़े योगी इस दुनियां में सोच-समझ सिर मार गए। नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए॥ आशा, तृष्णा और ईर्ष्या होनी चाहियें रस-रस में - वो तो बस में हुई नहीं, हम हो गए उनके यश में। न्यूं सोचूं था काम-क्रोध नै मार गिरा दूं गर्दिश में - काम-क्रोध तै मरे नहीं, हम हो गए उनके बस में॥4॥ इतनी कहै-कै लखमीचंद भी मरे नहीं, दड़ मार गए। नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए॥

लाख चौरासी जीया जून मैं

लाख चौरासी जीया जून मैं नाचै दुनिया सारी नाचण मैं के दोष बता या अकल की हुशियारी सब तै पहलम विष्णु नाच्या पृथ्वी ऊपर आकै फिर दूजे भस्मासुर नाच्या सारा नाच नचा कै गौरां आगै शिवजी नाच्या ल्या पार्वती नै ब्याह कै जल के ऊपर ब्रह्मा नाच्या कमल फूल के म्हा कै ब्रह्मा जी नै नाच-नाच कै रची सृष्टि सारी गोपनियां मैं कृष्ण नाच्या करकै भेष जनाना विराट देश मैं अर्जुन नाच्या करया नाचना गाणा इन्द्रपुरी मैं इन्द्र नाचै जब हो मींह बरसाणा गढ़ माण्डव मैं मलके नाच्या करया नटां का बाणा मलके नै भी नाच-नाच कै ब्याहल्यी राजदुलारी पवन चलै जब दरख्त नाचैं पेड़ पात हालैं सैं लोरी दे-दे माता नाचैं बच्चे नै पाळैं सैं रण के म्हां तलवार नाचती किसे हाथ चालैं सैं सिर के ऊपर काळ नाचता नहीं घाट घालै सै काल बली नै नाच खा लिए ऋषि-मुनि-ब्रह्मचारी बण मैं केहरी शेर नाचता और नाचे सै हाथी रीछ और बंदर दोनों नाचैं खोल दिखावैं छाती गितवाड़े मैं मोर नाचता कैसी फांख फर्राती ब्याह शादी मैं घोड़ी नाचैं जिस पै सजैं बराती दूर दराज कबूतर नाचैं लगैं घुटरगूं प्यारी दीपचन्द खाण्डे मैं नाच्या सदाव्रत खुलवाग्या बाजे नाई नाच-नाच कै और भी भक्त कुहाग्या हावळी मैं नत्थू ब्राह्ममण मन्दिर नया चिणाग्या ‘लखमीचन्द’ भी नाच-नाच कै नाम जगत मैं पाग्या इसे-इसे भी नाच लिए तै कौण हकीकत म्हारी

लेणा एक ना देणे दो

लेणा एक ना देणे दो दिलदार बणे हांडै सैं मन मैं घुण्डी रहै पाप की यार बणें हांडैं सैं नई-नई यारी लागै प्यारी दोष पाछले ढक ले मतलब खात्यर यार बणें फेर थोड़े दिन में छिक ले नहीं जाणते फर्ज यार का पाप पंक में पक ले कैं तैं खाज्यां धन यार का ना बाहण बहू नै तक ले करें बहाना यारी का इसे यार बणे हांडै सैं मतलब कारण बड़ै पेट मैं करकै नै धिंगताणा गर्ज लिकड़ज्या पास पकड़ज्यां करैं सारे कै बिसराणा सारी दुनिया कहा करै, करै यार-यार नैं स्याणा उसे हांडी मैं छेक करैं और उसे हांडी मैं खाणा विश्वासघात करैं प्यारे तै इसे यार बणे हाण्डैं सैं यारी हो सै प्याऊ केसी हो कोए नीर भरणियां एक दिल तैं दो दिल करवादे करकै जबान फिरणियां यार सुदामा का कृष्ण था टोटा दूर करणियां महाराणा को कर्ज दिया था भामाशाह था बणियां आज टूम धरा कै कर्जा दें साहूकार बणे हांडै सैं प्यारे गैल्यां दगा करे का हो सब तै बद्ती घा सै जो ले कै कर्जा तुरंत नाट्ज्या औ बिन औलादा जा सै पढे लिखे और भाव बिना मनै छन्द का बेरा ना सै पर गावण और बजावण का मनै बाळकपण तै चा सै इब तेरे केसे ‘लखमीचन्द’ हजार बणे हांडैं सैं

समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे

समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे जिसनै वेद विचारा। वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा॥ टेक॥ एक बाप के नौ-नौ बेटे, ना पेट भरण पावैगा - बीर-मरद हों न्यारे-न्यारे, इसा बखत आवैगा। घर-घर में होंगे पंचायती, कौन किसनै समझावैगा - मनुष्य-मात्र का धर्म छोड़-कै, धन जोड़ा चाहवैगा। कड़ कै न्यौळी बांध मरैंगे, मांग्या मिलै ना उधारा॥1॥ वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा। लोभ के कारण बल घट ज्यांगे, पाप की जीत रहैगी - भाई-भाण का चलै मुकदमा, बिगड़ी नीत रहैगी। कोए मिलै ना यार जगत मैं, ना सच्ची प्रीत रहैगी - भाई नै भाई मारैगा, ना कुल की रीत रहैगी। बीर नौकरी करया करैंगी, फिर भी नहीं गुजारा॥2॥ वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा। सारे कै प्रकाश कळू का, ना कच्चा घर पावैगा - वेद शास्त्र उपनिषदां नै ना जाणनियां पावैगा। गऊ लोप हो ज्यांगी दुनियां में, ना पाळनियां पावैगा - मदिरा-मास नशे का सेवन, इसा बखत आवैगा। संध्या-तर्पण हवन छूट ज्यां, और वस्तु जांगी बाराह॥3॥ वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा। कहै लखमीचंद छत्रापण जा-गा, नीच का राज रहैगा - हीजड़े मिनिस्टर बण्या करैंगे, बीर कै ताज रहैगा। दखलंदाजी और रिश्वतखोरी सब बे-अंदाज रहैगा - भाई नै तै भाई मारैगा, ना न्याय-इलाज रहैगा। बीर उघाड़ै सिर हांडैंगी, जिन-पै दल खप-गे थे अठाराह॥4॥ वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा।

सारा कुणबा भरया उमंग मैं

सारा कुणबा भरया उमंग मैं घरां बहोड़िया आई प्रेम मैं भर कै सासू नैं झट पीढ़ा घाल बिठाई फूलां के म्हं तोलण जोगी बहू उमर की बाली पतला-पतला चीर चिमकती चोटी काळी-काळी धन-धन इसके मात पिता नै लाड लडाकै पाळी गहणे के मैं लटपट होरयी जणूं फूलां की डाळी जितनी सुथरी घर्मकौर सै ना इसी और लुगाई एक बहू के आवण तै आज घर भररया सै म्हारा मुंह का पल्ला हटज्या लागै बिजली सा चिमकारा खिली रोशनी रूप इसा जाणूं लेरया भान उभारा भूरे-भूरे हाथ गात मैं लरज पड़ै सै अठारा अच्छा सुथरा खानदान सै ठीक मिली असनाई एक आधी बै बहू चलै जणूं लरज पड़ै केळे मैं घोट्या कै मैं जड्या हुआ था चिमक लगै सेले मैं और भी दूणां रंग चढ़ ज्यागा हंस-खाये खेले मैं सासू बोली ले बहू खाले घी खिचड़ी बेले मैं मन्दी मन्दी बोली फिर मुंह फेर बहू शरमाई देवी कैसा रूप बहू का चांदणा होरया बिजली कैसे चमके लागैं रूप था गोरा कली की खुशबोई ऊपर आशिक हो भौंरा ‘लखमीचन्द’ कह नई बहू थी घर देख घबराई

हो-ग्या इंजन फेल चालण तैं

हो-ग्या इंजन फेल चालण तैं, घंटे बंद, घडी रह-गी। छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी॥टेक॥ भर टी-टी का भेष रेल में बैठ वे कुफिया काल गये - बंद हो-गी रफ्तार चलण तैं, पुर्जे सारे हाल गये। पांच ठगां नै गोझ काट ली, डूब-डूब धन-माल गये - बानवें करोड़ मुसाफिर थे, वे अपना सफर संभाल गये॥1॥ ऊठ-ऊठ कै चले गए, सब खाली सीट पड़ी रह-गी। छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी॥ टी-टी, गार्ड और ड्राइवर अपनी ड्यूटी त्याग गए - जळ-ग्या सारा तेल खतम हो, कोयला पाणी आग गए। पंखा फिरणा बंद हो-ग्या, बुझ लट्टू गैस चिराग गए - पच्चीस पंच रेल मैं ढूंढण एक नै एक लाग गए॥2॥ वे भी डर तैं भाग गए, कोए झांखी खुली भिड़ी रह-गी। छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी॥ कल-पुर्जे सब जाम हुए भई, टूटी कै कोए बूटी ना - बहत्तर गाडी खड़ी लाइन मैं, कील-कुहाड़ी टूटी ना। तीन-सौ-साठ लाकडी लागी, अलग हुई कोई फूटी ना - एक शख्स बिन रेल तेरी की, पाई तक भी ऊठी ना॥3॥ एक चीज तेरी टूटी ना, सब ठौड़-की-ठौड़ जुड़ी रह-गी। छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी॥ भरी पाप की रेल अड़ी तेरी पर्वत पहाड़ पाळ आगै - धर्म-लाइन गई टूट तेरी नदिया नहर खाळ आगै। चमन चिमनी का लैंप बुझ-ग्या आंधी हवा बाळ आगै - किन्डम हो गई रेल तेरी जंक्शन जगत जाळ आगै॥4॥ कहै लखमीचंद काळ आगै बता किसकी आण अड़ी रहैगी ? छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी॥

हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की

हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की खास दवाई हो, मेल मैं टोटा के हो सै टोटे नफे आंवते जाते, सदा नहीं एकसार कर्मफल पाते उननै ना चाहते सिंगार जिनके, गात समाई हो, मर्द का खोटा के हो सै परण पै धड़ चाहिए ना सिर चाहिए, ऊत नै तै घर चाहिए ना जर चाहिए बीर नै तै बर चाहिए होशियार, मेरी नणदी के भाई हो अकलमंद छोटा के हो सै पतिव्रता बीच स्वर्ग झुलादे, दुख बिपता की फांस खुलादे भुलादे दरी दुत्तई पिलंग निवार, तकिया सोड़ रजाई हो किनारी घोटा के हो सै लखमीचन्द कहै मेरे रुख की, सजन वैं हों सैं लुगाई टुक की जो दुख सुख की दो च्यार, पति नै ना हंस बतलाई हों तै महरम लोटा के हो सै

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