हरियाणवी कविता : मास्टर नेकीराम

Haryanvi Poetry : Master Neki Ram


खानपान गुणगान भूलगे

खानपान गुणगान भूलगे, छूट गया रैन बसैरा, कैसे मुक्ति मिलै सेठ जी हुआ चारों और अन्धेरा, ।। टेक ।। रति बिन सति,सति बिन जति, जति बिन गति कति नहीं भरतार, धन बिन दान, दान बिन दानी, बचन बिन संत बेकार, जाण बिन मान, मान बिन शान, नहीं शान बिन सतकार, फिरी किसी माया अपरम्पार, म्हारा घर होग्या उज्जड़ डेरा।। नदी बिन नीर, गऊ बिन क्षीर, नहीं मेल बिन सीर सुणो, सूरा रण बिन, नाग चन्दन बिन, नहीं मर्द बिन बीर सुणो, जल बिन ताल, कमल ताल बिन, मीन मरै बिन नीर सुणो, म्हारी फूट गई तकदीर सुणो, दुख विपद नै घेरा।। स्वर्ग सुहागा, काला रंग कागा, सुई धागा ना आपस म्हं न्यारा, घन घोर देखकै मौर मचावै शौर, चौर चकोर चान्द का प्यारा, कीट पतंग नहीं करै मोह भंग, आग संग जलकै मरै बिचारा, यो जगत जमाना मतलब गारा,ना भीतरले का बेरा।। सेल अणी बिन, मणी कणी बिन, धणी बिन घणी बिगजा बात दिखे, भजन बिन भक्ति, भक्ति बिन शक्ति, बिन मुक्ति के करामात दिखे, वृक्ष पात बिन, मनुष्य बात बिन, बिना पुत्र के मात दिखे, नेकीराम चिन्ता दिन रात दिखे, कितै टोहल्यूं कुआ झेरा।।

मात-पिता नै जन्म दे दिया

मात-पिता नै जन्म दे दिया, लिख्या कर्मा म्हं दु:ख पाणा, साजन बिन के करूं अकेली, ले लिया भगवा बाणा, ।। टेक ।। मात-पिता नै करी पराई, फर्ज तार दिया सर का, के बेरा था संजोग नहीं, आपस म्हं कन्या वर का, इस जंगल घोर अन्धेरे म्हं, एक सहारा हर का, कर्मा का डण्ड पड़ै भोगणा, ना बस चलै नर का, कर्मा म्हं न्यूं हे लिख राखी, टुकड़ा भाग-भागकै खाणा।। साधु बणा धार तन पै, तार दिए सोल़ा श्रंगार, भभूती रमाई तन म्हं, मोहनमाला तारया हार, जोबन की झल़ लाल जलै़, मस्तक चमकै बेशुम्मार, कुछ तो रूप हुस्न म्हं तगड़ी, कुछ हल्दबान की लाग्यी मार, चाल पड़ी टोहवण साजन, सास-ससुर पता ठिकाणा।। धर शील सब्र-सन्तोष, शान्ति तन म्हं ध्यान पति का, अंहकार मोहमाया तज दी, गाया गुणगान जति का, अष्ठ सिद्धी नौ निधि से, पूर्ण हुआ ज्ञान सति का, ईश्वर उसपै दया करै जो, होता बुद्धिमान मति का, ब्याहे पाछै बेटी का, पीहर म्हं कदे-कदे आणा।। श्री गोपाल नाथ जी सतगुरू मिलगे, नेकी राम चर्ण का दास, भक्ति करकै शक्ति मिलगी, गावण लाग्या आस-पास, गाणे कारण दुनिया जाणन लाग्यी, छोटा गांव जैतड़ावास, पेट के कारण नाचै गावै, झूठ कपट म्हं नहीं विशवास, बड़ी मुश्किल का काम जगत म्हं, गाणा और बजाणा।।

सतावन की हुई लड़ाई

(देशभक्ति रचना) सतावन की हुई लड़ाई, जा दुश्मन पै करी चढ़ाई, पल म्हं उनको धूल़ चटाई, जय हो हिन्दुस्तान की, ।। टेक ।। जन्में थे राव देव गोपाल, चमका भारत माँ का भाल लेकै ढ़ाल अगाड़ी अडग़े, दुश्मन के सब नक्शे झडग़े, हाथ जोड़ पाह्या म्हं पडग़े, जय हो ऐसी सन्तान की।। हुए योद्धा तुला राम, लड़े थे स्वतन्त्रता संग्राम, करदी नींद हराम दुश्मन की, पूर्ण इच्छा होग्यी मन की, यह कहानी सत्तावन की, जय हो योद्धा बलवान की।। खूब लड़े वे हेमू थे रजपूत, ताडग़े दुश्मन की करतूत, हुए ऐसे पूत हिन्द के वीर, माँ की बदल द्यी तकदीर, रण म्हं कूद पड़े रणधीर, जय हो पुरूष महान की।। नेकी राम वीरों की गाथा गावै, भारत माँ को शीष झुकावै, हम खुशी मनावै सारे, लगाओ आजादी के नारे, जो चले गए म्हारे राजदुलारे, जय हो उनके बलिदान की।।

साधु-संत फकीर गावै

साधु-संत फकीर गावै, नाम ताराचंद का, लावै सदाव्रत भण्डारे, यो ही काम ताराचंद का, ।। टेक ।। सेठ जी करता दान भतेरा, घर पै करते मैहमान बसेरा, लागै साधुओं का डेरा, सुबह शाम ताराचंद का।। सेठ जी अकलमंद विद्वान, जिसनै जाणै सकल जहान, उसकी मान बड़ाई गावै, सारा गाम ताराचंद का।। सेठ का अच्छा चलता व्यापार, झूठ कपट समझै सब बेकार, कोई ले जाओ उधार माल, दाम ताराचंद का।। सेठ होरया मालामाल, दान-पुन्न की करता नहीं सम्भाल, गावै हाल बतावै, नेकी राम ताराचंद का।। सांग:- सेठ ताराचंद

हो पिया सै रात अंधेरी

हो पिया सै रात अंधेरी, और जंगल बियाबान, कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी, ।। टेक ।। मनैं नहीं गया कुछ कह, नयनों से नीर बह, हो पिया होग्यी सुबह भतेरी, और आया ना मैहमान, कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।। लाली झडग़ी रूप-हुस्न की, बाट देख-देख साजन की, हो पिया मेरे तन की होग्यी ढ़ेरी, और भावै ना जलपान, कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।। मनैं नहीं कुछ खबर, संग म्हं जुल्म हो गया जबर, हो पिया कदै आज्या बब्बर केहरी, और लेले मेरी जान, कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।। कैसे पूज्यूं दई धाम, यत्न बताओ नेकी राम, हो पिया माला गुरू नाम की फेरी, और गाऊं सू गुनगान, कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।।

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