हरियाणवी कविता : मंगतराम शास्त्री “खड़तल”

Haryanvi Poetry : Mangatram Shastri Khadtal


कहणे को तो सब तरियां के ठाट गाम्मां म्हं-ग़ज़ल

कहणे को तो सब तरियां के ठाट गाम्मां म्हं। मगर घरां म्हं बढ री सै कड़वाट गाम्मां म्हं।। पूछ नहीं करदा कोये इब एक दुज्जै की एक त एक बसैं सैं मुल्की लाट गाम्मां म्हं। माणस टोह्ण गया था पाये, हीर-डूम-खात्ती बाह्मण-नाई-रोड़-कमो सब जाट गाम्मां म्हं। नेता के उकसाये जात्तीवाद म्हं फसकै लोग भतेरे हो रये बाराबाट गाम्मां म्हं। स्यासत-पुन्जी मिलकै खेल्लैं खेल मजहब का नफरत हिंसा की भी खुल गी हाट गाम्मां म्हं। एक धड़ी घी-बूरा-शक्कर-खीर खावणियें मिलते ना इब वें माणस खर्राट गाम्मां म्हं। पैल्ड़ी बीरां जिसा नहीं पर आज भी पावै शहर आल़ी बीरां तै घणा चमाह्ट गाम्मां म्हं। "नांग्गे घर की नांग्गी आई धेज ना ल्याई" इन बात्तां पै खूब हुवै करलाट गाम्मां म्हं। दारू-चिट्टा-चरस-हिरोइन-फीम-गांज्जे की हर नुक्कड़ पै मिलै नजायज हाट गाम्मां म्हं। पीज्जा-बर्गर, ब्यूटी पार्लर पोंह्च गे घर-घर फैशन का भी उठ्या ईब खखाट गाम्मां म्हं। प्राईवेट सकूल चुगरदै भोत से खुल गे ट्यूशन का भी बंध रया खूब घघाट गाम्मां म्हं। पीस्से बरतण नै बेस्सक तै हाथ हो तंग पर मोबाइल के ऊठ रहे धर्राट गाम्मां म्हं। दूध घणखरा जावै तड़कै इ रोज शहरां म्हं शहर पसर ग्या ले कै पपड़ी-चाट गाम्मां म्हं। आज कढोणी,रई,बिलोणी भूल गे बच्चे ना रह रे इब खुद्दै आल़े माट गाम्मां म्हं। आल्हा-ब्याल्ला-गूग्गा-रांज्झा-पीर गावणियें कोन्या आन्दे ईब कबिस्सर-भाट गाम्मां म्हं। तांस्शां पै भी जूत बजा लें भोत से लड़दू न्यूं कहक़ै त्नै क्यां तै मारी काट, गाम्मां म्हं। ईब त सबकै लाग्गण लाग्गे टैण्ट ब्याहां म्हं परस म्हं कट्ठी ना होंदी इब खाट गाम्मां म्हं। कब्जे कर लिये ठाड्यां नै शमलात गोर्यां पै थोड़े रह गे ताल-तलैय्ये-घाट गाम्मां म्हं। दिक्खण म्हं तो पा ज्या सै परिवार का एक्का नीच्चै-नीच्चै हो रयी आट्टो-पाट गाम्मां म्हं। चाच्चा नै दे काट भतीज्जा खूड की बाबत रोज्जे देक्खां माच्चै रोवाराट गाम्मां म्हं। पीढ्ढी बध गी बोवण जोग जमीन तो घट गी आज गजां म्हं लाग्गे बिकण प्लाट गाम्मां म्हं। कुछ तो नेता की रैल्ली म्हं स्टेज पै चढ गे गरीब आज बि न्यूंए बिछावै टाट गाम्मां म्हं। भाईचारा तोड़णियां की बरखिलाफ्फी कर ऊठ कमेरे चाल मोरचा डाट गाम्मां म्हं। यार मिरा कल न्यूं बोल्या तूं प्रेम नी करदा आज बता द्यूं इसकी जाब्बक नाट गाम्मां म्हं। खड़तल कहणे भर तै या तसबीर ना बदलै मैल मिटावण नै ले ज्या रंगकाट गाम्मां म्हं।

बिना खरची बिना परची मिलै रुजगार,क्या कहणे-ग़ज़ल

बिना खरची बिना परची मिलै रुजगार,क्या कहणे। नसिब्बां तै मिलै ऐसी भली सरकार,क्या कहणे ।। तरक्की और के होगी जो एक्के टेम भारत म्हं करोड़ां लोग कर रे सूर्य को नमस्कार ,क्या कहणे। चलाण् एक्ले का बिन छिंक्कै कटै खुल्ली सड़क पै भी हजारां की भि रैल्ली की नहीं तकरार,क्या कहणे। करोन्ना भी डरै दिन म्हं बजारां तै घणा ,वो तो पढणियें बाल़कां पै सै रजू-बलिहार,क्या कहणे। गुरू होगा जमान्ने का यु हिंदुस्तान तड़कै नै चलै भर कै जबान्नी रेल धूंम्माधार,क्या कहणे। गजब अंदाज सै सांईं तिरा हरियाणवी लहजा खरी देस्सी करै सै बात"खड़तल"यार,क्या कहणे।

मींह् के कारण भींत बिचाल़ै पड़ी दराड़ां नै-ग़ज़ल

मींह् के कारण भींत बिचाल़ै पड़ी दराड़ां नै। रोज भरै मां माट्टी-गारा गेल बुआड़ां नै।। छोट्टी-मोट्टी कमियां नै तो न्यूंए ढक दे वा डूंड चला राक्खे सैं मां के जोड़-जुगाड़ां नै। सारी रात फिरैं खेत्तां म्हं रखवाल़े,क्यूं के गाम दुखी कर राक्खे सुन्ने ढोर-उजाडां नै। प्रेम-बही नै शक का कीड़ा न्यूं चट कर ज्या सै जैसे गम का कीड़ा चाट्टै तन की नाड़ां नै। अणगिणती के अणू मिलैं जब तो बम एक बणै वो इतना ठाड्डा हो सै दे फोड़ पहाड़ां नै। शहरां तै तो इब्बी चोक्खी काण-सुहाण बची पर बदनाम करे सैं गाम तो ऊत-लपाड़ां नै। रोग बुरा सै सुग्गर का न्यूं खावै माणस नै जैसे घुण खा ज्या सै घर के कड़ी-किवाड़ां नै। खड़तल इसा रफूगर चहिये प्रेम की सूई तै सीम्मै दिल-चाद्दर के पाट्टे होए झराड़ां नै।

लालच म्हं जंगल़ कटवाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये-ग़ज़ल

लालच म्हं जंगल़ कटवाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये। यार तनै खुद लाभ कमाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।। मार उडारी दुनिया घूम्मी ऐश करी बे स्याह्ब तनै घर के बुजरग ना संगवाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।। शोर सराब्बा कर डी जे का तनै सहजता खुद खोई सुथरे गाणे नहीं बचाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये। ऐंटीना टावर बिजल़ी अर सिमटिड घर तनै बणवा कै चिड़िया काब्बर आप मिटाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये। गेल जमान्नै कै बदले सब खान-पान-पहरान्नी भी खिंडके धौत्ती उनै छुटाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये। करजा छिकमा दिया हकूमत नै खुद अपणे यारां तै परदेस्सां म्हं आप भजाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये। कार्पोरेट घरान्यां तै त्नै खुदमुख्तारी सोंप दई घर के भाण्डे आप बिकाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये। खड़तल तो त्नै बरज्या करदा रोज मगर तूं ना मान्या दाद्दालाही माल़ उडाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।

जीवन म्हं तूं कुछ तो चज की कार कर-ग़ज़ल

जीवन म्हं तूं कुछ तो चज की कार कर। माणस हो कै माणस जिसा बुहार कर।। के नफरत भी कोय करण की चीज सै? करणा सै तो माणसपण तै प्यार कर। अगली पीढ्ढी फसल उगा ले प्रेम की उस खात्तर तूं इब्बे धरती त्यार कर। अरथी पै दो फूल चढा दें गैर भी कुछ इस पै भी थोड़ा भोत विचार कर। बेगमपुर सुपना था संत रैदास का जी ला कै नै उसनै तूं साकार कर। सारे सैं जिब एक कुदरती तौर पै तो तूं जात धरम नै दिल तै बाह्र कर। हाट नहीं सै बणिये की या जिन्दगी इसमैं सौद्दे बाजी ना तूं यार कर। "खड़तल"सारी दुनिया बदलणहार सै अच्छै तांही तूं खुद म्हं भि सुधार कर।

वक्ता और सरोता की जिब एक्के भास्सा सै-ग़ज़ल

वक्ता और सरोता की जिब एक्के भास्सा सै। कितनिये झूठ बको मुंह आग्गै मोक्कल़वास्सा सै। गाम घणखरा रोवै पर वें मौज हुई, कहरे क्यूँ के पंचायत म्हं उनका कोरम खास्सा सै। भेष बदलकै, दंगा करकै, आग लगावैं जो कौण पिछाणै अपणे लाग्गैं उल्टा रास्सा सै। बख्त बड़ा बलवान जगत म्हं रुत आणी-जाणी सुणल्यो कल जो बज्जर था इब खील पतास्सा सै। जिसनै घर कै बान्नी लाई भरी जवान्नी म्हं आज सुणै ना कोए उसकी, के घर बास्सा सै। नर-भेडा जिब न्हाकै लिकड़ै बाल़ां नै झटकै भेड़ बणी जो भीड़ कहै,आ लिया चमास्सा सै। जैसी उतणी देबी उनकी वैसे ऊत पुजारी एक जिसे भगवान-भगत यू गजब तमास्सा सै। मान लई जागीर तनै पर या भी सोच लिए इस नगरी म्हं खड़तल का भी डांडल़वास्सा सै। हांसण खात्तर मनवा बेफिकरा चहिये सै। सुंदर होण तईं हिरदा सुथरा चहिये सै।। कहणे को तो बहुत फिरैं सैं मुंह नै बांएं साच्ची बात कहण खात्तर जिगरा चहिये सै। आज तेरै सिर फोड़्या कल मेरै फोड़ैगा उसनै तो हर रोज नया ठिकरा चहिये सै। बह्र निभावण भर तै बस गजल नहीं बणदी मकसद पूरा करदा हर मिसरा चहिये सै। बाग जल़ै पर कह माल़ी, पील़े फूल खिले झूठ चलाण तईं माणस नुगरा चहिये सै।

सै दरकार सियासत की इब फैंको गरम गरम-ग़ज़ल

सै दरकार सियासत की इब फैंको गरम गरम। चौपड़ सार बिछा दी आज्यो खेल्लां धरम धरम।। लोग दिखावा हाम्बी भरियो आंख मिलाइयो ना बेशक लोग मचाओ रौल़ा कहकै शरम शरम। पतनाल़ा पड़र्या जित पड़ना चहिये उसे जगां पंचां की सिरमात्थै कहकै बोल्लो नरम नरम। जो चलदी म्हं नहीं चलावै वो पछतावैगा सारे सपने पूरे कर ल्यो मौका परम परम। अम्बर -सूरज ,चाँद -सतारे, धरती और हवा सब म्हारे सैं चोगरदै फैलाद्य़ो भरम भरम। लोड़ नहीं सै खोट छुपावण की बस ध्यान रहै खड़तल बोल्लै, न्यूं कहियो सब नंगे हरम हरम।।

जितने मेहनतकश किरसाण कमेरे सैं-ग़ज़ल

जितने मेहनतकश किरसाण-कमेरे सैं। उनपै दुख-बिफता के बिज्जल़ खे रे सैं।। सारा जीवन बीत गया इस आशा म्हं सुख के तो बस ढाई सांस भतेरे सैं। रोज तलाश करो अपणै बरगे मन की बिन साथी तो हारे भले-भलेरे सैं। “भाई दूर पड़ौसी नेड़ै “कैह्बत या धुर तै कैंह्दे आवैं बडे-बडेरे सैं। सिस्टम नै उल़झाए लोग कड़ै जावैं आग्गै दिक्खै खाई पाच्छै झेरे सैं। जांच-परख माणस की क्यूकर हो “खड़तल” इक चेहरे म्हं छुप रे लाख्खां चेहरे सैं।

छोड़ कै खेती किसानी कित जाऊँ-ग़ज़ल

छोड़ कै खेत्ती किसान्नी, कित जाऊँ। तज विरासत खानदान्नी, कित जाऊँ।। बाप मेरा न्यूंए मर ग्या टोट्टे म्हं मेरी भी टपगी जवान्नी, कित जाऊँ। हो लिया सौदा किसान्नी घाटे का सै चुगरदै बेइमान्नी,कित जाऊँ। मांग जो ठाऊं हकां की,लठ लाग्गैं बोझ हो ग्यी जिन्दगान्नी,कित जाऊँ। कर्ज म्हं खपगी बडेर्यां की पीढ़ी ना मिली साब्बत पिराह्न्नी,कित जाऊँ। खेत म्हं बन्दूक बोऊंगा इब तो भोत हो ली छेड़खान्नी,कित जाऊँ। ले मुबाइल सब खड़े न्यारे “खड़तल” गाम म्हं छाई विरान्नी कित जाऊँ।।

पहलम थी जिब आई लारी-ग़ज़ल

पहलम थी जिब आई लारी। खूब चढ़ी थी आम सवारी।। पांच बरस तक धक्के खा कै झूठ फरेब मिली मक्कारी। साबित हुया डरेवर फरजी फिर भी कोन्या भूल सुधारी। बरत लिया था फिर भी भटके लोग्गां की गई अक्कल मारी। इस लारी की ऐड्डर बैट्ठे माणस खाणे च्यार बपारी। दो सैं कार्पोरेट घरान्ने एक तड़ीपार एक मदारी। यारां के कर दिये पौ- बारा जनता जाओ भाड़ म्हं सारी। जीण-मरण की जंग छिड़ी सै रैयत फिरती मारी- मारी। प्राईवेट कमाई बढ री सिस्कैं सब ढांचे सरकारी। मनै सुणी झूठ्यां के राज म्हं काल़ पड़ै फैल्लै माह्मारी। कुछ तो कोरोना नै मारे कुछ सिस्टम सै अत्याचारी। लाचारी म्हं जुल्मी आग्गै रोंदी देख लई खुद्दारी। अपणे हाथ मशीन म्हं आप्पो दे राक्खे सैं बीच गरारी। अगलै गेड़ै तक तो यारो पड़ै भुगतणी भूल बिमारी। कल भी जाल़ बिछावैगा यू हाकिम सै चालाक शिकारी। देख लियो क्दे खा ज्यो धोखा सोच समझ कै चुणियो लारी। जो फिर भी ना संभल़े खड़तल खा ज्यागी सत्ता हत्यारी।

अपणा खोट छुपाणा सीख

औरां कै सिर लाणा सीख, अपणा खोट छुपाणा सीख। खोट कर्या पछतावै ना, मंद-मंद मुस्काणा सीख। हाथ काम कै ला ना ला, बस फोए से लाणा सीख। बाबा बण कै मौज उड़ा, बस थोड़ा बहकाणा सीख। खूब दवाई बिक ज्यांगी, थोड़ा पेट घुमाणा सीख। राजनीति के झगड़े नै, जात धरम पै ल्याणा सीख। हवा भतेरी चाल्लै सै, आग पूळे म्हं लाणा सीख। दिन म्हं सुथरे भाषण दे, रात नै पाड़ लगाणा सीख। किसका कौण बिगाड़ै के, शरम तार गिरकाणां सीख। दे कै गाळ पड़ौसी नै, देशभगत कहलाणा सीख। कत्ल कर दिया के होग्या? करकै कत्ल दिखाणा सीख। खोजबीन कौण करै इब, पीळी कलम चलाणा सीख। बड़ा नामवर बण ज्यागा, गीत राज के गाणा सीख। सब बैंकां का धन तेरा, करजा ले पां ठाणा सीख। ज्यादा मगज खपावै क्यूं, फरजी ठप्पा लाणा सीख। गोर्की मुंशी कुछ कोनी, नाम बदल छपवाणा सीख। आयोजक की कर तारीफ, आच्छी गोज भराणा सीख। शाल इनाम सभी तेरे, बस ताड़ी बजवाणा सीख। भेष बदल कै आणा सीख, हंगामा करवाणा सीख।

किसान्नी खोटी कार सै (रागनी)

ओ हो ओ किसान्नी खोटी कार सै….। कुछ मारैं कुदरत, कुछ मण्डी, कुछ सरकार सै। मंहगे भा का बीज पड़ै सै वो भी मुश्किल तै थ्यावै कई बै तो इसी बणै कसुत्ती लाम्बी लैन लगी पावै कई कई कट्टे पड़ैं खाद के कई कई सप्रे करवावै कदे सूखज्या बिन पाणी और कदे डूबज्या पाणी म्हं कदे पकी पै औल़े पड़ज्यां बिजल़ी पड़ज्या लाणी म्हं कदे चाटज्या टिड्डी दल ना धांस बचै खलिहाणी म्हं ओ हो ओ करज की करड़ी मार सै….। सदा बैंक चै आढती कै रहै हाथ पसार सै। छोट्टे- बडे कई नेता उनै रोज भकावण नै आवैं कोए जात की,कोए धर्म की बात करैं और भरमावैं कुछ तो देश- धरम पै मरणे मिटणे की शिक्षा लावैं उसतै बडी देशभगती भई और बता दयो के होगी देही झोड़ा करली खुद कमजोर बता दयो के होगी सारे मुंह मारैं उस म्हं इसी खोर बता दयो के होगी ओ हो ओ चुगरदै उसकी हार सै….। सबका पेट भरणिया क्यों इतना लाचार सै। डाक्टर चाह्वै उसके बाल़क पढ़कै डाक्टर बण ज्यावैं मास्टर चाह्वै उसके बाल़क पढ़कै मास्टर बण ज्यावैं अफसर चाह्वै उसके बाल़क पढ़कै अफसर बणज्यावैं हर नेता न्यूं चाह्वै उसके बाल़क नेता बणैं महान हर बुद्धि जीवी न्यूं चाह्वै उसके बाल़क हों विद्वान पर किरषाण कदे ना चाह्वै उसके बाल़क हों किरषाण ओ हो ओ घटत का कारोबार सै…। सारी जिन्दगी टोट्टे म्हं खपता परिवार सै। असली रोल़ सुणो सिस्टम नै भा-भोई म्हं उल़झाया कौण भाव तय करता है वो नहीं रास्ता दिखलाया “बणती भवी होण की खात्तर”भरम सदा यू फैलाया इब लागत मजदूरी का सब जोड़ लगाणा होगा रै जित हों तय कीमत्त फसलां की ओड़ै जाणा होगा रै भवी के पीच्छै की सांईस का बेरा लाणा होगा रै ओ हो ओ समय की यही पुकार सै….। कहै मंगतराम लड़ाई म्हं एक्का हथियार सै।

बाबत हरियाणा

हम हरियाणा के बाशिंदे सां बेट्टी- पूत किसान के। मजदूर और जवान के, हम गौरव हिन्दस्तान के।। कड़ी मेहनत करकै नै हम खेत म्हं रोज कमावां सां दब कै बाहवां रज कै खावां आनंद घरां मनावां सां माँ बरगी या धरती म्हारी मात्थै तिलक लगावां सां सोन्ना- चांदी- हीरे- मोत्ती माट्टी म्हं उपजावां सां म्हारे बीच म्हं फर्क नहीं घणे निर्धन और धनवान के। मर्दां की गेल्यां खेत्तां म्हं करती काम लुगाई रै गैरे ला, तांसल़े ठावैं, भारां की करैं ढुवाई रै छाज गेल बरसा कै नै जिन्नस की करैं सफाई रै गृह लक्ष्मी बण कै नै वें करती सफल कमाई रै कार बुहार गृहस्थी के सब जाणैं विधि विधान के। गाड्डी की ऐड्डर बेठ्ठण नै बाल़क रयाड़ करैं म्हारे नहीं बिठावै,छो म्हं आकै कति बिगाड़ करैं म्हारे स्कूल तै आकै चलैं खेत म्हं नहीं उजाड़ करैं म्हारे खाण पीण तै रोक्कणिये के गण्डे पाड़ धरैं म्हारे आप्पे के म्हं मस्त रहैं जणूं मालिक सकल जहान के। हरियाणा के नर नारी सब मिलजुल कै नै कार करैं ईद बिशाखी तीज दशैहरा होल़ी का त्यौहार करैं घर आए मेहमान्नां की हम इज्जत बेसुमार करैं मंगतराम कहै आपस म्हं सब खड़तल व्यवहार करैं नेम धरम कायदे कानुन म्हारे सीधे सादे ज्ञान के।

बित्तै सै जिंदगी सारी

बीत्तै सै जिंदगी सारी दुख चिंता म्हं उस भोल़े से किरसाण की….. रै ।।टेक।। गात निचोड़ वो फसल उगावै,सारे जग की भूख मिटावै फेर भी ना थ्यावै उसनै टेम पै पाई नौबत आज्या फांसी खाण की….. रै। हर दम डूब्या रहै करज म्हं, रोगी होज्या हर्ज मरज म्हं आपणे फरज म्हं फेर भी कसर ना छोड्डै सारी रीत पुगावै बेट्टी-ब्हाण की…. रै। एक तरफ टोटा करड़ाई, दूज्जै कमर तोड़ मंहगाई सुख के तो ढाई सांस भी कोन्या मिलते देक्खें जा बाट उसाण की…। वो बांट दिया गन्दी स्यासत नै,भूल रहा सै अपणी पत नै उस ताकत नै मंगतराम पिछाणै आज लोड़ सै हाथ मिलाण की…. रै

हाली की दुआली

आज भी कात्तक बदी अमावस दिन सै खास दिवाल़ी का। सत्तर साल बीत गे फेर भी ढंग बदल्या ना हाल़ी का।। आज भी लोग बाल़कां खात्तर खील खेलणे ल्यावैं सैं उसके बाल़क बैठ गल़ी म्ह उनकी ओड़ लखावैं सैं जल़ी रात की बची खीचड़ी घोल़ सीत म्ह खावैं सैं आँख मूंद दो कुत्ते धोरै बैठे कान हिलावैं सैं टोट्टा चौड़े काल्लर घुम्मै ना कोए काम रुखाल़ी का। घरां अमीरां कै तो हलवे खीर की खुशबू उट्ठै सै हाल़ी की बहु आज भी न्यूएं खड़ी बाजरा कुट्टै सै टुट्टी खाट खुराड़ी सै बिन पैंद गात नै चुंट्टै सै फुट्टी चिलम होकटी की हाल़ी तै रोवै रुट्ठै सै आज भी उसकै धोरै तो डण्डूक पड़्या सै फाल़ी का। आज भी उसके बाल़क न्यूंए रोन्दे पिटदे जावैं सैं माँ कै आग्गै चीज मंगावण की फरमास लगावैं सैं थारे बाप के जी नै रोल्यो माँ उननै धमकावैं सैं आशा लेकै फेर बाल़क बाब्बू नै अरज सुणावैं सैं आज भी न्यूंए लिकड़ै सै ओ पति कमाणे आल़ी का। ज्ञानीराम नै जो कैहराक्खी आज भी न्यूं की न्यूं दिक्खै देख बाल़कां की हालत हाल़ी का भीत्तरला चिक्खै ब्याज रपैये देन्दा भी सहुकार कई कई बै झिन्खै वाहे रागनी आज बोहड़ कै मंगतराम तेरी लिक्खै आज तो सारे जाणैं सैं क्यूँ बाग उजड़ रया माल़ी का। फेर भी कोए जुगाड़ नहीं उस हाल़ी की परणाल़ी का।। (हाल़ी की दिवाल़ी जिसी ज्ञानीराम शास्त्री जी के बख्तां म्हं थी आज भी उसी ए है। उस रागनी को आज के संदर्भ म्हं कहण की कोशिश करी है।)

ओढ़ चूंदड़ी पील़े रंग की

ओढ़ चूंदड़ी पील़े रंग की आई दिल्ली म्हं । असली भारत माँ नै अलख जगाई दिल्ली म्हं।। हाथ म्हं सोट्टा मोट्टा ले रयी मन म्हं भरया यकीन अस्सी साल उमर म्हं भी वा कती नहीं गमगीन न्यूं बोल्ली यें किसान विरोधी कानुन बण रे तीन हात्थां म्हं तै जांदे दिक्खैं साधन और जमीन खेत बचावण खात्तर आई ताई दिल्ली म्हं। हक ले कै जावांगे न्यूं गरजाई दिल्ली म्हं।। रजधान्नी की ड्योढ़ी पै चढ़ माई नै ललकारया सूड़ ठा दिया देश का यू राज किसा आ रया अन्नदाता डेरा दिल्ली की देहल़ी पै ला रया उसकी गेल्यां मजदूरां का भी पड़ रया लारा ऊंच नीच की पाट्टी दिक्खै खाई दिल्ली म्हं। बीरां नै भी सिर की बाजी लाई दिल्ली म्हं।। न्यूं कह री वा आज के शासक हो रे सैं हड़खाए पूंजीपती घरान्यां के जबड़यां म्हं लोग फंसाए नहीं किसे की सलाह लेई ना सारे नेम पुगाए ले कै आड करोना की काल़े कानून बणाए देक्खो कितनी खोटी चाल चलाई दिल्ली म्हं। अगली पीढ़ी दास करण की चाही दिल्ली म्हं।। कहै मंगतराम लड़ाई आरोपार की ठण री एक तरफ लाट्ठी गोल़ी सरकार की तण री दूजी ओड़ खड़ी रैयत दीवार सी चिण री शांतमयी संघर्ष करांगे योजना बण री साथ बुजुर्गों के आई तरुणाई दिल्ली म्हं। गाण रागनी पोंहच्या विकरम राही दिल्ली म्हं।

घाणी फोड़ रही थी जोट न्यूं आपस में बतलाई

घाणी फोड़ रही थी जोट न्यूं आपस में बतलाई हम रहां माट्टी संग माट्टी, म्हारी जड़ चिन्ता नै चाट्टी पाट्टी पड़ी खेस की गोठ, दे म्हैं को राम दिखाई म्हारे अणपढ़ रहग्ये बच्चे, और ढूंढ़ पड़े सैं कच्चे सच्चे मोती मारैं लोट, जणूं रेत में चिड़िया न्हाई हम देही तोड़ कमावां, पन्द्र्ही पै राशन ल्यावां खावां रूखे सूखे रोट, ना मिलता दूध मलाई सही मंगतराम कहै सै, म्हारे हिरदे डीक दहै सै रहै सै सारी हाण कचोट, म्हारी देही रंज नै खाई ( प्रचलित तर्ज-होळी खेल रहे नन्दलाल...)

सिपाही के मन की बात

कान खोल कै सुणल्यो लोग्गो कहरया दर्द सिपाही का। लोग करैं बदनाम पुलिस का धन्धा लूट कमाई का।। सारी हाणां रहूँ नजर म्ह मेरी नौकरी वरदी की चौबिस घण्टे की ड्यूटी ना परवाह गरमी सरदी की पड़ै राखणी हां म्हं हां मनै इस सिस्टम बेदरदी की पेट की खातिर गाल़ी खाऊं के कीमत अणसरदी की माम्मा कैह कै लोग खिजावैं पात्तर बणूं हंसाई का। कलरक तै भी थोड़ी तन्खा घर का निर्बाह करणा हो अफसर का हो हुकम बजाणा जी जी कैह कै डरणा हो छुटभैये नेता आग्गै भी अणचाही म्हं फिरणा हो बदमास्सां संग मुठभेड़ां म्हं बिन आई म्हं मरणा हो फेर भी चा के कप का तान्ना सुणना पड़ज्या ताई का। बेशक कोए छुटाकै भाज्जो नहीं हथकड़ी लाणी हो ल्हाश कै धोरै खड़े खड़े कदे पड़ज्या रात बिताणी हो करड़ी ड्यूटी इसी बैल्ट की सारी ढाल़ पुगाणी हो एक म्हैस सौवां नै धांस्सै बदनामी की काहणी हो जी जल़ज्या सै लोग कहैं जब नहीं पुलसिया भाई का। रैल्ली धरणे प्रदर्शन म्हं जिब कोए बात बिगड़ज्या रै जब मजदूर किसान मुलाजम शासन गेल्यां भिड़ज्या रै बेशक सगी ब्हाण स्याहमी हो जी नै रास्सा छिड़ज्या रै मजबूरी म्हं माँ जाई कै लट्ठ मारणा पड़ज्या रै कड़ै करुं पछतावा लोग्गो बाप पै रफल चलाई का। सेवा अर सहयोग सुरक्षा सै तालीम सिपाहियां की पर म्हारै जुम्मै रखवाल़ी अपराधी बलवाईयां की चै डेरयां के बाब्बे हों जो अकल हड़ैं अनुयायियां की चहे गुण्डे हों राजनीति के उन्मादी दंगाईयां की कानुन खात्तर फेर सामना करणा पड़ै लड़ाई का। बेशक हो बदनाम पुलिस पर बिना पुलिस बेढंग होज्या जै भै ना हो किते पुलिस का आम आदमी तंग होज्या गरीब आदमी के सिर पै तो भों कोए ऊत मलंग होज्या खुल्ले सांड मचादें रौल़ा पल म्हं शान्ति भंग होज्या पुलिस के दम पै जिम्मा ले ले निर्बल ठोक गवाही का। इन्क्रीमेंट कटण की चिंता सबतै घणी सिपाही की नहीं सहुलियत पड़ै गुलामी सहणी अफसर शाही की नहीं आजादी बोल्लण की ना छुट्टी घूम फिराई की सुन्नी रहैं खुशी बच्यां की तीज बीतज्या ब्याही की कहै मंगतराम सवेरा हो कद घुट घुट रात बिताई का।

सामण का स्वागत

शीळी शीळी बाळ जिब पहाड़ां म्ह तै आण लगै होवैं रूंगटे खड़े गात के भीतरला करणाण लगै राम राचज्या रूई के फोयां ज्यूं बादळ उडण लगैं समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी। नन्हीं नन्हीं बुन्दां की जिब तन सूई सी चुभण लगै धरती माँ की छाती म्ह तै सौंधी खुशबू उगण लगै रूप जवानी गदरावै और अल्हड़ नैणां गडण लगैं समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी गुड़ के गूलगले पूड़यां का घर म्ह जिक्रा होण लगै धी बेटी की कोथळियां का माँ कै फिक्रा होण लगै सिरसम की काच्ची घाणी के तेल कढ़ाई चढ़ण लगैं समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी खेत की ऊँची डाबड़ियां म्ह किते टटीरी गाण लगैं काब्बर गुग्गी और गोरैया रेत्ते के म्ह न्हाण लगैं मोर मोरणी देख मेघ नै नई इबारत पढ़ण लगैं समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी

झूठ कै पांव नहीं होते

सदा जीत ना होया करै छल कपट झूठ बेईमाने की एक न एक दिन सच्चाई बणती पतवार जमाने की झूठ कै पांव नहीं होते या दुनिया कहती आवै भुक्खे की जा बोहड़ कदे झूठे की ना बोहड़ण पावै मुंह की खावै पकड़ी जा जब असली नब्ज बहाने की सौ सौ झूठ बोल करता कौशिश एक झूठ छिपाने की बेईमान माणस के मन में सारी हांणा चोर रहै उडूं पुडूं रहै भीतरले में बंध्या चुगर्दे भौर रहै हरदम टूटी डोर रहै विश्वास के ठोर-ठिकाने की ईमानदारी सबते आच्छी नीति नेम पुगाने की कपटी माणस छल करकै ठग चोर जुआरी बणया करै सदा एकसी समो रहै ना दूध अर पाणी छणया करै उल्टी गिनती गिणया करै जो मंजल तक पहुँचाने की उसकै बरकत ना होती या साच्ची बात रकान्ने की बेशक आज इसा लाग्गै जणू होरयी हार सच्चाई की क्युंके ताकत खिंडी पड़ी सै चारों ओड़ अच्छाई की चाबी नेक कमाई की तह खोलै ख़ैर -खज़ाने की कहे मंगतराम जरूरत सै आज सच्चाई संगवाने की

सासड़ होल़ी खेल्लण जाऊंगी

सासड़ होल़ी खेल्लण जाऊंगी, बेशक बदकार खड़े हों। री मनै पकड़ना चावैंगे, जाणूं सूं जाल़ बिछावैंगे ना उनकै काबू आऊंगी, कितनेए हुशियार खड़े हों। हेरी इसा कोरड़ा मारूंगी, देही तै चमड़ी तारूंगी मैं कती नहीं घबराऊंगी, चाहे थानेदार खड़े हों। री वें बात करैंगे मन की, मरोड़ करैंगे धन की री मैं आप कमा कै खाऊंगी, चाहे साहूकार खड़े हों। चाहे बोल्लो वें बोल जहरीले, पर मैं गाऊंगी गीत सुरील्ले री दिल चोरी करकै ल्याऊंगी, चहे चौकीदार खड़े हों। हेरी सासड़ ना घबरावै, तनै नहीं उलाहणा आवै मैं प्रीत के रंग लगाऊंगी, बेशक तड़ीपार खड़े हों। री मैं नहीं एकली जाय री, खड़तल मेरी गेल खड़्या री री मैं सबनै धूल़ चटाऊंगी, चाहे डार की डार खड़े हों।

अन्नदाता सुण मेरी बात

अन्ऩदाता सुण मेरी बात तूं हांग्गा ला कै दे रुक्का। सारे जग का पेट भरै तूं फेर भी क्यूं रहज्या भुक्खा।। माट्टी गेल्यां माट्टी हो तेरा गात खेत म्हं गळज्या रै सारी उम्र कमाकै मरज्या तेरी ज्यान रेत म्हं रुळज्या रै स्याणा सपटा भुका सिखा तेरी घरवाळी नै छळज्या रै पशु गेल तूं रहै पशु पर दूध ढोल म्हं घलज्या रै टिण्डी घी लस्सी भी जा लिये बचग्या टूक तेरा लुक्खा। तेरे हिस्से जो किल्ले थे वें बंटग्ये बीघे क्यारां म्हं कुणबा बढता जार्या धरती घटती जा बंटवार्यां म्हं ब्याहवण के तेरे बाळक हो लिये माच्चै खैड़ कुवार्यां म्हं कोए सगाई आळा भी ना आंदा तेरे दुआर्यां म्हं तूं मारै तीर बिटोड़े म्हं जो लगज्या तीर नहीं तुक्का। ठेक्के पै धरती लेवै तूं तेल जळा पाणी लावै खाद बीज लेवण जावै तनै लांबी लैन लगी पावै रोळा करै पिटै डण्ड्यां तै थाणे म्हं परची थ्यावै स्टोर आळा भी खाद बीज की गेल दवाई पकड़ावै मंहगे भा तनै पड़ै बिसाह्णा रहज्या मार सबर मुक्का। पाणी भरज्या फसल उगळज्या सुक्खे म्हं तेरा धान मरै अकाळ पड़ो महामारी आओ पहलम झटक किसान मरै जेठ तपो चाहे पोह् का पाळा सारी साल बिरान मरै फेर काळे खाग्गड़ फसल चाटज्यां बेबस हो परेशान मरै रोम रोम तेरा बिंध्या करज म्हं तनै मारै बाढ कदे सुक्खा । करजा माफ करावण नै तूं जब सड़कां पै आवै रै करज माफ हो कम्पनियां का तनै लाट्ठी गोळी थ्यावै रै हाथ जोड़ जिनै बोट लिये थे वो तनै आँख दिखावै रै फेर चौगरदे तै घिरै जाळ म्हं ना तेरी पार बसावै रै हो लाचार घालज्या फांसी तूं घड़ी का करै घड़ुक्का। जोणसे नोहरे बैठक सैं तेरे आढ़तियां की मेहर टिके जोणसे खूड तेरै बच रे सब बैंक लिमिट कै नाम बिके सारा साम्मा सुदां ट्रैक्टर सब किस्तां पै तेरा दिखे बिन रुजगार तेरे बाळक न्यूं फिरैं भरमते पढ़े लिखे खड़या कूण म्हं तरसै सै बिन भाईयां तेरा चिलम हुक्का। एक्का कर तनै लड़णा होगा और नहीं कोए चारा सै जो तेरी साथ चलै मिल कै ओ असली भाई चारा सै जात धरम का नकली नारा तनै राक्खै न्यारा न्यारा सै बिन बैरी के जाणें और बिन बोल्लें नहीं गुजारा सै सुण मंगतराम तेरा दुखड़ा मेरा भी हुया मथन रुक्खा।

मैं टोहूं वो हरियाणा जित दूध-दही का खाणा है

देशां में सुण्या देश अनोखा वीर देश हरियाणा है। मैं टोहूं वो हरियाणा जित दूध-दही का खाणा है।। था हरियाणा हिन्दू-मुस्लिम मेलजोल की कहाणी का पीर-फकीरों संतों की गूंजी यहां निर्मलवाणी का उर्दू-पुरबी-पंजाबी-बृज-बागड़ी-बांगरू बाणी का जमना घाघर बीच ठेठ तहजीब की फिजा पुराणी का आज दंगे हों जात-धर्म पै नफरत का ताणा-बाणा है। पहलम दूध बिना पैसे भी आपस में थ्याज्या करता गऊ-भैंस-बकरी-भेड़ों का रेवड़ चर आज्या करता सस्ते में होज्या था गुजारा हिल्ला भी पाज्या करता गरीब आदमी भी डंगवारा कर काम चलाज्या करता आज डंगर की कीमत बढ़ग्यी सस्ता मनुष निमाणा है। पहलम तै ज्यादा उत्पादन बढ़्या देश में आज दिखे अन्न धन के भण्डार भरे होया आत्मनिर्भर राज दिखे बेशक होया विकास मगर रूजगारहीन बेलिहाज दिखे क्यों के सबके हिस्से में नहीं आता दूध-अनाज दिखे आम आदमी नै तो मुश्किल होर्या काम चलाणा है। फौज बहादुरी के किस्से भी खूब सुणे हरियाणे के जय जवान और जय किसान के नारे जोश जगाणे के मरदां के संग महिलाओं के जुट कै खेत कमाण के लेकिन आज सुणो किस्से सरेआम कत्ल करवाणे के बेट्टी घटैं रोज मात का गर्भ बण्या शमशाणा है। कुछ गाम्मां में भी शहरों जैसी चकाचौंध तो फैली है एक हिस्सा तो गाम्मां का भी होया धनी और बैल्ली है। पर मजदूर किसानों को तो होवै बहोत सी कैली है आड़ै औरत और दलित विरोधी बहती हवा विषैली है कहै मंगतराम कर्ज में डूब्या ज्यादातर किरसाणा है।

इसा गीत सुणाओ हे कवि

इसा गीत सुणाओ हे कवि! होज्या सारै रम्मन्द रोळ, उट्ठे चोगरदै घमरौळ इसा राग्गड़ गाओ हे कवि! माच्ची उथल-पुथल सारै कोए झूठ और साच पिछाणै ना आप्पा-धाप्पी मची चुगरदै दया-हया कोए जाणै ना सारै को मदहोस्सी छार्यी बुद्धि रही ठिकाणै ना आपणी डफली राग भी आपणा कोए किसे की ताणै ना इसा रंग जमाओ हे कवि! होज्या सारै गाद्दळ घोळ, दिक्खै सब किमे गोळ-मटाळही इसा डुण्डा ठाओ हे कवि! धक्का-मुक्की होण लागर्यी कोए किसे की नहीं सुणै इसी कसुत्ती होई मिलावट दूध और पाणी नहीं छणै दगाबाज होर्ये सारे झाड़ै कोए किसे की नहीं गुणै हाहाकार माचर्यी सारै भय का वातावरण बणै इसा छंद बणाओ हे कवि! खुलज्यां ढके-ढकाए ढोल, पाट्टै सबकी पट्टी पोल, इसा नारा लाओ हे कवि! होर्यी झीरमझीर व्यवस्था नहीं बच्या कोए जिम्मेदार छीना-झपटी होर्यी सारै लम्पट फिरग्ये घर-घर-द्वार न्याय नीति का भाण्डा राज की होर्यी बण्टाधार कोए पारखी बच्या नहीं उरै खळ और खाण्ड बिकै एक सार इसा शोर मचाओ हे कवि! कोन्या सुणै किसे का बोल, रहज्यां धरे-धराए मोल, इसा झूठ चलाओ हे कवि! इतनी चकाचौंध बढ़ग्यी उरै आंख मिचैं चमकार्यां म्हैं धर्म का डण्डा चलै राज पै शक्ति बढ़ी इजारयां म्हैं भीड़ के आग्गै चाक्की पीस्सै कानुन बैठ चौबर्यां म्हैं क्यूं खोएं अर्थ फिरै कविताइ नाच्चै राज इशार्यां म्हैं इसा राग बजाओ हे कवि! करज्या मंगतराम मखोल, फेरबी पाट्टै कोन्या तोल, इसा भ्रम फैलाओ हे कवि! इसा गीत सुणाओ हे कवि!…………..।

प्राण-रवींद्रनाथ टैगोर

इस सोहणी सी दुनिया म्हं मैं मरणा कोनी चांह्दा माणसां कै बिचाल़ै बचणा चाहूँ सूं जिन्दे-जागदे हिरदै म्हं जै जगांह थ्या ज्या तो इन सूरज की किरणां म्हं इस फूल्लां भरे बण म्हं इब्बे मैं जीणा चाहूँ सूं। धरती पै प्राणां का खेल धुर-दिन तै ए होन्दा आवै सै उरै कितना गाढ़ा मेल़, कितना बिछोड़ा, कितनी हांस्सी अर कितने आंस्सू सैं माणस के सुख-दुख म्हं संगीत पिरो कै जै मैं कोए अमर ठाण बणा सकूँ तो उरै मैं जीणा चाहूँ सूं। जै न्यूं ना हो सकै तो मैं जिब तक बचूं थारै सब कै बिचाल़ै मेरी जगांह बणी रहै अर मैं इस आश म्हं संगीत के नवे-नवे फूल खिलांदा रहूँ के देर-सबेर थामें इन नै जरूर चुगोगे। हांसदे होए फूल थामें ले लियो पाच्छै जोणसे फूल सूख ज्यावैं तो उन नै फैंक दियो। (अनुवादक – मंगतराम शास्त्री)

राजा जी जो जीत गया तो फेर भी तूं हारैगा रै

(किसान आन्दोलन के समय लिखी गई ) राजा जी जो जीत गया तो फेर भी तूं हारैगा रै। च्यारों ओड़ तै घिरे हुयां नै के जी तै मारैगा रै..। हम तो पहले ई मरे पड़े सां ले बैठ्ठां गे भूप तनै नहीं मिलेगी जगह ल्हकोणे नै बेहूदा रूप तनै दुनिया म्हं बदनामी होगी लोग कहैं बेकूप तनै अन्नदाता मर गया तो धरती ना देवै कदे टूक तनै भूख मिटै ना रोटी बिन तूं किस तरियां सारैगा रै। ज्यान हथेली पै धरकै जो त्यारी करकै आ रये सैं नहीं मरण तै डरते वें संग राशन पाणी ल्या रये सैं च्यो काल्लर सरदी म्हं भी आप बणाकै खा रये सैं ईब तलक तो गीत समाई और शांति के गा रये सैं जिस दिन छात्ती पै चढ़गे तूं किस तरियां तारैगा रै। तेरा के बिगड़ै तूं छप्पन इंच का सीना ले रया सै छप्पन भोग करण आले तनै नहीं भूख का बेरा सै तकलीफ्फां नै ना जाणै तेरै धोरै ठाठ भतेरा सै आज मगर किसान तेरी ड्योढ़ी पै दस्तक देरया सै मतना मान्नै भेड इनै यू शेर रूप धारैगा रै। जिस खोण नै कुछ ना होत्ता पाण नै दुनिया सारी उस घणा दबाव बणाणा ठीक नहीं अत्याचारी सब मजदूर किसान महिला यूवा और लिखारी रोज की नफरी बढण लाग री बात मान अहंकारी नहीं तो खड़तल शब्दां के बणा तीर तनै टारैगा रै।

सुपने में देखी ऐसी बांकी नगरिया

सुपने में देखी ऐसी बांकी नगरिया हो राम… वा हे नगरिया मेरे मन में बसी उस नगरी में ना कोए दीन था, ओड़ै आपस में पूरा यकीन था ना कोए धोखा सबकी साझी तिजुरिया हो राम… वा हे तिजुरिया मेरे मन में बसी भूखा नहीं था कोए नाज का, ओड़ै चिडिय़ा नै खतरा ना था बाज का सबकी थी सबके मन में पूरी कदरिया हो राम… वा हे कदरिया मेरे मन में बसी कोए किसे की ना था दाब में, ओड़ै फरक नहीं था किसे आब में सबकी थी आपस के म्हैं सुथरी नजरिया हो राम… वा हे नजरिया मेरे मन में बसी मंगतराम की आंखें खुली, फेर टोही भतेरी ना वा राही मिली पहोंची थी उस नगरी में, जोणसी डगरिया हो राम… वा हे डगरिया मेरे मन में बसी

जो आजादी मिली हमें वा रूंगे मैं ना थ्याई थी

जो आजादी मिली हमें वा रूंगे मैं ना थ्याई थी इस खात्तर खपे लाल हजारों बड़ी मुश्किल तै पाई थी सन सत्तावन मैं लड़ा गया पहला संग्राम बतावैं सैं देश के कोणे कोणे मैं माच्या घमासान बतावैं सैं मंगल पांडे तात्यां टोपे होए कुरबान बतावैं सैं उस झांसी आळी राणी का ऊंचा बलिदान बतावैं सैं नब्बे साल तै छिड़ी लड़ाई 47 में रंग ल्याई थी बहोत घणे संघर्ष हुए थे देश मैं और देश तै बाह्र विदेशां में फौज बणी एक गदरी बाब्यां की ललकार हरदयाल एम।ए।, सोहन सिंह भकना, बरकतउल्ला, करतार कामागाटा मारू नामक जहाज पै हो आए असवार और बहोत से शहीद होए जिनै तन पै गोळी खाई थी पंजाब केसरी लाला जी नै साईमन को लल्कार्या था सांडर्स नै आदेश दिया उन्हें लाठियों से मार्या था लाला जी के बदले का न्यूं शोर मच्या बड़ा भार्या था भगत सिंह और राजगुरु नै बदला तुरन्त उतार्या था एक उधम ङ्क्षसह नै भी मार कै डायर आपणी कसम निभाई थी इस आजादी की खातिर नेता जी चन्द्र बोस खपे असफाक उल्लाह बिस्मिल और चन्द्रशेखर कर होश खपे रोशन ङ्क्षसह सुखदेव राजिन्द्र लाहिड़ी भर कै जोश खपे ना लिखे गए इतिहासां में इसे बहोत से वीर खामोश खपे कहै मंगतराम आजादी की मिल-जुल कै लड़ी लड़ाई थी

तेरा जाईयो सत्यानाश राम

तेरा जाईयो सत्यानाश राम या किसी करी मेरी गेल आशा पै दिन तोड़ रहा था कर दिया मटिया मेल देख-देख गेहूं की बाली मन हुलसाया था बेच फसल नै के के करणा जोड़ लगाया था खो दिया जमा जमाया था जो पल दो पल में खेल पोस माघ के म्हीने में जब पाळा पड़्या कसाई पाणी के म्हैं खड़ा रह्या मनै कोन्या करी कोताही तनै मेरे ऊपर किसी चलाई या पैने मुंह की सेल पकी फसल पै ओळे पड़ग्ये सारा खेत पसरग्या मेरी काया लीली होग्यी जणूं काळा बिषियर लड़ग्या मेरे नाम का आज तूं मरग्या हो चाहे बेशक ठेल खेत लिया था ठेके पै साहुकार से कर्जा ठाकै यू तै माफ भी ना होवै ना कोए बचावै आकै बेईमान तेरे गुण गाकै मनै के काढ्या खड़तेल

मेरा रूखा-सूखा खाणा

मेरा रूखा-सूखा खाणा, मनै मिली सबर की घूंट पीण की सीख विरासत मैं मनै तो सब किमे न्यूं समझावै, भाग तै बाध कुछे ना थ्यावै धमकावै यू ताणा-बाणा, मेरी बींधै चारों खूंट गेर दें जकड़ हिरासत में मनै तो मिली कर्म की सीख, सदा पिटवाई मेरे पै लीख मनै झींख कै मिलता दाणा, मैं दाबूं हळ की मूंठ मगर ना सीर बसासत में मनै ना मिल्या पढ़ण का मौका, मेरे संग होया हमेशा धोखा बड़ा ओखा टेम पुगाणा, या मची चुगरदै लूट फैलर्या जहर सियासत में मैं हाड पेल करूं काम, फेर भी ना मिलते पूरे दाम मंगतराम सिखावै गाणा, कहै सदा रहो एकजूट एकता ना रहै परासत मैं

न्यारे-न्यारे भ्रम फेला कै

न्यारे-न्यारे भ्रम फेला कै जारी करते जो फरमान वें करते मेहनत की चोरी सबतै माड़ा विधि विधान कर्म की गेल्यां, धर्म जोड़ कै, श्रम का पाठ पढ़ाते जो काम कर्म हो, कर्म धर्म हो, न्यूं जंजाल फैलाते जो धर्म की गेल्यां घटै आस्था फेर विश्वास जमाते जो दिखा पाप का भय माणस की बुद्धि को बिचळाते जो चालाकी से स्याणे बणकै करैं स्याणपत बेईमान धर्म कहै मत बदलो धन्धा पुस्तैनी जो काम करो बांध देई जो चलती आवै मरयादा सुबह शाम करो जात गोत की जकडऩ में मत परिवर्तन का नाम करो चक्रव्यूह में फंसे रहो मत लिकड़ण का इन्तजाम करो कोल्हु के बुळ्दां की ढालां रहो घूमते उम्र तमाम बेशक मेहनत करणी चाहिए मेहनत ही रंग ल्यावै सै मेहनत में जब कला मिलै तो सुन्दरता कहलावै सै मेहनत की भट्ठी में तप स्योन्ना कुन्दन बण ज्यावै सै लेकिन मेहनत की कीमत पै शोषक मौज उड़ावै सै मेहनत का महिमा मण्डन हो फेर होगा श्रमिक सम्मान जिस दिन काम करणिए जग में मिलकै नै हक मांगैंगे मेहनतकश सब मरद लुगाई जब आपणी बांह टांगैंगे उस दिन पकड़ी जागी चोरी फेर सब सीमा लांघैंगे गेर गाळ में मूंदे मूंह जुल्मी चोरां नै छांगैगे कहै मंगतराम मिलैगा असली मेहनत का फेर पूरा दाम

टोहूं मैं उस देश नै जहां हो सबका रूजगार

टोहूं मैं उस देश नै जहां हो सबका रूजगार, सभी के पास में रोटी कपड़ा घर हो….हे रै रै रै रै…। सबको पेट भराई भोजन मिलता हो सम्मान से ना कोए भूखा सोता हो ना मरता हो अपमान से ना कोए ऊंचा नीचा हो जहां जाति-गोत विधान से समता के सन्देश में जहां मिलता हो बल-प्यार, खुले आकाश में उड़ता खग नीडर हो…हे रै रै रै रै….। कपड़े के टोट्टे में कोए भी नहीं जिडाया मरता हो शिखर दोपहरी लूआं में कोए नहीं उघाड़ा फिरता हो सर्द ठिठरती रात्यां में कोए ना नंगे तन ठिरता हो हितकारी के भेष में जहां ना हो कोए बदकार, आम और खास में जहां ना कोए अंतर हो…हे रै रै रै रै…। सबको मौका मिलता हो जहां मन की बातें कहणे का जरूरत के अनुसार सभी को घर मिलता हो रहणे का ना हो कोए दबवार किसे की धौंस खाम खा सहणे का सरकारी आदेश में जहां ना हो भ्रष्टाचार, ठगण की आस में कोए ना खड़ा अफसर हो…हे रै रै रै रै …। मंगतराम कहै आपस में सबका भाईचारा हो गीत और संगीत जहां हो रंगों भरा नजारा हो मर्यादा के नाम पै कोए ना बणता हत्यारा हो सामाजिक विद्वेष में जहां ना हो मारो-मार, धरम की चास में नहीं पकता खंजर हो....हे रै रै रै रै….।

धनसत्ता नै निगल लिया सब

धनसत्ता नै निगल लिया सब आज बच्या कोए धर्म नहीं पशु कै बदलै माणस नै मरवा द्यें आवै शर्म नहीं जात-धर्म पै बांट दिया जन माणस न्यारा-न्यारा रै मानवता का मोल घट्या आज शहद हो लिया खारा रै सत्ता और धर्म ने मिलकै जाळ फैलाया सारा रै माणस-माणस का बैरी यू कोड जुल्म होया भार्या रै लगी कोढ़ में खाज की ढाळां ठीक होवै कोए चर्म नहीं राज की गेल्यां नीति और नीयत का मेल कहा जा सै जिसा राज उसी प्रजा हो ऊपर तै रोग बहा जा सै जिब राजा कै हो खौट नीत में क्यूकर भला लहा जा सै अफवाह और नफरत के हाथां माणस रोज दहा जा सै झूठ के संग जित जुड़ै आस्था फेर बचै कोए कर्म नहीं दुनिया के म्हैं माणस ही एक ऐसा जीव बताया रै जगत भलाई के हित में सदा चिन्तन करता आया रै यू संसार बसण जोगा खुद माणस नै ही बणाया रै आज धर्म पै बहम पशु का जन तै बत्ती छाया रै जब राज अंगारी सुलगा दे फेर कोए धर्म से ज्यादा गर्म नहीं धर्म बण्या व्यापार आज गठजोड़ राज तै होग्या इस गफलत में फंस कै माणस अपणी अस्मत खोग्या ओड़ै गोधरा आड़ै दुलीणा बीज बिघन के बोग्या कहै खड़तळ कविराय ऊठ क्यूं ताण चादरी सोग्या जै इन्सान बचैगा तो फेर बचै पशु भी भ्रम नहीं

सै मशहूर नया नौ दिन

सै मशहूर नया नौ दिन और सौ दिन चलै पुराणा नहीं पुराणा सब किमे आच्छा यू भी सै एक गाणा जितने गीत-संगीत पुराणे खूब सराहे जां सैं प्यार-मोहब्बत तन्हाई के गीत बजाए जां सैं पर जो आज नहीं मतलब के वें भी गाए जां सैं दिखे राजा-राणी के किस्से आदर्श बताए जां सै जबकि नए जमान्ने का नया हो सै ताणा-बाणा जितनी बात पुराणी कहावत सारी आच्छी नां सैं कहते माड़ी जात बीर की बिल्कुल साच्ची नां सैं छोरी हो कूड़े की बोरी ये बात जरा-सी नां सैं जिसी नीत उसी बरकत बाणी परखी जांची नां सै आज खोट्टी नीत खरी बरकत हो, यू सै पना-पुआणा ना सब चीज नई आच्छी ना माड़ी सभी पुराणी ना सब चीज पुराणी आच्छी ना सब नई निमाणी जात-पात और खाप-गोत की चाल हों माणस-खाणी लूट-फूट पै टिकी हुई हर चाहिए चीज मिटाणी बेशक नाम धरम का हो ना चाहिए जहर फलाणा सै बदलाव जगत का नियम ना घबराणा चहिए सड़ै पान बिन पाणी बदले, कति ना खाणा चहिए हंस कै नै परिवर्तन को हमें गळे लगाणा चहिए लेकिन नए पेड़ की जड़ में खाद पुराणा चहिए कहै मंगतराम बणावै जिम्मेदारी माणस स्याणा

ना महफूज आबरू रहर्यी

ना महफूज आबरू रहर्यी बच्या नहीं विश्वास सखी किस पै करां भरोसा हे बेब्बे कोए बची ना आस सखी आज फूल नै मसळण लाग्या आप बाग का माळी हे सब किमे न्यूं खावण नै आवै ना कोए बच्या रूखाळी हे बागां की खुश्बोई मैं आज मिलगी गन्ध खटास सखी घर मैं दुश्मन बाहर भी दुश्मन, दुश्मन रिश्तेदार हुए इज्जत के नां पै छोह्री बहुआं पै अत्याचार हुए खुद रक्षक भक्षक बणग्ये ये नोच्चण लाग्गे मांस सखी। इज्जत का रहे ढोल पीट खुद इज्जत म्हारी तारैं हे जळा कै मारैं, पेट मैं मारैं, पीट-पीट कै मारैं हे न्यूं सोच्चैं रहैं बन्द किवाड़ी दिक्खै ना प्रकास सखी गुरू का दर्जा सबतै ऊंचा या दुनिया कहती आवै हे कड़ै ल्हको ल्यां ज्यान बहाण जब बाड़ खेत नै खावै हे शिक्षा के मन्दिर का भी आज होत्ता देख्या नाश सखी कितने दिन न्यूं ए चाल्लैगा सदा सह्या ना जावैगा खुद बहादुर बण लडऩा होगा और ना कोए बचावैगा फेर मंगतराम चलैगा गेल्याँ कर कै नै इकलास सखी

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