हरियाणवी ग़ज़लें : कर्म चन्द केसर

Haryanvi Ghazals : Karam Chand Kesar


जोबन कहर कमांदा देख्या

जोबन कहर कमांदा देख्या । माणस नैं तड़फांदा देख्या । के तै के करवादे यारी, रांझा मैस चरांदा देख्या। अन्नदाता की जून बुरी सै , हमनैं धक्के खांदा देख्या । इतनी ताकत सुणी प्यार म्हं, गूंगा गाणे गांदा देख्या । राजनीति सै माणस खाणी, भला मणस कतरांदा देख्या। प्रेम की पटड़ी का राही, बोच बोच पां जांदा देख्या। इसी बणाई भूख राम नैं, जीव जीव नैं खांदा देख्या। इश्क मुश्क ना लुकैं लकोह्ये, यूह् जग रोल़ा पांदा देख्या। कदे किसे नैं मरज फिकर का, ना आंदा ना जांदा देख्या । दरिया कैसी झाल इश्क म्हं, 'केसर' गोते खांदा देख्या ।

सीळी बाळ रात चान्दनी आए याद पिया

सीळी बाळ रात चान्दनी आए याद पिया। चन्दा बिना चकौरी ज्यूँ मैं तड़फू सूँ पिया। तेरी याद की सूल चुभी नींद नहीं आई, करवट बदल-बदल कै मेरी बीती रात पिया। उर्वर धरती बंजर होज्या जोते बोये बिना, हरे धान सूखज्यां सैं बिन पाणी के पिया। साम्मण के म्हं बादल गरजैं बिजली लस्क रहयी, मद जोबण की झाल उठैं मन डोल्लै सै पिया। सुन्ने-सुन्ने लाग्गैं सैं घर और गाम मनैं, किते जी नां लाग्गै सै मैं जाऊं कड़ै पिया। चकवे बिना चकवी सून्नी घोड़ी असवार बिना, मिरग बिना कस्तूरी सून्नी टोह्वै कौण पिया। तीज त्योहार रह्ये फीक्के मन रसनाई कोन्या, ओढण पह्रण सिंगरण के नां रहये चाअ पिया। मछली की ढालां लोचूँ ‘केसर’ तेरे बिना, बिरहा का हो दरद कसुत्ता लेगा जान पिया।

कलजुग के पहरे म्हं देक्खो

कलजुग के पहरे म्हं देक्खो, धरम घट्या अर बढ़ग्या पाप। समझण आला ए समझैगा, तीरथाँ तै बदध सैं माँ बाप। सारे चीब लिकड़ज्याँ पल म्हँ जिब उप्पर आला मारै थाप। औरत नैं क्यूँ समझैं हीणी, पंचैत चौंतरे अर यें खाप। भामाशाह सेठ होया सै, बीर होया राणा प्रताप। बहू नैं चिन्ता सै रोटी की, सासू कै चढ़रया सै ताप। सारी दुनियां अपणी दीक्खै, नजर बदल कै देख ल्यो आप। सच की राह कंटीली ‘केसर’ बौच-बौच पां धरिये नाप।

हालात तै मजबूर सूँ मैं

हालात तै मजबूर सूँ मैं। दुनियां का मजदूर सूँ मैं। गरीबी सै जागीर मेरी, राजपाट तै दूर सूँ मैं। कट्टर सरमायेदारी नैं। कर दिया चकनाचूर सूँ मैं। लीडर सेक रह्ये सैं रोटी, तपदा होया तन्दूर सूँ मैं। मेरे नाम पै खावैं लोग, आपणे हक तै दूर सूँ मैं। भोरा भी नां कदर सै मेरी, फाइलां म्हं मसहूर सूँ मैं। घर म्हं कोन्या फूट्टी कोड्डी, दिल का धनी जरूर सूँ मैं। बेसक सै तन मेरा जर-जर, मन तै तो भरपूर सूँ मैं। ‘केसर’ अपणे दिल नैं पूछ, तेरे तै क्यूँ दूर सूँ मैं।

जीन्दे जी का मेल जिन्दगी

जीन्दे जी का मेल जिन्दगी। च्यार दिनां का खेल जिन्दगी। फल लाग्गैं सैं खट्टे-मीठे, बिन पात्यां की बेल जिन्दगी। किसा अनूठा बल्या दीवा, बिन बात्ती बिन तेल जिन्दगी। तड़फ रह्यी किते मटक रह्यी, सुख-दुक्ख का सै मेल जिन्दगी। धूल-धूप जल-वायु अम्बर, पांच ततां का मेल जिन्दगी। आर्यां सै कोय जार्या सै, इसी लाग्गै जणु रेल जिन्दगी। राजा, रंक, भिख्यारी, जोगी, कई तरियां अणमेल जिन्दगी। कोय देर्या सै धक्का इसनैं, किसे नैं रह्यी धकेल जिन्दगी। लोभ-लालच के चक्कर म्हं, ‘केसर’ बणग्यी जेल जिन्दगी।

सादी भोली प्यारी माँ

सादी भोली प्यारी माँ, सै फुल्लां की क्यारी माँ। सबके चरण नवाऊं मैं, मेरी हो चै थारी माँ। सारी दुनियां भुल्ली जा, जाती नहीं बिसारी माँ। बालक नैं सूक्खे पावै, गीले पड़ै बिच्यारी माँ। हँस-हँस लाड लड़ावै सै, कोन्या बोलै खारी माँ। सारे जग का आग्गा ले ले, बच्चयाँ आग्गै हारी माँ। पाल-पोष कै बड़े करै, समझै जिम्मेदारी माँ। आए गए महमानां की, करती खातरदारी माँ। कुणबे म्हं एक्का राक्खै, सै इक बंधी बुहारी माँ। त्याग, दया अर ममता की, मूरत सबतै न्यारी माँ। उतरै कौन्या करज कदे, रहगी तिरी उधारी माँ। बार-बार जाऊँ सूँ मैं, तेरै पै बलिहारी माँ। आवै सै जद याद मनै, होज्या सै मन भारी माँ। इसा जमाना आर्या सै, बणग्यी आज बिच्यारी माँ। बहू-बेटे तो मौज करैं, फिरै बखत की मारी माँ। भारत माँ सै सबकी माँ, न समझो सरकारी माँ। ‘केसर’ फरज करै पूरा, जद भी आवै बारी माँ।

नफरत नै भी प्रीत समझ ले

नफरत नै भी प्रीत समझ ले, सबनैं अपणा मीत समझ ले। लय, सुर, ताल सहीं हों जिसके, जिन्दगी नै वा गीत समझ ले। आदर तै मिले पाणी नैं भी, दूध मलाई सीत समझ ले। दुनियां खोट्टी, आप्पा आच्छा, यास इस जग की रीत समझ ले। गिरकै सवार होया करैं सैं, हार नैं अपणी जीत समझ ले। माणस जात तै प्रेम करै जो, उसनैं तौं जग जीत समझ ले। माँ-बाप गुरुवां की डांट नैं, ‘केसर’ ब्याह् के गीत समझ ले।

गलती इतनी भारी नां कर

गलती इतनी भारी नां कर। रुक्खां कान्नी आरी नां कर। मीठी यारी खारी नां कर, दोस्त गैल गद्दारी नां कर। नुमाइस की चीज नहीं सै, औरत नैं बाजारी नां कर। परोपकार के करले काम, ठग्गी-चोरी, जारी नां कर। लीडर सै तो कर जनसेवा, स्वारथ की सरदारी नां कर। फेर देस गुलाम हो ज्यागा, क्लम नैं दरबारी नां कर। रोज बटेऊ आए रहंगे, इतनी खातरदारी नां कर। सबर का फल मीठा हो सै, इतनी मारा-मारी नां कर। भला मणस दीक्खै सै ‘केसर’, इस गेलै हुशियारी नां कर।

कोय देख ल्यो मेहनत करकै

कोय देख ल्यो मेहनत करकै। फल के कड़छै मिलैं सैं भरकै। पत्थर दिल सैं लीडर म्हारे, उनके कान पै जूँ ना सरकै। जिन्दगी नैं इसा गीत बणा ले, हर कोय गावै चाअ म्हं भरकै। कौड्डी तक भी ना थी जिनकै, वाँ आज भुल्लैं सैं धर-धर कै। बीस जीयाँ का थ इक चूल्हा, इब जी-जी बेठ्या न्यारे धरकै। जिनके हो सैं पूत कमाऊ, उनकी धजा अम्बर म्हं फरकै। पह्लां बरगी रह्यी नां खांसी, देक्खे बोह्त गरारे करकै। एकलव्य नैं कला दिखाई, डस कुत्ते का मुंह बन्द करकै। बदलैं लोग मौसम की तरियाँ फिरै चेह्रे पै चेह्रा धर कै। इतना माड़ा टेम आर्या सै, जीणा पड़र्या सै डर डर कै। अपणे पूत इब बैरी होग्ये, पाले थे कदे द्याह्ड़े भरकै। गरीब सुदामा तै किरसन जी, मिले भाजकै कौली भरकै। एक दिन सबनैं जाणा ‘केसर’, तौं भी राख तैयारी करकै।

बुरे मणस का संग करै क्यूँ

बुरे मणस का संग करै क्यूँ। मन की स्यान्ति भंग करै क्यूँ। मानवता कै बट्टा लाग्गै, दीन दुखी नैं तंग करै क्यूँ। काग बणैं नां हँस कदे भी, इसपै धौला रंग करै क्यूँ। जीन्दे जी कै ठोक्कर मारै, तुरबत उप्पर रंग करै क्यूँ। सबका भला मना ले ‘केसर’ मतलब खात्तर जंग करै क्यूँ।

दुक्ख की इसी होई बरसात

दुक्ख की इसी होई बरसात। निखर गया सै मेरा गात। बिद्या बिन नर रह्ये अनाड़ी, जणु कोय दरखत सै बिन पात। बूढ़े माँ-बापां की खात्तर, इब घर बण रह्ये सै हवालात। पल म्हं खबर मिलै पल-पल की, पह्लां आली रह्यी ना बात। अपणी आगत आप बिग्याड़ै, करकै माणस ओच्छी बात। बेजायां बद रह्या परदुसण, दिन इसा लाग्गै जणु सै रात। किरसन जी खुद भाती बणकै, हरनन्दी का भरग्ये भात। कहते सुणे लोग चान्द पै, बूढ़िया सूत रह्यी सै कात। मतलब लिकड्याँ पाच्छै ‘केसर’ कौण किसे की पूच्छै जात।

मुसाफिर जाग सवेरा होग्या

मुसाफिर जाग सवेरा होग्या। चाल आराम भतेरा होग्या। कलजुग म्हं सच चढ़ग्या फांसी, झूठे के सिर सेहरा होग्या। सारा कुणबा मिलकै रह था, इब सबका अलग बसेरा होग्या। तेरे रुप का सूरज लिकड़या, प्यार का नवां सवेरा होग्या। निनाणमें के चक्कर म्हं देक्खो, माणस कती लुटेरा होग्या। चिन्ता गरीब बाप की भाज्जी, उसका पूत कमेरा होग्या। सास कहै बहू चिन्ता नां कर, यू राजपाट सब तेरा होग्या। खाकै बखत के थाप्पड़ ‘केसर’ ठाली फिरदा कमेरा होग्या।

रुक्खाँ जिसा सुभा बणा ले

रुक्खाँ जिसा सुभा बणा ले। सबनै हँसकै गले लगा ले। जीणा भी तो एक कला सै, सोच-समझ कै टेम बित्या ले। राजा दुखिया रंक सुखी सै, सुपने म्हं चै महल बणा ले। गैर नहीं सै कोय जगत म्हं, सबनैं अपणा मीत बणा ले। मतना रीस करै औरां की, जेब देखकै काम चला ले। कुदरत आग्गै जोर चलै नां, माणस कितना जोर लगा ले। बुढ़ापा तंग करैगा पगले, इसका भी कोय जतन बणाले। अपणा पेट भरैं सैं सारे, ‘केसर’ सबकी खैर मना ले।

बुरी संगत म्हं जो भी पड़ग्या

बुरी संगत म्हं जो भी पड़ग्या। उसका समझो डूंह्ड उजड़ग्या। कतल केस म्हं सजा भुगत कै, नेता बण संसद म्हं बड़ग्या। जद कोयल की कूक सुणी तो, न्यूँ लाग्या जणु साम्मण चढ़ग्या। दीन-दुक्खी की सेवा करकै, सच बोल्लण का ढाला पड़ग्या। धरती बेच बणा ली कोठी, छोरे कहैं इब लठ-सा गड़ग्या। लग्या चैमासा बोद्दी छान, गरीबू फेर फिकर म्हं पड़ग्या। मरैं भूख तै देक्खो लोग, नाज गदामां म्हं न्यूँ सड़ग्या। छोरी नाट गई फेर्याँ तै, बण्या-बणाया खेल बिगड़ग्या। सुणकै उसकी कड़वी बाणी, मेरै सह्म सांप-सा लड़ग्या। बहू सास कै तान्ने मारै, ठाल्ली का क्यूँ साँस लिकड़ग्या। अजब खेल देख्या कुदरत का, भरे जेठ म्हं पाला पड़ग्या। टेम इलैक्शन का जिब आया, लीडर आ पायाँ म्हं पड़ग्या। तेरी बाट म्हं रह्यी जागदी, दीवे का भी तेल सपड़ग्या। ‘केसर’ रह्या नादान उम्र भर, ब्ेसक तै चै कितना पढ़ग्या।

बुराई तै बस वो बच्या सै

बुराई तै बस वो बच्या सै। जिसनैं हर का नाम रट्या सै। दीवै गेल्याँ लाकै यारी, देख पतंगा जल्यास पड़्या सै। नाव पाप की अधर डूबजै, धरम का बेड़ा सदा तर्या सै। खुशी जीत की जाणै सै वो, हार का जिसनै मजा चख्या सै। औरां पै क्यूँ दोष धरै सै, खेत बाड़ नैं तिरा चर्या सै। दया धरम की कूण सै खाली, माया तै घर अंट्या पड़्या सै। सबका राम रुखाला सै वो, जिसनै यू संसार रच्या सै। मतना डूँह्ड उजाड़ै ‘केसर’ मुसकल तै यू सांग रच्या सै।

रहयी भारत माँ फटकार बखत

रहयी भारत माँ फटकार बखत। क्यूँ बदले तनै आसार बखत। मोटे माणस मोटे कर दिये, क्यूँ गरीब करे लाचार बखत। स्तपुरषां अर गुरुजनां का, आज घट रह्या सै सत्कार बखत। भूचाल बिमारी उग्रबाद म्हं, कई जाड़ दिये परिवार बखत। भाई-भाई दुसमन बण रह्ये, या खींच्ची इसी दीवार बखत। ठग्गी चोरी अर रिसवत खोरी, इब हो रह्यी सरे बजार बखत। बेशर्म टटोलैं जेब लाश की, कती देई आत्मा मार बखत। फैल्या जहर जल-थल वायु म्हं, होर्ये सैं लोग बिमार बखत। देशभगत रहये पाच्छै ‘केसर’, तनैं आग्गै करे गद्दार बखत।

अफरा-तफरी मच रीह् सै संसार म्हं

अफरा-तफरी मच रीह् सै संसार म्हं। रूलदे फिरैं हँस काग्याँ की डार म्हं। जिनकी करणी-कथनी म्हं सै फर्क घणा, यें किसे लोग आ गए सरकार म्हं। सारे रोले मिल-जुल कै सुलझा ल्यो, मतना पड़ो फालतु की तकरार म्हं। जेब म्हं हो दाम खरीदण आले की, मिलदा के नी आज बता बजार म्हं। गबन कतल अपह्रण डकैती करणिएं, देक्खो चाल्लैं बत्ती आली कार म्हं। बेसक करकै देख लिए रै ‘केसर’ नां रहे नुकसान कदे भी प्यार म्हं।

अपणा फरज भुलावण लाग्गी

अपणा फरज भुलावण लाग्गी। बाड़ खेत नैं खावण लाग्गी। जिनकै मुस्से कलां करैं थे, उनकै माया आवण लग्गी। खुदगरजां तै बोट्टां पाकै, जनता फेर पछत्यावण लाग्गी। बान, मंडा, बराती छोड्डे, कोर्ट ब्याह् करवावण लाग्गी। मंतरी, अफसर चै चपड़ासी, सबननै रिसवत भावण लाग्गी। दादा लखमी-सी कविताई, सेह्ली-सी के पावण लाग्गी। मेह्णतकश नैं बाह्या पसीना, हरी फसल लहरावण लाग्गी। बेटी नैं इसे कपड़े पह्रे, जननी माँ शर्मावण लाग्गी।

तखत बदलग्ये, ताज बदलग्ये

तखत बदलग्ये, ताज बदलग्ये। रजवाड्याँ के राज बदलग्ये। सुख-दुक्ख म्हं थे साथी लोग, इब आपस की लिहाज बदलग्ये। बीन-बांसरी ढोल नगाड़े, गाण-बजाण के साज बदलग्ये। कच्चे-पक्के स्वाद घणे थे, दूध-दहीं अर नाज बदलग्ये। कौण बणावै ताजमहल इब, शाहजां अर मुमताज बदलग्ये। सही पड़ै थी गरमी-सरदी, मौसम के मिजाज बदलग्ये। गाम-गाम म्हं बैंक खुले सैं, पह्लां आले ब्याज बदलग्ये। कुलड़े-फरवी थाल टोकणी, ओक्खल मुस्सल छाज बदलग्ये। जनम-मरण अर ब्याह् शादी के, सारे रीत-रिवाज बदलग्ये। बिन माणस के चाल्लण लाग्गै, पनडुब्बी अर जहाज बदलग्ये। कौण हाथ तै काम करै इब, मशीनां गेल्याँ काज बदलग्ये। नाड़ी-बैद रह्ये ना स्याणे, सब रोगां के ल्याज बदलग्ये। बेटा-बेटी बह्ण बह्णोई, सबकै नखरे-नाज बदलग्ये। पाणी का रंग बदल्या कोन्या, पीणे आले आज बदलग्ये। ‘केसर’ इब तो तेरे भी यें, जीणे के अन्दाज बदलग्ये।

दिल की बात सुनाऊँ क्यूकर

दिल की बात सुनाऊँ क्यूकर। अपणे जखम दिख्याऊँ क्यूकर। रिसवतखोरी चली कसुत्ती, अपणा काम कराऊँ क्यूकर। सास बहू म्हं रहै लड़ाई, इनका न्यां करवाऊँ क्यूकर। दारू डूँहड उजाड़े भाई, किस-किस नैं समझाऊँ क्यूकर। आप्पे म्हं गलतान रहैं सब, मैं की राड़ मकाऊँ क्यूकर। परत लोभ की चढ़ी नजर पै, हक की रोटी खाऊँ क्यूकर। लोग कहैं यू पागल होर्या, अपणे फरज निभ्याऊँ क्यूकर। ‘केसर’ पै बिसवास रहया ना, अपणे राज बताऊँ क्यूकर।

राम नाम का कर ले जाप

राम नाम का कर ले जाप। मिटज्याँगे सब दुक्ख संताप। कलजुग के पहरे म्हं देक्खो, धरम घट्या अर बधग्या पाप। समझण आला ए समझैगा, तीरथाँ तै बदध सैं माँ बाप। सारे चीब लिकड़ज्याँ पल म्हँ जिब उप्पर आला मारै थाप। औरत नैं क्यूँ समझैं हीणी, पंचैत चैंतरे अर यें खाप। भामाशाह सेठ होया सै, बीर होया राणा प्रताप। बहू नैं चिन्ता सै रोटी की, सासू कै चढ़रया सै ताप। सारी दुनियां अपणी दीक्खै, नजर बदल कै देख ल्यो आप। सच की राह कंटीली ‘केसर’ बौच-बौच पां धरिये नाप।

देस्सी खाणा आच्छा लाग्या

देस्सी खाणा आच्छा लाग्या सादा बाणा आच्छा लाग्या तड़कै – तड़कै किरसन जी के दर पै जाणा आच्छा लाग्या इस कल़जुग म्हं नेता जी का फरज निभ्याणा आच्छा लाग्या बात – बात पै बैरण तेरा मुँह फुलाणा आच्छा लाग्या घड़वा बैन्जू बीन बांसली़ साज पराणा आच्छा लाग्या रिश्तेदार मित्तर प्यार् याँ का हमनैं चाह् णा आच्छा लाग्या चलती बस म्हं उस छोटू का सुर म्हं गाणा आच्छा लाग्या मेरी ग़ज़ल म्हं फनकारां का कमी बताणा आच्छा लाग्या छोड़ डिगरग्या.फौज्जण का मनैं यू उलाह् णा आच्छा लाग्या बाब्बू आग्गै ‘केसर’ तेरा नजर झुकाणा आच्छा लाग्या

हेल्ली-महल चबारे देक्खे

हेल्ली-महल चबारे देक्खे। छान-झोंपड़ी ढारे देक्खे। तरसें सैं किते बूंद-बूंद नैं, चलते किते फुहारे देक्खे। गरमी-सरदी कदे मींह् बरसै, कुदरत तिरे नजारे देक्खे। होणी सै बलवान जगत म्हं, राजे हाथ पसारे देक्खे। सूरज नैं हड़ताल करी तो, हमनै दिन म्हं तारे देक्खे। मां बिन गूंगे की कुण जाणैं, करकै बोह्त इशारे देक्खे। गफलत म्हं मार्या था कुत्ता, लक्खी से बणजारे देक्खे। चुरमा-खांड, कसार गुलगले, खाकै शक्कर पारे देक्खे। गजब हुस्न के चमकै लाग्गैं, तिरछे नैन कटारे देक्खे। खावैं सैं किते खोस-खोस कै, लाग्गे किते भण्डारे देक्खे। बालकपण-सी मौज नहीं सै, लेकै बोह्त नजारे देक्खे। गीत गावती झूलण ज्यां थी, मिरगां कैसे लारे देक्खे। पह्लां जिसे न रह्ये गाभरू, ब्याहे और कुंवारे देक्खे। मतलब की दुनिया म्हं ‘केसर’ दुसमन बणते प्यारे देक्खे।

मेरे हालात नां पूच्छै

मेरे हालात नां पूच्छै। इस दिल की बात नां पूच्छै। फुटपाथ पै बसर करूं सूं। मेरी औकात नां पूच्छैं। मैं सबका सब मेरे सैं, तौं मेरी जात नां पूच्छै। डंड म्हं भुगत दिये जो मन्नैं, तमाखू के पात नां पूच्छै। जिन्दगी भर तक याद रहैगी, इब वा मुलाकात नां पूच्छै। दुक्ख चिन्ता अर विपता के म्हं, यू सूक्या गात नां पूच्छै। आज तलक सी भुगत रह्या सूं, वैं फेरे सात नां पूच्छै। गहरे जख्म दिये बख्त नैं, वा बीती बात नां पूच्छै। किस मजबूरी म्हं केसर नैं, क्यूं जोड़े हाथ नां पूच्छै।

यार छोड़ तकरार की बातां

यार छोड़ तकरार की बातां। आजा कर ले प्यार की बातां। एक सुपना-सा बणकै रह्गी, आपस के इतबार की बातां। आजादी म्हं भी जस की तस सैं, जबर जुल्म अत्याचार की बातां। अखबारां की बणी सुरखियां, बलात्कार, दुराचार की बातां। सूई का के काम ओड़ै सै, जड़ै चलैं तलवार की बातां। लोगां नैं उलझाकै राक्खैं, बाब्यां के दरबार की बातां। बूढिय़ा बोली छोड़ बहू इब, नां छेड़ै नसवार की बातां। सारे देस म्हं फैल रह्यी सैं, जालिम भरस्टाचार की बातां। लोभ लालच टैंशन म्हं उलझी, हंसी खुशी अर प्यार की बातां। बजुरगां गेल्यां चली गई सैं, वैं सांझे परिवार की बातां। इब कौन सुणैगा तेरी-मेरी, चाल रह्यी सरकार की बातां। दिमाग खराब करैं माणस का, बेमतलब बेकार की बातां। बनड़ी नैं लाग्गैं सैं प्यारी, होण आले भरतार की बातां। मतलब के इस दौर म्हं ‘केसर’ कौण करै ब्यौहार की बातां।

भूली बिसरी याद पराणी लिख द्यूं के

भूली बिसरी याद पराणी लिख द्यूं के मैं भी अपणी राम काह्णी लिख द्यूं के बणकै खंडहर रोवै अपणी हालत पै उस कुएं का मीठा पाणी लिख द्यूं के मार् या करते छाळ जोह्ड म्हं बड़ पै तै केह् रु -मेह् रु सारे हाणी लिख द्यूं के कचरी गोअल बेर लसूड़े अर नाप्पै कुदरत के मेव्यां की ढाणी लिख द्यूं के सुणी सणाई सबनैं पीढ़ी दर पीढ़ी रांझा हीर की प्रेम काह् णी लिख द्यूं के फूटे आंडे खिंड् या आलणा चिड़िया का दरख़त की वा टूटी टाह् णी लिख द्यूं के खेल्या करती गुड् डा गुड़िया नीम्ब तळै कमला बिमला शिमला राणी लिख द्यूं के कती नहीं इब तलक भी प्यार की पूणी धरम जात म्हं उळझी ताणी लिख द्यूं के करकै याद घर गाम खेत नैं बुढ् ढे की आंख्यां के म्हं रिसदा पाणी लिख द्यूं के ईख बाजरा बाड़ी जीरी कणकां की करैं लामणी बीर कमाणी लिख द्यूं के पुरखां की जैदाद लुटा दी हो जिसनैं ‘केसर’उनकी कुणबा घाणी लिख द्यूं के

ठेकेदार का देक्खो हाजमा क्यूकर उनैं डकारे

ठेकेदार का देक्खो हाजमा क्यूकर उनैं डकारे। रेता-रूता, बजरी-बूजरी, पत्थर-पाथर सारे। मतलब सेती आवै-जावै मतलब सेती बोल्लै, सगैर-सगूर, भाई-भूई, मित्तर-मात्तर सारे। खंडहर देखकै बुडढा बोल्या सब मर खपग्ये उस म्हं, राजे-रूजे, राणी-रूणी, नौकर-नाककर सारे। फाग्गण म्हं रंग छोड़ लुगाई मणसा ऊपर गेरैं, पाणी-पूणी, चीक्कड-चाक्कड, गोबर-गाबर सारे। बाबा की करामात देखिये सब चरणा म्ह बैठे, धाक्कड-धुक्कड, अफसर-ऊफसर, लीड़र-लाड़र सारे। रह्ये नहीं इब ओरै-गोरै दरखत झाड-बोझड़े, जाल-जूल, कैर-कूर, कीकर-काक्कर सारे। चौगिरदै इब दिखते कोन्या के बेरा कित लुकग्ये, तोते-ताते, चील-चूल, तीतर-तातर सारे। याद आवै सै जाड्या म्हं जब जिब ददकीड़ी बाज्जै, धूणा-धाणा, गीठी-गाठी, हीटर-हाटर सारे। देर सवेर आण मिलैंगे इसे धूल म्ह मैं भी। कंवर-कुंवर, ठाक्कर-ठुक्कर, केसर-कासर सारे

दरद छिपाकै न्यूँ मुस्कराणा कितना मुसकल सै

दरद छिपाकै न्यूँ मुस्कराणा कितना मुसकल सै । मारूथल म्हं फूल खल्याणा कितना मुसकल सै । दुनियांदारी सीख लई सै दुनियां म्हं आकै , इस दुनियां नैं छोड़कै जाणा कितना मुसकल सै। धूफ, छाम अर पाणी मिलज्या एकसार सबनैं, हाकम तै याह् आस लगाणा कितना मुसकल सै। जिनकै धोरै सै विरासत टगोर अर् गांधी की , उन लोग्गां नैं पाठ पढ़ाणा कितना मुसकल सै। खुद की बलि चढ़ा दे बीर की जात अनूठी सै , ओरां खात्तर खुद मर जाणा कितना मुसकल सै। घणे फिरैं सैं कान पड़ाएँ राख मळें तन पै, साधु आल़ा परण पुगाणा कितना मुसकल सै। अम्बर लाग्या करण सराहना धरती मैया की, तेरे जितना बोझा ठाणा कितना मुसकल सै। सूत्या पड़्या आदमी तो मर् या बराबर हो सै, अर जागदे नैं फेर् जगाणा कितना मुसकल सै। घणिये जादा बरकत सै इमान की गठड़ी म्हं, इस गठड़ी नैं सिर पै ठाणा कितना मुसकल सै। गरमी सरदी आँधी मीह् नैं. झेल्लै सै तन पै , किरसक जितना कष्ट उठाणा कितना मुसकल सै। जिन्दगी म्हं तै जिन्दगी नैं मैं टोह्-टोह् हार लिया, रोज मरणा फेर् जी जाणा कितना मुसकल सै। नफरत की काँद़्दां नै 'केसर' इक दिन गिरणा सै, उस दिन तक यूह् मन समझाणा कितना मुसकल सै।

अपणे दिल तै बात करकै देख कदे

अपणे दिल तै बात करकै देख कदे। खुद नैं भी आजाद करकै देख कदे। उगी नहीं सैं फसल प्यार की इब तलक, बंजर दिल नैं अबाद करकै देख कदे। सुख - स्यान्ति समृद्धि आवै घर तेरै, मजलूमां की मदाद करकै देख कदे। खाया-खेल्या सोया-जाग्या मस्ती म्हं, बचपन के दिन याद करकै देख कदे। सबके घर म्हं हो चांदणा कर कोसिस, मैं नैं नज़र अंदाज़ करकै देख कदे। उसके दर पै पूरी हों मरांदा सब , सच्चे मन तै फर् याद करकै देख कदे। रह् या पूछदा हाल तूं ' केसर ' मेरा, खुद तै बी मुलाकात करकै देख कदे।

बैर-बरोध मिट्या दिए सारे

बैर-बरोध मिट्या दिए सारे। गळ कै गैर ला लिए सारे। स्यास्त नैं भिड़्या दिए सारे, गाम शहर लड़ा दिए सारे। सुपने घणे संजो राक्खे थे, फूंक मार उड़ा दिए सारे। पनघट अर पणिहारी धोगड़, नेजू डोल जा लिए सारे। मंगू सड़क पै रह् या तड़फदा, देख--देखकै जा लिए सारे। वा बोली दिए मेट निस्यानी, अह़्मनैं खत जळा दिए सारे। ओ क्यूं सुख तै रोटी खार् या, इसे दुक्ख नैं खा लिए सारे। पीठ पाच्छै मिरे यार नैं, मेर् म्हं खोट गिण्या दिए सारे। पायल की झंकार नैं 'केसर' , दिल के तार बजा दिए सारे।

खेच्चळ करदा-करदा मरग्या

खेच्चळ करदा-करदा मरग्या कुछ अलग अंदाज में ये ख्याल खेच्चळ करदा-करदा मरग्या। होरी मरदा - मरदा मरग्या। ह़ड़पण की याह् बाण गई ना, लीडर चरदा - चरदा मरग्या। रावण-सा बलवान जगत म्ह़ं, माड़ी करदा - करदा मरग्या। जमींदार अर सह़ूकार तै, ह़रिया डरदा - डरदा मरग्या। गिद्ध देक्खै था बाट,वो बच्चा, भूखा मरदा - मरदा मरग्या। वीर बिकरमाजीत गैर के, दुखड़े ह़रदा - ह़रदा मरग्या। खाली ह़ाथ गया लखमल, माया धरदा - धरदा मरग्या। 'केसर' जग म्हं बदनामी की, चिन्ता करदा-करदा मरग्या।

आग बिरह की धधक रहयी सै

आग बिरह की धधक रहयी सै। रुह् मीरां की तड़फ रहयी सै। परदूसण की तेज कटारी, सबके सिर पै लटक रहयी सै। जोड़ी, लीडर अर बणजी की, माल देश का हड़प रहयी सै। प्यार छाज म्हं पाकै गोरी, याद सजन की फटक रहयी सै। गंगा - जमनी संसकिरती की, भीत पराणी दरक रहयी सै। नशे-बिष्यां म्हं नई नस्ल न्यूं, अपणी राही भटक रहयी सै। भूखी भरथो पड़ी जाप्पे म्हं, मरण लागरयी सल्क रहयी सै। बेरा नी क्यूं हर माणस म्हं, बेचैनी - सी पणप रहयी सै। बेरजगारी की राकसणी, 'केसर' ठा-ठा पटक रहयी सै।

उसकै घरां अंधेरा सै इब

उसकै घरां अंधेरा सै इब। मुसकल बीच कमेरा सै इब। न्याँ-नीति की बात रह् यी ना, गूँड्याँ कै सिर सेह् रा सै इब। एक जणे कै चमक चाँदणी, सत्तर घरें अंधेरा सै इब। जिन्दगी रह सै लाळ-दबाऊ, डाम्माडोल बसेरा सै इब। बिना सफारश काम बणै ना, बाळक तक नैं बेरा सै इब। बणजी कहै मुल्क म्हं सबकुछ, मेरा , मेरा , मेरा सै इब। करतब देख न्यूँ लाग्गै सै, लीडर जणो लुटेरा सै इब। पढ़े -लिखे लोगां का 'केसर', अळकस के घर डेरा सै इब।

कर-करकै नैं करतब काळे बड़े-बड़े

कर-करकै नैं करतब काळे बड़े-बड़े। उसनैं लाए म्हारै ताळे बड़े - बड़े। जिन्दगी सै इक जंग तो इसनैं जारी रख, हिम्मत के मनैं सुणे रुखाळे बड़े - बड़े। यैं जो बातां के पूड़े - से तारैं सैं, करदे रैंह् सैं घाळे - माळे बड़े - बड़े। डर के मारे पैदल घर नैं चाल पड़े, पैरां के म्हं पड़ग्ये छाळे बड़े - बड़े। कँवर,कंवल,रिसाल,राम्फळ मंगत नैं, छंद बणा गजलां म्हं ढाळे बड़े-बड़े। इक डीक्के के दो नी करदा छोरा न्यूँ, ऊँ देक्खै सै खाब निराळे बड़े-बड़े। सैं मतलब के मीत जीतकै लुह्कज्याँ सैं, कुरसी आळे देक्खे भाळे बड़े - बड़े। खेच्चळ करकै बी जे रोटी नहीं मिलै, फेर् तेरे के लाग्गैं साळे बड़े - बड़े। दीप अर् धनपत,बाज्जे,लख्मी,मांग्गे नैं, सांग बणाए बांधे पाळे बड़े-बड़े। कोळे सींजै, माथा रगड़ै दर-दर पै, माँ की ममता कर दे चाळे बड़े-बड़े। क्याँ नैं प्यार दिख्यावै झूठा ओ जुल्मी, दिल म्हं सैं नफरत के जाळे बड़े-बड़े। मतना देवै धमकी 'केसर' देक्खण की, अह़्मनैं देक्खे देक्खण आळे बड़े-बड़े।

इक झटके म्हं सारे रिश्ते तोड़ गए

इक झटके म्हं सारे रिश्ते तोड़ गए। बेटे माँ नैं बिरध आसरम छोड़ गए। बाब्बू नैं दी बाँड कमाई बेट्याँ म्हं, लेकै अपणा हिस्सा सारे दौड़ गए। याह् तो मेरै बी आग्यी इब ऐरंग म्हं, मुड़कै कोन्या आंदे जो घर छोड़ गए। धोती-कुरता खंडका ईब नदारद सै, के बेरा कित चीरे सेह् रे मौऽड़ गए। रिश्तेदारी बणिए की इब हाट बणी, बिन मतलब तै आणा-जाणा छोड़ गए। क्यूकर बचदे बाग - बगीचे धरती पै, खुद माळी जद कच्ची कली मरोड़ गए। बोद़्दा इश्क सै मरदां का यूह् जग जाणैं, कितने रांझे हीरां का दिल तोड़ गए। इब तो आज्या देक्खूँ बाट चराहे पै, पशु - पखेरु पंछी घर नैं बौह़्ड़ गए। आया सै जो पक्का जावैगा 'केसर', टीरी खां से कर-कर घणी मरोड़ गए।

बिस्वास का किला तो कदका ढह गया

बिस्वास का किला तो कदका ढह गया। इब ना कोई यार किसे का रह गया। कमा-कमाकै उसकी धड़ म्हं तारे ज्या, बदलू तो बस बणजी जोगा रह गया। कड़ पै सैं जो जख्म,सब अपण्यां के सैं, वार गैर के मैं छाती पै सह गया। घी-दूध चै खोवा सब कुछ नकली सै, असली तो बस नाम राम का रह गया। ऊँच-नीच अर जात-पात सब मिथ्या सैं, सारे सैं इकसार कबीरा कह गया। सर्द रात म्हं माँ नैं आँखां मूँद लई, वा बच्चयाँ नैं सैल करांदा रह गया। मंडी तक तो ले आया था होरी पर, आया मींह् बौअळ पाणी म्हं बह गया। भरया-भथीला घर बेट्याँ नैं साँभ लिया, बुडढा तो बस ढारे जोगा रह गया। खेत बिके,घरबार बिक्या अर खुद मरग्या, नशे-विस्याँ का चस्का उसनैं दह गया। छोरी हुई फरार ब्याह् के दिन कै दिन, चाँद आबरु का 'केसर' न्यूँ गह गया।

चाल पड़्या दिलदार छोड़कै

चाल पड़्या दिलदार छोड़कै। देख्या ना इकबार बौह्ड़कै। फैय्दे खात्तर बणजी,लीडर, धरदे सैं सरकार तोड़कै। गांधी,नानक,कबीर की सुण, बाब्याँ के दरबार छोड़कै। बेर लसूड़े गोऽल अर् नाप्पे, खाए घणीए बार तोड़कै। थोड़े दिन के रजे हुयां म्हं, बोल्लै सै अंह्कार चोड़कै। लेणा-देणा ठीक रह् या ना, ना दे कोय उधार मोड़कै। पिरथीराज पछत्याया होगा, गौरी नैं कइबार छोड़कै। भाड़े ढोये करी लामणी, केसर नैं परिवार जोड़कै।

जिसनैं लाग्गै डर दुनियां म्हं

जिसनैं लाग्गै डर दुनियां म्हं। वा समझो गया मर दुनियां म्हं। जम्मू कटड़ा दून मनाळी, सबतै आच्छा घर दुनियां म्हं। फेर् पड़ौसी नहीं सहावैं, पेट जावै जद भर दुनियां म्हं। बोह्त कुछ तो सै बेसक पर, सब कुछ कोन्या जर दुनियां म्हं। याद करैंगे लोग तनैं बी, कुछ तो नेकी कर दुनियां म्हं। सोच - समझकै बोल बावळे, ना कर चर-चर-चर दुनियां म्हं। यूह् जीणा बी के जीणा सै, जीणा सै तो मर दुनियां म्हं। जो जुल्मी तै टक्कर ले ले, उसनैं कैंह् सैं नर दुनियां म्हं। गैर भरोस्सै डींग धरै क्यूं, खोल आपणे पर दुनियां म्हं। देस कौम की खात्तर 'केसर', कटा लिये चै सर दुनियां म्हं।

ऊँ तो तूँ दिल तै दूर नहीं थी

ऊँ तो तूँ दिल तै दूर नहीं थी। पर सरत तेरी मंजूर नहीं थी। मंजिल तो मेरतै दूर नहीं थी। बस हमदरदी मंजूर नहीं थी। था अमन - चैन संतोस छान म्हं, चै महलां जिसी मसूह़् र नहीं थी। वादे तो उसनैं बोह्त करे थे, पर कदे निभ्याई पूर नहीं थी। बस एक ऐब था सच बोल्लण का, कोय औह् र कमी हजूर नहीं थी। रोळा तो था इस जात पात का, चमेल्ली के भला हूर नहीं थी। अर थी तो तंग पह़्लां बी औरत, पर इब जितनी मजबूर नहीं थी। दिल का तो था अमीर वा 'केसर', हाँ, धन माया भरपूर नहीं थी।

पंचैत थी म्हारी सरकार, मेरै याद सै

पंचैत थी म्हारी सरकार, मेरै याद सै। कोई ना था इसतै बाहर, मेरै याद ‌ सै। लाह्स पड़ैं थी करया करैं थे लामणी मिलकै, सिर पै ढोया करैं थे भार , मेरै याद सै। सांझ सवेरे भीड़ लागज्या करती पनघट पै, छम-छम भर ल्यांदी जल नार,मेरै याद सै। बाग-बगीचे, बणि-बावड़ी, कुएं चाल्लैं थे, सीळी चल्या करै थी ब्यार, मेरै याद सै। ड्योठणी नैं घर - घर माँग्या करैं थे दाणे, छोरी ठांदी पर् याँत कसार,मेरै याद सै। अपणे ही थे सब कोय बी नहीं बग्याना था, सबम्हं था कितना मोह् प्यार,मेरै याद सै। कुछ बुणदी कुछ चरखा कातैं थी दफैरी म्हं, सवासण छोरी बुड्ढी नार , मेरै याद सै। घोळ - कबड्डी,गिंडी - टोरा,डीलो खेल्लैं थे, घणी थी भाज्जण की रफ्तार,मेरै याद सै। सकर् याँत,सलूमण,होळी,दवाळी,तीजां के, कितने मन्या करैं थे त्युहार, मेरै याद सै। धोळा काल्लर छोरी राऩ्ने चुगती हांड्डै थी, एकली ले आवैं थी न्यार, मेरै याद सै। पसर चराकै पाळी,गोळ चरावण जां थे, पड़ै था लैह्ड्याँ का लंगार,मेरै याद सै। ब्याह्-वाणे अर अड़ी-थुड़ी म्हं सांट्टे सांट्टै था, वाह् रमधारी साहूकार , मेरै याद सै। बड़ पीपळ की छां म्हं सारे रळकै बेट़्ठैं थे, घणे 'केसर' के जिगरी यार,मेरै याद सै।

ऊँच-नीच बड़-छोट बणाकै लोगां नैं

ऊँच-नीच बड़-छोट बणाकै लोगां नैं। वैं धरती कै मारे ठाकै लोगां नैं। वा धरम जाळ म्हं उळझाकै लोगां नैं। रहया छैल का छैल लड़ाकै लोगां नैं। गई इब तलक न बाण तळवे चाट्टण की, अक्ल ना आई ठोक्कर खाकै लोगां नैं। भाषणबाजी,नारयाँ तै कुछ ना होया, ली आजादी जान खपाकै लोगां नैं। सेह्त मेट ली अपणे हात्थां खुद अपणी, कुदरत गेल्याँ खूँड बजाकै लोगां नैं। हिम्मत ना थी पाड़ लाण की गैरां की, नाश कर दिया भेत बताकै लोगां नैं। मुल्क नैं चरग्यी धोळी मैस सियास्त की, मिल्या नहीं कुछ बीन बजाकै लोगां नैं। देस बास्तै जो बी श्हीद होये 'केसर', पूजे दिल म्हं जगांह् बणाकै लोगां नैं।

हरी फ़सल लहरावै खेत म्हं

हरी फ़सल लहरावै खेत म्हं । मौसम खूब सुहावै खेत म्हं । धरती मां करै वारे न्यारे , रोज़ धनी जे जावै खेत म्हं । बोर अर मोटर खाद बीज की, चिन्ता घणी सतावै खेत म्हं। वाह् ये सै असली अन्नदाता, खुद जो कसी चलावै खेत म्हं। देख बीर नैं मरद इतरावै, रोटी ले जिब आवै खेत म्हं। बज्जर कैसी छात्ती उसकी, जो दिन रात कमावै खेत म्हं। बच्चे काम नहीं करदे इब, बाब्बू हाड तुड़ावै खेत म्हं। जीव जगत का पेट भरणियां, रुख्खें लटक्या पावै खेत म्हं। होज्या करोपी कुदरत की जे, 'केसर' खड़्या लखावै खेत म्हं।

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