हरियाणवी कविता : ज्ञानी राम शास्त्री

Haryanvi Poetry : Gyani Ram Shastri


इस भारत म्हं दुनिया तै एक ढंग देख लिया न्यारा

इस भारत म्हं दुनिया तै एक ढंग देख लिया न्यारा खाज्या घणा कबज होग्या एक भूखा मरै बेचारा एक जणे की चढ़ी किराये कई कई बिल्डिंग कोठी एक जणे नै मिलै रहण अनै कोन्या एक तमोटी एक जणे की खा खा मेर्वे हुई दूंदड़ी मोटी एक जणे नै पेट भराई कोन्या मिलती रोटी एक जणा बैठा गद्दी पर दे रहा एक सहारा एक जणे कै दस दस नौकर सब पर हुक्म चलाता एक जणे नै नौकर भी कोय घर मैं न नहीं लगाता एक जणा न्हा धोके सिर म्हं इतर फलेल लगाता एक जणे नै न्हाणे नै भी नीर मिलै ना ताता एक फिरै कारां म्हं दूजा भटकै मारा मारा एक जणा दे खर्च लाख पर करता नहीं पढ़ाई एक जणा पढ़णा चाहवै पर फीस किते ना थ्याई एक जणे कै बीस वर्ष में दो दो तीन लुगाई एक जणे की उमर बीत गई कोन्या हुई सगाई दस पोशाक एक पै दूजा नांगा करै गुजारा एक जणे के घर म्हं आवै अन्धा धुन्ध कमाई एक जणे के घर म्हं कोन्या जहर खाण नै पाई एक जणे कै बीस आदमी करते मन की चाहे एक जणे के घर म्हं कोन्या बतळावन नै भाई “ज्ञानी राम” पता ना कद यू फर्क मिटैगा म्हारा

उथल पुथल मचगी दुनियां म्हं

उथल पुथल मचगी दुनियां म्हं, निर्धन लोग तबाह होग्ये कोए चीज ना सस्ती मिलती, सबके ऊंचे होग्ये असली चीज मिलै ना टोही, सब म्हं नकलीपण होग्या बिना मिलावट चैन पड़ै, सब का पापी मन होग्या दिन धोळी ले तार आबरु जिसकै धोरै धन होग्या निर्धन मरजै तड़फ तड़फ कै, इतना घोर बिघन होग्या इज्जतदार मरैं भूखें, बदमाश लफगें शाह होग्ये ठाड़े धरती के मालिक, नक्शे इंतकाल भरे रहज्यां पकड़े झां निर्दोष पुरुष, पापी बदकार परे रहज्यां घर बैठें लें देख फैसला, गवाह वकील करे रहज्यां जिसकी चालै कलम पकड़ लें, सब कानून धरे रहज्यां क्यूंकर मुलजिम पकड़े जां जब अफसर लोग ग्वाह होग्ये बेरोजगारी की हद होगी, पढ़े-लिखे बेकार फिरैं घटी आमदनी बधगे खर्चे, किस-किस कै सिर मार मरैं बड़े-बड़े दो पिस्यां खातर, अपणी इज्जत तार धरैं धर्म के ठेकेदार बी, भूंडी तै भूंडी कार करैं भोळे लोगां नै लूटण के , बीस ढाळ के राह होग्ये कई जणां कै कोठी बंग़ले, लाईन लागरी कारां की पड़े सड़क पै कई जणे, लाठी बरसैं चौंकीदारां की बिस्कुट दूध-मलाई खावैं, बिल्ली साहूकारां की खाली जून टळै भूख्यां की, निर्धन लोग बेचारां की “ज्ञानी राम” न्यूं देख-देख कै, घणे कसूते घा होग्ये

कात्तक बदी अमावस आई, दिन था खास दिवाळी का

कात्तक बदी अमावस आई, दिन था खास दिवाळी का आंख्यां के म्हां आंसू आग्ये, घर देख्या जब हाळी का सभी पड़ौसी बाळकां खातर, खील-खेलणे ल्यावैं थे दो बाळक देहळियां म्हं बैठे, उनकी तरफ लखावैं थे जळी रात की बची खीचड़ी, घोळ सीत म्हं खावैं थे आंख मूंद दो कुत्ते बैठे, भूखे कान हिलावैं थे एक बखोरा, एक कटोरा, काम नहीं था थाळी का किते बणै थी खीर किते, हलवे की खुशबू ऊठ रही हाळी की बहू एक कूण म्हं, खड़ी बाजरा कूट रही हाळी नै एक खाट बिछाई, पैंद थी जिसकी टूट रही होक्का भरकै बैठ गया वा, चिलम तळै तै फूट रही चक्की धोरै डन्डूक पड्या था, जर लाग्या फाळी का दोनों बाळक आशा करकै, अपणी मां कै पास गए मां धोरै बिल पेह्स करया, फेर पूरी ला कै आस गए थारे बाप के जी नै रोल्यो, सो जिसके थाम नास गए माता की सुण बात बाळक फेर, फट बाब्बू कै पास गए इतणी सुणकै बाहर लिकड़ग्या, वो पति कमाणे आळी का तावळ करकै गया सेठ कै, कुछ भी सौदा ना थ्याया भूखा प्यासा गरीब बेचारा, बहोत घणा दुख पाया के आई करड़ाई सिर पै, मन म्हं न्यूं घबराया हाळी घर नै छोड़ डिगरग्या, फेर बोहड़ कै ना आया ज्ञानीराम कहै चमन उजड़ग्या, पता चाल्या ना माळी का

खड़ी लुगाइयां के मांह सुथरी श्यान की बहू

खड़ी लुगाइयां के मांह सुथरी श्यान की बहू पर थी कर्म हीन कंगाल किसान की बहू गळ में सोने का पैंडल या हार चाहिए था बिन्दी सहार बोरळा सब शिंगार चाहिए था सूट रेशमी चीर किनारीदार चाहिए था इसी इसी नै तो ठाडा घर बार चाहिए था रुक्का पड़ता जो होती धनवान की बहू चारों तरफ लुगाइयां की पंचात कर रही थी सब की गेलां मीठी मीठी बात कर रही थी बात करण म्हं पढ़ी लिखी नै मात कर रही थी दीखै थी जणु सोलह पास जमात कर रही थी बैठी पुजती जो होती विद्वान की बहू मस्तानी आंख्यां म्हं मीठा प्यार दीखै था गोरे रंग रूप म्हं हुआ त्योहार दीखै था हट्टा कट्टा गात कसा एक सार दीखै था नखरा रोब गजब का बेशुमार दीखै था दबते माणस जो होती कप्तान की बहू इज्जत आगै दौलत नै ठुकरावण वाळी थी टोटे म्हं भी अपनी लाज बचावण वाळी थी पतिव्रता नारा का फर्ज पुगावण वाळी थी पीहर और सासरे नै चमकावण वाळी थी “ज्ञानी राम “ जणु लिछमी थी भगवान की बहू

गऊ कहाया करते थे भारत के लोग लुगाई

गऊ कहाया करते थे भारत के लोग लुगाई जोंक, भेडिये, मगरमच्छ अब देते नाग दिखाई बण कै जोंक लहू चूसैं यें साहूकार देश के भूखे नंगे फिरैं बेचारे ताबेदार देश के कोठी बंगलां म्हं रहते असली गद्दार देश के आंख मीच के सोग्ये सारे पहरेदार देश के भरैं तजूरी ठोक ठोक करैं अन्धां धुन्ध कमाई बणे भेड़िये भारत के यें परमट कोट्यां वाळे नाम करा कै डिपू रूट दिन धौळी पाड़ै चाळे मीठी मीठी बात करैं यें पर भीतर तै काळे अफसर और वजीरां के झट बणैं भतीजे साळे बकरी भेड़ समझ निर्धन नै करज्यां तुरंत सफाई रिश्वतखोर मगरमच्छ बणगे खावैं ऊठ ऊठ कै जै मिल ज्या मजबूर दुखी कोय पड़ते टूट टूट कै लाखां के मालिक बणग्ये, लोगां नै लूट लूट कै बिन रिश्वत ना काम करैं चाहे रोल्यो फूट फूट कै आठों पहर रहैं मुंह बायें पापी नीच कसाई काळे नाग बणे जहरी यें बड़े बड़े व्यापारी चीनी तेल नाज घी लोहा कर लें कट्ठा भारी फण ताणे बैठे रहैं भूखी मरज्या दुनिया दारी चढ़ज्यां रेट शिखर म्हं जब यें जिनस काढ़ दें सारी “ज्ञानी राम इन चार जणां नै कर दी घोर तबाही

दुनिया म्हं महंगा होग्या सब जिंदगी का सामान

दुनिया म्हं महंगा होग्या सब जिंदगी का सामान सब तै सस्ता मिलै आज यू बद किस्म्त इंसान मरा पड्या हो पास पड़ौसी कतई नहीं अफसोस समो समो के रंग निराले नहीं किसे का दोष कार लिकड़ज्या ऊपर तै कर दूजे नै बेहोश खा माणस नै माणस कै फिर भी कोन्या संतोष खून चूसते नौकर का यें मालिक बेईमान माणस की ना कदर करैं ये साहूकार अमीर दूजे की मेहनत पै अपनी बणा रहे तकदीर हालत देख लुगाई की भरज्या नैनां में नीर भूखी मरैं आबरु बेचैं गहणै धरैं शरीर लाल बेच दें गोदी का सै भूख बड़ी बलवान पढ़े लिख्यां की पूछ रही ना फिरैं घणे बेकार आत्महत्या करैं कई छोड्ड़े फिरते घर बार अ माणस खींच रहया माणस नै आज सरे बाजार आज मनु का पूत लाड़ला रौवे किलकी मार अपने पैरें आप कुहाड़ी मार रहया नादान खून, जिगर बिकते माणस के बिकते हाड्डी चाम जिंदगी लग भी बिकज्या सै जै मिलज्यां चोखे दाम सब तै बड़ा बताया था बेदां म्हं माणस जाम “ज्ञानी राम इस कळियुग म्हं हो ग्या सबतै बदनाम पता नहीं कित पड़ सोग्या पैदा करके भगवान

मात पिता के मरें बाद आंसू टपकाकै के होगा

मात पिता के मरें बाद आंसू टपकाकै के होगा जिन्दें जी जूते मारे फेर फूल चढ़ाकै के होगा कहणा मन्या नहीं कदे फेर तिलक लगणा ठीक नहीं छुए कोन्या पैर कदे फेर शीश झुकाणा ठीक नहीं राखे सदा अन्धेरे म्हं फेर दीप जळाणा ठीक नहीं नाक चढ़ाकै रोटी दी फेर पिंड भराणा ठीक नहीं बोले कड़वे बोल सदा फेर श्राद्ध कराकै के होगा बिछुड़ॆ बाद बड़ाई करते बेटे पोते देख लिये कर कर य्काद लाड़ बचप्न के पाछै रोते देख लिये पितरां खातिर गंगा जी म्हं लाते गोते देख लिये लगी हुई कमरां में फोटू मल मल धोते देख लिये रहे तड़पते वस्त्र बिन फेर शाल उढ़ाकै के होगा काढ़े दोष सदा जिनके फेर पाछे तै गुण गावैं सैं दुखी करे जिन्दगी भर फेर मन्दिर में पत्थर लावैं सैं घूर घूर देखणियें फेर फोटू पै ध्यान जमावैं सैं सदा उछाळी पगड़ी फेर पग़ड़ी की रस्म निभावैं सैं दुख म्हं करी नहीं सेवा फेर पेहवे जाकै के होगा कर ल्यो जिन्दे जी सेवा या आच्छी किसमत थारी सै आर्शीवाद मिले दिल तै जो बेटा आज्ञाकारी सै खुद अपनी संतान भला ना लागै किस नै प्यारी सै कोए अमर ना रहा जगत म्हं आखिर सब की बारी सै “ज्ञानी राम” दो हरफी कह दी ढोल बजाकै के होगा

वेद शास्त्र ढूंढ लिए ओम बराबर नां कोन्या

मनै वेद शास्त्र ढूंढ लिये सब, ओम बराबर नां कोन्या, श्रवण जैसा पुत जगत मैं, कोशल्या सी मां कोन्या शंकर जैसा पति नही सावत्री सी वीर नही। रामचंद्र सा राजा कोन्या, चाणक्य जैसा वजीर नही। परसुराम सा फरसा कोन्या, अर्जुन जैसा तीर नही। नल राजा सा रूप नही, और भीष्म जीसा शरीर नही । भीम बली सी भुजा नही, अंगद जैसा पां कोन्या। दुर्गा जैसी देवी कोन्या, विष्णु सा भगवान नही। भृगुजैसा नही ज्योतिषी रावण सा विद्वान नही। हिमालय सा पर्वत कोन्या, काशी सा स्थान नही। हत्या जैसा दोष नही, और विद्या जैसा दान नही। बैल नादिये जैसा कोन्या , और कामधेनु सी गां कोन्या। भारत जैसी जीत नही , और अंग्रेजो सी हार नही। गांधी जीसा नही महात्मा , जिन्हा सा बदकार नही। कोई नही ताल सरोवर जैसा गंगा जैसी धार नही। कोई नही योगी कृष्ण जैसा नारद सा प्रचार नही। दुर्योधन सा जिद्दी कोन्या, हरिश्चन्द्र सी हां कोन्या। कृष्ण जैसा योगी कोन्या, नारद सा प्रचार नही। हिंदू जैसी फूट नही ,और मुसलमाना जिसी इक्लास नही। बिजनेस जैसी नही कमाई, जन्मभूमि सा वास नही। नही त्यौहार दिवाली जैसा , फागण जैसा मास नही। मानसून सी हवा नही, और सूरज सा प्रकाश नही। अग्नि जैसा तेज नही और चंद्रमा सी छां कोन्या। मेलजोल सा आनंद कोन्या, बोली जैसी ठेस नही। सेवा जैसा धर्म नही और खून जीसा कोई केस नही। हिंदी जैसी भाषा कोन्या, खद्दर जैसा वेष नहीं। आजादी सा मजा नही , और भारत जैसा देश नहीं। 'ज्ञानी राम' कश्मीर जीसी और घुमण की कोई जगहा कोन्या।

सब दुनिया मतलब की होगी धोखा बसग्या नस नस मैं

माणस माणस दुश्मन होग्या प्रेम रहया ना आपस मैं सब दुनिया मतलब की होगी धोखा बसग्या नस नस मैं भाई बहन पिता माता बेटा बेटी ना यार रहया बीर मर्द भी नकली होगे कोण्या साचा प्यार रहया अपणा बणकै जड़ काटै ना किसे पै एतबार रहया अपने मतलब खात्तर जो जिंदगी भर ताबेदार रहया जब थोड़ा सा काम चालज्या आंख बदलज्या दिन दस मैं सब दुनिया मतलब की होगी---- कितना करल्यो भला किसे का कोय मानता श्यान नहीं सीधा माणस कपटी लिकड़ै बिल्कुल रही पिछाण नहीं अपनी अकल बड़ी समझैँ सब चाहे रत्ती भर ज्ञान नहीं जिसके मन मैं पाप नहीं सै इसा कोय इन्सान नहीं हर माणस चाहवै सै मन मैं दूजे नै राखूं बस मैं सब दुनिया मतलब की होगी---- दो उंगल का छोरा भी आज बड़े बड़याँ नै मात करै मूर्ख और नादान पुरुष आज स्यासत गेल्याँ बात करै ओरों की हिणी चाहवै और अपनी ऊपर लात करै बख्त नहीं दूजे नै अपनी खात्तर काली रात करै थोड़ी सी भी परख रही ना भुण्डे आच्छे माणस मैं सब दुनिया मतलब की होगी---- बोल चाल व्यवहार सभी मैं कोरा नकलीपन होग्या कोण्या रही सुहाण किसे की सब का पापी मन होग्या ले लयूं मोल दूसरे नै जणु जिसकै धोरै धन होग्या पैसे कारण सज्जन माणस भी पाणी दुर्जन होग्या " ज्ञानी राम" देख ली दुनिया दोष काढ़ दयूं किस किस मैं सब दुनिया मतलब की होगी ---

भारत की माटी

मेरे देश के वीरों की या रही सदा परिपाटी दे दिया अपना खून नहीं दी इस भारत की माटी ।।(टेक)।। जिस माटी में खुदे हुए सब तीरथ धाम हमारे जिस माटी तै त्यार हुए मन्दिर मस्जिद गुरु दुवारे जिस माटी पै बहै रात दिन नदियां दरिया सारे जिस माटी में चिणे गये गोबिन्द के बेटे प्यारे जिस माटी पै बणे किले बूंदी गढ़ हल्दी घाटी दे दिया अपना खून......... जिस माटी में बाण मार अर्जुन नै काढ़ी धारा जिस माटी पै लड़ा गया महाभारत का युद्ध सारा जिस माटी की बणी अहिल्या जिन्दगी मिली दोबारा जिस माटी के रोड़ां नै हनुमान पार था तारा जो माटी थी वृन्दाबन में किरशन जी नै चाटी दे दिया अपना खून.... जिस माटी पै बैठ बुद्ध नै ज्ञान समाधि लाई जिस माटी के तिलक लगा भगतां नै सिद्धि पाई जिस माटी पै गंगा जमना चालैं रोज खखाई जिस माटी पै बण्या हिमालय बण कै वीर सिपाही जिस माटी पै कार खींच सीता भिक्षा तै नाटी दे दिया अपना खून.. जिस माटी की बेदी पै बर बधू फिराये जा सैं जिस माटी के बणे कुण्ड मैं यज्ञ रचाये जां सैं जिस माटी की डली गेल गणपति बणाये जां सैं जिस माटी के बणे बुतां पै फूल चढ़ाए जां सैं ज्ञानी राम नै जिस माटी में बाल अवस्था काटी दे दिया अपना खून...

घर की तबाही के कारण

बाप नशई और पूत अवारा झगड़े बाज लुगाई बेटी हो बदचलण समझ ल्यो घर की हुई तबाही।। टेक । । हो ज्या घर का नाश बिगड़ ज्या जब घर का रखवाला । दारू, सुलफा, फीम खाण का जिस नै पड़ ज्या ढ़ाला । । बहू बेटी की शर्म करै ना रच दे मोटा चाला । जो कुछ मिल ज्या गहणै घर दे काढै तुरत दिवाला । । बुरी नशे की लत हो सै दुनिया कहती आई । बेटी हो बदचलण.......... जिस का पूत अवारा हो ना हाथ काम कै लावै । पढै लिखै ना काम करै कुछ सीधा सिर पै आवै । । पड़ा रहै सारे दिन घर गलियां में धक्के खावै । दे दो खर्च लिकड़ ज्यांगा, नहीं, सब नै रोज डरावै ।। कौन करै फिर उस मूर्ख का रिश्ता बिना कमाई । बेटी हो बदचलण.......... नरक बराबर घर हो ज्या जित औरत हो कलिहारी । सारे दिन रहै छिड़ी लड़ाई शोर मच्या रहें भारी ।। बहू बेटे सब दुखी रहै ना सुखी रहै घरबारी । इसी लुगाई बण ज्या घर में टी.वी. की बेमारी ।। जब बोलै आवै खावण नै सिर चढ़ ज्या करड़ाई । बेटी हो बदचलण.......... जिस की बेटी बदचलणी में कुल की नाक कटादे । बणा बणा के नये यार सारै रूक्का गिरवादे ।। घर की इज्जत और आबरू माटी में मिलवादे । मुश्किल तै किते रिश्ता हो फिर आगे भी सन लादे ।। ज्ञानी राम फिर शीश पकड़ के रोवै सदा जमाई । बेटी हो बदचलण...........

कलिहारी मूढ़ लुगाई

देख लिया घर घर जाकै या बात समझ में आई । घर नै नरक बणादे सै कलिहारी मूढ़ लुगाई । । (टेक)।। ऊठ सबेरा कोसण लागै लोग जाग ज्यां सूत्ते । बेटां नै कह मर ज्याणे मालिक नै ऊत नपूत्ते ।। जो मूंह में आवै सो बकदे बोलै बोल कसूते । कदे उठावै चिमटा पलटा कदे दिखावै जूते ।। मच्या रहै महाभारत घर में हो ज्या हाथा पाई । घर नै नरक......... झगड़े बाज लुगाई का ना ध्यान लगै ईश्वर में । रहैं बोलती बड़बड़ करती चलतीं फिरतीं घर मैं ।। करै छेड़ कोय बणै गेड़ बस रहती इसे फिकर में । गुद्दी पाछै मति रहै ना समझै बड़ी उमर में ।। धर ठोड़ी कै तलै हाथ बस करती रहै बुराई । घर नै नरक........... कर कर चुगली बहू बेटां नै आपस में लड़वादे । लेण देण के बारे में रिश्तेदारी तुड़वादे । । ऊंचे रूक्के मार मार सारा मोहल्ला जुड़वादे । ऊत पूतनै भड़का कै मालिक का सिर फुड़वादे । । अपनी जिद्द पुगावण खातर ले ले मोल लड़ाई । घर नै नरक............ सुखी रहै ना सुखी रहण दे दूजे नै कलिहारी । बसे बसाये घर नै करदे भस्म गेर चिनगारी ।। जब तक जीवै बणी रहै सै टी.बी. की बेमारी । पीट पीट सिर रोते देखे बड़े बड़े घर बारी ।। ज्ञानी राम इस बुरे रोग की कोन्या किते दवाई । घर नै नरक..........

गुणवन्ती शील लुगाई

देख लिया घर घर जा कै या बात समझ में आई । घर नै स्वर्ग बना दे सै गुणवन्ती शील लुगाई ।। (टेक)।। ऊठ सबेरा हाथ जोड़ कै धरती नै नुचकारै । आशीर्वाद सीस दे दें कै सब के सिर पुचकारै । । प्यार गेल समझा कै सारे घर के काम समारै। खुल्ला राखै हाथ कदे भी बुरी नीत ना धारै।। बैठक ड़योढ़ी घर आंगण की राखै खूब सफाई । घर नै स्वर्ग... समझ पति नै परमेशर पत्नी का फर्जे पुगावै । दुख दर्द और खुशी गमी में पूरा साथ निभावै ।। होंठां पै मुस्कान रहै ना माथे पै बंट आवै । घर आया महमान देख कै फूली नहीं समावै ।। साधु संत महात्मा सब की राख मान बड़ाई । घर नै स्वर्ग........... बहू बेटे सब एक बराबर फर्क करै ना मन में । मीठी बोली फूल झड़ै रहें हर दम सादेपन में ।। घर में सुख शान्ति खातर कुछ लावै ध्यान भजन में । याणे बालक गोद रहें जणु खिल रहे फूल चमन में ।। सोच समझ कै खर्च करै ना खोवै व्यर्थ कमाई । घर ने स्वर्ग........... बेटी समझ बहू नै भी राखै छाती कै लाकै । अगड़ पड़ौसी सब की गेलां राखै मेल बणा कै ।। खान पान में भेद करै ना चौंके के मांह आकै । निन्दा चुगली करै सुणै ना दूजे के घर जाकै।। ज्ञानी राम इसी देवी नै सौ सौ बार बधाई । घर ने स्वर्ग...........

एम. एल. ए. की सीट

लाग होण चुनाव लड़ण का सब नै हो ज्या धाड़ा । एम.एल.ए. की सीट समझ ली खाला जी का बाड़ा।। (टेक)।। दो धेलां का माणस भी आज मैम्बर बणना चाहवै दसखत करने दूर रहे ना गूंठा लाणा आवै ना सियासत का पता मूढ़ नै उल्टा अर्थ लगावै बात करै जब असैम्बली नै पार्लियामैंट बतावै देणे पड़ें निशान कमीशन नै छिड़ ज्या सै खाड़ा एम.एल.ए. की सीट समझ ली.... कोय बोट तोड़न की खातर जा कै पर्चा भरता बैकबर्ड कोय जात पात के दुख सुनाता फिरता कोय पार्टी का पिट्ठू बस नोट इकट्ठे करता कोय जिद्द का मारा मूर्ख किल्ले गिरवी धरता कोय पोलिंग नै रद्द करण नै पादे बीच पुवाड़ा एम.एल.ए. की सीट समझ ली.... बीस शराबी कठ्ठे हो कै दे दें झूठा लारा करें बड़ाई ला दें थापी गात फूल ज्या सारा ले कै जीप फिरै दस दिन लगवाता अपना नारा शीश पकड़ के रोवै पाछै वोट मिलैं जब ठारा जान बचाणी मुश्किल हो ज्या पुगा सकै ना भाड़ा एम.एल.ए. की सीट समझ ली............ गौरमैंट नै इन लोगों पै बैन लगाणा चाहिए देख लयाकत फिर पाछै फार्म भरवाणा चाहिए फीस दाखले का भी ज्यादा रेट बढ़ाना चाहिए दलबदली की ढ़ाल कोय कानून बनाणा चाहिए ज्ञानी राम, नहीं तो समझो भाग देश का माड़ा एम.एल.ए. की सीट समझ ली.......

फौजी की बिदाई

चल्या मोर्चे पै फौजी जब हो गई शुरू लड़ाई खड़ी कूण में सुबकै थी एक नई बहू मुकलाई (टेक) आठ बजे की बस लेणी थी जल्दी रोटी खा ली बिस्तर बान्ध धरा आंगण में खाली वर्दी ला ली धरी बैग में चीज जरूरी गेल पास बुक पा ली दो पोजां में खिंची बहू की दो फोटू भी ठा ली कर त्यारी गया बैठ खाट पै झट बीड़ी सिलगाई खड़ी कूण में सुबकै थी....... समझदार थे घर वाले सब भीतर बाहर डिगर ग्ये नये नये बहू छोरे थे बतलावण का राह कर ग्ये क्यूकर मुंह पाटै बोलण नै नेत्र जल तै भर ग्ये दस दिन भी ना खेली खाई सारे लाड बिखर ग्ये लग्या बहू नै समझावण आखिर में वीर सिपाही खड़ी कूण में सुबकै थी....... करी नमस्ते मूंह देखण नै ऊपर घूंघट ठाया पकड़ नरम हाथ नै बोल्या मत रोवै मेरी माया भारत मां पै बिपत पड़ी दुश्मन सीमा पै आया क्यू कर दगा करूं उस तै जिस का अन्न पाणी खाया तिलक लगा कर बिदा मनै तू बण कै वीर लुगाई खड़ी कूण में सुबकै थी...... सुण जोशीला बोल पति का हवा बदल गई सारी कहण लगी तुम वीर मर्द सो हम सां अबला नारी जाओ रण में मेरे पिया जी होगी जीत तुम्हारी मनै याद मत करियो जब तक रहै लड़ाई जारी ज्ञानी राम न्यू कह पत्नी नै हंस कै करी बिदाई खड़ी कूण में सुबकै थी......

ईश्वर-बन्दना

हे ईश्वर तनै कहैं दयालु पर हिरदे में सी कोन्या । निराकार साकार कहै कोय समझे हम कुछ भी कोन्या । । (टेक) जो तूं सै साकार तनै विपता में आना चाहिए था । ले कै कोय अवतार जुल्म और पाप मिटाना चाहिए था । । बन कै दीन दयाल सही तनै प्रण पुगाना चाहिए था । किसी रूप में प्रगट हो कै, दर्श दिखाना चाहिए था । । बाट देश कै हार लिये कितै शकल दिखाई दी कोन्या । निराकार साकार कहै कोय..... निराकार भी कहैं तनै तूं घट घट के मांह बास करै । बण कै रूप आत्मा का तूं दुनिया में परकाश करै ।। पर जब देखां जुल्म देश में कौन भला विश्वास करै । जब तक पाप कराणियां का तूं कोन्या जड़ तै नाश करै ।। ढूंढ ढूंढ कै हार लिये तनै खबर देश की ली कोन्या । निराकार साकार कहै कोय............ वेद शास्त्र कर्ता धर्ता हर्ता नाम सुणावैं सैं । ऋषि मुनि विद्वान सभी समदर्शी तनै बतावैं सैं । कीड़ी कुंजर निर्धन राजा प्राणी सभी कहावै सैं। आधे भूखे मरैं भला क्यों आधे मौज उड़ावैं सैं ।। भूखे निर्धन लोगां के के सुख भोगण का जी कोन्या । निराकार साकार कहै कोय .......... दीन हीन भूखे लोगां तै क्यों अपना मुंह मोड़ लिया । पाप बधै अवतार धरूं यू अपना वायदा तोड़ लिया ।। झूठे बेईमानां गेलां अपना नाता जोड़ लिया । दुनिया का मालिक होकै क्यूं अपना भांडा फोड़ लिया ।। ज्ञानी राम मामूली सी भी दिल में दया रही कोन्या । निराकार साकार कहै कोय ...........

लकड़ी की करामात

नारद जी नै विष्णु तै एक कथा सुनाई लकड़ी की सुणल्यो तुम भी करामात सब मेरे भाई लकड़ी की (टेक) जब बालक नै जन्म लिया तो लकड़ी की पीढ़ी पाई पण्डित जी नै हवन करा तो घी और लकड़ी मंगवाई मिल्या पालणा लकड़ी का जब माता नै लोरी गाई बालक के खेलण खातर फिर लकड़ी की गुड़िया आई गया स्कूल पढ़ण खातर तो तखती ठाई लकड़ी की सुणल्यो तुम भी करामात........ गया नौकरी पै लकड़ी का कुर्सी मेज बिछा पाया नहीं पढ़ा तो कसी कसोला सांटा लकड़ी का ठाया हुई सगाई सगण मिल्या तो नारियल लकड़ी का थ्याया ब्याह में फेरे हुए पाटड़ा लकड़ी का बण कै आया मिल्या दान में फर्नीचर थी गजब सफाई लकड़ी की सुणल्यो तुम भी करामात.......... घर में खिड़की अलमारी लकड़ी की रोज सजाण लग्या बण्या गृहस्थी नूण तेल लकड़ी का फिकर सताण लग्या बस और रेल बनी लकड़ी की बैठ सफर में जाण लग्या बच्चा नै धमकावण नै लकड़ी का बैंत उठाण लग्या बूढ़ हो गया सैर करण नै छड़ी उठाई लकड़ी की सुणल्यो तुम भी करामात........... निकले प्राण बीमारी में घर वाले लकड़ी टोहण लगे अरथी त्यार करी लकड़ी की मुर्दा काया धोण लगे मित्र प्यारे शमशाणां में जा के लकड़ी ढोण लगे चिता जली जब लकड़ी की तो सगे सम्बन्धी रोण लगे ज्ञानी राम फिर बड़े पूत नै फेंकी बाही लकड़ी की सुणल्यो तुम भी करामात ...............

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