हद-ए-अमल से आगे लिखूँगा : दिनेश श्रीवास्तव "दानिश"

Had-e-Amal Se Aage Likhunga : Dinesh Srivastav Danish


मिरा अज़ीज़ मुहब्बत जताना चाहता है

मिरा अज़ीज़1 मुहब्बत जताना चाहता है ज़लाल2 अपना मुझे अब दिखाना चाहता है निसार3 ख़ुशियाँ दिया सारी जिसकी चाहत पे वो मुझको अपनी शरायत4 पे रखना चाहता है है मा’नी फ़र्ज़ का तहलील5 ऐसे ज़हनों में दलील दे के रवायत6 बदलना चाहता है सिखाया मा’नी जिसे इख्तियार7 का हमने वही हक़ूक़8 को ताक़त बताना चाहता है रहम-करम से जो ‘दानिश’ तिरे हुआ आबाद मुबादले9 में वो तौहीन10 देना चाहता है 1-अज़ीज़=प्रिय, 2-ज़लाल=प्रताप, 3-निसार=कुर्बान, 4-शरायत=शर्तों, 5-तहलील=विलीन, 6-रवायत=परम्परा, 7-इख्तियार=अधिकार, 8-हक़ूक़=अधिकारों, 9-मुबादला=आदान-प्रदान,10-तौहीन=अपमान

लगी है होड़ अपनों में हमारा नाम क्या होगा

लगी है होड़ अपनों में हमारा नाम क्या होगा जहाँ हैं दोस्त साहूकार मेरा दाम क्या होगा इसी ही बेवफ़ाई से तुम्हारा जह्न है बोझिल सभी के जाम ताबिंदा1 तुम्हारा जाम क्या होगा तेरी पेशानी2 पे शबनम3 तेरी सूरत है अफ़सुर्दा4 बसर महरूम5 महवे यास6 घर में बाम7 क्या होगा सदारत में कभी जिनकी भले ही काम होते थे उमर गुजरी सहर गुज़री हुई अब शाम क्या होगा थे जितने हम सफर “दानिश” वही बन बैठे बेगाना खुदा की अंजुमन8 में फिर हमारा काम क्या होगा 1-ताबिंदा=चमकदार, नूरानी, 2-पेशानी= माथा, 3-शबनम=ओस(पसीना) 4-अफ़सुर्दा=उदास, बुझी हुई, 5-बसर महरूम= जीवन निर्वाह से हीन 6-महवे यास=ग़म में डूबा हुआ, 7-बाम=परकोटा 8-अंजुमन=महफिल

तर्ज़े अंदाज़ ही दिलकश शरीर होते हैं

तर्ज़े अंदाज़1 ही दिलकश2 शरीर3 होते हैं रहनुमा अब के बहुत कम नज़ीर4 होते हैं दूर बिस्यार5 से आती ख़बर सियासत की अब तो हर घर में सियासत के पीर होते हैं ज़िंदगी सबको ख़ुदा ने अता किया है मगर भाई भाई में भी मुफ़लिस6 हक़ीर7 होते हैं सभी इन्सान हैं हालात से थके शायद फिर भी कुछ लोग हैं जो बा-ज़मीर8 होते हैं आलिमुल फ़लसफ़ा9 के हैं यहाँ सभी “दानिश” बड़ी मुश्किल से ही पैदा कबीर होते हैं 1-तर्ज़े अंदाज़=तौर तरीके की शैली, 2-दिलकश= सम्मोहित करने वाले, 3- शरीर=दंगाई, फसादी, 4-नज़ीर=उदाहरण, 5-बिस्यार=बहुत, 6- मुफ़लिस =गरीब, 7- हक़ीर= छोटा, तुच्छ, 8- बा-ज़मीर= अंतरात्मा की आवाज़ सुनने वाला,9- आलिमुल फ़लसफ़ा=दर्शन शास्त्र के बहुत बड़े विद्वान

मुख़ालफ़त से जो आग़ाज़े-रोज़े-बद होगा

मुख़ालफ़त1 से जो आग़ाज़े-रोज़े-बद2 होगा अभी नहीं तो कभी ज़ुल्म भी बा-हद3 होगा तू पुरशिकोह4 जहाँ का हिदफ़5 तो करके चल कभी तो जद्दो जहद6 भी तेरा अबद7 होगा दिलों को लह्द8 बनाकर ज़मीर9 दफ़्न ना कर अगर जो उठ तो यहाँ आसमाँ बसद10 होगा तू अपनी अर्ज़ ओ तमद्दुन11, वतन का क़र्ज़ाई तिरी ज़मीं तू मददगार अहले हद12 होगा जला चिराग़ फ़रोज़ाँ13 बना उफ़क़14 ‘दानिश’ शुरू तू कर जहाँ सारा इरम15 ला-हद16 होगा 1-मुख़ालफ़त=विरोध. 2-आग़ाज़े-रोज़े-बद=बुरे दिनों की शुरुआत, 3- बा-हद=सीमा के अंदर, 4-पुरशिकोह= वैभवशाली, 5- हिदफ़=लक्ष्य, 6- जद्दोजहद=पराक्रम और प्यास, 7- अबद=अमर,8- लहद=कब्र के गड्ढे की खाली जगह, 9- ज़मीर=अंतरात्मा की आवाज, 10- बसद= विस्तृत, 11- अर्ज़ो तमद्दुन=धरती और संस्कृति, 12- अहले हद=सीमा तक, 13- फ़रोज़ाँ=प्रकाशमान, 14- उफ़क़=क्षितिज, 15- इरम=स्वर्ग, 16- ला-हद=असीमित

थी शुआए नज़्र हिचक रही इन्हीं हरकतों ने अयाँ किया

थी शुआए नज़्र1 हिचक रही इन्हीं हरकतों ने अयाँ2 किया ये नए चलन की है दुश्मनी तेरी दोस्ती ने बयाँ किया थे कदम तुम्हारे ही हम कदम था ख़रोश3 तेरी निगाह में यही ठिठ कनें तेरी चाल की तेरी साज़िशों का निशाँ किया मिरी राह में कई ख़ार थे जहाँ कुछ थे अपने ही नस्ब4 के अभी ठोकरों से बचा था मैं तेरी रहमतों ने ज़माँ5 किया तू हो ख़ैर ख्वाह भी अस्ल में ऐलानियाँ तिरी हों भली तिरी मातहत के तुफ़ैल6 ने तिरी हुर्मतें7 बे-अमाँ8 किया तिरे शह्र का तो चलन है दानि श खास थोड़ा जुदा जुदा हैं सभी गिरोह अलग अलग है हक़ीक़ी मसला फनाँ किया 1-शुआए नज़र=आँखों की रश्मियाँ, 2-अयाँ=प्रकट, जाहिर करना, 3- खरोश=जोश, 4- नसब=वंश, 5-ज़मा=जुर्माना, दंड, 6- तुफ़ैल=कारण,जरिया, हस्तक्षेप, 7- हुरमतें=इज्जत, 8- बे-अमाँ=असुरक्षित

मेरे मोहसिन मेरी रानाइयों से कुफ़्र न कर

मेरे मोहसिन1 मेरी रानाइयों2 से कुफ़्र3 न कर चादरे इज़्ज़तो नामूस4 को आज़ार5 न कर ना मुझे कलमा पढ़ा ना मेरी बपतिस्मा कर मैं तो एक इंसाँ हूँ अब और गुनहगार न कर तू तो इक आदमी है आदमी का क्या कहना तू कोई और नहीं है तू ऐतराज न कर मेरे ही दुश्मनों को मुझपे ऐतमाद6 रहा तू तो इक दोस्त है तू मुझपे ऐतबार न कर ख़ाक भी उससे किया हमने जलाया जो दिया ख़ुद की नज़रों में तू अपने को शरमशार न कर चाह दानिश तेरी करके यहाँ मम्नून7 बहुत तू निहाँ8 ख़ाहिशों को और तलबगार न कर 1-मोहसिन=अभिभावक (यहाँ पुरुष से अभिप्रेत है) 2- रानाइयों=लावण्यताओं, 3-कुफ़्र= नास्तिकता, 4- चादरे इज़्ज़तो नामूस=इज्जतरूपी चादर, 5- आज़ार= दुख देना, दुखी, 6- ऐतमाद=भरोसा, 7- मम्नून=आभारी, शुक्रगुज़ार, 8- निहाँ=छिपी हुई

कुछ तवारीख़ की सुन ख़ुद पे इसरार न कर

कुछ तवारीख़ की सुन ख़ुद पे इसरार1 न कर भागते वक़्त को तुम कुहना अदवार2 न कर तेरे असलाफ़3 ने अर्ज़ा4 को ख़ूँ रेज़5 किया अपनी उम्मत6 को अभी और गुनहगार न कर क्यों बना फिरता है तैमूर ओ नादिर की नस्ल तेरी मौलिद 7 है तू इसको शरमसार न कर ख़ाक में मिल गये हिंदुस्ताँ के बार8 अदू9 ज़ेह्न में बहते हुये ख़ूँ से तू वार न कर जो थे महरूम दरोदर10 से आये रहने ऐसे बेदर11 के सबब कोई तकरार न कर इक शहंशाह ने सदियों से शर्मिंदा किया बाज आ कोई अलमगीर तैयार न कर क्यूँ किया ग़ज़्ल की भाषा को नफ़रत की जबाँ इसको रुसवा न कर ओ अद्ब12 आज़ार13 न कर 1-इसरार=हठ, जिद, 2- कुहना अदवार= पुराना दौर(कबीलाई दौर), 3- असलाफ़=पूर्वजों, 4- अर्ज़ा= ज़मीनों, 5- ख़ूँरेज़=खून से लथपथ, 6- उम्मत= समुदाय, 7- मौलिद=जन्मभूमि, 8- बार=कष्टदायक, 9- अदू=दुश्मन, 10- दरोदर=आवास, 11- बेदर= मकान हीन, 12- अदब=साहित्य 13- आज़ार= दुख देना, जंजाल

कभी चटान से लड़ने को था खड़ा रहता

कभी चटान से लड़ने को था खड़ा रहता दरख्त1 बनके भी तूफ़ाँ में था अड़ा रहता जिसे अज़ीज रहीं खुशियाँ अपने बच्चों की अलील2 हो के भी सहरा3 में था पड़ा रहता शबा4 थी वक़्त की औलादों ने दिखाया जिसे अबा5 वही है मगर अब झुका झुका सा है ये वक़्त का है असर या कि क़हर कुदरत का वो शख्स नौहाँ कना6 है थका थका सा है निकल के घर से जो सपनों का साख़ता7 था महल खड़ा हुआ जो कभी देखता है अपना मकाँ बड़ी अमल से नुमायाँ किये कुहन8 अरमाँ मजीद9 वलवला10 मौजूद आसरा दरमाँ11 बही थी मौजे तबद्दुल12 में हौले हौले से उदास, आह पुरानी रवायतों13 की नज़्म परीदा14 पर जो उमीदों के जेरसाया हुए रहे सदाकतों15 की गफ़ लतों के बनते बज़्म16 ये कैसा खेल इलाही तिरी निज़ामत17 में निगाह खुद भी नज़ारे का ताब ला न सके मिरी ये तक़्ती18 है इल्मो अदब19 पे आमादा कि फ़र्क़ नस्ल ए अदीबी20 में खाब ला न सके 1-दरख्त=बृक्ष, 2- अलील=बीमार, 3- सहरा रेगिस्तान, 4-शबा=हमला 5- अबा=एक प्रकार का वस्त्र, 6-, नौहाँ कना=विलाप करता हुआ, 7- साख़ता=बनाया हुआ, 8-कुहन=पुराना, 9- मजीद=बढ़ा हुआ, विस्तृत, 10- वलवला= उत्साह, 11- दरमाँ=दवा इलाज, 12- तबद्दुल= परिवर्तन, 13-रवायत=परम्परा, 14- परीदा= उड़े हुये, 15- सदाकतों=सच्चाई, सत्यता, 16-बज़्म=सभा, गोष्ठी, महफिल, 17- निज़ामत= संचालन,व्यवस्था, 18- तक़्ती=शब्द संयोजन, दृष्टि, 19- इल्म ओ अदब=ज्ञान और साहित्य, 20-अदीबी=साहित्य या साहित्यकार, (यहाँ तात्पर्य मानव से है)

कोई कहता है क़िस्से को छलावा

कोई कहता है क़िस्से को छलावा तेरा तो तख़्त क़िस्सों से बना है हैं क़िस्सागो1 भी जितने उतने मस्ले वो उतने फ़िरकों, हिस्सों में बँटा है हैं वाजेहगोई2 के मंदूब3 सब ही सभी जिसको हैं मानें बादशा है तिरा क़िस्सा तिरा हिस्सा खूँ रंगा अमन से खेलना तेरा नशा है फसाने दर्ज़ जो मज हब किताबों है किस्सा ही नहीं तो क्या बला है है मेरी खूँ सनी रोटी सचाई तेरी तदबीर4 जिसका ज़लज़ला5 है सबब से बादशाही तख़्त के याँ नये तहक़ीक़े6 क़िस्सा में लगा है वो ‘दानिश’ है तिरे क़िस्सों से ऊपर तेरा कुनबा मिटाने में लगा है । 1- क़िस्सागो=कहानीकार, 2- वाजेहगोई=स्पष्टवादिता, 3- मंदूब=प्रतिनिधि, 4- तदबीर=युक्ति, 5- ज़लज़ला= भूकम्प, 6-तहक़ीक़=छानबीन।

बड़ी तमीज़ से तक़लब का खेल जारी है

बड़ी तमीज़ से तक़लब1 का खेल जारी है मुखालफत में मिरे जलजला तलाश करो हदे दरद 2 को ख़ला3 करके जो अमल हो ग़र उसी मेँ इब्तिदा-ए-वलवला4 तलाश करो चले जहाँ से थे वो घर तुम्हें बुलाता है चले ही आने का कोई सिला तलाश करो उधार हिर्स-ओ-हिरासाँ5 तेरे ज़मीर पे है निजात पाने को मोख़य्यिला6 तलाश करो बहुत ज़लील हुआ है मगर अब और नहीं अमानो-अम्न से मिल सिल सिला7 तलाश करो अकेले चलने का "दानिश" कोई सबब ही नहीं चलो कुछ ऐसे कि एक क़ाफ़िला तलाश करो 1-तक़लब=फरेब, 2- हदे-दरद=दर्द की सीमा, 3- ख़ला=खाली, खाली करना, 4- इब्तिदाए-वलवला= उत्साह का प्रारंभ, 5- हिर्स-ओ-हिरासाँ=लालच और भय, 6- मुख़य्यिला=विचार शक्ति, 7- सिला=परिणाम, पुरस्कार।

मेरी दुखती हुई रग पर कोई जब हाथ रखता है

मेरी दुखती हुई रग पर कोई जब हाथ रखता है कोई मासूम जब दो ही निवालों को तरसता है किसी उगती खिली रंगीं क़बा1 नौख़ेज़2 की ताबाँ3 नई रअनाइयों4 अहसास से जब खेल खेलता है बढ़ें जो हाथ मज़लूम5 ओ परीशाँ के सहारे को कोई उस हाथ को छूकर अँगुलियां खींच लेता है जो बचपन देख ना पाया हो अपनी उम्र आधी तक कोई जब उसको गुजरी रूठती यादें दिलाता है कोई बेटा सहारा छोड़ दे उस पन में जब मौला सहारा खींच लेता है नज़र भी फेर लेता है कोई मिस्कीन6 बिन पैसे नहीं तालीम पाता है कोई जब आँसुओं को पी नज़र से मुस्कुराता है तेरे आईन7 में तब क्या कोई नज़्मे-गुलिस्ताँ8 है अगरचे हो जो ‘दानिश’ ताजिरे दिल9 को बता देना तेरे दैरो हरम10 ने ग़र किसी के ज़ख़्म धोए हों यही पैगाम ना भूले उसी दर का पता देना 1-रंगीं क़बा=रंगबिरंगी सुंदरी, 2- नौख़ेज़=नवयुवती, 3- ताबाँ=प्रकाशमान, 4- रानाइयों= रमणीयताओं, 5- मज़लूम=सताया हुआ, दुखी, 6- मिस्कीन=दीन, गरीब. 7- आईन=नियम, 8- नज़्मे-गुलिस्ताँ=उपवन की व्यवस्था,9- ताजिरे-दिल=दिल का व्यापारी, 10- दैरो हरम=पूजा स्थल

तिरे अल्फ़ाज़ मेरे रूबरू होते क्यों हैं

तिरे अल्फ़ाज़ मेरे रूबरू होते क्यों हैं मिरी नज़रों में मगर धुँधले होते क्यों हैं तिरे नग्मात हो पैवस्त ज़र्फ़1 ए ता-उम्र बनके अंगार मेरे नफ़्स2 में बहते क्यों हैं माना ये तोड़ दिया आरज़ू ए साकी फिर रक़ीबों3 के खयालात उभरते क्यों हैं सामने मेरे वही पुर सुकूँ मन्ज़र हों मेरे अहसास मुहाजिर4 के से लगते क्यों हैं रोशनी तुझको बहुत बख़्त5 से नज़्र हुई आतिशजनीं के दिये हैं ये जलते क्यों हैं कर दे ख़्वाबीदा6 सा आहंग7 कोई ना “दानिश” दिल के गोशों में मेरे मर्सिया8 बजते क्यों हैं 1-ज़रफ़=गहराई,विस्तार,शिष्टाचार,संस्कार, 2- नफ़्स=अस्तित्व, 3- रक़ीब =प्रेमिका का दूसरा प्रेमी, ,4- मुहाजिर= शरणार्थी,विदेशी, 5-बख़्त=क़िस्मत, 6- ख़्वाबीदा=निद्रित, 7- आहंग=स़गीत, सुरीली आवाज,8- मर्सिया= शोकगीत,

हज़ार किस्से तेरी फ़ज़ल के फजाँ में उसका असर न देखा

हज़ार किस्से तेरी फ़ज़ल1 के फजाँ में उसका असर न देखा कि आफ़तों का उफ़क़2 ही देखा इनायतों की नज़र न देखा तुम्हीं को पूजें अमीरो उमरा लगा हूँ मैं तेरी ही दुआ में किसी को बख्शा महल दुमहले अगरचे मैंने बसर3 न देखा दिलों की धड़कन बनाने वाले दिलों में नफ़रत भी तूने डाला दिलों की तस्कीं4 चुराने वाले ग़मे उमर5 का हशर6 न देखा तुम्हारी तक़रीर में है धोका हिसाबों में तेरे गड़बड़ी है अदम7 है क़ायम मिरे मुक़द्दर दुखों का तूने द हर8 न देखा है एक देता तेरे जहाँ को पसीने को ख़ूँ में एक करके जमीं की ख़ुशबू लपेटे दहक़ाँ9 को छू के बहती लहर न देखा असल मसाइल से मोड़ देना तिरी जमातों का है सलीका कि किस्सा गोई है तेरा हरबा जिसे कभी बेअसर न देखा तुम्हारी अज़मत10 से ही है रौशन चिराग़े उल्फ़त11 हसीन लम्हे है एक “दानिश” है सोज़12 जिसका ग़ज़ल का उसने हुनर न देखा 1-फ़ज़ल=कृपा,2- उफ़क़=क्षितिज, 3- बसर=जीवन निर्वाह, गुजर बसर, 4- तस्कीं=सान्त्वना,5- ग़मे उमर= ज़िंदगी के दुख, 6- हशर=परिणाम,अंत, 7- अदम= अभाव, 8- दहर=संसार,समय, 9- दहक़ाँ=किसान, 10- अज़मत=सम्मान,ठाटबाट, 11- चिराग़े उल्फ़त= मोहब्बत का चिराग़ 12- सोज़=दुख,दाह,अथाह कष्ट

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