भूमिका : सुधियों की देहरी पर (दोहा संग्रह) : तारकेश्वरी 'सुधि'

Bhoomika Sudhiyon Ki Dehri Par (Doha Sangrah) : Tarkeshwari Sudhi

समय से संवाद करता काव्य (भूमिका) : सुधियों की देहरी पर (दोहा संग्रह)

दोहा लोक साहित्य का सरलतम छंद है,जो जनसाधारण के मध्य सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ है। दोहा मुक्तक काव्य का प्रमुख छंद है। हिंदी साहित्य में सभी प्रमुख कवियों ने दोहा छंद का प्रयोग किया है। छंद शास्त्र के अनुसार दोहे के 23 भेद माने गए हैं जो क्रमशःभ्रमर, सुभ्रामर, शरभ, श्येन, मंडूक, मर्कट, करभ, नर, हंस, गवन्द, पयोधर, चल, वानर, त्रिकल, कच्छप, मच्छ, शार्दूल, अहिवर, ब्याल, विडाल, श्वान, उदर, सर्प हैं। प्रबंध काव्य में दोहे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । दोहा प्रबंध काव्य शैली को प्रभावपूर्ण गति प्रदान करता है। दोहा छंद प्राचीन छंद होते हुए भी आज तक साहित्यकारों एवं पाठको को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। 21वीं सदी में नए-नए दोहाकार साहित्य जगत में दस्तक दे रहे हैं। तारकेश्वरी तरु 'सुधि' ऐसी ही दोहाकार हैं जो अपने लेखन की सुगंध पाठकों तक पहुँचा रही हैं। भक्ति काल एवं रीति काल में दोहा छंद में भक्ति ,नीति एवं श्रृंगार को अपना आधार बनाया किंतु आधुनिक काल में बदलती परिस्थितियाँ ही दोहों की प्रमुख विषय है।आज के समय में सामाजिक परिवेश तेजी से बदल रहा है। आजीविका की तलाश में युवा पीढ़ी को घर से दूर जाना पड़ता है, तथा मां-बाप को घर में ही वीरानी झेलनी पड़ती है। तारकेश्वरी तरु 'सुधि' का निम्नलिखित दोहा इस परिस्थिति का सटीक चित्रण करता है। खून पसीना एक कर, बच्चे किए जवान । बसे मगर परदेस में, घर करके वीरान।।

यह भी सत्य है कि आधुनिकता का दम भरते हुए भी समाज विसंगतियों में जी रहा है। व्यक्ति और समाज अब भी लड़का और लड़की में भेद करता है। पुत्र एवं पुत्री के लिए उसके मानदंड अलग-अलग हैं ।

कॉन्वेंट में जा रहा, जिनके घर का फूल ।
लड़की उनकी जा रही, सरकारी स्कूल।।

कविता कवि को सूक्ष्म से विराट की ओर, व्यक्ति से समष्टि की ओर ले जाती है।समर्थ रचनाकार वही है जो वर्तमान में रहते हुए भी भविष्य का दृष्टि-बोध रखता हो।तारकेश्वरी तरु 'सुधि' पर्यावरण के प्रति सजग हैं। प्रकृति का अविवेकपूर्ण एवं अंधाधुंध दोहन उन्हें विचलित करता है। वे मनुष्य को जागृत करते हुए कहती हैं--

गर्मी से बेबस हुए, धरती के हालात।
पेड़ काट खुद पर किया, मानव ने आघात।।

साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। साहित्य में उस समय की सामाजिक परिस्थितियाँ दृष्टिगोचर होती हैं,किंतु मैं मानता हूँ कि साहित्य समाज का दर्पण नहीं वरन प्रकाश स्तंभ होना चाहिए ताकि वह समाज को दिशा-बोध दे सके,उसका मार्गदर्शन कर सके। वर्तमान समय में बढ़ते नारी अपराधों के प्रति बेटियो को जागृत करते हुए वे कहती हैं --

चलो बेटियो ध्यान से, कदम-कदम पर गिद्ध।
तुम भी रखकर हौसला, करो स्वयं को सिद्ध ।।

जीवन में समस्या है तो समाधान भी है। कविता व्यक्ति को अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाती है ताकि व्यक्ति नए पथ पर अग्रसर हो सके और वे सारी पीड़ाएँ भूलकर नवचेतना से परिपूर्ण हो सके। एक उदाहरण देखिए--

जब भी किसी तनाव ने, जकड़ा, बन जंजीर।
बैठी माँ के पास मैं ,भूली सारी पीर।।

नारी के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। गृह- प्रबंधन में नारी का विशेष योगदान रहता है। यदि यह कहा जाए कि नारी के बिना घर जीवंत नहीं होता तो उचित ही है। नारी की मधुर मुस्कान घर को अनिर्वचनीय आनंद से भर देती है। तारकेश्वरी तरु 'सुधि' नारी के इस अमूल्य योगदान को निम्नवत रेखांकित करती हैं-

तिनका तिनका जोड़कर, घर में डाले जान ।
दुख में भी नारी सदा, फैलाती मुस्कान।।

सामाजिक विसंगतियों पर चोट करना कवि-कर्म का अभिन्न अंग है। इस दृष्टि से तारकेश्वरी तरु 'सुधि' ने अपना दायित्व बखूबी निभाया है। इस दोहा संग्रह में कवयित्री ने कई जगह सामाजिक विसंगतियों की ओर इशारा किया है। यह दोहा अवलोकनीय है --

गली-गली में खोलकर, अंग्रेजी स्कूल।
चले बनाने देश को, हिंदी के अनुकूल।।

तारकेश्वरी तरु सुधि ने वर्तमान समय की विसंगतियों को सरल शब्दों में स्थान दिया है।एक अभिव्यक्ति उल्लेखनीय है--

सपने सारे छीन कर, भूख बनाती हीन।
पढ़ने-लिखने की उमर,गुजरे कचरा बीन ।।

विकास की दौड़ में व्यक्ति पागलपन की हद तक जा रहा है। संसाधन निरंतर घटते जा रहे हैं। कृषि योग्य भूमि में फसलों की जगह कंक्रीट के जंगल उग रहे हैं। कवयित्री ने इस ओर संकेत करते हुए कहा है--

देखे थे मैंने जहाँ,बड़े-बड़े से खेत।
वहाँ बनी अट्टालिका, फसल बची न रेत ।।

चाहे कितनी भी विषम परिस्थितियाँ हो ,साहित्यकार समाज में आशा का संचार करते हुए उसे आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करता है। तारकेश्वरी तरु 'सुधि' ने भी अपने इस उत्तरदायित्व को का बखूबी निर्वहन किया है।

बना चुकी है बेटियाँ, शिक्षा को हथियार ।
कदम थमेंगे अब नहीं ,नहीं रहेंगी भार।।

दुनिया जंगल जाल है, पल- पल मिलते शूल।
कर लेता है पार जो, उसके हक में फूल ।।

रचनाकार भावों का संवाहक होता है। जीवन के लालित्य एवं उसकी संवेदनाओं को आत्मसात करता है। तारकेश्वरी तरु 'सुधि' के ये शब्द चित्र उन्हें कवि बिहारीलाल के समकक्ष स्थापित करते हैं ।

चुपके से खत खोलकर ,बाँचा सारी रात।
बिरहन के मन की व्यथा, किसे पता जज्बात।।

तेरी पाती ने लिया, मेरे मन का चैन।
भीगा-भीगा दिल लगे, गीले-गीले नैन।

प्रियतम का संदेश ले, तू आया कर काग।
विरहन को तड़पा रहा, आज पपीहा राग।।

सद्साहित्य जीवन को उल्लास एवं प्रेरणा से भरता है। वे ही मनुष्य एवं समाज प्रगति के उन्नत शिखर छूने में समर्थ रहे हैं, जो श्रेष्ठ साहित्य का निरंतर अध्ययन करते रहें हैं।तारकेश्वरी तरु 'सुधि' भी पाठको अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं ---

बेशक थोड़ा ही पढ़ो ,पढ़ो मगर तुम नित्य।
भरता मन में स्वच्छता, सुधि अच्छा साहित्य ।।

तारकेश्वरी तरु 'सुधि' का यह दोहा संग्रह कुछ आप बीती और कुछ जगबीती से परिपूर्ण है। यह वर्तमान समय से संवाद करता हुआ काव्य कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुझे विश्वास है यह दोहा संग्रह पाठकों को प्रभावित करेगा।

'सुधियों की देहरी पर' के प्रकाशन पर मेरी ओर से अनंत शुभकामनाएँ।

त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बंगला नंबर 99
रेलवे चिकित्सालय के सामने
आबू रोड -307026

स्नेहाशीष

तारकेश्वरी मेरी छात्रा रही है। मैंने उसे बारहवीं में पढ़ाया है। तब वह बहुत ही संकोची स्वभाव की,कम बोलने वाली शर्मीली छात्रा थी।मैं भी नया-नया अध्यापक बना था और लिखना सीख ही रहा था (अभी भी सीख रहा हूँ)। शायद तभी उसको लिखने की प्रेरणा मिली हो। अब वह स्वयं शिक्षिका है। मैंने उसका लेखन काफी पढा है। उसने कई विधा पर लेखन का कार्य किया है जैसे दोहे, गजल, गीत,कुण्डलिया, हाइकु, लघुकथा, मुक्तक आदि। इनमें उसने समसामयिक विषयों को उठाया है जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ,कन्या भ्रूण हत्या, कृषक, मजदूर,दहेज,कश्मीर समस्या,पर्यावरण आदि ।

मैं बहुत हैरत में हूँ कि इतना कम बोलने वाली छात्रा की कलम इतनी मुखर भी हो सकती है। ठीक उसी तरह जिस तरह से सचिन तेंदुलकर स्वयं नहीं बल्कि उनका बल्ला बोलता है ।

तारकेश्वरी का यह पहला काव्य संग्रह है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सबका स्नेह और दुलार उसे मिलेगा। वह काव्य के क्षेत्र में बहुत आगे जाए,ऐसी ईश्वर से मेरी प्रार्थना है ।मेरा स्नेहाशीष सदैव उसके साथ हैं ।

विनीत चौहान

मेरी बात

ईश्वर की असीम कृपा से मैं अपनी पहली किताब 'सुधियों की देहरी पर' लेकर आप सब के सम्मुख उपस्थित हूं। उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी ।

मेरे परिवार में पढ़ने का शौक रखने वाले कई सदस्य हैं परन्तु लेखन के क्षेत्र में कोई नहीं था और ये इत्तेफाक ही है कि मैं और मेरे भैया श्री लोकेश कुमार यादव एक साथ लेखन के क्षेत्र में आये ।मुझे भी पढ़ने का शौक तो बहुत था लेकिन लिखने की न तो कोई छंदात्मक जानकारी थी और न ही कभी इस बारे में सोचा। हाँ, लेकिन जब विनीत चौहान भैया कविता सुनाते थे तब बहुत अच्छा लगता और मन करता कि काश ये गुण मुझमें भी होता।

दोहों के प्रति मेरी रुचि गुरुदेव श्री हरी फैजाबादी जी ने लगभग डेढ़-दो वर्ष पूर्व जगाई ।उन्होंने मुझे दोहों की मात्रात्मक जानकारी देकर लिखने के लिए प्रेरित किया। मुझे इस संग्रह के लिए भी उन्होंने ही प्रेरित किया। इस विधा पर मेरी पकड़ मजबूत करने में श्री चेतन जी दुबे अनिल जी का विशेष योगदान रहा । वे हर वक़्त किसी भी विधा की जानकारी देने के लिए तैयार रहते हैं। इसके अलावा श्री त्रिलोक सिंह जी ठकुरेला ने इस संग्रह को प्रकाशित करवाने में विशेष सहयोग दिया ।इनके सहयोग के बिना ये सब संभव नही था। मैं इन सभी सुधीजनों का तहे दिल से शुक्रिया प्रकट करती हूँ।

मैं उन सभी दोस्तों का भी शुक्रिया अदा करती हूं जिन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मुझे इस संग्रह को आप सब के सम्मुख लाने की प्रेरणा दी । यह संग्रह मेरे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मैं एक आम- सी नौकरी पेशा औरत हूं जिसका ज्यादातर वक्त घर-परिवार तथा नौकरी में पिस कर रह जाता है ।इसी भागदौड़ की जिंदगी से कुछ वक्त चुराकर मैंने लेखन कार्य किया। बहुत बार निराश भी हुई कि मैं उतना नही लिख पा रही जितना लिखना चाहती हूं लेकिन उस वक्त मेरे गजल गुरु मरहूम जनाब अनीस तांडवी साहिब ने मुझे प्रेरित किया और कहा कि "बेशक धीमे-धीमे ही चलो मुझे मगर रुकना मत"।परिणाम स्वरूप आप सभी 'सुधियों की देहरी पर' मेरा प्रथम दोहा संग्रह समीक्षार्थ प्रस्तुत है।मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सब का स्नेह और आशीर्वाद मिलेगा और साथ ही मुझे किसी और विधा पर अगली किताब लाने की प्रेरणा मिलेगी ।

तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
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Flap matter

सबसे पहले तो मैं तारकेश्वरी यादव 'सुधि' को हृदय से बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ कि वो अपने दोहा संग्रह 'सुधियों की देहरी पर' के माध्यम से हिंदी साहित्य जगत में बाक़ायदा तौर पर दस्तक देने जा रही हैं।उनसे फ़ेसबुक पर मेरा परिचय 2-3 साल से है और लगभग नियमित रूप से उनकी पोस्ट पढ़ता रहता हूँ।वैसे तो गीत,ग़ज़ल,दोहे,कुंडलिया आदि अनेक विधाओं में उनका दख़्ल है लेकिन उन्होंने सबसे पहले अपना दोहा संग्रह मंज़रेआम पर लाने का इरादा किया है इससे स्पष्ट है कि भक्तिकाल के कवियों और उस समय की प्रमुख विधा दोहे से वो विशेष रूप से प्रभावित हैं।

तारकेश्वरी तरु 'सुधि 'जी ने एक स्त्री और गृहिणी के अतिरिक्त एक शिक्षिका के रूप में भी समाज की विसंगतियों को देखा है जिसका प्रमाण उनका यह दोहा है-----

नारी की इन्द्री छठी, भगवन का वरदान।
नज़र-नज़र के फ़र्क़ का,उसको होता भान।।

ऐसे ही अनेक दोहे उनके संग्रह में आपको मिलेंगे जिससे उनकी निरीक्षण क्षमता और नारी मन की व्यथा की अकुलाहट नज़र आएगी।

मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि तारकेश्वरी तरु 'सुधि' जी की लेखनी इसी प्रकार चलती रहे और भविष्य में विभिन्न विधाओं की अपनी अनेक कृतियों से वो हिंदी साहित्य भंडार में वृद्धि करें।

नेक ख़्वाहिशात के साथ
डा. हरि फ़ैज़ाबादी
लखनऊ
19 मार्च 2018 ईस्वी

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