बाल कविताएँ : सूर्यकुमार पाण्डेय

Baal Kavitayen : Suryakumar Pandey


अंकल जी

घर में आये खटर-पटर, दाढ़ी वाले अंकल जी। ऊँची एड़ी के जूते, क्या कहने हैं इनकी चाल? आँखों पर धूपी चश्मा, सिर पर लम्बे-लम्बे बाल। बातें करते गिटिर-पिटिर, बड़े निराले अंकल जी। फिल्म कौन-सी अच्छी है, बदल रही किसकी सरकार? कितने रन से टीम कौन-सी जीत रही है अबकी बार। पापा से बतियाते दिन भर बैठे-ठाले अंकल जी।

अपना देश

गर्मी का मौसम जब आए, सूरज रंग-गुलाल लुटाए। वर्षा में बादल पिचकारी- बनकर हमें भिगोता जाए। जाड़ों में कुहरे के उजले- कपड़े लाता अपना देश। हर मौसम में होली का त्योहार मनाता अपना देश। गंगा की लहरों-सा चंचल, दृढ़ विन्ध्याचल-सा ठहरा। तन हिमगिरि से भी ऊँचा है, मन सागर से भी गहरा। केसर की क्यारी-सा हर पल- गन्ध लुटाता अपना देश। कहीं डांडिया, गरबा, गिद्दा, कत्थक और भरत-नाट्यम। बिरहा कहीं, कहीं पर चैता, कहीं मृदंग, ढोल ढम-ढम। फागुन आते ही मस्ती में- तान लगाता अपना देश। खेत और खलिहानों में, हर पल इठलाता अपना देश। कितना प्यारा देश हमारा, हँसता-गाता अपना देश।

आँधी आयी

भागो भाई, भागो भाई, आँधी आयी, आँधी आयी! गर्द-भरी गलियाँ, चौरस्ते, राही भूल गये हैं रस्ते। फँसे बीच में हम सब बच्चे, उड़ीं किताबें, लुढ़के बस्ते। छज्जे पर जा अटकी टाई। आँधी आयी, आँधी आयी! इक्का लेकर भागा घोड़ा, कोचवान को पीछे छोड़ा। आसमान में उठे बगूले, बिछड़ गया चिड़िया का जोड़ा। धूल-भरी बदली है छायी। आँधी आयी, आँधी आयी! भैंस तुड़ाकर भागी खूँटा, ग्वाले का मटका भी फूटा। छड़ी गिर पड़ी दादा जी की, दादी जी का चश्मा टूटा। कहीं न कुछ देता दिखलाई। आँधी आयी, आँधी आयी!

आ गये बादल

लगे झींगुर बजाने वॉयलिन, लो आ गये बादल। छतों पर गिर रहीं बूँदें कि जैसे थाप तबलों की, कि होता तिनक-ता-ता धिन गगन में छा गये बादल। छमाछम बरसता पानी कि जैसे खनकती पायल, फुहारों से भरे हैं दिन सभी को भा गये बादल। लगे हैं राग में गाने सभी तालाब के मेढक, भरे संगीत से पल-छिन हमें बतला गये बादल।

आया अन्धड़

आया अंधड़, आया अंधड़, हड़बड़-हड़बड़, आया अंधड़। गिरी डालियाँ, उड़ते पत्ते, उड़ती टोपी, कपड़े-लत्ते। उड़ते बरतन तड़बड़-तड़बड़, आया अंधड़, आया अंधड़। गिरी केतली, ढक्कन भागा, उल्टा इक्का, लुढ़का ताँगा। धम्म-धड़म-धड़, खड़बड़-खड़बड़, आया अंधड़, आया अंधड़। छप्पर-झुग्गी, महल-दुमहले, आँधी से सबके दिल दहले। धूल भरी, सब गड़बड़-गड़बड़, आया अंधड़, आया अंधड़।

एक पान का पत्ता

एक पान का पत्ता, जा पहुँचा कलकत्ता। पकड़े अपना मत्था, मिला वहाँ पर कत्था। आगे मिली सुपारी, सबने की तैयारी। पहुँचे फिर सब पूना, लगा वहाँ पर चूना।

काका-काकी ने देखी हॉकी

हम भी देखेंगे अब हॉकी, घर से निकले काका-काकी। लेकर संग में चाय, मिठाई, हलवा, पूरी और मलाई, कपड़े पहने खाकी-खाकी, संग में नौकर चला बुलाकी। हुआ भीड़ में धक्कम-धक्का, घुसकर बैठे कक्की-कक्का, हम देखेंगे पहले हॉकी, सब करते थे ताका-झाँकी। एक अगाड़ी, एक पिछाड़ी, दौड़ रहे थे सभी खिलाड़ी, गेंद संग चलती थी हॉकी, दिखा रहे थे सब चालाकी। हुआ गोल तब उछले काका, छुटे पटाखे, धूम-धड़ाका, आँख मूँदकर बैठीं काकी, मारे डर गिर पड़ा बुलाकी। रुका खेल मध्यान्तर आया, नौकर से जलपान मँगाया, खाते-पीते काका-काकी, चीज़ न कोई छोड़ी बाक़ी। मैच हो गया ड्रा, इठलाते, लौटे काका, हँसते-गाते, ख़ुश थे काकी और बुलाकी, बड़े मज़े की होती हॉकी।

काला धुआँ

काला धुआँ काला धुआँ गगन में फैला खाँस रही है चील, साँस नहीं मछली ले पाती हुई विषैली झील। मारे शोर, हो गया बहरा वन का राजा शेर, भरा हुआ है जंगल में कूड़े-कचरे का ढेर। जंगल बना रेत की बस्ती भटक रहा है ऊँट, हरियाली अब नहीं कहीं भी पेड़ हो गये ठूँठ। गीदड़, भालू, चीता सबको तरह-तरह के रोग, जंगल में मंगल कैसे हो परेशान सब लोग। हाथी जैसा मस्त जानवर दीख रहा है पस्त, पर्यावरण प्रदूषण से है जंगल सारा ध्वस्त। इस मुश्किल पर सब पशुओं ने मिलकर किया विचार, रखें स्वच्छ पर्यावरण सभी अब बात हुई स्वीकार। नया छिड़ा अभियान, सफ़ाई का यूँ ताबड़-तोड़, डरकर पर्यावरण-प्रदूषण भागा जंगल छोड़।

किसने क्या बोला

बछड़ा बोला गाय से- दूध नहीं पीना मुझको, काम चलेगा चाय से। बिल्ली बोली शेर से- ठीक समय पहुँचो स्कूल, क्यों आते हो देर से? बंदर बोला भेड़ से- मामा अगर कहा मुझको, कूद पडूँगा पेड़ से। हाथी बोला ऊँट से- प्यास बुझाऊँ मैं कैसे, पानी के दो घूँट से।

कौन

रंग-बिरंगे चित्र बनाये मैंने अपनी कॉपी में, लेकिन तितली के पंखों पर सुन्दर चित्र बनाता कौन? नीली स्याही से मैंने दावात भरी यह नन्हीं-सी, लेकिन सागर में पानी नील-नीला भर जाता कौन? मम्मी ने पहनाये मुझको साफ़-धुले उजले कपड़े, लेकिन आसमान को, बादल के कपड़े पहनाता कौन? पापा आते हैं स्कूटर से अंकल पैदल आ जाते लेकिन सुबह-सुबह गाड़ी से सूरज को पहुँचाता कौन? सुन अलार्म मम्मी उठती हैं दीदी रोज़ जगाने पर, लेकिन नन्हीं गौरैया को आकर सुबह जगाता कौन?

गाँधी जी

अगर आज गाँधी जी होते! क़दम-क़दम पर झूठ देखकर, जाति-धर्म की फूट देखकर, नहीं एक पल भी वो सोते। अगर आज गाँधी जी होते! युद्ध अशान्ति, देश में झगड़े, हिंसा, रंगभेद के लफ़ड़े, देख-देखकर नयन भिगोते। अगर आज गाँधी जी होते! बम, बन्दूक़, छुरे की भाषा, उग्रवाद का देख तमाशा, सत्य-न्याय के बिरवे बोते। अगर आज गाँधी जी होते! सत्याग्रह, अनशन के द्वारा, करते वे कल्याण हमारा, एक सूत्र में हमें पिरोते। अगर आज गाँधी जी होते!

गीदड़ की शामत

काम न धन्धा कुछ जंगल में, रोटी कैसे खाए, गीदड़ चला शहर को, शायद रोज़गार पा जाए । सोच रहा था खड़ा किनारे, घुसूँ किस तरह अन्दर, तभी दिखाई दिया शहर से वापस आता बन्दर । गीदड़ बोला, “बन्दर भाई ! कितना माल कमाया, मुझको भी कुछ काम मिलेगा, यही सोचकर आया ।" बन्दर बोला, “शहर न जाओ, वरना पछताओगे, काम न ठेंगा वहाँ मिलेगा, भूखों मर जाओगे । सुना नहीं क्या, बुरे हाल, चल रही उधर मन्दी है । और शहर की हर फ़ैक्टरी में अब तालाबन्दी है ।" गीदड़ भाई ! शामत जिसकी आई, गया शहर को, मेरी मानो, लौट चलो तुम भी संग वापस घर को ।”

गुड फ़्राइडे और ईस्टर सण्डे

ईसा प्रेम, शान्ति, करुणा के हैं ईश्वर अवतार । इसीलिए ईसामसीह को सब करते हैं प्यार । गुड फ़्राइडे को था सलीब पर उन्हें गया लटकाया, इसीलिए बलिदान - दिवस यह यीशु का कहलाया । ईसा के जो अनुयायी, वे ईसाई कहलाते, करने को प्रार्थना सभी इस दिन गिरजाघर जाते । तीन दिनों के बाद जी उठे, यीशु नेक थे बन्दे, यह दिन एक फ़ेस्टिवल जिसको कहते ईस्टर - सण्डे !

चाँद

देखो कितना गोरा चाँद, आसमान का छोरा चाँद। भीड़ जुट गई है तारों की, जैसे एक ढिंढोरा चाँद। भरा चाँदनी के शरबत से, चाँदी जड़ा कटोरा चाँद। सारी दुनिया सोने लगती, लाता नींद-झकोरा चाँद। करता नभ में ड्रामा चाँद, हम बच्चों का मामा चाँद। कभी दीखता दुबला-पतला, बन जाता फिर मामा चाँद। किरणों वाली शर्ट पहनता, बादल का पाजामा चाँद। चुपके से मुस्काता, करता, नहीं कभी हंगामा चाँद।

चिड़िया-सी धूप

सुबह खिली बढ़िया-सी धूप। आयी बैठी दरवज़्ज़े पर, उछली, पहुँच गयी छज्जे पर, यह नन्हीं चिड़िया-सी धूप। पल में आ जाती धरती पर, पल में हो जाती छू-मन्तर, जादू की पुड़िया-सी धूप। लुढ़क रही कमरे के अन्दर, बैठी मस्ती से बिस्तर पर, यह गुड्डा-गुड़िया-सी धूप। कमरे से आँगन में आकर, भाग गयी खिड़की से बाहर, ऐसी हड़बड़िया-सी धूप। पीला रंग पेट में भरकर, फूट गयी धरती पर गिरकर, मिट्टी की हँड़िया-सी धूप। दीवारों के श्याम-पटों पर, जाने क्या लिखती है आकर, मिट जाती खड़िया-सी धूप। पके आम-से गालों वाली, और पके-से बालों वाली, लगती है बुढ़िया-सी धूप।

चिड़िया कैसे गाएगी

अगर प्रदूषण यूँ ही फैला ऐसी मुश्किल आएगी, पेड़ न होंगे, फूल न पत्ती चिड़िया कैसे गाएगी? अगर प्रदूषण यूँ ही फैला ऐसी मुश्किल आएगी, नदी न होगी, नाले होंगे मछली भी मर जाएगी। अगर प्रदूषण यूँ ही फैला ऐसी मुश्किल आएगी, हवा न होगी, धुआँ रहेगा साँस-साँस घुट जाएगी। अगर प्रदूषण यूँ ही फैला ऐसी मुश्किल आएगी, शान्ति न होगी, शोर मिलेगा सब पर आफ़त छाएगी। अगर प्रदूषण यूँ ही फैला ऐसी मुश्किल आएगी, अगर प्रदूषण यूँ ही फैला ऐसी मुश्किल आएगी, सब रोगी होंगे, यह दुनिया तब पागल हो जाएगी। इसीलिए संकल्प हमारा जिसको सदा निभाएँगे, इस धरती को हम सब लोग प्रदूषण-मुक्त बनाएँगे।

छूटा छक्का

भीड़-भड़क्का धक्कम-धक्का, क्रिकेट खेलने पहुँचे कक्का। छक्का-चौका चौका-छक्का, हुए बेचारे हक्का-बक्का। पीकर मट्ठा खाकर मक्का ‘मैं खेलूँगा’ -बोले कक्का। जैसे एक खिलाड़ी पक्का, चले अकड़ते ऐसे कक्का। गेंद लगी हो गए मुनक्का, चौका भूले छूटा छक्का!

जाड़े की विदाई

जाड़े की हो गई विदाई गरमी का स्वागत है, भाई ! सूरज अफ़सर बहुत कड़ा है लगता है, गुस्सैल बड़ा है । इसीलिए तो छोड़ गए हैं अपनी - अपनी सभी नौकरी । स्वेटर, मफ़लर, कोट, रजाई, जाड़े की हो गई विदाई । छुट्टी अपनी सभी बिताकर पंखा आया फिर ड्‍यूटी पर, हवा ज़रा नाराज हो गई फिर भी गरमी अच्छी लगती । गरमी आम खरबूजे लाई, जाड़े की हो गई विदाई । लू ने अपना काम सम्भाला ऐसा कुछ जादू कर डाला, पानी जाकर कहीं छुप गया धरती हुई सूखकर काँटा । बेचारी पर आफ़त आई, जाड़े की हो गई विदाई ।

जाड़े की विदाई का गीत

चलते-चलते जाड़ा बोला-- मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा! सुबह शाम तुम मेरे डर से, नहीं निकल पाते थे घर से। तनिक न डरना, जी भर करना, सैर-सपाटा। मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा! पापा सदा टोक देते थे, भैया तुम्हें रोक देते थे। गये कहीं जब, मम्मी ने तब, तुमको डाँटा। मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा! अगले साल लौट जाऊँगा, स्वेटर-कोट साथ लाऊँगा। जी भर दूँगा, फिर कर दूँगा, पूरा घाटा। मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा!

दाँत

घने किसी के, दूर किसी के, होते कुछ के छोटे दाँत, कुछ के पतले, कुछ के चौड़े और किसी के मोटे दाँत। तरह-तरह के आड़े-तिरछे, जाने कैसे-कैसे दाँत, फिर भी साफ़ सदा रखते जो उनके मोती-जैसे दाँत। है पूरी बत्तीसी ग़ायब, दादाजी के नक़ली दाँत, दाँतों-तले दबाते ऊँगली, होती जब अचरज की बात। दाँत गड़ाना जिसने चाहा, झटपट हुए इकट्ठे दाँत, छुड़ा दिये छक्के वीरों ने, अब दुश्मन के खट्टे दाँत। हाथी के मुँह में जमते हैं सच में, बड़े निराले दाँत, खाने के हैं अलग, अलग इनके दिखलाने वाले दाँत। ग़ुस्से में जब हवलदार ने कसकर अपने पीसे दाँत, दाँत दिखाकर माफ़ी माँगी, पकड़ी गयी चोर की जात। एक-एक कर डब्बू जी के, टूटे सभी दूध के दाँत, टेढ़े निकलेंगे या सीधे, परेशान रहते दिन-रात।

दाढ़ी

उनकी दाढ़ी उजली-उजली इनकी दाढ़ी है काली, जिसकी दाढ़ी में तिनका हो वह दाढ़ी चोरों वाली। यह दाढ़ी है मुल्ला जी की यह दाढ़ी है क़ाज़ी की, दाढ़ी सन्त विनोबा की यह यह दाढ़ी नेता जी की। दाढ़ी अब्राहम लिंकन की यह दाढ़ी है लेनिन की, दाढ़ी यह कवि गुरु रवीन्द्र की विश्व-ख्याति फैली जिनकी। यह सन्ता सिंह की दाढ़ी है यह दाढ़ी है बाग़ी की, साधु और सन्तों की दाढ़ी यह दाढ़ी बैरागी की। तरह-तरह की दाढ़ी वाले बालों की ढेरी दाढ़ी, यह बकरे की दाढ़ी देखो बच्चो, यह मेरी दाढ़ी।

दो बन्दर

एक पेड़ की डाली पर रहते दो प्यारे बन्दर दोनों में याराना था मिलना, आना-जाना था उसी पेड़ का फल खाकर ज़िन्दा थे दोनों बन्दर मगर तभी आँधी आई काली धूल वहाँ छाई दोनों छिपने को भागे यह पीछे था, वह आगे यह मन्दिर में जा बैठा वह भी मस्जिद में पैठा आँधी जब हो गई ख़तम धूल हो गई थोड़ी कम दोनों तब वापस आए लेकिन थे मुँह लटकाए एक दूसरे से नाराज़ जैसे खा जाएँगे आज यारी उनकी टूट गई और डाल भी छूट गई एक गया मस्जिद में फिर गया दूसरा भी मन्दिर जिसका अब तक फल खाया उस डाली को बिसराया मन्दिर-मस्जिद दूर नहीं पर मिलना मंजूर नहीं अगर कभी मिल भी जाते एक दूजे पर खिसियाते कौन इन्हें समझाए अब जैसा ईश्वर, वैसा रब मन्दिर-मस्जिद जुदा नहीं नहीं राम, तो ख़ुदा नहीं ।

नये साल की प्रार्थना

घर-घर आया है नया साल, खुशियाँ लाया है नया साल। इस नये साल में हे ईश्वर! तुम देना मुझको ऐसा वर, मैं बन जाऊँ ज्यों कम्प्यूटर, हल करूँ फ़टाफ़ट हर सवाल। इस नये साल में हे प्रभुवर! तुम देना मुझको ऐसा स्वर, मैं बनूँ एक नामी सिंगर, हो मधुर कंठ, सुर-राग-ताल। इस नये साल में हे ईश्वर! तुम देना मुझको ऐसा घर, जिसमें मिठाइयाँ हों जी भर, हों पकवानों से भरे थाल। इस नये साल में हे प्रभुवर! तुम देना मुझको नन्हें पर, मैं उड़ूँ हवाओं में दिन-भर, फिर चहकूँ-फुदकूँ डाल-डाल।

नहीं डाँटें

बात जब हो नहीं सही, डाँटें, देखें ग़लती जहाँ, वहीं डाँटें। घर में आये हों दोस्त जब मेरे, कम-से-कम आप तब नहीं डाँटें। राह चलते, दुकान पर, घर में, है न अच्छा कि हर कहीं डाँटें। आप के बाद मैं हुआ पैदा, ग़लती मुझसे हुई यही, डाँटें। ग़लतियाँ आप भी तो करते हैं, मुझसे भी हो रहीं, नहीं डाँटें।

नाक

कुछ की लम्बी, कुछ की छोटी, कुछ की होती चौड़ी नाक। कुछ की मोटी, कुछ की पतली, कुछ की दिखे पकौड़ी नाक। तोताराम नाम है जिनका, उनकी चोंच सरीखी नाक। बच्चे सारे शोर मचाते, जब भी उनको दीखी नाक। जो पढ़ने में पीछे रहते, उनकी होती नीची नाक। डर लगता है सूँड़ बनेगी, अगर किसी ने खींची नाक। करती रहती है जासूसी, पकवानों की, घर में नाक। काम बड़ा हो जिसका, उसकी ऊँची दुनिया भर में नाक। जिसने जिसकी इज़्ज़त रख ली, उसने उसकी रक्खी नाक। नहीं बैठने देती पल को, अपने ऊपर मक्खी नाक। सदा नाक की सीध चल रहे, देखो इसकी सीधी नाक। जब सोते तब बजने लगती, खर्राटे की दीदी नाक।

नेता चूहेनाथ

सर पर टोपी, छड़ी हाथ में, दस चमचों के साथ, वादे करते, वोट माँगते नेता चूहेनाथ। चिल्लाई जंगल की जनता-- बात कीजिए नोट, चूहे जी झूठे वादों से नहीं मिलेंगे वोट!

पोथी-पत्रा लेकर

लम्बा तिलक लगाकर माथे बैठे पण्डित घासीराम, बिना दक्षिणा पाए इनका कभी नहीं चल सकता काम । छप्पन झ्ञ्च तोन्द का घेरा, गुब्बारे से फूले गाल, हाथी जैसे झूमा करते, गैण्डे की है इनकी खाल । पोथी-पत्रा लेकर अपना शाम - सवेरे जाते घाट, चौकी ऊपर जोहा करते अपने जजमानों की बाट । मूरख चेलों को फुसलाकर लेते धन, पाते आनन्द, दही - मलाई, चाट -मिठाई इनको आते बहुत पसन्द ।

बन जाएगा तू नेता

बिल्ला बोला-- 'सुन री बिल्ली, मैं तो चला आज ही दिल्ली!' बिल्ली बोली-- 'वहाँ न जा, बन जाएगा तू नेता।' म्याऊँ-म्याऊँ छोड़ेगा, भाषण देने दौड़ेगा। फिर मंत्री-वंत्री बनकर, तू जाएगा दौरे पर। सौ-सौ चूहे खाएगा, मेरी नाक कटाएगा। तू घूमेगा चारों ओर, मैं तो हो जाऊँगी बोर!

बस्ते में

कॉपी, पेंसिल और किताबें धरे हुए हैं बस्ते में, टाई, मोनोग्राम, जुराबें भरे हुए हैं बस्ते में। रबर, कटर, रूलर, प्रोजेक्टर धरे हुए हैं बस्ते में, ग्रीटिंग कार्ड्स, फ्रेंड्स के लेटर भरे हुए हैं बस्ते में। कॉमिक, फ़ोटो, रफ़ कॉपी भी रखी हुई हैं बस्ते में, लंच-बॉक्स, बिस्कुट टॉफी भी रखी हुई हैं बस्ते में। अगड़म - बगड़म - सगड़म दुनिया भर है मेरे बस्ते में, सच पूछो तो एक, अजायबघर है मेरे बस्ते में। रोज़ लादकर इस बस्ते को मैं विद्यालय जाता हूँ, होमवर्क लादे कन्धे पर वापस घर को आता हूँ।

बादल जी

नेताओं-सा रूप बदलते बादल जी, सदा क़ाफ़िले में ही चलते बादल जी। जय-जयकार कर रहे मेढक स्वागत में, हैं जुलूस के संग निकलते बादल जी। दुखी देख धरती को आँसू टपकाते, आँखों में भर नीर टहलते बादल जी। आसमान में गरज-तरज कर चिल्लाते, भाषण देते हुए उछलते बादल जी। बिजली, पानी और हवा को संग लाते, तन में मस्ती भरे मचलते बादल जी। दल के दल आते हैं, कीचड़ भर जाते, हर मौसम में सबको छलते बादल जी।

बाल

कुछ के उजले, कुछ के भूरे, कुछ के होते काले बाल, कुछ के सँवरे, कुछ के बिगड़े, कुछ के हैं घुँघराले बाल। बाल-बाल बच गये फिसलकर, मोटी तोंद मुछन्दर लाल, चोट नहीं लग पायी सिर में, बचा ले गये उनको बाल। नहीं धूप में मिली सफ़ेदी, अनुभव वाले मुन्नू लाल, ढूँढ़ लिया करते झटपट हल, हों पेंचीदा लाख सवाल। बाल बिखेरे कल्लू आया, बाल बढ़ाए गिरधर लाल, बाल न बाँका होने पाये, उनको बता रहे हैं बाल। नहीं बाल की खाल निकालो, बनो न कभी नाक के बाल, बूढ़े-बड़े यही बतलाते, रहते इनसे दूर बवाल। सिर पर चाँद नज़र आती है, साफ़ हो गये सारे बाल, अगर सभी गंजे पैदा हों, नाई हो जाएँ बेहाल। बिना बाल की हो यदि दुनिया, जूँ का मिट जाए जंजाल, तेल और कंघी की छुट्टी, अगर न हों बिलकुल ही बाल।

बुड्ढा गुड्डा

था पहले यह कितना छोटा, हट्टा-कट्टा-मोटा - मोटा। मगर हो गया अब बुड्ढा, मेरी इस गुड़िया का गुड्डा। दाँत गिर गए मुँह से सारे, काँप रहा सरदी के मारे। चाँदी जैसे बाल हो गए, पिचके-पिचके गाल हो गए। हरदम बैठा ही रहता है, मेरी गुड़िया से कहता है। चलो चटपटी चीज बनाओ, सुंदर-सा पकवान खिलाओ। काम न करता इक्का-दुक्का, गुड़-गुड़ पीता रहता हुक्का। बुड्ढा - गुड्डा, गुड्डा - बुड्ढा।

बैठी है गर्मी

सूरज बाबा के कन्धों पर, बैठी है गर्मी। कहती- बाबा, मुझे घुमाओ, शिमला-नैनीताल दिखाओ! भर गिलास लस्सी पिलवाओ, कुल्फी आइसक्रीम खिलाओ! वरना परेशान कर दूँगी, लू-लपटों से घर भर दूँगी। लाख मनाते बाबा, लेकिन ऐंठी है गर्मी। बाबा कहते- बिटिया रानी, ठीक नहीं इतनी मनमानी! जितना चाहो पी लो पानी, लेकिन अब छोड़ो शैतानी! मत इतनी इतराओ-ऐंठो, पंखे के नीचे जा बैठो। बात मान बाबा की घर में पैठी है गर्मी।

बोर हो रहा हूँ मैं घर में

बोर हो रहा हूँ मैं घर में, बोर हो रहा हूँ मैं घर में! पापा चले गए हैं दफ़्तर, मम्मी गयीं सहेली के घर। दीदी-भैया स्कूल गये हैं, बोर हो रहा हूँ मैं घर में। गपशप है दादा की ख़ूबी, दादी जी पूजा में डूबीं। सब ही मुझको भूल गये हैं, बोर हो रहा हूँ मैं घर में। हे भगवान, करो कुछ ऐसा, मुझे बना दो अंकल जैसा। मैं भी घूमूँ नये शहर में, बोर हो रहा हूँ मैं घर में।

महँगाई के दौर में

दाना लेने चिड़िया निकली, महँगाई के दौर में। घर का राशन ख़त्म हो गया खाना बहुत ज़रूरी है, पेट पालना है बच्चों का यह कैसी मजबूरी है? जिस दुकान पर भी वह जाती, चीज़ें सही नहीं मिल पातीं, घोर मिलावट सब कुछ नक़ली, महँगाई के दौर में। लम्बी लाइन देख-देखकर हिम्मत टूट गयी उसकी, थैली और अठन्नी दाबे, वह तब चुपके से खिसकी। सोच रही किस दर को जाऊँ, सस्ते में राशन ले आऊँ, मुश्किल में, है हालत पतली, महँगाई के दौर में।

मामा जी की दाढ़ी

कौए से भी ज़्यादा काली स्याही से भी गाढ़ी है, गालों को ढककर बैठी यह मामा जी की दाढ़ी है। आधे उजले, आधे काले बाल हो गये हैं खिचड़ी, बे-तरतीब घने जंगल-सी उगी हुई यह बहुत बड़ी। सीधी-उलटी, दायें-बायें कुछ तिरछी कुछ आड़ी है। जब भी गोदी में चढ़ता मैं यह मुझको छू जाती है, तब गुदगुदी बहुत मचती है हँसी नहीं रुक पाती है। सच मानो, यह दाढ़ी लगती ज्यों काँटों की झाड़ी है।

मुझको बतलाओ

कीचड़ क्यों होता गन्दा ठप्प क्यों लाला का धन्धा भीख माँगता क्यों अन्धा अम्मा मुझको बतलाओ । बढ़ते क्यों चीज़ों के भाव क्यों होते अनशन-घेराव क्यों न ताड़ के नीचे छाँव अम्मा मुझको बतलाओ । हुआ दाल में क्यों काला ब्लैक कर रहा क्यों लाला मकड़ी क्यों बुनती जाला अम्मा मुझको बतलाओ । धरती पर कितना पानी क्यों बुड्ढी मेरी नानी कहाँ गए रजा - रानी अम्मा मुझको बतलाओ । क्यों होते नौ दो ग्यारह कैसे होते पौ-बारह चिड़ियाँ करती क्यों चह - चह अम्मा मुझको बतलाओ ।

मैं तितली हूँ

मैं उड़ी इधर, मैं उड़ी उधर, मैं तितली हूँ, उड़ती दिन-भर। हर फूल मुझे रंगीन लगा हर डाली मुझको प्यारी है, जब भी मैं यहाँ-वहाँ उड़ती तब संग-संग हँसती क्यारी है। मैं उड़ी कल्पना के नभ में-- अपने सतरंगे पंखों पर। मैं यहाँ गयी, मैं वहाँ गयी लेकर पराग घर आयी हूँ, मैं सबको अच्छी लगती हूँ मैं सबके मन को भायी हूँ। मैं सुन्दर सपने देख रही-- इन पंखुड़ियों के बिस्तर पर।

मोटे सेठ

जमकर बैठे मोटे सेठ थल्लम-थल्लम इनका पेट। सौदा लेने वालों का, पैसा एक न छोड़ रहे। चमड़ी से बढ़कर दमड़ी, कौड़ी-कौड़ी जोड़ रहे। ऊँचे हरदम रहते हैं, इनकी सब चीज़ों के रेट। पैसा लाला का ईश्वर, पैसा ही इनका साथी। बन्द तिजोरी में सब कुछ, फिर भी नींद नहीं आती। लटका करती धरती तक खनन-खनन-खन इनकी टेंट। हाथी-जैसे मोटे सेठ, थल्लम-थल्लम इनका पेट।

रात

लगती बड़ी निराली रात, कौवे जैसी काली रात। दूध नहीं डाला जिसमें, एक चाय की प्याली रात। झींगुर साज बजाते हैं, गाती जब कव्वाली रात। फल की तरह लदे तारे, है बरगद की डाली रात। दीये जले जिसमें ढेरों, पूजा वाली थाली रात। सोने की पुड़िया रखती, खेल-तमाशों वाली रात।

रामदीन

पैरों में टूटी चप्पल है और अँगोछा कन्धे पर, रामदीन निकला है घर से सुबह सवेरे धन्धे पर। शाम तलक दस-बीस रुपैया मज़दूरी से पाएगा, बीवी-बच्चों संग मिल-जुलकर रोटी-चटनी खाएगा। जो सुख मिलता रामदीन को मेहनत-भरी मजूरी में, कहाँ मज़ा वह बड़ों-बड़ों की हलवा-सब्ज़ी-पूरी में!

रावण का नाम मिटेगा

रावण हर साल जला है, रावण हर साल जलेगा। यह रावण महँगाई का, यह रावण दंगाई का। रावण भ्रष्टाचारों का, झूठी क़समों, नारों का। इसने हर साल छला है, ऐसे कब तक छलेगा? यह रावण उत्पातों का, राजा काली रातों का। यह साथी दुःख-दुविधा का, यह दुश्मन सुख-सुविधा का। यह पापों का पुतला है, थोड़े दिन राज चलेगा। तब कोई राम उठेगा, सच का झंडा फहरेगा। सच से फिर झूठ पिटेगा, रावण का नाम मिटेगा। युग-युग से यही चला है, रावण फिर हाथ मलेगा।

रूप धूप के

आकर बैठी दरवाजे पर, उछली, पहुँच गई छज्जे पर वह नन्ही चिड़िया-सी धूप। पल में आ जाती धरती पर, पल में हो जाती छूमंतर जादू की पुड़िया-सी धूप। लुढ़क रही कमरे के अंदर, बैठी मस्ती से बिस्तर पर जापानी गुड़िया-सी धूप। पके आम से गालों वाली, और सुनहरे बालों वाली लगती है बुढ़िया-सी धूप।

लू

सनन-सनन चलती है लू, सबको ही खलती है लू। तेज़ हवा की शैतानी, सूरज की ग़लती है लू। मूँग सभी की छाती पर गर्मी में दलती है लू। लाल कोयले-सी हर पल, भट्ठी में जलती है लू। पेड़-मकानों के तन पर, गरम धूल मलती है लू। गर्मी से पलती है लू, सबको ही छलती है लू।

विकलांग बच्चों के गीत

नयी राह पर चलने वाले, खुली हवा में पलने वाले, अच्छे बच्चे हम! हम हैं किससे कम! बोलो, हम हैं किससे कम! पाँव नहीं, लेकिन अपने पैरों हम खड़े हुए, हर मुश्किल आसान बनाकर इतने बड़े हुए। आगे बढे क़दम। हम हैं किससे कम बोलो, हम हैं किससे कम! हाथ नहीं, पर हम लिख सकते एक नयी गाथा, जिसके आगे बड़ों-बड़ों का झुक जाए माथा। बाँहों में वह दम। हम हैं किससे कम बोलो, हम हैं किससे कम! हमें कुरूप समझने वालो, क्या यह नहीं पता, मन की सुन्दरता होती है सच्ची सुन्दरता। तोड़ें सभी भरम। हम हैं किससे कम बोलो, हम हैं किससे कम!

शोर

जिधर देखिए, उधर शोर है, आज इसी का ज़ोर-शोर है। सड़कों पर वाहन का शोर, मिल में है इंजन का शोर। भीड़-भाड़ जन-जन का शोर, शोर मचा है चारों ओर। नहीं दीखता ओर-छोर है। जिधर देखिए, उधर शोर है। बना शोर सबका सरताज, हुआ हवा पर इसका राज। ऐसी गिरी शोर की गाज, इससे बढ़ा प्रदूषण आज। शहर-नगर हर कहीं ज़ोर है, जिधर देखिए, उधर शोर है। चाहें रखें कान पर हाथ, शोर छोड़ता मगर न साथ। चाहें दिन हो, चाहें रात, दिशा-दिशा में इसकी बात। शोर-शराबा पोर-पोर है, जिधर देखिए, उधर शोर है।

सबके अपने-अपने गुण हैं

हँसी उड़ाओ मत लम्बू की लम्बा है तो इससे क्या! भले देखने में बिजली का खम्भा है तो इससे क्या! हँसी उड़ाओ मत छोटू की छोटा है तो इससे क्या! लम्बाई का उसके तन में टोटा है उससे क्या! हँसी उड़ाओ मत मोटू की मोटा है तो इससे क्या! अधिक हेल्थ का उसके हिस्से कोटा है इससे क्या! हँसी उड़ाओ मत पतलू की पतला है तो इससे क्या! सींक-सलाई के जंगल से निकला है तो इससे क्या! लम्बू-छोटू-मोटू-पतलू सब अपने सहपाठी हैं, सबके अपने-अपने गुण हैं भले अलग क़द-काठी हैं।

समय-रथ के ध्वजा वाहक

पीड़ितों की पीर के हम पक्षधर अग्निपथ के अंध अनुगामी रहे। राजसत्ता की रखी कब कामना हम सदा प्रतिपक्ष के हामी रहे। जो किया, जब भी किया, मन से किया चाटुकारी पंक्तियां गाईं नहीं। वंचितों के पाहरू बनकर रहे दोमुंहों की नीतियां भाईं नहीं। चीख गई, स्वर नहीं पंचम रखा बैठ सुविधा-डाल पर कूके नहीं। आरतों का कष्ट हरने के लिए स्पष्ट कहने से कभी चूके नहीं। आंख में सपना सवेरों का भरा पांव में भर दर्द छाला हम चले। चांदनी को चुटकियों भर धूप दी सूर्य का लेकर उजाला हम चले। एक दीपक की अकेली राह के ये अंधेरे शत्रु सब नाहक बने। वर्तिका बाली उजालों की तरह हम समय-रथ के ध्वजा वाहक बने।

स्कूल खुले

हम बच्चे फिर से मिले-जुले, स्कूल खुले, स्कूल खुले । कक्षाएँ फिर से शुरू हुईं, बस्तों से कॉपी निकल गई, मुझको भी थोड़ा-सा पढ़ लो, पुस्तक की तबियत मचल गई । अब व्यर्थ नहीं बातें करनी, हर शब्द रहेंगे नपे-तुले, स्कूल खुले, स्कूल खुले । अब खेल-कूद की बात छोड़, मेहनत से पाठ पढ़ेंगे हम, हम नई हवा के नए फूल, लेकर नवगन्ध बढ़ेंगे हम । मन अपना स्वच्छ बनाएँगे, कपड़े पहनेंगे साफ़ - धुले, स्कूल खुले, स्कूल खुले ।

हम उसको दोस्त बनाएँगे

हो जिसको प्यार किताबों से जो अव्वल आए पढ़ने में, जो सही राह दिखलाता हो औरों को आगे बढ़ने में। हम उससे हाथ मिलाएँगे। हम उसको दोस्त बनाएँगे। जो ख़ुश रहता हो उन्नति से ईर्ष्या न कभी पाले मन में, जो सुख में भी संग-संग रहे और साथ निभाए मुश्किल में। हम उस पर जान लुटाएँगे हम उसको दोस्त बनाएँगे। अच्छे लोगों की सोहबत हो हो नहीं नशे की लत कोई, झंझट-झगड़ों से दूर रहे हो नहीं बुरी आदत कोई। हम उसको ही अपनाएँगे। हम उसको दोस्त बनाएँगे। फ़ालतू न हों खरचे जिसके ऊँचा विचार, जीवन सादा, जो सबको आदर देता हो जो करे नहीं झूठा वादा। हम उसका साथ निभाएँगे। हम उसको दोस्त बनाएँगे।

हालत ख़स्ता

टीचर जी, ओ टीचर जी हालत मेरी ख़स्ता है केजी-टू में पढ़ती हूँ टू केजी का बस्ता है। चलूँ सड़क पर, रिक्शावाला मुझे देखकर हँसता है, एक सवारी और लाद लो ताने मुझ पर कसता है। बोझ किताबों का कम करिए बड़ी दूर का रस्ता है, नन्हें फूलों पर क्यों रक्खा यह भारी गुलदस्ता है? टीचर जी, ओ टीचर जी हालत मेरी ख़स्ता है।

होते जब भी दंगे फसाद

होते जब भी दंगे - फसाद बढ़ता है जब आतंकवाद उभाद करे जब घोर नाद गांधी आते हैं बहुत याद । घिरता है जब घनघोर तिमिर चिन्ता के बादल जाते घिर है राह कोई सूझती न फिर जब हिंसक हो उठते विवाद गांधी आते हैं बहुत याद । जब संकट के पर्वत टूटे अपने ही अपनों को लूटे जब बढ़ते ही जाएँ झूठे करता असत्य जब जब निनाद गांधी आते हैं बहुत याद ।

एक अजूबा

मैंने एक अजूबा कल, देखा अपने सपने में, सौ चूहे खा मस्त-मगन, बिल्ली माला जपने में। चींटी के पर उग आए थे, मिली हवा में उड़ती, मछली देखी मैंने, जो पेड़ों के ऊपर चढ़ती। हुआ जुकाम मेंढकी को था, मेंढक गप्प लड़ाता, चींपो-चींपो गधा सभी को, अपने गीत सुनाता। रंगे सियार कई देखे थे, इधर-उधर इतराते, गीदड़ देखे, जो उलटे भागे शहरों को जाते। शेर और बकरी पीते थे, एक घाट पर पानी, और लोमड़ी के मुंह में अंगूर मिले लासानी। ऊंट न जाने किस करवट बैठे, हम जान न पाए, नींद खुल गई, हम यह सच सपना है, मान न पाए।

देश हमारा

देश हमारा, हमको प्यारा, यह अपनी आँखों का तारा। इसकी आन नहीं जा सकती, हम बच्चे इसके रखवाले। अंधकार में नयी रोशनी- ला सकते, हम हिम्मत वाले। नहीं किसी से भी हम डरते, विपदाओं से खेला करते, हम आगे बढ़ते जाएँगे, एक हमारा, अपना नारा। हम भारत के वीर- बाँकुरे, नन्हे बच्चे, मन के सच्चे। नहीं किसी को दुःख पहुँचाते, काम सभी हम करते अच्छे। हम घर भर के चाँद- सितारे, सबके प्यारे, राज दुलारे, अच्छे- सच्चे काम करेंगे, अमर रहेगा देश हमारा।

पतंग

नीली-पीली-लाल पतंग, उड़ी हवा की चाल पतंग। आसमान में, कितनी दूर, अपनी मस्ती में भरपूर; बढ़ती जाती इसकी डोर, उड़ती चली चाँद की ओर। देख हो रहे हैं सब दंग। नीली-पीली-लाल पतंग। इसकी कितनी तेज उड़ान, उड़ जाती यह नन्ही जान। आसमान है इसकी राह, क्या कहने, इसके उत्साह! मन में अपने भरे उमंग, उड़ी हवा की चाल पतंग। बल खाती, इठलाती खूब, इसके संग न होती ऊब। बच्चों से करती है प्यार, उड़ती है बादल के पार। आओ खेलें इसके संग, नीली-पीली-लाल पतंग।

कंघी

छोटी-सी कंघी है, रंग- बिरंगी है। छोटे-छोटे दाँत हैं, रखते हम साथ हैं। झाड़ती ये बाल है, करती कमाल है। जूँ की दुश्मन है, रूसी से अनबन है। शीशे से यारी है, हम सबको प्यारी है। सबकी ही साथी है, सबकी ही संगी है। छोटी-सी कंघी है, रंग-बिरंगी है।

बादल आए

नाव बनाएँ, हम तैराएँ, ताली ठोकें, मौज मनाएँ। बादल आए, बादल आए। पानी बरसा टपटप-टप, चलो नहाएँ छपछप-छप। लड्डू खाएँ गपगप-गप। छाता-रेनकोट हम लाएँ, बादल आए, बादल आए। बूँदें गिरतीं छमछम-छम, बिजली चमकी चमचम-चम। ढोल बजाएँ ढमढम-ढम। झूला डालें, पींग बढ़ाएँ, बादल आए, बादल आए।

बनाना है तो

बनाना है तो चाँद बनें, शीतलता बिखरा दें हम। बनाना है तो पवन बनें, घर घर मस्ती ला दें हम। बनाना है तो धूप बनें, सबमें गरमाहट भर दें। बनाना है तो मेघ बनें, धरती पर बारिश कर दें। बनाना है तो फूल बनें, सभी ओर खुशबू बिखरे। बनाना है तो रूप बनें, जो हर रोज नया निखरे। अगर चाहते हैं दुनिया में, हम भी बड़े-महान बनें। उसकी पहली शर्त यही है, हम अच्छे इंसान बनें।

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