बाल कविताएँ : भूपेश प्रताप सिंह

Baal Kavitayen : Bhupesh Pratap Singh


मुस्काती कलियाँ कहती हैं

मुस्काती कलियाँ कहती हैं तुम भी रोज सुबह मुस्काओ, छिपे हुए तुममें जितने गुण उन्हें लुटाकर खुश हो जाओ। अलग- अलग हैं रंग तुम्हारे अलग- अलग हैं ठौर तुम्हारे, मिलकर ऐसे खिलो संग में तुमको यह संसार निहारे। दुख के काँटों से पीड़ा सह बिना शिकायत के मुस्काओ, भेद-भाव के बिना सभी को प्रेम-भाव का दान लुटाओ। सोचो मैं अधखिली कली हूँ मैं खुशबू से खूब भरी हूँ, भौंरे मुझको गीत सुनाते तितली के पर मन को भाते । चाहे जितनी शक्ति भरी हो चाहे रूप सुहावन जितने, गुण के बिना न आदर होगा दिन में कभी न देखो सपने।

ऐसी वर्षा फिर फिर आए

आसमान में आए बादल घुमड़-घुमड़कर छाए बादल ढम -ढम ढोल बजाए बादल झम -झम करके बरसे बादल। सूखी धरती हरी हो गई लगती जैसे दरी बिछ गई घास मखमली झूम- झूमकर कहती अब मैं परी हो गई। उचक- उचककर मेढक गाते निकल ताल से घर तक आते दरवाज़े पर राग सुनाते बच्चों के मन को अति भाते। सारे सूखे लाल भर गए ताल खेत मिल एक हो गए सूरज दादा आसमान में कई दिनों तक ढँके रह गए। झम -झम झम -झम पानी गिरता पत्तों से छन -छन कर झरता धरती माता के आँचल को बूँदों की मोती से भरता। खेतों में फ़सलें लहराती हर पल गीत खुशी के गाती ऐसी वर्षा फिर -फिर आए सबको खुशियों से भर जाए।

अपने बल से बढ़ने वाला

रोज़ सबेरे सूरज आता सोने जैसी किरणें लाता खुश हो धरती पर फैलाता जो सोए हैं उन्हें जागता l खगकुल गीत खुशी के गाता सुनकर हर प्राणी सुख पाता दिन भर दान लुटाने वाला ऐसा दिनकर सबको भाता। आसमान में चंदा आता सुंदर धवल चाँदनी लाता धरती पर जितने भी पौधे खुश हो सबको खूब सजाता l थके हुए सोए प्राणी की हर थकान को हर ले जाता सब पर नेह लुटाने वाला ऐसा हिमकर सबको भाता। आसमान में अनगिन तारे सब दिखते हैं न्यारे-न्यारे पूरी रात चमकते रहते लगते हैं ये कितने प्यारे ! जब असंख्य तारे थक जाते तब भी जो तारा मुसकाता जग को राह दिखाने वाला ऐसा तारा ध्रुव कहलाता। अलग-अलग गुण सबके प्यारे सूरज चंदा तारे न्यारे कभी ताप से धरती जलती कभी शीत-सी सरदी लगती l अगणित तारे टिम -टिम करते जैसे नभ में दीपक जलते अपने बल से बढ़ने वाला ऐसा जीवन सबको भाता।

खुशबू खूब लुटाते फूल

अलग-अलग रंगों में खिलकर, मन को बहुत रिझाते फूल। संग हवा के झूमा करते, खुशबू खूब लुटाते फूल।। काँटों के संग जीवन जीते, फिर भी कभी न रोते फूल। सूरज की किरणों को पीकर, सुबह-शाम मुस्काते फूल।। माली की माला में गुँथकर, शोभा बहुत बढ़ाते फूल। तितली के पंखों को रँगकर, बहुत अधिक खुश होते फूल।। भौंरों की गुनगुन को सुनकर, मीठा रस भर लेते फूल। मधुमक्खी जब भी आती है, दान मधुर रस करते फूल।। महक बाँटते रंगों वाले लगते बहुत मनोहर फूल। धूप -छाँव -वर्षा सब सहते, करते नहीं शिकायत फूल।। वैर भाव जीवन में त्यागो, साथ रहो जैसे हैं फूल। प्रेम भाव से जीना सीखो, सबको सदा सिखाते फूल।।

नदियाँ सबको समझाती हैं

कल -कल करती नदियाँ बहतीं अपने मन की कहती जातीं कंकड़- पत्थर से टकराकर हर पीड़ा को सहती रहतीं। फिर भी सबका हित करने को रात और दिन बढ़ती रहतीं। पर्वत की गोंदी से चलकर सागर में मिलने जाती हैं। पर इससे पहले धरती पर हरा- भरा सोना बोती हैं। प्यारी फ़सलें झूम- झूमकर नदियों का यश गाती रहतीं चादर जैसे घास बिछी है मखमल जैसी कोमल लगती। जीव -जंतु पानी पीते हैं खुश होकर घासों को चरते। हर दिन खूब चहकती चिड़ियाँ बच्चे खुश हो खेला करते। ऐसी अपनी नदी सुहावन ऊपर से नीचे बहती है। हम भी परहित जीना सीखें रात- दिवस यह समझती है।

रंग- बिरंगे हैं गुब्बारे

रंग- बिरंगे हैं गुब्बारे मन को लगते कितने प्यारे! एक डोर से बँधे हुए हैं मुझे दिख रहे सबसे न्यारे! बुला रहा गुब्बारे वाला इन्हें खरीदो घर ले जाओ जन्मदिवस पर खूब सजाओ गाना गाओ मौज़ मनाओ। इनका तन बेहद कोमल है कहीं रगड़ न लगने पाए डोर पकड़ कर खूब सँभालो गलत जगह न उड़ने पाएँ। हवा भरी है इनके अंदर उसी सहारे उड़ते रहते अपने अंदर ताकत भर लो सबको यही सिखाते रहते। रूप-रंग चाहे सुंदर हो चाहे जितनी चमक भरी हो बल के बिना नहीं चल सकते सबको यही बताते रहते।

चलता ऊँट

ठुमक-ठुमककर चलता ऊँट पहने बिन कनपुरिया बूट। जब गरमी से तपती रेत सूखी फसलें सूखें खेत। तब भी चलता रहता ऊँट बल बल बल बल करता ऊँट। मटक मटककर चलता ऊँट बोझा ढोता रहता ऊँट। टप टप टप टप बहे पसीना फिर भी कभी न थकता ऊँट। ऊबड़-खाबड इसकी पीठ बोली कभी न होती मीठ। नाक में इसकी पड़ी नकेल कर सकता न कोई खेल।

सूरज का गोला

लाल लाल गोला पूर्व से आया धीरे-धीरे पूरी धरती पर छाया। खिल उठी कलियाँ फुल मुस्काए श्याम वर्ण भँवरे मधुर गीत गाए शीतल समीर संग डाली लहराई भीनी-सी खुशबू से सबको नहलाई। माली के हाथों को फूल महकाए माला में गूँथ कर सबको सरसाए। बिना भेद-भाव प्यार सबको लुटाते जीवन हो कैसा ये हमको बताते।

हँसने लगता बचपन

मीठी-मीठी गोली जैसा मीठा मेरा बचपन अलग अलग रंगों के जैसा रंग-बिरंगा बचपन। खट्टी-मीठी यादों से है भरा हमारा बचपन हँसी-ठिठोली करते करते हँसने लगता बचपन। इन्द्रधनुष के रंगों -सा है सजा हमारा बचपन पता नहीं कब चुपके-चुपके बीता प्यारा बचपन। पर मेरे चेहरे पर हर पल खिला हुआ है बचपन साथी-संगी जब भी मिलते मिल जाता है बचपन। गीतों के संग आओ जी लेँ प्यारा-प्यारा बचपन गीतों की मीठी फुहार-सा है यह न्यारा बचपन। हँसते -गाते मौज मनाते आ जाता है बचपन चाहे जितना संकट आए चलो बचाएँ बचपन।

मन में पछताया खरगोश

हरे-भरे खेतों को देखा बहुत ज़ोर दौड़ा खरगोश। गरम ऊन का स्वेटर पहने उछल -उछल भागा खरगोश। भोलू के खेतों में जाकर गाजर खोद लिया खरगोश। उसे छुपा कर चुपके-चुपके अपने घर लाया खरगोश। घर घी चीनी दूध नहीं था मन में पछताया खरगोश। पंजों में पकड़े कुछ गाजर कुतर- कुतर खाया खरगोश। कुत्ते भौं- भौं लगे भौंकने बहुत जोर भागा खरगोश। जंगल में छुप प्राण बचाया चोरी छोड़ दिया खरगोश।

मेरी पुस्तक

रंग-बिरंगे चित्रों वाली कविता और कहानी वाली मोती जैसे अक्षर वाली हम सब पढ़ें बजाएँ ताली। पुस्तक में मुस्काते चेहरे जोर-जोर से हँसते चेहरे लड्डू -पेड़े लिए हाथ में बाँट रहे कुछ बहुत सवेरे। तोता मोर कबूतर बोलें हम सबमें मीठा रस घोलें शेर दहाड़े डर न लगता हिरन खड़ा होकर है सुनता। सबमें यहाँ प्रेम पलता है दुनिया का हर सुख दिखता है कितनी प्यारी मेरी पुस्तक! चित्रों वाली मेरी पुस्तक।

मोटे नाना

मोटे नाना गए बाज़ार ले कर आए भुट्टे चार। मार पालथी झट से बैठे कुछ अपनी ही धुन में ऐंठे। देख रहे सब उनके ठाट बैठ चुके जब ऊँची खाट। देह से थे वे हट्टे-कट्टे लगे चबाने कट-कट भुट्टे। दाँत गया नाना का टूट भुट्टा गया दाँत से छूट। नाना जी हो गए बेचारे टिंकू- पिंकू बने सहारे। नाना जी मन में पछ्ताते सदा अकेले हम क्यों खाते? बात समझ में सबको आई अब सब खाते बाँट मिठाई।

मेहनती चिड़िया

मैं चिड़िया अपने घर रहती खूब परिश्रम करती हूँ, सुबह-शाम अपने पंखों से, इधर-उधर मैं उड़ती हूँ। वर्षा ऋतु आने से पहले, अपना नीड़ बनाती हूँ, इसके लिए नहीं औरों से, कुछ भी माँगा करती हूँ। रूई, पत्ते, तिनके, धागे सरकंडे चुनती रहती , फँसा चोंच में हर धागे को खींच- खींच बुनती रहती। सर्दी, गर्मी, वर्षा ऋतु में बहुत चैन से रहती हूँ, बिना किसी को तंग किए मैं डाली-डाली फिरती हूँ। तुम भी मेहनत करना सीखो मन चाहा हर सुख पाओ, देख दूसरों के सुख साधन कभी न मन में पछताओ।

अच्छे -अच्छे काम करें

चन्दा दिखताआसमान में हर लेता है अँधियारा प्रेम भाव रखता है सबसे जग को देता उजियारा l धरती से कुछ भी न लेता हर पल वह मुस्काता है शीतलता देता है सबको गरमी दूर भगाता हैl जब भी आती रात अमावस तारे बहुत चमकते हैं छोटे -बड़े संग में मिलकर पूरी रात दमकते हैंl रात पूर्णिमा जब भी आती चन्दा बहुत सुहाता है पूरी रात चमकता चलता मन्द-मन्द मुसकाता हैl आओ प्यारे हम भी मिलकर अच्छे -अच्छे काम करें प्रेम भाव गुण जितने हममें सबको उनका दान करें।

मेरे हाथों पर आ जाओ

नन्हें फूलों की झालर- सी पूरी रात चमकते हो। जगमग- जगमग करते रहते मिलकर खूब दमकते हो। इतनी चमक कहाँ से पाते आसमान में क्या खाते? सूरज के उगने पर प्यारे चुपके से क्यों छिप जाते? मेरे हाथों पर आ जाओ मीठा खूब खिलाऊँगी संग तुम्हारे जाग-जागकर लोरी खूब सुनाऊँगी।

तितली

रंग बिरंगी तितली आई चंचल पंख हिलाती, उपवन में फूलों के ऊपर बैठ- बैठ इतराती। मुन्नू -मुनिया ने भी देखे नन्हें पंख निराले, हरे, गुलाबी, लाल, बैंगनी नीले, पीले,काले। चमकीले पंखों को छूने झुक- झुककर वे आये, सावधान हो चुपके- चुपके अपने हाथ बढ़ाये। तभी ज़ोर से मुन्नू छींका सुन मुन्नी चिल्लाई, भैया तुमने छींक मारकर तितली आज उड़ाई।

सूरज आया

बहुत सवेरे सूरज आया जो सोये थे उन्हें जगाया। कोयल बोली कुहू- कुहू मुर्गा बोला कुक्डू कूँ। हरे-सफेद कबूतर आये मिलकर बोले गुटुरू गूँ। अलग-अलग सब गाना गाये अपने मन की बात बतायेl

चलो उपवन सजाएँ

चलो आज पौधों से उपवन सजाएँ उन्हें देख कर हम सभी मुस्कुराएँ। हवा जो प्रदूषित हुई जा रही है उसे स्वच्छ करने का वीणा उठाएँ। बढेंगे ये पौधे बनेंगे ये तरुवर छाया घनेरी तभी मिल सकेगी। बैठेंगे पंछी शाखों पे इनकी कलरव से बगिया चहकती रहेगी। फूलों की खुशबू हवा में मिलेगी साँसों में सबकी सहज ही घुलेगी। हाथों को अपने हिलाएँगे तरुवर मेघों को फ़ौरन बुलाएँगे तरुवर। आएँगे फिर वे गरजकर चमककर धरती पे बारिश भी होगी झमाझम। नवल वस्त्र धारे चमन मुस्कराए उसे देख कर फिर गगन गीत गाए।

सीखो

उपवन फूलों का संसार पौधे इस पर कई हज़ार। रूप रंग गुण गन्ध अलग हैं पर रहते सब सदा संग हैं। चम्पा बेला जुही चमेली उपवन में खिलती अलबेली। हरसिंगार मालती खिलती फूलों से हर डाली सजती। पुष्पों पर मधुमास महकता गुंजन करता मधुप विहँसता मधुमक्खी आकर रस पीती मिला रसों को शहद बनाती। श्रमजीवी बन जीवन जीती कभी न हारी हर पल जीती। मानव! तुम भी यह सब सीखो मेहनत करके जीना सीखो।

आसमान से गिरती ओस

आसमान से गिरती है जब झलमल- झलमल दिखती ओस ठंडी हल्की हवा चले जब पत्तों पर तब हिलती ओस। चंपा जूही और चमेली सबको ही नहलाती ओस। घासों पर चाँदी- सी दिखती जैसे टूटी जाली ओस। सुबह शाम सबको ठिठुराती फसलें बहुत भिगोती ओस। सूरज आते ही डर जाती उसे देख उड़ जाती ओस।

तितली रानी

हवा बही डाली लहराई कली खिली तितली मुस्काई। पंख मार वह उड़ती आई खिले फूल पर बैठी जाई। फूलों ने पराग लिपटाया पंखों को फिर खूब सजाया। रंग- बिरंगे पंखों वाली तितली फिरती बन कर रानी। मुनिया उसे पकड़ने जाती पर वह दूर देश उड़ जाती। कभी-कभी उपवन में आती फूलों के सब रस पी जाती।

गर्मी आई गर्मी आई

गर्मी आई गर्मी आई सूरज ने भी आँख दिखाई। धरती जली हवा गरमाई बहा पसीना तर-तर भाई। प्यासी चिड़िया चीं-चीं करती कोशिश करने पर न उड़ती। दौड़ी-दौड़ी मुनिया आई रोटी का एक टुकड़ा लाई। संग में लाई मीठा पानी उसे पी गई चिड़िया रानी। अब उसमें कुछ फुर्ती आई उड़ डाली पर बैठी जाई।

बेच रहा हूँ मैं गुब्बारे

बेच रहा हूँ मैं गुब्बारे रंग- बिरंगे प्यारे-प्यारे। फूलों से ये रंग समेटे मंद- मंद मुस्काते प्यारे। लाल हरे बैंगनी बसंती पीले-पीले नीले- नीले। झूम -झूमकर जब ये उछलें इन्हें देख खुश होते सारे। इन्हें खरीदो घर ले जाओ खेल -खेलकर खुशियोँ पाओ।

जब मुर्गे ने बाँग लगाई

जब मुर्गे ने बाँग लगाई जागे दादा मम्मी भाई। दौड़ी -दौड़ी रिंकी आई कसकर खींची फटी रजाई। चर्र- चर्र आवाज़ हुई जब मम्मी ने तब डाँट लगाई। ऊँइ-ऊँइ कर रिंकी रोई दादी ने दी उसे मिठाई। तब चिंकी ने भी ज़िद ठानी उसने भी कर ली मनमानी। दादाजी की जेब टटोली उसमें थी कुछ मीठी गोली। चिंकी -रिंकी खुशी गईं दादा-दादी मगन हो गए। मुर्गे ने फिर बाँग लगाई सबके मन में खुशियाँ छाईं।

शहद का छत्ता

भैया देखो शहद का छत्ता मटका सा यह लटक रहा है। किसने इसको कसकर बाँधा ज़रा भी न यह लचक रहा है। भन भन भन करके मधुमक्खी इसके ऊपर टहल रही है। मेरा मन करता मैं जल्दी कंकड़ मार उड़ा दूँ सबको। छत्ते को मैं नोच उतारूँ हाथों से सब शहद निकालूँ। अरे नहीं ऐसा मत बोलो बड़ी बात को मन में तोलो । अपने घर जैसा इनका घर करो नहीं तुम इनको बेघर। चलो चलें अब हम अपने घर नज़र न रखें मधुमक्खी पर। अपने घर जैसा सबका घर ऐसा ही हम सोचें हरदम।

बादल

आसमान में छाए बादल कुछ काले कुछ भूरे बादल। रूप बदलते रहते अपना जैसे दिखा रहे हों सपना। कभी तो लगते हैं पहाड़-से कभी जानवर-से दिखते हैं। एक समय ऐसा भी आया जब सूरज पर बादल छाया। कुछ बूँदें धरती पर आईं महक उठी पूरी अमराई । मोर के मन को बहुत सुहाया पंख फुलाया नाच दिखाया । बहती हवा रुक गई सहसा इसे देखकर बादल चहका । गड़-गड़ -गड़ -गड़ लगा गरजने झम -झम करके लगा बरसने । मैं भागा अपने घर आया यह सब देख बहुत सुख पाया।

सूरज दादा

आँखें मलता भोलू बोला माँ देखो सूरज का गोला। सिंदूरों से भरा हुआ है रूप अनोखा धरा हुआ है। अगर हवा तेज़ी से आए तो यह सब ऊपर उड़ जाए। फिर तो सूरज पछताएगा कभी नहीं जल्दी आएगा। बेटा ऐसा कभी न बोलो सदा दूसरों का हित सोचो। फूट रहीं किरणें चमकीली लंबी और सलोनी पीली। कोयल गाती गीत सुरीली सुनकर धरती हुई रसीली। रंग-बिरंगे फूल खिल रहे उड़ पराग चहुँ ओर घुल रहे। भौरों में मादकता छाई तितली के भी मन को भायी। अब मैं भी उपवन जाऊँगा आकर फिर पढ़ने जाऊँगा। बेटा ये सूरज दादा हैं हम सबके प्रकाश दाता हैं। पहले इनको शीश झुकाओ मन चाहा वर इनसे पाओ।

अच्छे -अच्छे काम करें

चन्दा दिखताआसमान में हर लेता है अँधियारा प्रेम भाव रखता है सबसे जग को देता उजियारा l धरती से कुछ भी न लेता हर पल वह मुस्काता है शीतलता देता है सबको गरमी दूर भगाता हैl जब भी आती रात अमावस तारे बहुत चमकते हैं छोटे -बड़े संग में मिलकर पूरी रात दमकते हैं l रात पूर्णिमा जब भी आती चन्दा बहुत सुहाता है पूरी रात चमकता चलता मन्द-मन्द मुसकाता हैl आओ प्यारे हम भी मिलकर अच्छे -अच्छे काम करें प्रेम भाव गुण जितने हममें सबको उनका दान करें l

अभिलाषा

चंदा की मैं बनूँ चाँदनी तेज़ बनूँ मैं सूरज का दर्पणजैसे ओस बिंदु- सा सबका निर्मल हृदय बनूँ। सोते शिशुओं के कानों में भौंरे की गुनगुन गाऊँ अधर फरकते हैं जो रुक- रुक उन पर मधुरिम लेप करूँ। सरिता की कलकल बन जाऊँ सुना सकूँ संगीत मधुर दुख में सुखी बने हर प्राणी मैं ऐसा संसार रचूँ। बन ऊँची तरंग सागर की अपना करतब दिखलाऊँ सागर से मोती निकाल कर चौड़े तट पर बिखराऊँ। हार चुके जो अपना जीवन मैं उनकी चेतना बनूँ हरूँ वेदना उनके मन की जीवन में आनंद भरूँ।

सजीली धरती

देखा आज सजीली धरती आसमान ने छाता ताना सूरज ने गर्मी फैलाई माथे से बह चला पसीना। नदी झील झरने सब आए धौले-धौले पाँव धुलाए आए पेड़ बाँह फैलाए झूम-झूम कर हवा बहाए। संध्या समय चंद्रमा आया तारक झालर से चमकाया वस्त्र देख धरती मुसकाई साड़ी श्वेत चाँदनी लाई। इसे पहनकर धरती फिरती झलमल बूँदें स्वागत करतीं भीगी लिपट गई साड़ी में काँपी देखी आसमान में। फिर से पूरब लाल हो रहा सूरज अब सिंदूर दे रहा छाता अब भी तना हुआ था उसमें सूरज सजा हुआ था। गर्मी थी जिसने फैलाई उसने धरती खूब सजाई दुख-सुख अपनों से होता है ऐसा ही जीवन होता है।

जब भी मुझको आती छींक

जब भी मुझको आती छींक मुझको बहुत सताती छींक। जब ज़ुकाम मुझको हो जाता तब भी आती रहती छींक। बहती रहती नाक हमारी बीच- बीच में आती छींक। गर्मी में जब धूप सताती रुक रुककर तब आती छींक। ठंडी हवा लगे जब मुझको बहुत जोर से आती छींक। पास सभी जब बैठे रहते फौवारा बन आती छींक। मुझे डाँटने लगते हैं सब तुम क्यों यहाँ रही हो छींक ? अब इसमें मेरी क्या गलती क्या मैनें स्वयं बुलाई छींक। सर्दी में कुल्फ़ी मत खाना मुझको यही सिखाती छींक। दादी माँ अब तुम्हीं बताओ अब मैं कैसे रोकूँ छींक। मेरी पोती गुड़िया रानी नहीं रुकेगी ऐसी छींक। सही समय पर काम करो साफ़ सभी आराम करो। अगर आज से ऐसा कर लो तो रुक जाएगी यह छींक।

मेरे प्यारे चंदा मामा

मेरे प्यारे चंदा मामा आसमान से जल्दी आओ आज छन रही गरम जलेबी इसे दूध से छक कर खाओ। चटपटे गोल गप्पे भी हैं पास रखा इमली पानी इसे देखकर भी न आते मुझको होती हैरानी। गोल -गोल पक रही कचौड़ी खुशी के मारे नाच रही गरम तेल में कलकल करती देखो तुम्हें पुकार रही। भीड़ यहाँ बढ़ रही अचानक अगर देर से आओगे मेरे कोशिश करने पर भी ललचाते रह जाओगे। सुनो भांजे मेरे प्यारे काम नहीं सकता मैं छोड़ अगर अभी मैं आ जाऊँ तो सूरज देगा कान मरोड़। आज पूर्णिमा का दिन है मैं पल भर नहीं उतर सकता पंद्रह दिन के बाद अमावस पर ही यह सब खा सकता।

मेढक जागे

बिजली चमकी बादल गरजे सोते मेढक डरकर जागे। कुछ पीले थे कुछ थे भूरे कुछ थे हरे और मटमैले। रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे इसे देख मेढक खूब हरषे। टर्र-टर्र कर शोर मचाए अपने मन का गाना गाए। भूरी घटा हो गई काली जैसे आबनूस की डाली। और जोर से बरसा पानी झमझम -झमझम बरसा पानी। मेढक निकले तालाबों से पहुँचे घर के दरवाज़े तक। बच्चों ने तब शोर मचाया सबने मिलकर गाना गाया।

अब मैं जाऊँगा स्कूल

दादा घर में ऊब गया हूँ अब मैं जाऊँगा स्कूल। अगर नहीं पढ़ने जाऊँगा मैं जाऊँगा सब कुछ भूल। मुझको एक किताब मँगा दो बड़े -बड़े हों जिसमें अक्षर। रंग-बिरंगे चित्र बने हों बुलबुल तोता मोर छपे हों। हरा भरा जंगल उसमें हो जिसमें हर पल ही मंगल हो। टहल रहे हों हिरन उछलते बारहसिंगा दिखे टहलते। उसमें रहे सरोवर सुंदर भरा रहे निर्मल जल अंदर। सुंदर कमल खिला हो उसमें हंस तैरता हरदम जिसमें। हाथी उसमें रोज नहाए उसे देखकर मन हर्षाये। मेरे पोते अब सो जाओ कल बाज़ार में जाऊँगा। सुंदर चित्रों वाली पुस्तक मैं खरीद कर लाऊँगा ।

उनसे हाथ मिलाना होगा

कहने भर से काम न होगा साथी कुछ करना होगा बन अधीर जो बैठे रहते उनको डग भरना होगा। कृषक बीज खेतों में बो कर नहीं चैन से सोता है साँझ -सँकारे दोपहरी में कभी रात में जगता है। द्विपद और चौपायों से वह करता रहता रखवाली श्रम के जल से सींचा करता तब भरता सब की थाली। पौधों पर बाली लहराते डाली पर लहराते फूल इन्हें निरख कर खुशबू पा कर उर किसान का जाता फूल जो करते हैं सदा परिश्रम रखते ध्यान समय अनुकूल जीवन में आगे बढ़ने हित उनसे हाथ मिलाना होगा। मई-जून में गरमी लगती बदन ठिठुरता सर्दी माह वर्षा में अति कीचड़ होता बैठे रहते छत की छाँह । कादर मन के जो स्वामी हैं सदा बहाना करते हैं कामचोर बन भूखे बैठे आहें भरते रहते हैं । उनके जीवन का प्रतिक्षण मुट्ठी से फिसला जाता है हँसी उड़ाता है समाज वे कभी नहीं यश पाते हैं । मूल्य समय का जो पहचाने बढ़े सहर्ष कर्म पथ जान हुए पल्लवित पुष्पित वे पा गए धरा का चिर वरदान। निज पौरुष-साहस के बल पर रखते नियति महल की नींव कर्मवीर के स्वप्न पूर्ण हित उनसे हाथ मिलाना होगा।

बीती रात हुआ उजियारा

बीती रात हुआ उजियारा जाग उठा प्यारा जग सारा। पूरब में कुछ लाली छाई हवा बही डाली हरषाई। कमल खिल गए तालाबों में मंजरियाँ फूल उठीं बागों में। श्वेत पीत कुछ लाल वर्ण-से चाँदी -से कुछ थे सुवर्ण-से। मादकता छा गई हवा में जगी चेतना हर प्राणी में। तोता टें -टें लगा चहकने शुरू किया अमरूद कुतरने। कोयल कूक उठी बागों में मिसरी घुली सात रागों में। बच्चो!अब तुम बिस्तर छोड़ो सूरज से भी नाता जोड़ो। जा कर टहलो तुम उपवन में खुशबू भर लो अपने मन में।

अगर न होते

अगर न सूरज तेज चमकता जल को भाप बनाता कौन? अगर भाप ठंडी न हो तो जल की बूँद बनाता कौन? अगर बरसते नहीं श्याम घन सबकी प्यास बुझाता कौन? अगर न होती धरती उर्वर अधिक अन्न उपजाता कौन? अगर नदी में जल न बहता हरियाली फैलाता कौन? अगर पेड़ -पौधे न होते हमें मधुर फल देता कौन? अगर न होते प्यारे पंछी मीठे गीत सुनाता कौन? अगर एक ही मौसम होता परिवर्तन दिखलाता कौन? अगर न पतझड़ होता वन में दुख के गीत सुनता कौन? अगर न आती ऋतु वसंत जग को सुगंध से भरता कौन? अगर न होते रंग धरा पर सबको यहाँ सजाता कौन? अगर न होते खेल- खिलौने सब का मन बहलाना कौन?

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