अंतिम पड़ाव : राजगोपाल
Antim Padaav : Rajagopal


हमारे अंगूरी स्मृतियों की बना कर लाया हूँ हाला कौन पियेगा उसे, लगता है खारा जल हर प्याला इस पड़ाव मे, हे ईश्वर तुम्हें उसका ही भोग लगेगा अब रह गया कैसा विकल्प, तुम ही कह दो मधुबाला प्यास तो आज भी शेष है, कहाँ मिलेगी पुरानी हाला एक बार छू जाये फिर तो नाचूंगा लेकर मधु का प्याला मैंने सारा जीवन समर्पित कर दिया है तुम्हें निस्संकोच किन्तु आज अर्थहीन सा हूँ तुम्हारे ही घर में मधुबाला मैं युगों से रसिक तुम्हारा, तुम ही हो मेरी हाला बहता है उर में जो बन कर नित रुधिर का प्याला कभी श्वासों में महकता था मधु-युग्म आशाओं का हम कभी रहते थे साथ इसी नीड़ में मेरी मधुबाला भाग्य गूँथ कर जब कल्पना में प्यार भर गयी शचिबाला बरसों के श्रम से भरा है मैंने, बूंद-बूंद वह मधु का प्याला सोचा था छाती पर उसे छलकाते जाएंगे महाप्रयाण पर पर क्यों टूट गयी वह प्याली असमय मेरी मधुबाला फिर भी समझौता कर जीवन से ढूँढता हूँ वही हाला जड़ क्रंदन से भरता हूँ मैं झूठे ही वह मधु का प्याला उसकी प्रतिमा पर अर्ध्य चढ़ा कर, उसे स्वयं ही पी लेता हूँ इन गीले आँखों से तुम बुझते चाँद सा दिखती हो मेरी मधुबाला प्रणय प्रेयसी ढूँढता घर से चला था मैं भोला-भाला नहीं था यहाँ कोई असमंजस में राह बतलाने वाला सभी कान फूँक गये मेरे पर तुम ही बसी रही आँखों मे सोचा था इन्ही आँखों में रह लेंगे निशांत तक मेरी मधुबाला लेकिन निर्वासित हुआ मैं, हाय! कितना समय बिता डाला मन कहता है दूर नहीं वह भाग्य, दोबारा है लौट कर आने वाला कभी लगता है बढ़ जाऊं तुम तक रौंद कर अपना स्वाभिमान पर मरी मछली सा लहरों पर थपेड़ें खाता रहता हूँ मधुबाला आप ही कहता हूँ, सुनता हूँ, वह थी प्रणय प्रगल्भित बाला अनुभव करता हूँ मधु का वह कालातीत कल्पित प्याला पृथा पर उसे देखता हूँ भाग्य रेखाओं से खेलती कामायनी आज हवा भी नापता चलता हूँ, कहीं तो मिलेगी मेरी मधुबाला कुछ खट्टा कुछ मीठा जीवन का रस जब बन जाए हाला लेकिन रक्त रंजित होते हैं अधर छू कर मधु का टूटा प्याला मन निर्लज्ज, निर्वासित होकर भी भागता है क्यों उसके पीछे मृगतृष्णा में मरेगा यहीं, न मिलेगी दोबारा वही मधुबाला जगती में चारों ओर छल-छल गिरती है प्यालों में हाला देख ऐसे रतिमय दृश्य आँखों में चुभते हैं मेरी रतिबाला कभी लगता है लौट जाऊं घर, अब चार कदम ही शेष रहे किन्तु अब लौट कर भी पा न सकूँगा तुम्हें मेरी मधुबाला भटके अधर इधर-उधर घर-बाहर, पर न चूम सके वैसी हाला मन टूट गया, उधर कर्कश ध्वनि से फूट गया मधु का प्याला पल भर में हाथ झटक तोड़ दिया उसने उर से उर का संबंध बरसों का साथ आज व्यर्थ लगा, तुम क्या समझोगी मधुबाला न बजी घंटी फिर मन मे, न चढ़ी कामायनी पर माला स्मृतियाँ हुई विक्षिप्त, काया-माया पर भी लग गया ताला भिखारी हुआ जीवन, भटकता प्रणय-दान की प्रत्याशा मे अजनबी हुये हम मधुशाला मे, कुछ सोचो तुम भी मधुबाला कितने संबंध मिटे, प्रणय पर कौन विकल यहाँ रोने वाला हमारे भी महल वीरान हुये, जहां झाँकता है अब यम काला पराया हुआ सुख, दूर से सुनता है बरसों की आह पुरानी जल जाऊंगा कल मैं,तिरस्कृत सा तुम्हारी आँखों में मधुबाला अब चाहे कितना भी सुख में डूबें चढ़ती नहीं है वह हाला दूर कहीं प्रणय किसी का खन-खन कर जाता है प्याला हर सूरत में दिखती है बरसों भीगी, उसी शरद की तपती तृष्णा जीवन में आगे कुछ भी हो आँखों में तुम ही हो मेरी मधुबाला ऋण चुका दूंगा तुम्हारा, सादर स्वीकार करो अर्ध्य का प्याला ढूंढ लेना कहीं छिपी है इसके अंदर प्रथम प्रणय की हाला मैं निशब्द चला जाऊंगा फिर न सुन सकोगी कभी मेरी आह अब तुमसे हाथ भर की दूरी भी क्षितिज लगती है मेरी मधुबाला उन्माद झूमता था वसंत में जब दिखती थी संध्या बाला उसे देखने चलते थे धूप में मीलों भूल कर पाँव का छाला पग-पग धर कर ही संसृति में हमारा भी एक संसार बना खड़ा हूँ बन प्रहरी टूटी मधुशाला का, खो गयी मेरी मधुबाला फेंक दिया देहरी पर कहकर विकृत प्रणय पुकारने वाला ठुकराया सभी ने सोचकर यह है पशु सा जीने वाला जगती में घूमता मैं देखता हूँ है कौन यहाँ सुखी मुझसा क्यों मेरी भावनाओं पर खड़ी मुसकुराती हो तुम मधुबाला विक्षिप्त सा घूम रहा हूँ आभास करता पर-प्रणय हाला निलज्ज जीवन ढूंढ ही लेता है कहीं कोई प्याला-निवाला दुख होता है कि कहीं खो गयी है अस्मिता उन संबंधो की कुरेदता हूँ जब इतिहास स्वयं का, चुभती हो तुम मेरी मधुबाला दिखती है आँखों में आज भी वही धधकती मादक ज्वाला लेकिन ठहरा आज मैं केवल स्मृतियों की राख़ बाँचने वाला कैसी है माया, मरीचिका सी लगती है आज मेरी ही मधुशाला मैं प्रणय पुकारता बैठा हूँ पर बधिर हुयी है मेरी मधुबाला हमने ही प्रणय की वारुणी मथ कर अंजलि मे डाला फिर उसका आचमन कर सर्वस्व तुम्हें समर्पित कर डाला तुम में ही जीवन भर रति, रंभा, और रागिनी देखा अब क्यों अहं पाले अस्पृश्य बैठी हो मेरी मधुबाला श्रम,संकट, संताप भुला कर, तुम्हारे गोद मे ही सुख पाला प्रयाण के अंतिम वसंत में हमने उसे फिर क्यों खो डाला अब व्यर्थ ही क्यों हम आँखें मीचे अनजान बने जीते हैं यह घर वही है जहां हम-तुम पलकें बिछाते थे मेरी मधुबाला छोटा सा है जीवन, न तोड़ो यह मधु का प्याला कर लें कम दूरी, भर लें अंजलि में फिर से वही हाला उम्र को पलट कर जी लें फिर वही भूला हुआ इतिहास है यही एक जीवन और एक ही हो तुम मेरी मधुबाला मन्मथ ने हाथों से सुमुखी तुम्हें कंचन में है ढाला फूलों पर बैठा कर फिर सारा विश्व दिखा डाला अब निष्ठुर बन उल्का सी न विलुप्त हो जाना कहीं मैं खड़ा हूँ क्षितिज निहारता तुम्हारे ही लिए मधुबाला इस विस्तार से भी आगे तुम ही सर्जना हो सुरबाला, सत्य यही है, कल तक समय नहीं ठहरने वाला, बाँच लो एक बार फिर तुम रेखायें मेरे पृथा की आज न लज्जित करो फिर अधरों को मेरी मधुबाला किन्तु आगे बढ़ कर फिर नहीं पुकारूँगा सुरबाला समझूँगा टूट गयी वह दशकों की मीठी मधुशाला जब भी मन करे लौट आना तुम वही राह पुरानी सजा लेंगे फिर प्यालों को हंस कर मेरी मधुबाला

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