ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा (ग़ज़ल) : दुष्यन्त कुमार


ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उसके बारे में वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं,ऐसा हुआ होगा यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं ख़ुदा जाने वहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा (ग़ज़ल-संग्रह 'साये में धूप' में से)

  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण काव्य रचनाएँ : दुष्यंत कुमार
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)