विविध रचनाएँ : अनीता वर्मा

Vividh Rachnayen : Anita Verma


लेख

मैं आपको अपने प्रिय त्योहार का नाम नहीं बताऊँगा हालाँकि यह मेरा प्रिय त्योहार है फिर भी मैं इसका नाम नहीं बताऊँगा लेकिन मैं आपको बताता हूँ इस दिन सुबह उठकर हम नए कपड़े पहनते हैं और मीठी सेवइयाँ खाते हैं शायद आपको पता चल रहा होगा कि मेरा प्रिय त्योहार क्या है फिर भी मैं इसका नाम नहीं लूँगा अगर आपको कठिनाई हो तो मैं बता दूँ कि उस दिन सुबह हम एक जगह इकट्ठे होते हैं अब तो आप जान ही गए होंगे कि मेरा प्रिय त्योहार कौन-सा है फिर भी अगर दिक़्क़त हो तो मैं बता दूँ कि उस दिन हमें ईदी भी मिलती है और अगर अब भी आपको समझ नहीं आया हो तो आप जान लें कि इसका नाम है ईद-उल-फ़ितर। यह एक बारह साल के बच्चे का निबंध है जो छठी कक्षा में पढ़ता है जिसका नाम है मुहम्मद फ़ुरक़ान उसके कोमल मन पर चुभी हुई हैं कितनी शहतीरें मुल्क की बदलती सोच से ख़ौफ़ज़दा वह जो बता रहा है दरअस्ल, उसे वह छिपाना चाहता है।

नौ दिसंबर

(हिंदी के समादृत कवि मंगलेश डबराल (1948-2020) की स्मृति में) अभी तुम्हें गए चंद साल ही हुए हैं कुछ भी नहीं बदला सिवाय उस हरी रोशनी के जो तुम्हारे नाम के आगे जलती थी वह समा गई है घास की सरसराहट में वहीं से बहता आता है राग दुर्गा का स्वर कई संगतकार तुम्हारा पता पूछते आते हैं हम कहते हैं तुम निकल गए हो पहाड़ों पर किसी कविता की खोज में या शायद माँ से मिलने गए हो जिनके हाथ की बनी रोटी तुमने वर्षों से नहीं खाई ली पाई के बग़ीचे की ओस भाप बनकर उड़ चुकी है और वह स्त्री तुम्हारे इंतज़ार में है जिसे तुम अपनी कविताओं में छोड़ गए थे गुजरात के मृतक के बयान पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई जाँच संस्थाएँ किन्हीं दूसरे कामों में मसरूफ़ हैं न्यायालयों में मज़लूमों की मुरझाई शक्लें घूमती हैं अब तक तो शायद तुमने ढूँढ़ लिए होंगे वे अजन्मे शब्द रोशनी की इबारत में लिख दी होगी वह कविता जिसकी प्रतीक्षा में बेचैन थी तुम्हारी आत्मा हालाँकि तुम कभी गए नहीं हमारे बीच से फिर भी सब याद करते हैं नौ दिसंबर की तारीख़।

मैंने देखा है

मैंने देखा है अपने देश का चेहरा सुंदर, बिखरा, बेतरतीब सरसों के पीले फूलों से दूर खिले हुए लाल पलाश के फूल सोनाझूरी के जंगल शांतिनिकेतन के पौष मेले में बाउल गीत गाते हुए छोटे बच्चे को देखा है देखे हैं प्यार करते हुए लोग चट्टानों पर एक-दूसरे के कंधे पर सिर टिकाए प्रेमियों के जोड़े मंदिरों में हाथ जोड़े बुदबुदाते लोग चर्च और मस्जिदों में इबादत में झुके हुए सिर देखे हैं किसानों की आँखों के गड्ढे परती पड़ी ज़मीन और क़र्ज़ का कारोबार उनकी आत्महत्या की कई कहानियाँ जाती हैं भूख से हुई मौत के भी कई सच हैं देखी है लोगों के बीच की बढ़ती हुई दूरी घृणा की पताका उठाए दहशत फैलाते चेहरे जिनके पैरों की छाप से रक्तरंजित है हमारी धरती अधिनायकों की हवस और ताक़तवरों की वहशत को देखा है एक बूँद आँसू किसी आँख से ढलकता है उसी में झिलमिलाता है हमारे सपनों का मुकम्मल चेहरा

जो कुछ है

अगर तुम समझते हो कि तुमने सब कुछ जान लिया है तो यह तुम्हारा भ्रम है उम्र अनुभव देती है, पड़ताल नहीं अभी तुमने जाना नहीं है चीज़ों को सही करना और गाँठों को खोलना रोशनी में नहाया हुआ चंद्रमा दरवाज़े पर दस्तक देता है और तुम्हारे कान उसे नहीं सुनते जीवन से दूर इसकी परछाइयाँ उतरती हैं नदी अपनी गहराई में गुम होती जाती है प्यार बीत जाता है ऋतुओं की तरह तुम्हें गुमान है कि सब ठीक है तुमने बदले नहीं हैं अपने रास्ते जीवन की पटरी सीधी चल रही है सारे साज़ो-सामान इकट्ठे हैं खाते-पीते सोते महफ़ूज़ हैं हम पता नहीं तुमने क्या सीखा है विचारों का एक पुलिंदा जिसकी बोरियाँ तुमने भर रखी हैं लगातार बोलते-बोलते सूख जाता है गला दूसरे पर हावी होने की कोशिश तुम्हें लगातार कमज़ोर करती है अभिमान और विवशता को छाती से लगाए एक दिन आ जाता है कूच करने का समय

मैं और वह

मेरा एक मैं रहता है इस दुनिया में लड़ता हुआ पराजित धूल झाड़ता सुबह साहस के साथ बिस्तर की तरह दिन समेटने को तैयार शाम ठंडे सूरज-सा निस्तेज रात के भीतर खोजता अपनी कठिन यात्रा के पड़ाव ठीक इसी के पीछे खड़ा है वह जो सबसे अच्छा अभिनेता है जो नदियों को पीता है पहाड़ों को गुम करता है पेड़ों से चुरा लेता है उनकी फुसफुसाहट जो जेब में भर लेता है हमारी ख़ुशी और पीसता चबाता रहता है समय को जिसका मनुष्यहीन इस समय से है गुपचुप समझौता जो बहस नहीं करता दलीलें नहीं देता करता नहीं विरोध डरपोक शातिर और कातर जिसने दुनिया को किया नहीं ख़ारिज काटे नहीं इसके पैसे वाले पैर जो हवा में झपटती चील की तरह काले हैं वह जो पीछे खड़ा है उसे किसी का इंतज़ार नहीं उसी के पीछे खड़ी हूँ मैं और मेरे पीछे फिर खड़ा है वह

हँसी

हँसी के पीछे उर्जा की छाया है जब तुम सच में हँसते हो तो निर्विचार होते हो अगर तुम अब भी कुछ सोच रहे हो तो तुम्हारा हँसना खोखला और कमज़ोर होगा हँसना एक सुंदर भूमिका है एक सच्चे हृदय के लिए एक बच्चे को देखो कितनी गहरी और मासूम है उसकी हँसी वह मुस्कुराकर समाज का हिस्सा बनता है एक प्राकृतिक और स्वाभाविक हिस्सा सच तो यह है कि यदि तुम हँस नहीं सकते तो तुम रो भी नहीं सकते सच्चे और ईमानदार कृत्य के दो भाग लाखों लोग हैं जिनकी आँखों का समुद्र सूख गया है उनकी आँखें खो चुकी हैं गहराई और नमी मरा हुआ व्यक्ति रो नहीं सकता जैसे कि वह हँस भी नहीं सकता आँसू और हँसी दो मौसम हैं जिनके होने से रुकी हुई है दुनिया जब दुःख बहुत बढ़ जाता है तो हँसी पैदा करनी पड़ती है सताया हुआ इंसान इससे अपने बचने की तरकीब ढूँढ़ता है इसीलिए हमारे पास सुंदर लतीफ़े हैं हँसी से भरे, सघन हँसता हुआ कुछ भी है हमारे पास यह बात दीगर है कि इन दिनों वह अक्सर रोता हुआ लगता है

मेरे शब्द

मैं पृथ्वी को वे शब्द सौंपती हूँ जो अभी गर्भ में हैं जो अंतरालों और कोनों में छिपे हैं और किसी अतिरेक में फड़फड़ाहट की तरह होंठों पर फिसलते हैं बिना किसी वर्णमाला के एक स्फुट स्पंदन की तरह प्रेम, दुःख और उदासी के वे शब्द जिन्हें हम कोई कपड़े नहीं पहना पाए मीठे फ़सल से शब्द कराहते दर्द से शब्द ज़हरीले उदासी से शब्द मैं सौंपती हूँ ये शब्द इस महान सदी के महानायकों, अधिनायकों और इंसानियत को शर्मसार करने वाले धनपतियों को ताकि वे इनसे अपना क़िला तैयार कर सकें जिसमें मनुष्य के प्रवेश की कोई जगह न हो क़ब्रगाह पर बैठे परिंदे की तरह जिसे घायल न कर सके कोई उड़ता हुआ तीर मैं सौंपती हूँ ये शब्द अपने किसान भाइयों को उन मेहनती शिक्षकों को जो अभी भी मिट्टी के भीतर से प्राण खोद लाते हैं और उसे बिखेर देते हैं पराग कणों की तरह समूची मानवता पर

प्रभु मेरी दिव्यता में

प्रभु मेरी दिव्यता में सुबह-सबेरे ठंड में कांपते रिक्शेवाले की फटी कमीज़ ख़लल डालती है मुझे दुख होता है यह लिखते हुए क्योंकि यह कहीं से नहीं हो सकती कविता उसकी कमीज़ मेरी नींद में सिहरती है बन जाती है टेबल साफ़ करने का कपड़ा या घर का पोछा मैं तब उस महंगी शॉल के बारे में सोचती हूं जो मैं उसे नहीं दे पाई प्रभु मुझे मुक्त करो एक प्रसन्न संसार के लिए उस ग्लानि से कि मैं महंगी शॉल ओढ़ सकूं और मेरी नींद रिक्शे पर पड़ी रहे

चेहरा

इस चेहरे पर जीवन भर की कमाई दिखती है पहले दुःख की एक परत फिर एक परत प्रसन्नता की सहनशीलता की एक और परत एक परत सुन्दरता कितनी क़िताबें यहाँ इकट्ठा हैं दुनिया को बेहतर बनाने का इरादा और ख़ुशी को बचा लेने की ज़िद | एक हँसी है जो पछतावे जैसी है, और मायूसी उम्मीद की तरह | एक सरलता है जो सिर्फ़ झुकना जानती है, एक घृणा जो कभी प्रेम का विरोध नहीं करती आईने की तरह है स्त्री का चेहरा जिसमें पुरूष अपना चेहरा देखता है, बाल सँवारता है मुँह बिचकाता है अपने ताकतवर होने की शर्म छिपाता है इस चेहरे पर जड़ें उगी हुई हैं पत्तियाँ और लतरें फैली हुई हैं दो-चार फूल हैं अचानक आई हुई ख़ुशी के यहाँ कभी-कभी सूरज जैसी एक लपट दिखती है और फिर एक बड़ी सी खाली जगह

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