विरहुल : बुन्देली लोकगीत

Virhul : Bundeli Lok Geet

	

सुअना सेमर सेइयो दो कलियन की

सुअना सेमर सेइयो दो कलियन की आस विरहुल। गुंडा लौदर दो जुवनन की आस विरहुल। कलियाँ गिरीं भौं परीं सुअना हो गए निरास विरहुल। लौंदर चली गई सासेरे-सासेरे हो गुंडा हो गये निरास विरहुल। इक गोरी इक साँवरी ओ जू दोऊ बजारे जायें विरहुल। कौन ने बिसाए काजरा ओजू कजरा कौन से बिसाए लौंजी पान विरहुल। गोरी बिसाए काजरा ओ जू काजरा साँवरी बिसाए लौंजी पान विरहुल। गोरी को खूब अँजौ काजरा आँजू काजरा साँवरी के रचौ लौंजी पान विरहुल। औसरौ आयौ गोरी कौ कर लो सोलहु सिंगार ओजू सोलहु सिंगार विरहुल। सासू से माँगी काखारी काखारी बैया से माँगी फुलेल विरहुल। सासू ने दीनी काखारी काखारी वारी बैया ने दीनी फुलेल विरहुल। तेल फुलेल पटियाँ पारी औ इंगुर भर लई माँग विरहुल। बार-बार मुतियन गो लिए कर लए सोलहु सिंगार विरहुल। झमक अटरिया चढ़ चली ओ जू ओ जू चौमुख दियाला लए हाथ विरहुल। लगी किवरिया खुल गई ओ जू ओ जू सोवत जागे महाराज विरहुल। चंदन रिपटी गिर पड़ी ओ जू ओ जू महाराजा ने लई है उठाय विरहुल। दिया दिवाले धर दये ओ जू औ पलंग लए बिछवाय विरहुल। आयतन पायतन गेहुँआ ओ जू ओ जू औ बीच गदेला लाल विरहुल। कहौ तो पायतन गिर रहूँ गिर रहूँ कहौ तो पलट घर जाऊँ विरहुल। काहे कौ पायतन गिर पड़ौ औ काहे पलट घर जाओ विरहुल। मलौ हमारी पीडुरी-पीडुरी औ सुख सो लो हमरे साथ विरहुल। रनिया औ पुरूख दोऊ पौड़ियौ धर छतिया पर हाथ विरहुल। सोवत-सोवत भोर भए भोर भए रानी उतर जसोदा नौ जायें विरहुल। भोर भई सखी पूछियो-पूछियो कैसे बिताई सारी रैन विरहुल। सेजनिया पर फुलवा बरसें सैंया पे बरसे गुलाल विरहुल। हँसत खेलत बिताई सारी रात ओ जू सारी रात विरहुल। साँवरी के आ गए ओसरे गुइयाँ कर लो सोलहु सिंगार विरहुल। सासू से माँगी काखारी-काखारी वारी बैया से माँगी फुलेल विरहुल। सासू ने न दीनी काखारी-काखारी वारी बैया ने न दीनी फुलेल विरहुल। गुलिया तेल पटैंया पारीं उरदन भर लई माँग विरहुल। झमक अटरिया चढ़ चली ओ जू बौंगौ दिया लए हाथ विरहुल। खुली किवरिया लग गई ओजू ओजू औ जागत सोए महाराज विरहुल। गुबरा रिपटी भौं गिरी ओ जू ओ जू महाराजा ने दए हैं ढकेल विरहुल। दिया दिवाले धर दये ओजू और पलंग धरे लटकाय विरहुल। कहौ तो पायतन गिर रहौ औ कहौ तो पलट घर जाऊँ विरहुल। चाहे तो पायतन गिर हौ औ चाहै तो पलटक घर जाओ विरहुल। रोवत रोवत भोए भए ओ जू रानी उतर जसोदा नौ जायँ विरहुल। भोर भई सखी पूछियो ओ जू पूछियो कैसे बिताई सारी रैन विरहुल। सेजरिया पथरा परै औ महाराजा पै परियो तुषार विरहुल। खुली किवरियाँ लग गई औ जागत सोये महाराज विरहुल। गुबरा रिपटी गिर परी ओ जू गिर परी औ मौदूँ ने दई है ढकेल विरहुल। रोवत-रोवत गँवई सारी रात ओ जू सारी रात विरहुल।

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