वर की खोज : बुन्देली लोकगीत

Var Ki Khoj : Bundeli Lok Geet

	

हमरे अगनवा में तुलसी को बिरछा

हमरे अगनवा में तुलसी को बिरछा, घन तुलसी की छाँह हो रम्मा। जा तरैं बैठे लड़लड़ी के आजुल सो जाये जो बोली आजी हो रम्मा। गठियन सम्भर बाँधो राजा आजुल सो नातिन कों घर वर ढूँढौ हो रम्मा। अग्गिम ढूँढे आजुल पच्छिम ढूँढे सो ढिग धर ढूँढे फिरे गुजरात हो रम्मा। एक न ढूँढी नगर अजुद्धा जहाँ वर चतुर सुजान हो रम्मा। हमरे अगनवा में... जा तरैं बैठे लडऋलड़ी के बाबुल सो जायें जो बोली मैया हो रम्मा। गठियन सम्भर बाँधो राजा बाबोला सो धिया को घर वर ढूँढो हो रम्मा। अग्गिम ढूँढे बाबुल पच्छिम ढूँढे। सो ढिग धर ढूढ़ फिरे गुजरात हो रम्मा। एक न ढूँढी नगर अजुदा जहाँ वर चतुर सुजान हो रम्मा। हमरे अगनवा तुलसी... गठियन सम्भर बाँधों मोरे जेठे पूत सो बहिना को घर वर ढूँढो हो रम्मा। अग्गिम ढूँढों वीरन पच्छिम ढूँढों। सो ढिक धर ढूँढ फिरे गुजरात हो रम्मा। जाये जो पहुँचे वीरन नगर अजुद्धा जहाँ वर चतुर सुजान हो रम्मा। हमरे अगनवा में...

बागन बिरछा आम के कोयल है रखवारी

बागन बिरछा आम के कोयल है रखवारी। आधी रैन कोयल बोलियो नागरी सब सोये। एक न सोवे बेटी आजुली जिन घर नातिन कुँआरी।

राजा जनक के घने हैं बगीचा

राजा जनक के घने हैं बगीचा सिया फूल बीनन जायें मोरे लाल। बीनबान बेटी भर लई टिपरिया हो गई ब्याहन जोग मोरे लाल। उतई से आये राम लक्ष्मन जू पूछें कै तुम कन्या कुँआरी मोरे लाल। न हम लला वर ब्याहे कहिये हम तो कन्या कुँआरी मोरे लाल। राम हँसे लछमन मुसकाने रघुबर ने गह लई बाँह मोरे लाल। मुरक जैहै मोरी काँच की चुरियाँ फट जैहे दक्खन चीर मोरे लाल। सौने मड़ाय दऊँ दोनो कलैंया और मँगाऊ दक्खन चीर मोरे लाल। कै तुम लला वर ब्याहे कहिये कै तुम कुँअर कँवारे मोरे लाल। न हम लली वर ब्याहे कहिए हम तो कुँअर कँवारे मोरे लाल। कौन देस के तुम दोनों भैया कहा तुमारौं नाम मोरे लाल। नगर अजुद्धा के हम दोई भैया दशरथ पिता हैं नाम मोरे लाल। हालत कम्पत बेटी घरई कौ आई मैया मोरो पलंग बिछाओ मोरे लाल। कै बेटी तुमरे मूड़ पिराने कै तुम्हें चढ़ौ है बुखार मोरे लाल। न मेरी मैया मेरो मूड़ पिरानौ न हमें चढ़ौ है बुखार मोरे लाल। ऐसे तौ वर मैया कबहुँ न देखे जैसे वर बागन पाये मोरे लाल। नगर अजुद्धा के वे दोई भैया दशरथ पिता है नाम मोरे लाल। इतनी जो सुनकै मैया चढ़ गई अटरिया बाबुल से कहतीं बात मोरे लाल। केसे जो अनमने बैठे महाराजा बेटी भई ब्याहन जोग मोरे लाल। आओ रे नउआ आओ बमना बेटी कौं घर वर ढूँढ़ों मोरे लाल। एक दिना सिया मन में सोच रई मंदिर की कर लै सफाई मोरे लाल। दायनौं हाथ सिया गोबर में धारे डेढ़े से धनुष उठाये मोरे लाल। उतरई से आये राजा जनकजू पूछें कौना ने धनुष उठाये मोरे लाल। इतनी वली मोरी सीता लाड़ली दूने वली वर होंय मोरे लाल। उनई कौ हम अपनी सीता ब्याहैं छिंगरी से डारै धनु तोड़ मोरे लाल।

बागन बागन डोलें राजा बाबुल

बागन बागन डोलें राजा बाबुल सो पकड़ें घुड़ल की बाग हो रम्मा। हँस-हँस पूछें उनसे मालिन की बिटिया सो कैसें बदन मलीन हो रम्मा। कै तुम बाबुल मोरे दामन हीन। सोकै तुम कुल के हीन हो रम्मा। न हम मोरी बेटी दामन हीन सो न हम कुल के हीन हो रम्मा। हमरे घर इक कन्या कुँवारी सो ऐ ही से बदन मलीन हो रम्मा। हाथ में ले लौ बाबुल जल भरी लुटिया बगल में कुश की डार हो रम्मा। गोद में ले लो बाबुल कन्या कुँवारी। सो साजन मिलन ऐसे होय हो रम्मा।

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