तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया (ग़ज़ल) : दुष्यन्त कुमार


तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया

तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया पांवों की सब जमीन को फूलों से ढंक लिया किससे कहें कि छत की मुंडेरों से गिर पड़े हमने ही ख़ुद पतंग उड़ाई थी शौकिया अब सब से पूछता हूं बताओ तो कौन था वो बदनसीब शख़्स जो मेरी जगह जिया मुँह को हथेलियों में छिपाने की बात है हमने किसी अंगार को होंठों से छू लिया घर से चले तो राह में आकर ठिठक गये पूरी हूई रदीफ़ अधूरा है काफ़िया मैं भी तो अपनी बात लिखूं अपने हाथ से मेरे सफ़े पे छोड़ दो थोड़ा सा हाशिया इस दिल की बात कर तो सभी दर्द मत उंडेल अब लोग टोकते है ग़ज़ल है कि मरसिया (ग़ज़ल-संग्रह 'साये में धूप' में से)

  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण काव्य रचनाएँ : दुष्यंत कुमार
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)