Tera Khata Khul Gaya Aur Meri Aankhein : Bindesh Kumar Jha

तेरा खाता खुल गया और मेरी आंखें : बिंदेश कुमार झा

किसी भी एक संस्थान से दूसरे संस्थान में एडमिशन लेने के लिए इतने दस्तावेजों की आवश्यकता पड़ती है जितनी कि देश से बाहर जाने के लिए भी नहीं पड़ सकती। मैं, उत्तर प्रदेश का नागरिक, दिल्ली में एडमिशन के लिए पहुंचा। अपनी ओर से सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को समेट लिया था। नई दस्तावेजों की मांग के लिए पूर्ण रूप से तैयार था। जैसा कि अनुमानित था, मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के अलावा कुछ और प्रकार के दस्तावेजों की आवश्यकता थी। हां, बैंक अकाउंट की भी मांग की गई थी।
18 वर्ष पूरे न होने के कारण किसी भी बैंक में अकाउंट खुलवाना एक जटिल प्रक्रिया लगने लगी।
मैं घर लौट आया। आसपास में पूछने से पता चला कि कुछ सेंटर हैं जो अकाउंट खुलवाते हैं।
मैं बिना प्रतिक्षा के उनके पास पहुंच गया। उन्होंने बहुत कम दस्तावेजों में मेरे अकाउंट खोलने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी।
संस्थान द्वारा मुझे एक लंबे समय का अवसर दिया गया था जिसमें मैं इन दस्तावेजों को इकट्ठा कर सकूं। इसी को संस्थान की मेहरबानी समझो या कुछ और।
खैर, लाभ दोनों पक्षों को है। उन्हें पानी की तलाश थी और मुझे कुएं की।
शाम को इस सेंटर पर जा रहा था देखने कि कितनी सुचारू रूप से काम चल रहा है।
अकाउंट सेंटर घर से कुछ दूरी पर था। आधे रास्ते आ गया तो सामने वाली गली में एक छोटा सा घर था जिसमें शिवलिंग का चित्र बना हुआ था।
मैंने परमात्मा को प्रणाम किया और अकाउंट जल्दी खुलवाने की विनती की।
हम इंसान भगवान को भी जरूरत पड़ने पर ही याद करते हैं।
कुछ देर बाद जब अकाउंट सेंटर पर पहुंचा तो उन्होंने फिर से वही दिलासा देने की कोशिश की कि प्रक्रिया चल रही है।
मैंने पूछा, कहां दिक्कत आ रही है। चेहरे के हाव-भाव से लग रहा था कि उन्हें भी नहीं पता कहां दिक्कत आ रही है।
मैंने कहा, आप तो इस अकाउंट के क्षेत्र में डॉक्टर के समान हो, आपको तो पता होना चाहिए।
डॉक्टर तो इतने अनुभवी होते हैं कि अगले 10 मिनट में आने वाले मरीज की भी बीमारी यूं ही नाप लेते हैं।
वहां खड़ा व्यक्ति भी बोलने लगा, "हां हां, आप तो इस क्षेत्र के डॉक्टर हैं और डॉक्टर तो भगवान समान होता है, सब कुछ जानता है।"
मैं भी हंसकर कह दिया, "डॉक्टर भगवान समान नहीं हो सकता है। भगवान ₹10 की मिठाई में ₹10000 का काम कर देते हैं, वहीं डॉक्टर ₹10 लाख में भी ₹10000 का काम नहीं करते।"
वहां खड़े लोग चुप हो गए।

अगले दिन कहीं बाहर जाना था। सोचा कि रास्ते में एक बार खाता का जायजा दोबारा लिया जाए। फिर उसी गली से गुजरा।
फिर से शिवलिंग को देखकर प्रणाम किया और फिर से विनती की कि अकाउंट जल्द खुल जाए।
फिर से वही निराशा हाथ लगी। अकाउंट सेंटर वालों ने बोला, "थोड़ा धैर्य रखिए, इन सब प्रक्रियाओं में समय लगता है।"

शाम को मामा जी ऑफिस से आए। मेरे अकाउंट का हाल-चाल पूछने लगे।
इस समय मैं अकाउंट सेंटर वाले की भूमिका निभाने लगा और उन्हें भी दिलासा देने लगा, "खुल जाएगा, खुल जाएगा।"
मामा जी बोले, "हो सकता है तुझे बच्चा समझ के टाल देता होगा, चल मेरे साथ चल।"

रोज की तरह उसी गली से निकला। फिर से शिवलिंग को देखकर प्रणाम किया।
मामा जी पूछने लगे, "किसको प्रणाम कर रहा है?"
मैंने कहा, "सामने वाले मकान में शिवलिंग का चित्र लगा हुआ है।"
मामा जी भी गौर से देखने लगे। बोले, "चित्र कहां लगा है, मुझे तो दिखाई नहीं देता।"
मैंने कहा, "चलो थोड़ा पास जाकर दिखाता हूं।"
पास जाकर देखा तो वह दरगाह की फोटो थी।
मामा जी बोले, "यह शिवलिंग की नहीं, दरगाह की फोटो है।"
मैंने कहा, "मामा जी मेरी आंखें बेहद कमजोर हैं, चश्मा नहीं लगाता, चेहरे पर जचता नहीं।"
मामा जी बोले, "बेटा, आंखें तेरी कमजोर नहीं हैं, आंखें हमारी कमजोर हैं।"
मामा जी भी मुस्कुरा कर चल दिए।

मामा जी रास्ते में एक बात बोले, "तुम्हारी आंखें बेहद खूबसूरत हैं।"
मामा जी के इस बात का मतलब तो उस वक्त समझ नहीं आया।
अकाउंट सेंटर पर पहुंचने ही वाला था कि उससे पहले मोबाइल में एक नोटिफिकेशन आता है।
मामा जी को बताया, "मामा जी, मेरा खाता खुल गया।"
मामा जी बोले, "तेरा खाता खुल गया और मेरी आंखें।"