साखी - सूषिम जनम कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Sushim Janm Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


कबीर सूषिम सुरति का, जीव न जाँणै जाल। कहै कबीरा दूरि करि, आतम अदिष्टि काल॥1॥ प्राण पंड को तजि चलै, मूवा कहै सब कोइ। जीव छताँ जांमैं मरै, सूषिम लखै न कोइ॥2॥304॥ टिप्पणी: ख-में इसके आगे ये दोहे हैं- कबीर अंतहकरन मन, करन मनोरथ माँहि। उपजित उतपति जाँणिए, बिनसे जब बिसराँहि॥3॥ कबीर संसा दूरि करि, जाँमण मरन भरम। पंच तत्त तत्तहि मिलै, सुनि समाना मन॥4॥

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