साखी - सुंदरि कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Sundar Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


कबीर सुंदरि यों कहै, सुणि हो कंत सुजाँण। बेगि मिलौ तुम आइ करि, नहीं तर तजौं पराँण॥1॥ कबीर जाकी सुंदरी, जाँणि करै विभचार। ताहि न कबहूँ आदरै, प्रेम पुरिष भरतार॥2॥ टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है- दाध बली तो सब दुखी, सुखी न दीसै कोइ। को पुत्र को बंधवाँ, को धणहीना होइ॥3॥ जे सुंदरि साईं भजै, तजै आन की आस। ताहि न कबहूँ परहरै, पलक न छाड़ै पास॥3॥ इस मन को मैदा करौ, नान्हाँ करि करि पीसि। तब सुख पावै सुंदरी, ब्रह्म झलकै सीस॥4॥ हरिया पारि हिंडोलना, मेल्या, कंत मचाइ। सोई नारि सुलषणी, नित प्रति झूलण जाइ॥5॥760॥

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