साखी - साध महिमाँ कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Sadh Mahima Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


चंदन की कुटकी भली, नाँ बँबूर की अबराँउँ। बैश्नों की छपरी भली, नाँ साषत का बड गाउँ॥1॥ टिप्पणी: ख-चंदन की चूरी भली। पुरपाटण सूबस बसै, आनँद ठाये ठाँइ। राँम सनेही बाहिरा, ऊँजड़ मेरे भाँइ॥2॥ जिहिं घरि साथ न पूजिये, हरि की सेवा नाँहिं। ते घर मरड़हट सारषे, भूत बसै तिन माँहि॥3॥ है गै गैंवर सघन घन, छत्रा धजा फहराइ। ता सुख थैं भिष्या भली, हरि सुमिरत दिन जाइ॥4॥ हैं गै गैंवर सघन घन, छत्रापति की नारि। तास पटंतर नाँ तुलै, हरिजन की पनिहारि॥5॥ क्यूँ नृप नारी नींदये, क्यूँ पनिहारी कौं माँन। वामाँग सँवारै पीव कौ, वा नित उठि सुमिरै राँम॥6॥ टिप्पणी: ‘वा मांग’ या ‘वामांग’ दोनों पाठ हो सकता है। कबीर धनि ते सुंदरी, जिनि जाया बैसनों पूत। राँम सुमिर निरभैं हुवा, सब जग गया अऊत॥7॥ कबीर कुल तौ सो भला, जिहि कुल उपजै दास। जिहिं कुल दास न ऊपजै, सो कुल आक पलास॥8॥ साषत बाँभण मति मिलै, बैसनों मिलै चंडाल। अंक माल दे भटिये, माँनों मिले गोपाल॥9॥ राँम जपत दालिद भला, टूटी घर की छाँनि। ऊँचे मंदिर जालि दे, जहाँ भगति न सारँगपाँनि॥10॥ कबीर भया है केतकी, भवर गये सब दास। जहाँ जहाँ भगति कबीर की, तहाँ तहाँ राँम निवास॥11॥525॥

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