साखी - लांबि कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Laambi Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


कया कमंडल भरि लिया, उज्जल निर्मल नीर। तन मन जोबन भरि पिया, प्यास न मिटी सरीर॥1॥ मन उलट्या दरिया मिल्या, लागा मलि मलि न्हांन। थाहत थाह न आवई, तूँ पूरा रहिमान॥2॥ हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ। बूँद समानी समंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥3॥ हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ। समंद समाना बूँद मैं, सो कत हेरह्या जाइ॥4॥172॥

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