साखी - कथणीं बिना करणी कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Kathni Bina Karni Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


मैं जान्यूँ पढ़िबौ भलो, पढ़िवा थें भलो जोग। राँम नाँम सूँ प्रीति करि, भल भल नींदी लोग॥1॥ कबिरा पढ़िबा दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ। बांवन अषिर सोधि करि, ररै ममैं चित लाइ॥2॥ कबीर पढ़िया दूरि करि, आथि पढ़ा संसार। पीड़ न उपजी प्रीति सूँद्द, तो क्यूँ करि करै पुकार॥3॥ पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। एकै आषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥4॥377॥

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