साखी - जीवन मृतक कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Jiwan Mritak Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


जीवन मृतक ह्नै रहै, तजै जगत की आस। तब हरि सेवा आपण करै, मति दुख पावै दास॥1॥ टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग में पहला दोहा यह है- जिन पांऊँ सै कतरी हांठत देत बदेस। तिन पांऊँ तिथि पाकड़ौ, आगण गया बदेस॥1॥ कबीर मन मृतक भया, दुरबल भया सरीर। तब पैडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर कबीर॥2॥ कबीर मरि मड़हट रह्या, तब कोइ न बूझै सार। हरि आदर आगै लिया, ज्यूँ गउ बछ की लार॥3॥ घर जालौं घर उबरे, घर राखौं घर जाइ। एक अचंभा देखिया, मड़ा काल कौं खाइ॥4॥ मरताँ मरताँ जग मुवा, औसर मुवा न कोइ। कबीर ऐसैं मरि मुवा, ज्यूँ बहूरि न मरना होइ॥5॥ बैद मुवा रोगी मुवा, मुवा सकल संसार। एक कबीरा ना मुवा, जिनि के राम अधार॥6॥ मन मार्‌या ममता मुई, अहं गई सब छूटि। जोगी था सो रमि गया, आसणि रही विभूति॥7॥ जीवन थै मरिबो भलौ, जौ मरि जानै कोइ। मरनै पहली जे मरे, तौ कलि अजरावर होइ॥8॥ खरी कसौटी राम की, खोटा टिकैं न कोइ। राम कसौटी सो टिकै, जो जीवन मृतक होइ॥9॥ आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब जाइ। अकथ कहाणी प्रेम की, कह्या न को पत्याइ॥10॥ निगु साँवाँ वहि जायगा, जाकै थाघी नहीं कोइ। दीन गरीबी बंदिगी, करता होइ सु होइ॥11॥ दीन गरीबी दीन कौ, दुँदर को अभिमान। दुँदर दिल विष सूँ भरी, दीन गरीबी राम॥12॥ टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहा है- कबीर नवे स आपको, पर कौं नवे न कोइ। घालि तराजू तौलिये, नवे स भारी होइ॥14॥ बुरा बुरा सब को कहै, बुरा न दीसे कोइ। जे दिल खोजौ आपणो, बुरा न दीसे कोइ॥15॥ कबीर चेरा संत का, दासिन का परदास। कबीर ऐसे ह्नै रह्या, ज्यूँ पांऊँ तलि घास॥13॥ रोड़ा ह्नै रही बाट का, तजि पादंड अभिमान। ऐसा जे जन ह्नै रहे, ताहि मिले भगवान॥14॥632॥ टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं- रोड़ा भया तो क्या भया, पंथी को दुख देइ। हरिजन ऐसा चाहिए, जिसी जिमीं की खेह॥18॥ खेह भई तो क्या भया, उड़ि उड़ि लागे अंग। हरिजन ऐसा चाहिए, पाँणीं जैसा रंग॥19॥ पाणीं भया तो क्या भया, ताता सीता होइ। हरिजन ऐसा चाहिए, जैसा हरि ही होइ॥20॥ हरि भया तो क्या भया, जैसों सब कुछ होइ। हरिजन ऐसा चाहिए, हरि भजि निरमल होइ॥21॥

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