साखी - जर्णा कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Jarna Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


भारी कहौं त बहु डरौ, हलका कहूँ तो झूठ। मैं का जाँणौं राम कूं, नैनूं कबहुं न दीठ॥1॥ टिप्पणी: क-हलवा कहूँ। दीठा है तो कस कहूँ, कह्या न को पतियाइ। हरि जैसा है तैसा रहौ, तूं हरिषि हरिषि गुण गाइ॥2॥ ऐसा अद्भूत जिनि कथै, अद्भुत राखि लुकाइ बेद कुरानों गमि नहीं, कह्याँ न को पतियाइ॥3॥ करता की गति अगम है, तूँ चलि अपणैं उनमान। धीरैं धीरैं पाव दे, पहुँचैगे परवान॥4॥ पहुँचैगे तब कहैंगे, अमड़ैगे उस ठाँइ। अजहूँ बेरा समंद मैं, बोलि बिगूचै काँइ॥5॥

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