साखी - ग्यान बिरह कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Gyan Birha Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


दीपक पावक आंणिया, तेल भी आंण्या संग। तीन्यूं मिलि करि जोइया, (तब) उड़ि उड़ि पड़ैं पतंग॥1॥ मार्‌या है जे मरेगा, बिन सर थोथी भालि। पड्या पुकारे ब्रिछ तरि, आजि मरै कै काल्हि॥2॥ हिरदा भीतरि दौ बलै, धूंवां प्रगट न होइ। जाके लागी सो लखे, के जिहि लाई सोइ॥3॥ झल उठा झोली जली, खपरा फूटिम फूटि। जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूत॥4॥ अगनि जू लागि नीर में, कंदू जलिया झारि। उतर दषिण के पंडिता, रहे विचारि बिचारि॥5॥ दौं लागी साइर जल्या, पंषी बैठे आइ। दाधी देह न पालवै सतगुर गया लगाइ॥6॥ गुर दाधा चेल्या जल्या, बिरहा लागी आगि। तिणका बपुड़ा ऊबर्‌या, गलि पूरे के लागि॥7॥ आहेड़ी दौ लाइया, मृग पुकारै रोइ। जा बन में क्रीला करी, दाझत है बन सोइ॥8॥ पाणी मांहे प्रजली, भई अप्रबल आगि। बहती सलिता रहि गई, मेछ रहे जल त्यागि॥9॥ समंदर लागी आगि, नदियां जलि कोइला भई। देखि कबीरा जागि, मंछी रूषां चढ़ि गई॥10॥122॥ टिप्पणी: ख-में इसके आगे यह दोहा है- बिरहा कहै कबीर कौं तू जनि छाँड़े मोहि। पारब्रह्म के तेज मैं, तहाँ ले राखौं तोहि॥

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