साखी - असाध कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Asadh Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


कबीर भेष अतीत का, करतूति करै अपराध। बाहरि दीसै साध गति, माँहैं महा असाध॥1॥ उज्जल देखि न धीजिये, बग ज्यूँ माँड़ै ध्यान। धीरे बैठि चपेटसी, यूँ ले बूड़ै, ग्याँन॥2॥ जेता मीठा बोलणाँ, तेता साध न जाँणि। पहली थाह दिखाई करि, ऊँड़ै देसी आँणि॥3॥480॥ टिप्पणी: ख-तेता भगति न जाँणि।

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