साखी - अबिहड़ कौ अंग : भक्त कबीर जी

Sakhi - Abihad Ko Ang : Bhakt Kabir Ji in Hindi


कबीर साथी सो किया, जाके सुख दुख नहीं कोइ। हिलि मिलि ह्नै करि खेलिस्यूँ कदे बिछोह न होइ॥1॥ कबीर सिरजनहार बिन, मेरा हितू न कोइ। गुण औगुण बिहड़ै नहीं, स्वारथ बंधी लोइ॥2॥ आदि मधि अरु अंत लौं, अबिहड़ सदा अभंग। कबीर उस करता की, सेवग तजै न संग॥3॥809॥

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