सात रंग के घोड़े (बाल कविता संग्रह) : त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Saat Rang Ke Ghode (Poems for Children) : Trilok Singh Thakurela

अपनी बात

आज के बच्चे कल के नागरिक हैं । इस कारण से यह अत्यंत आवश्यक है कि उन्हें ऐसा साहित्य पढ़ने को मिले, जो उनको एक अच्छा नागरिक बनाने में सहायक सिद्ध हो । प्रत्येक देश एवं समाज की परम आवश्यकता होती है कि बच्चों को मानवीय गुणों एवं अच्छे संस्कारों से सम्पन्न किया जाये ताकि वे जीवन में अपने समाज व देश के लिए मानव मूल्यों का सहज प्रदर्शन एवं निर्वहन कर सकें । बच्चों में मानवीय मूल्यों, संस्कारों एवं गुणों का विकास करने के लिए बाल साहित्य अहम भूमिका निभाता रहा है । बच्चों के विकास में आसपास के वातावरण तथा साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान होता है । अतः अभिभावकों और साहित्यकारों को भरसक प्रयास करना चाहिए कि वे बच्चों को ऐसा साहित्य उपलब्ध करायें जो बच्चों की मानसिक शक्ति को सही दिशा देने का कार्य करे । बाल साहित्य की अनेक विधाएं हैं । यूँ तो बाल साहित्य का प्रत्येक स्वरूप बच्चों को प्रभावित करता है, किन्तु सही शब्द संयोजन, लय, भाव, गेयता और सरल व सरस भाषा बच्चों को सहज रूप से आकर्षित करते हैं । यही कारण है कि कविताएं बच्चों को बहुत अच्छी लगती हैं । बच्चे इन कविताओं को कंठस्थ कर गुनगुनाते रहते हैं । अच्छी कविताएं बच्चों के मनोरंजन के साथ साथ उनमें सहज रूप से मानवीय गुणों एवं आदर्शों का विकास करती हैं ।

यह सदी वैज्ञानिक उत्थान की सदी है । अतः बच्चों की प्रवृत्तियां एवं आकांक्षाएं वैज्ञानिक सोच से परिपूर्ण हैं । बच्चे अपने परिवेश तथा आसपास की वस्तुओं के बारे में बहुत जिज्ञासु होते हैं । अतः साहित्यकारों का उत्तरदायित्व है कि वे ऐसे बाल साहित्य का सृजन करें जो बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत करते हुए उन्हें सकारात्मक बोध से भर सके ।

मैं मानता हूँ कि बच्चों के लिए लिखना सरल नहीं है । कई वर्षों के सृजन के बाद सन 1911 में राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से मेरा बाल कविता संग्रह 'नया सवेरा' प्रकाशित हुआ था । राजस्थान साहित्य अकादमी के शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार के साथ साथ उसे साहित्य जगत में बहुत मान मिला । 'नया सवेरा' की अनेक बाल कविताएं पाठ्यपुस्तकों में संकलित की गयी हैं ।

एक बहुत लम्बे अंतराल के बाद अपना दूसरा बाल कविता संग्रह 'सात रंग के घोड़े' बच्चों को समर्पित करते हुए मैं हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ ।

मेरी रचनाओं की प्रथम पाठक एवं समीक्षक और जीवन संगिनी साधना ठकुरेला सहित मैं उन सभी का ह्रदय से आभारी हूँ, जिनका इस पुस्तक के प्रकाशन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किंचित मात्र भी योगदान रहा है । मैं अपने प्रयासों में कितना सफल हुआ हूँ, यह तो प्रिय पाठक और समीक्षक ही तय कर सकेंगे ।

यदि यह पुस्तक बच्चों में जीवन मूल्यों का संचार करने में किंचित मात्र भी उपयोगी सिद्ध होती है, तो मैं अपना श्रम सार्थक समझूँगा ।

मुझे आपकी पाठकीय प्रतिक्रियाओं एवं सुझावों की अपेक्षा रहेगी ।

शुभ कामनाओं सहित,

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मो.- 9460714267

ईमेल- trilokthakurela@gmail.com


गंध गुणों की बिखरायें

हे जगत- नियंता यह वर दो , फूलों से कोमल मन पायें । परहित हो ध्येय सदा अपना, पल पल इस जग को महकायें ।। हम देवालय में वास करें , या शिखरों के ऊपर झूलें , लेकिन जो शोषित वंचित हैं , उनको भी कभी नहीं भूलें , हम प्यार लुटायें जीवन भर , सबका ही जीवन सरसायें । परहित हो ध्येय सदा अपना, पल पल इस जग को महकायें ।। हम शीत , धूप, बरसातों में , कांटों में कभी न घबरायें , अधरों पर मधु मुस्कान रहे चाहे कैसे भी दिन आयें , सबको अपनापन बांट बांट , हम गंध गुणों की बिखरायें । परहित हो ध्येय सदा अपना, पल पल इस जग को महकायें ।। जीवन छोटा हो या कि बड़ा , उसका कुछ अर्थ नहीं होता , जो औरों को खुशियाँ बांटे, वह जीवन व्यर्थ नहीं होता , व्यवहार हमारा याद रहे , हम भी कुछ ऐसा कर जायें । परहित हो ध्येय सदा अपना , पल पल इस जग को महकायें ।।

सूरज और कलियाँ

सात रंग के घोड़ों के रथ चढ़कर सूरज आया । उपवन में सोयी कलियों को उसने यूँ समझाया ।। प्यारी कलियों आँखे खोलो, उठा रात का पहरा । सबका ही मन मोह रहा है यह शुभ समय सुनहरा ।। सबको ही सुख बाँट रही है मनभावन पुरवाई । चंचल पंख हिलाती तितली प्यार बाँटने आई ।। कलियों ! तुम मुस्कान बिखेरो, हँसकर साथ निभाओ । औरों को कुछ खुशी बाँटकर जीवन का सुख पाओ ।।

वर्षा आई

रिमझिम रिमझिम वर्षा आई। ठण्डी हवा बही सुखदाई ।। बाहर निकला मेंढक गाता , उसके पास नहीं था छाता , सर पर बूँदें पड़ी दनादन तब घर में लौटा शर्माता , उसकी माँ ने डाँट लगाई। रिमझिम रिमझिम वर्षा आई ।। पंचम स्वर में कोयल बोली , नाच उठी मोरों की टोली , गधा रंभाया ढेंचू ढेंचू सबको सूझी हँसी ठिठोली , सब बोले अब चुपकर भाई । रिमझिम रिमझिम वर्षा आई।। गुड़िया बोली - चाचा आओ , लो , कागज़ लो , नाव बनाओ , कंकड़ का नाविक बैठाकर फिर पानी में नाव चलाओ , नाव चली , गुड़िया मुसकाई । रिमझिम रिमझिम वर्षा आई ।।

चिड़िया

घर में आती जाती चिड़िया । सबके मन को भाती चिड़िया ।। तिनके लेकर नीड़ बनाती , अपना घर परिवार सजाती , दाने चुन चुन लाती चिड़िया । सबके मन को भाती चिड़िया ।। सुबह सुबह जल्दी जग जाती , मीठे स्वर में गाना गाती , हर दिन सुख बरसाती चिड़िया । सबके मन को भाती चिड़िया ।। कभी नहीं वह आलस करती , मेहनत से वह कभी न डरती , रोज काम पर जाती चिड़िया । सबके मन को भाती चिड़िया ।। हँसना , गाना कभी न भूलो , साहस हो तो नभ को छूलो , सबको यह सिखलाती चिड़िया । सबके मन को भाती चिड़िया ।।

मीठे और रसीले आम

मीठे और रसीले आम , दादाजी के बाग़ में । हम जाते जब होती शाम , दादाजी के बाग़ में ।। कच्चे और पके आमों से झुकीं बाग़ की डाली , रात और दिन करते रहते दो माली रखवाली , तोते आते रोज तमाम , दादाजी के बाग़ में । मीठे और रसीले आम , दादाजी के बाग़ में ।। अच्छे लगते आम रसभरे हम सब मिल कर खाते , आम फलों का राजा होता दादाजी समझाते , नीलम ,केसर , लँगड़ा आम , दादाजी के बाग़ में । मीठे और रसीले आम , दादाजी के बाग़ में ।। आम बहुत गुणकारी होता सेहत सही बनाता , और आम के पत्तों से भी रोग दूर हो जाता , गुठली के मिल जाते दाम , दादाजी के बाग़ में । मीठे और रसीले आम , दादाजी के बाग़ में ।।

सूरज

बड़े सवेरे सूरज आता । किरणों से जग को चमकाता । जैसे हो सोने की थाली , नभ में बिखरा देता लाली , देख देख जन जन सुख पाता । बड़े सवेरे सूरज आता ।। खुश हो होकर चिड़ियाँ गातीं , फूलों की क्यारी खिल जातीं , उन फूलों पर भोंरा गाता । बड़े सवेरे सूरज आता ।। बरसातों में छुप छुप जाता , जाड़ों में कुछ ज्यादा भाता , पर गर्मी में खूब सताता । बड़े सवेरे सूरज आता ।। सब में भर देता है सपने , सब लगते कामों में अपने , सूरज है जीवन का दाता । बड़े सवेरे सूरज आता ।।

आओ , मिलकर दीप जलाएँ

आओ , मिलकर दीप जलाएँ। अंधकार को दूर भगाएँ ।। नन्हे नन्हे दीप हमारे क्या सूरज से कुछ कम होंगे , सारी अड़चन मिट जायेंगी एक साथ जब हम सब होंगे , आओ , साहस से भर जाएँ। आओ , मिलकर दीप जलाएँ। हमसे कभी नहीं जीतेगी अंधकार की काली सत्ता , यदि हम सभी ठान लें मन में हम ही जीतेंगे अलबत्ता , चलो , जीत के पर्व मनाएँ । आओ , मिलकर दीप जलाएँ ।। कुछ भी कठिन नहीं होता है यदि प्रयास हो सच्चे अपने , जिसने किया , उसी ने पाया , सच हो जाते सारे सपने , फिर फिर सुन्दर स्वप्न सजाएँ । आओ , मिलकर दीप जलाएँ ।।

चींटी

नन्हीं काली , हिम्मतवाली , चींटी बड़ी निराली है । दौड़ लगाती , कभी न थकती , वह कितनी बलशाली है ।। बहुत अधिक मेहनत करती है , लेकिन थोड़ा खाती है। जब उसको गुस्सा आता है हाथी से लड़ जाती है ।। जल्दी जगती रोज सवेरे , देर रात को सोती है । खुद से अधिक भार ले जाती बड़ी साहसी होती है।। चींटी कहती - प्यारे बच्चो , मिलकर कदम बढ़ाओ । मेहनत करो , न हिम्मत हारो, जो चाहो वह पाओ।।

बढ़े चलो

भारती के लाल ! तुम बढ़े चलो । धैर्य की मशाल , तुम बढ़े चलो ।। बढ़े चलो , डगर डगर , न मन में हो अगर-मगर , कभी न हार मानना, हों कोटि विघ्न भी अगर , तेज-पुंज-भाल , तुम बढ़े चलो । धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो ।। खाईयों का डर किसे , पहाड़ रोकता किसे , तुम प्रचण्ड शक्ति हो , न काल का भी भय जिसे , काल के भी काल, तुम बढ़े चलो । धैर्य की मशाल , तुम बढ़े चलो ।। अंधकार हो अगर , तो दीप से जले चलो , तुम विजय वरेण्य ही हो , लक्ष्य तक चले चलो , सबसे बेमिसाल , तुम बढ़े चलो । धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो ।।

साहस

मत अन्धकार से डरो कभी , जुगनू सा स्वयंप्रकाश बनो । काँटों से भला वितृष्णा क्यों फूलों की मधुर सुवास बनो ।। चिंता करने की बात नहीं, यदि आ जायें रातें काली । आशा का चन्दा उगने पर फैलेगी मनहर उजियाली ।। तूफान मिलेंगे जीवन में, पर तनिक नहीं घबराना है । साहस की नौका साथ लिए आगे ही बढ़ते जाना है ।। साहस वह एक परम गुण है, जो जीवन श्रेष्ठ बनाता है । साहस ही है वह महामंत्र , जो जीत सदैव दिलाता है ।। हे वीर-सपूतो उठो , उठो , साहस से तन-मन-प्राण भरो । चाहो तो सब कुछ संभव है , उत्कर्ष करो , उत्कर्ष करो ।।

भोजन

आओ बच्चो , तुम्हें सिखायें भोजन का विज्ञान । भोजन से ही ताकत आती भोजन से मुस्कान । कार्बोहाइड्रेड और विटामिन भोजन से ही पाते , खनिज,वसा, प्रोटीन मिलें जब अच्छा भोजन खाते , भोजन से ही जीवन चलता , बचती सबकी जान । भोजन से ही ताकत आती भोजन से मुस्कान । सदा संतुलित भोजन देता पोषक तत्व जरूरी , इस शरीर की सभी जरूरत भोजन करता पूरी , सही समय पर करते रहना तुम बढ़िया जलपान। भोजन से ही ताकत आती भोजन से मुस्कान । अच्छा भोजन करके ही रोगो से हम लड़ पाते , मन को स्वस्थ बनाता भोजन तब ढंग से पढ़ पाते , प्यारे बच्चो , कभी न रहना तुम इससे अनजान। भोजन से ही ताकत आती भोजन से मुस्कान ।

तिरंगा

जन-गण-मन का मान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। भरता नया जोश केसरिया कहता उनकी अमिट कहानी , मातृभूमि हित तन मन दे कर अमर हो गए जो बलिदानी , वीरों का सम्मान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। श्वेत रंग सबको समझाता सदा सत्य ही ध्येय हमारा , है कुटुंब यह जग सारा ही बहे प्रेम की अविरल धारा , मानवता का गान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। हरे रंग की हरियाली से जन जन में खुशहाली छाए , हो सदैव धन धान्य अपरिमित हर ऋतु सुख लेकर ही आए , अमित सुखों की खान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। कहता चक्र कि गति जीवन है , उठो , बढ़ो , फिर मंजिल पाओ , यदि बाधाएं आयें पथ में , वीर , न तुम मन में घवराओ , साहस का प्रतिमान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।।

प्यारे बच्चे, जागो

कुकङू कुकङू कहता मुर्गा प्यारे बच्चे जागो । ठीक नहीं है ज्यादा सोना झटपट आलस त्यागो ।। सुन्दर होता समय सुबह का सुख का झरना झरता । नव उत्साह जगाता मन में नयी ऊर्जा भरता ।। सुखकर हवा, सुबह की लाली, खिलते फूल मनोहर । मस्ती करते भ्रमर, तितलियाँ, लगते कितने सुन्दर ।। पक्षी गाते, खुशी मनाते, उड़ते नील गगन में । जल्दी जगने से आ जाते अनगिन सुख जीवन में ।। तन मन स्वस्थ सबल हो जाते सभी काम बन जाते । जल्दी जगकर खुशियाँ आतीं, उन्नति के दिन आते ।।

संकल्प

उठ उठ गिर गिर गिर गिर उठ उठ, गिरि की गोदी से निकल निकल । मन में अविचल संकल्प लिये , बहती नदिया कल-कल , कल-कल ।। पथ में काँटे या फूल मिलें , चाहे पत्थर राहें रोकें । चलती नदिया अपनी धुन में, कितनी भी बाधाएं टोकें ।। रुकती न कभी, थकती न कभी, बढ़ती जाती हँसती गाती । दायें मुड़ती , बायें मुड़ती, आखिर अपनी मंजिल पाती ।। समझाती नदी सदा सबको, तन मन में नई उमंग भरो । श्रम से सब कुछ मिल जाता है, तुम भी मन में संकल्प करो ।।

जीवन में नव रंग भरो

सीना ताने खड़ा हिमालय, कहता कभी न झुकना तुम । झर झर झर झर बहता निर्झर, कहता कभी न रुकना तुम ।। नीलगगन में उड़ते पक्षी , कहते नभ को छूलो तुम । लगनशील को ही फल मिलता, इतना कभी न भूलो तुम ।। सन सन चलती हवा झूमकर, कहती 'चलते रहना है' । जीवन सदा संवरता श्रम से, श्रम जीवन का गहना है ।। प्रकृति सिखाती रहती हर क्षण, मन में नयी उमंग भरो । तुम भी उठो , स्वप्न सच कर लो, जीवन में नव रंग भरो ।।

बारिश

आसमान में बादल छाए । सूरज दादा नजर न आए ।। छम छम छम छम बरसा पानी । राहगीर ने छतरी तानी ।। फैल गई सुंदर हरियाली । हवा बही सुख देने वाली ।। पत्ते , फूल , पेड़ मुसकाये। चिड़ियों ने मिल गाने गाये ।। झील भरी , नदिया लहराई । चाचा जी ने नाव चलाई ।। खेल खेल बच्चे मुसकाये । ऐसी बारिश फिर फिर आये ।।

हम भी परहित करना सीखें

सूरज अपनी नव-किरणों से बिखरा देता जग में लाली । बूँदों के मोती बिखराकर बादल फैलाता हरियाली ।। धरती के उपकार असीमित सबको दाना पानी देती । अपने आंचल के आश्रय में सबके सारे दुःख हर लेती ।। उपवन सदा सुगंध लुटाकर सबकी सांसें सुरभित करता । खग-कुल मिलकर गीत सुनाता सबके मन में खुशियां भरता ।। हम भी परहित करना सीखें, मिलकर सब पर नेह लुटायें । औरों के दुःख दर्द मिटाकर इस धरती को स्वर्ग बनायें ।।

आओ , मिलकर खेलें खेल

आओ , मिलकर खेलें खेल । सारे मिलकर खेलें खेल ।। मिलकर कदम बढ़ायेंगे, आगे बढ़ते जायेंगे , नहीं रुकेगी अपनी रेल । आओ, मिलकर खेलें खेल ।। चोर सिपाही खेलेंगे, सच्चे को ताकत देंगे, पर झूठे को होगी जेल । आओ, मिलकर खेलें खेल ।। तनिक नहीं घबरायेंगे, शिखरों पर चढ़ जायेंगे, बाधाओं को पीछे ठेल । आओ, मिलकर खेलें खेल ।। तन , मन स्वस्थ बनायेंगे, गीत खुशी के गायेंगे , मिलकर दुःख भी लेंगे झेल । आओ, मिलकर खेलें खेल ।।

हम पक्षी हैं प्यार के

नभ को भी छू लेने वाले, हम पक्षी हैं प्यार के । हमें न विचलित कर पायेंगे संकट इस संसार के ।। हम हैं अटल इरादे वाले, बढ़ते जाते शान से । जब मिल गाते गूंजे यह जग अपनेपन के गान से । हमने सीखे मंत्र जीत के, शब्द न भाये हार के । हमें न विचलित कर पायेंगे संकट इस संसार के ।। हमें न मन में थोड़ा भी भय , मन में अति उल्लास है । बाधाएं आयें तो आयें , अपनी मंजिल पास है ।। हम न यहीं रुक जाने वाले, हम उत्सुक उस पार के । हमें न विचलित कर पायेंगे संकट इस संसार के ।। तेरा- मेरा , निजी-पराया हुआ न हमसे भूल से । भेद मिटाकर प्यार लुटाया उपवन के हर फूल से । हम प्रेमी जूही ,चम्पा , गेंदा, गुड़हल, कचनार के । हमें न विचलित कर पायेंगे संकट इस संसार के ।।

भला कौन है सिरजनहार

हर दिन सूरज को प्राची से , बड़े सबेरे लाता कौन ? ओस-कणों के मोहक मोती धरती पर बिखराता कौन ? कौन बताता सुबह हो गयी, कलिकाओ मुस्काओ तुम । अलि तुम प्रेम-गीत दुहराओ , पुष्प सुगंध लुटाओ तुम ।। बहो झूमकर ओ पुरवाई झूम उठें जन जन के तन । किसके कहने पर गा गा कर खग सुखमय करते जीवन ।। इस लुभावने सुन्दर जग का भला कौन है सिरजनहार । उस अनाम को शत शत वंदन, उसका बार बार आभार ।।

पिचकारी नई दिलायी

फागुन आया, बनी होलिका, फिर उसमें दी आग । सबके अंदर उठी उमंगें, और बढ़ा अनुराग । रंग लगाकर गले मिले सब, गालों मला गुलाल । ढोल नगाड़े बजा बजाकर सबने किया धमाल ।। चबूतरे पर रख पिचकारी गयी भारती अंदर । पिचकारी ले चढ़ा पेड़ पर काले मुँह का बंदर ।। अमन, अनुज , अनुराग और राघव नाचे दे ताली। खिसियाकर रो पड़ी भारती, मुँह पर छायी लाली ।। दादाजी ने पुचकारी वह, सब को डांट लगायी । फिर दुकान से एक नई पिचकारी उसे दिलायी ।।

मेला

सोनू मोनू गये शहर में , वहाँ लगा था मेला । सजी हुई थीं सभी दुकानें, लगे हुए थे ठेला ।। चाट पकौड़ी, पानी पूरी, आइस्क्रीम, मिठाई । खट्टी मीठी गोल रसभरी दोनों ने मिल खाई ।। रंग बिरंगे गुब्बारों ने उनको खूब लुभाया । जादूगर का खेल देखकर मन में अचरज आया ।। वहाँ हँसाता घूम रहा था लाल टोप का जोकर । मेले से घर वापस आये वे दोनों खुश होकर ।।

जीवन सुगम बनायें

हिलमिल हिलमिल चाँद सितारे रहते साथ गगन में । गाते और फुदकते पंछी मिलकर रहते वन में ।। रंग रंग के, ढंग ढंग के सुमन साथ में खिलते । उपवन और मनोहर लगता जब तितली दल मिलते ।। घूम घूमकर , झूम झूम जब सागर में मिल जातीं । और तरंगित होती नदियां सागर ही कहलातीं ।। हम भी आपस में मिलजुल कर जीवन सुगम बनायें । हँसते गाते जीवन पथ पर आगे बढ़ते जायें ।।

नई सदी के बच्चे

नई सदी के बच्चे हैं हम मिलकर साथ चलेंगे । प्रगति के रथ को हम मिलकर नई दिशाएं देंगे । जल, थल, नभ में काम करेंगे जो चाहें पायेंगे । सदा राष्ट्र की विजय पताका मिलकर फहरायेंगे ।। हर कुरीति, हर आडम्बर को मिलकर नष्ट करेंगे । सबके मन में नई उमंगें, सपने नये भरेंगे ।। नई सदी के बच्चे हैं हम , नव प्रतिमान गढ़ेंगे । सबसे प्यारा देश हमारा, सबको बतला देंगे ।।

घर में आई गौरैया

घर में आई गौरैया । झूम उठा छोटा भैया ।। गौरैया भी झूम गयी । सारे घर में घूम गयी ।। फिर मुंडेर पर जा बैठी । फिर आंगन में आ बैठी ।। कितनी प्यारी वह सचमुच । खोज रही थी शायद कुछ ।। गौरैया ने गीत सुनाया । भैया दाना लेकर आया ।। दाना रखा कटोरे में । पानी रखा सकोरे में ।। फुर्र उड़ी वह ले दाना । सबने मन में सुख माना ।।

सात रंग के घोड़े

सूरज का रथ लिए जा रहे सात रंग के घोड़े । कभी न भटके अपने पथ से कभी न खाये कोड़े ।। रोज नापते पूरब पश्चिम कोई भी ऋतु आये । पथ में आयी बाधाओं से कभी नहीं घबराये ।। कभी न रुकते, कभी न थकते, आगे बढ़ते जाते । जीवन का मतलब चलना है, सबको यह समझाते ।। सबको यही इशारे करते सात रंग के घोड़े । वही पहुँचता मंजिल तक जो पथ को कभी न छोड़े ।। तुम भी कभी न हार मानना , चलते रहो निरन्तर । कदम तुम्हारे कभी न रोके जग का कोई भी डर ।। मन में अडिग इरादे लेकर आगे बढ़ते जाना । एक नया इतिहास बनाकर अपनी मंजिल पाना ।।

मछली रानी

मछली रानी, मछली रानी, मैं क्यों पूछूँ कितना पानी ? सारा ताल तुम्हारा ही है , तुम ही हो इस जल की रानी ।। जी भरकर खेलो, इतराओ, दूर दूर तक दौड़ लगाओ । चाहे जितना पानी पीओ, कूद कूद कर खूब नहाओ ।। किन्तु न जल को गंदा करना, व्यर्थ बहाने से भी डरना । जब तक जल तब तक ही जीवन, जल के बिना पड़ेगा मरना ।। जल से ही यह धरा सुहानी, कल के लिए बचाना पानी । बचत करें तो कल सुखमय है, भूल न जाना मछली रानी ।।

हम हिमालय

हम हिमालय हैं,हमें परवाह कब है । भले टूटें पर झुकें यह चाह कब है ।। प्यार की नदियां ह्रदय से बह रही हैं । घृणा का मन में कहीं प्रवाह कब है ।। लाख तूफां आये हैं फिर भी अडिग हैं । थिर सदा , गम्भीरता की थाह कब है ।। बुजदिली की बात मत करना कभी । वीर हैं हम , दासता की आह कब है ।। शिखर उन्नत हैं सदा , हम हर्षमय हैं । ऑसुओं की ओर अपनी राह कब है ।।

कितना अच्छा होता

मां, कितना अच्छा होता, यदि होता हर दिन ही इतवार । विद्यालय की छुट्टी रहती, क्यों ढोते बस्ते का भार ।। बड़ी देर तक सोते हर दिन, सुख के झरने झरते । मन में चिंता जरा न रहती, जी भर खेला करते ।। हमें दूर तक सैर कराने लेकर जाते भैया । खाते-पीते, मौज उड़ाते, करते ता-ता- थैया ।। हम सब मिलकर मस्ती करते, जमकर शोर मचाते । ऐसे ही सारे दिन कटते, मिलकर हंसते गाते ।। सोमवार, मंगल, बुध,गुरु, फिर शुक्र व शनि आ जाये । मां, इतना बतलाओ - क्यों हर दिन इतवार न आये ।।

मुर्गा बोला

मुर्गा बोला- मुन्ने राजा । सुबह हो गई, बाहर आजा ।। पूरब में सूरज उग आया । चिड़ियों ने मिल गाना गाया ।। फूलों ने खुशबू बिखराई । प्यार बाँटने तितली आई ।। हवा बही सुख देने वाली । सब को भायी छटा निराली । तुम भी देखो भोर सुहानी । जागो, करो न आनाकानी ।। कभी देर तक सोना मत तुम । कभी आलसी होना मत तुम ।। सजधज कर विद्यालय जाना । मेरे बेटे भूल न जाना ।। ध्यान लगा जो बच्चे पढ़ते । वे जीवन में आगे बढ़ते ।।

रंग बरसेंगे

नये सितारे चमक उठेंगे, जबकि प्रेम से तुम बोलोगे । सुख के सागर उमड़ पड़ेंगे, जबकि बूँद सुख की तुम दोगे ।। कभी सहायक बनकर देखो, तुम भी खूब मदद पाओगे । लोगों के दुःख- दर्द मिटाओ, सबके प्यारे बन जाओगे ।। सारा जगत तुम्हारा होगा, यदि तुम त्याग अहम का कर दो । बाधाओं से रहित जगत है, यदि उसमें अपनापन भर दो ।। यदि करुणा से भरे रहें मन, क्यों इस जग में जन तरसेंगे । जरा मुस्करा दो जी भरकर, हर पल नित नव रंग बरसेंगे ।।

मन को सुख से भरता देश

मन को सुख से भरता देश । कहीं सघन वन- उपवन-बाग, कहीं नदी, सर, ताल, तड़ाग, हिमगिरि कहीं, कहीं पर रेत, कहीं मनोहर धानी खेत , कितना मनभावन परिवेश । मन को सुख से भरता देश ।। कहीं मधुर कलरव का शोर, कहीं नाचते सुन्दर मोर, तोता-मैना कहीं बटेर, कहीं दहाड़ लगाते शेर, सुन्दर खग,मृग बड़े विशेष । मन को सुख से भरता देश ।। प्रकृति बदलती रहती रूप, बादल कहीं, कहीं पर धूप, सर्दी, गर्मी, रिमझिम मेह, सब सहती धरती की देह, मिलता दृढ़ता का संदेश । मन को सुख से भरता देश ।। सबके अपने अपने ठाठ, सबके अपने पूजा- पाठ, फिर भी रहते सब मिल साथ, बढ़ते सदा मदद को हाथ, भले अलग हों सबके भेष । मन को सुख से भरता देश ।।

नन्हीं चुहिया

बिल से बाहर झांक रही थी, नन्हीं चुहिया रानी । तभी अचानक बिल्ली आई, वह थी बड़ी सयानी ।। चुहिया देखी तो झट उसके मुँह में पानी आया । बिल के पास खड़े हो उसने चुहिया को समझाया ।। मौसी हूँ मैं सगी तुम्हारी बहुत दूर से आई । बिल से बाहर निकलो प्यारी दूंगी तुम्हें मिठाई ।। चुहिया बोली- मौसी! मेरी मम्मी कहीं गयी है । मुझको तेज बुखार चढ़ा है, मुझको भूख नहीं है । मैंने अभी दवाई ली है, मुझे नहीं कुछ खाना । जब मेरी मम्मी घर आये, मौसी तब तुम आना ।। तुम्हें देखकर धक धक होती मौसी मेरे दिल में । इतना कहकर नन्हीं चुहिया भागी अन्दर बिल में ।।

परी लोक से आती तितली

परी लोक से आती तितली । सुख के रंग बिखराती तितली ।। तन पर कितने रंग सजाये, मन में नई उमंग जगाये, जादू सा कर जाती तितली । सुख के रंग बिखराती तितली ।। सदा लिए उल्लास घूमती, कली कली के पास झूमती, फूलों से बतियाती तितली। सुख के रंग बिखराती तितली ।। उपवन उपवन दौड़ लगाती, कभी न थकती आती जाती, सबके मन को भाती तितली । सुख के रंग बिखराती तितली ।। सब फूलों पर प्यार लुटाती, बदले में उनसे रस पाती, अनगिन खुशियाँ लाती तितली । सुख के रंग बिखराती तितली ।। तुम भी सब पर प्यार लुटाना, कभी किसी से रूठ न जाना, सबको यह समझाती तितली । सुख के रंग बिखराती तितली ।।

चूहा बोला

चूहा बोला बिल्ली से । मैं आया हूँ दिल्ली से ।। अब मेरी सरकार है । बंगला, मोटर-कार है ।। मुझसे कुछ मत कहना तुम । जरा, होश में रहना तुम।। बिल्ली बोली- हट गंजे । भूल गया मेरे पंजे ।।

रोबोट

मम्मी, तुम रोबोट मंगा लो, वही करेगा घर के काम । जो चाहोगी वही करेगा तुम करना केवल आराम ।। घर की साफ सफाई, मम्मी, उससे ही करवाना । वही बनाकर देगा सबको तरह तरह का खाना ।। मुझको पढ़ने में होगी जब कोई भी कठिनाई । उससे ही सब विषय पढ़ूगा, होगी सरल पढ़ाई ।। आयेगा रोबोट अगर घर काम करेगा सारे । हम सब खूब करेंगे मस्ती, हर दिन सांझ सकारे ।।

जागो प्यारे

भोर हुई, अब जागो प्यारे । पूरब में सूरज मुसकाया, फूलों ने सौरभ बिखराया, चिड़ियों ने मिल मंगल गाया, ओझल हुए गगन के तारे । भोर हुई, अब जागो प्यारे ।। हवा सुबह की परम निराली, शीतल, मंद, सुसौरभ वाली, तन मन में भरती हरियाली, लायी सुख के साधन सारे । भोर हुई, अब जागो प्यारे ।। चमका जग का कोना कोना, इससे सुन्दर समय न होना, जागो प्यारे, छोड़ बिछौना, साहस जीते, सुस्ती हारे । भोर हुई, अब जागो प्यारे ।।

ओले

आसमान से बरसे ओले । कुछ छोटे,कुछ बड़े, मझोले । रह रह बिखरे डगर डगर में । कुछ छत पर, कुछ आंगन-घर में । ठण्डे ठण्डे बर्फ के गोले । आसमान से बरसे ओले ।। खुश हो झूमे मीरा, मोहन । हुए अचम्भित मनसुख, सोहन । गिरते उछल उछलकर रह रह । फिर पानी बनकर जाते बह । खाने लगा उठाकर भोले । आसमान से बरसे ओले ।। मां ने कहा- अरे, मत खाओ । ओलों में बाहर मत जाओ । यह बीमार बना सकते हैं । तुम्हें चोट पहुंचा सकते है । 'समझ गये हम' बच्चे बोले । आसमान से बरसे ओले ।।

छोटा हाथी

छोटा हाथी उछला कूदा धूल उड़ाता डोला । मम्मी मै पढ़ने जाऊँगा सूंड उठाकर बोला ।। नई पुस्तकें लाकर देना बैग नया दिलवाना । दो खाने का टिफिन और पानी की बोतल लाना ।। अक्षर अक्षर पोथी सीखूं सीखूं सभी पहाड़े । टाई कोट पैंट पहनूंगा जब आयेंगे जाड़े ।। मां बोली- सुन मेरे बच्चे तेरी बात सही है । पढ़ने लिखने से अच्छी तो कोई बात नहीं है ।। तुझे पता है हर दिन ही तू कितना पीता- खाता । इतनी बड़ी न बोतल मिलती टिफिन नहीं मिल पाता । बातें अच्छी लगें तुम्हें या बुरी , तुम्हारी मर्जी । सिल दे जो पोशाक तुम्हारी नहीं मिलेगा दर्जी ।। बिना टिफिन के विद्यालय में बोलो क्या खाओगे । बिन कपड़ों के सभी हंसेंगे । तब तुम शरमाओगे ।।

हम हैं वीर सिपाही

अटल इरादे, फौलादी तन, साहस, चिर तरुणाई । थर्राते हैं दुश्मन सारे , जब हम लें अंगडाई ।। नहीं रुकेंगे , नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही । हम रण में अड़ जाने वाले, सिंहों से लड़ जाने वाले, गीत विजय के गाने वाले, जब दुश्मन ने शीश उठाया, हमने धूल चटाई । नहीं रुकेंगे , नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।। हम रिपु दल में बढ़ते जाते, तूफानों से हम टकराते, पर्वत हमको रोक न पाते , हम नभ तक की दूरी नापें, सागर की गहराई । नहीं रुकेंगे , नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।। हम हैं सफल मनोरथ वाले, हमें न रोकें बरछी भाले , हमने नाथे विषधर काले , हमसे लड़कर रिपु पछताए, देते फिरे दुहाई । नहीं रुकेंगे , नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।। देश प्रेम में जीते मरते, बलिदानों से कभी न डरते, मन में जोश अपरिमित भरते, विषम परिस्थितियों में चलकर हमने मंजिल पाई । नहीं रुकेंगे , नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।।

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