रेप की बढ़ती घटनाएं : एक गंभीर सामाजिक चुनौती : प्रेम ठक्कर

रेप, हमारे समाज की एक ऐसी भयावह सच्चाई है, जो हर दिन नए और दर्दनाक रूप में सामने आ रही है। यह केवल एक आपराधिक कृत्य नहीं है, बल्कि यह मानवता के प्रति सबसे बड़ी बर्बरता है। हाल के समय में रेप की घटनाओं में हुई वृद्धि न केवल कानून व्यवस्था की विफलता को उजागर करती है, बल्कि हमारे समाज की मानसिकता पर भी सवाल उठाती है।

हमारे समाज में रेप की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इन घटनाओं के सामने आने के बाद, समाज में रोष और गुस्सा देखा जाता है, लेकिन समय के साथ यह गुस्सा ठंडा पड़ जाता है और हम फिर से अपने रोजमर्रा के जीवन में लौट आते हैं। अगर इस में थोड़ा सा सुधार करें, सुधार का अर्थ यह नही की मशाल लेकर चल पड़ो, आज के समय में लोग सोचते है कि हम अपनी बेटी को यह सारी समझ देंगे, हम अपने बेटे को शिक्षा देंगे, सब से पहले इतना तो जागृत हो जाओ की कहीं पर भी कोई भी अनुचित घटना हो रही है तो चुपचाप देखकर ना निकले ना खड़े रहे, थोड़ा दिमाग का प्रयोग करें कैसे : अगर समय है तो फोन करें पुलिस को, अगर समय नही है तो यह याद रखिये की जो कुछ अनुचित कर रहा है उसके पास भी समय नही है, आप का शेर की तरह दहाड़ना, या फिर किसी पत्थर या कोई ऐसी चीज़ से उसपर वार करना ही काफी है, वह इंसान खुद भाग जाएगा, पर यहां मानसिकता आती है, अरे छोड़ो इस में कौन पड़े, अपनी जान जोखिम में कौन डालें, अगर वहां हमारा बेटा या बेटी होती तब भी कय्या हम यह सोचते??

रेप के मामलों में हमारी न्याय प्रणाली की धीमी गति एक बड़ी समस्या है। पीड़ितों को न्याय पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है, जिससे उनकी पीड़ा और बढ़ जाती है। न्याय प्रक्रिया में सुधार की सख्त आवश्यकता है। त्वरित सुनवाई और कठोर दंड केवल अपराधियों को सजा देने का काम नहीं करेंगे, बल्कि यह समाज को एक स्पष्ट संदेश देंगे कि इस प्रकार के अपराध को सहन नहीं किया जाएगा।

रेप जैसी घटनाओं को रोकने के लिए शिक्षा और जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चों को शुरुआती शिक्षा से ही महिलाओं और पुरुषों के प्रति समानता और सम्मान का पाठ पढ़ाना चाहिए। आज के समय में हम बच्चे छोटे होते है तब ही उन्हें यह छूट देते है कि वह अपने भाई या बहन को मारते है और हम हंसते है, यह नही सोचते कि बड़ा होकर वह वही करेगा, जो रोके ना रुकेगा, अगर कहीं उसकी लड़ाई हो गयी तो हम उसे हौंसला देते है, उसे निडर बनाते है, बनाइये, पर किस बात पर?

अगर तेरी गलती हुई तो तुजे माफी मांगनी पड़ेगी या हम सज़ा देंगे
अगर तेरी गलती ना हुई तो हम कुछ भी हो जाएं तेरे साथ है

यह विचार हर मां बाप को अपनाना ज़रूरी है, अरे आधे बच्चे तो ऐसे ही मर जाते है कि उसके मां बाप यह सोचते है कि अब हम किसी को मुंह दिखाने के लायक नही रहे, इसकी बजाये अपनी सोच को ऐसा सुधारो और ऐसा समझाओ की अगर कोई ऐसी अनहोनी होती है तो तू फिक्र मत करना, हम सब तेरे साथ खड़े है, सब मिलकर सामना करेंगे।

मीडिया का इस मुद्दे पर अहम रोल है। कई बार मीडिया इस प्रकार की घटनाओं को सनसनीखेज बनाकर पेश करती है, जिससे पीड़ित की गोपनीयता और सम्मान प्रभावित होता है।

मीडिया पीड़ित के यहां ढेरा जमाते है उसकी न्यूज़ कवर करने के लिए, इतने एफर्ट्स यह ढूंढने में लगाएं की जिस ने यह किया वह कहां कहां हो सकता है, उसकी पल पल की खबर दें, अगर मीडिया यह देना शुरू हो गयी तो सब चौकन्ना रहेंगे और उसके बाद जो होगा उसीसे समाज में यह संदेश जाएगा की ऐसी बदसलूकी करनेवालों के हाल कय्या होते है।

मैं प्रेम ठक्कर, मैं अपनी बहन, बेटी या किसी भी महिला के लिए, अगर ऐसी कोई भी घटना होती है तो उसके साथ खड़ा रहने की शपथ लेता हूँ -

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