रागनियाँ व भजन : बाजे भगत (हरियाणवी कविता)

Ragniyan Va Bhajan : Baje Bhagat (Haryanvi Poetry)


धन माया के बारे म्हं किसे बिरले तै दिल डाट्या जा सै

धन माया के बारे म्हं किसे बिरले तै दिल डाट्या जा सै जो तने दे दिया राज दान म्हं, मेरे तै के नाट्या जा सै सधग्या वक्त संत आवण का यो मौका दिल समझावण का मेरे बालम मनुष्य शरीर पावण का के सबतै सांटा सांट्या जा सै हुया करै जब धरम म्हं हरजा, उसने बिसरावै सब परजा जो कोए कहे वचन तै फिरज्या आप थूक कै चाट्या जा सै तेरे तै कहूं साचा वचन टेर कै, पिया जी ना करुं बात फेर कै तेरा धरम का कुंआ रेत गेर कै, ब्याही तै के आंट्या जा सै पार होंगे बिपता झेल्ले तै, म्हं ढकूं प्रेम सेले तै कह बाजे राम सुगरे चेले तै, के नाम छाप का काट्या जा सै

बिपता के म्हं फिरूं झाड़ती घर-घर के जाळे

बिपता के म्हं फिरूं झाड़ती घर-घर के जाळे सैर करया करैं दुनिया के म्हं धन माया आळे घर तै बाहर फिरण की कोन्या आदत मेरी सै तेरी टहल म्हं हरदम रहणा दुखिया दासी तेरी सै मनै इतनी सैल भतेरी सै मेरे जां बेटे पाळे म्हारे गळ म्हं घल रही सै दुख: विपता की डोरी सैर करया करै साहुकार और सेठां की गोरी रोटी खाणी मुश्किल होरी म्हारे वक्त टळै टाळे जिनके घर नगरी छुट्टे वे सब तरियां बिस सहैं पेट गुजारा करणा न्यूं बणकै तेरे दास रहैं जो सैर करैं तौ लोग कहैं के ये कररे सैं चाळे ‘बाजे भगत’ भक्ति करकै भव सागर पार तर ले इस मृत लोक नै छोड़ कै अपणा सुर पुर धाम कर ले जिनपै ईश्वर राजी के कर लें, जड़ काटणियां साळे

बेरा ना कद दर्शन होंगे पिया मिलन की लागरही आस

बेरा ना कद दर्शन होंगे पिया मिलन की लागरही आस बिना कंत कामनी न्यूंए, भटके जा सै बारह मास लग्या चैत चित ना चोले म्हं चतर सज्जन लगे चित चोर आया बैशाख मुझ बिरहण कै बालम के ना की उठे लोहर जेठ जिगर पर जुल्म करै नित जालम देरया अपणा जोर इस गरमी के मांह धूप पड़े पिया किसी ना ठण्डक और गंगा दशहरा छूट्या जेठ की पिया बिन गइ निरजला ग्यास आया साढ़ अंगूर अनार पौधों म्हं छाई हरियाली सामण म्हं साजन साथ नहीं सारी साथण झूलण चाली भादों से भंवर भटकता घनघोर घटा छाइ काळी वर्षा रुत की बहार मेरी बालम बिन विरथा जा ली भादवै की अंधेरी म्हं डर लागे, दिलदार नहीं है दिल के पास आया आसोज छुट्टी अरसत अष्टमी दशहरे का त्यौहार कार्तिक म्हं हो कंत बिना करवा चौथ दीवाळी बेकार मंगसर म्हं मौसम बदल गई मन मेली ना घर मरहम कार या रितु शरद हो रंग जरद बिना मरद की जो हो नार साजन बिन सुन्नी सेज पड़ी मेरा देख-देख दिल रहै निराश पोह का पाळा पल-पल पड़ता पिया बिन कांपै मेरा शरीर माह म्हं सब मधमाती नारी जर बसंती ओढ़ैं चीर फागण म्हं फगवा फूल खिलैं बालम संग फागण खेलैं बीर या रितु बसंत नहीं पास कंथ, बालम बणग्ये संत फकीर मन मार बैठग्यी थी रानी ‘बाजे भगत’ की बणकै दास

मैं निर्धन कंगाल आदमी तूं राजा की जाइ

मैं निर्धन कंगाल आदमी तूं राजा की जाइ मेरै रहण न घर नहीं तूं महल छोड़ कै आइ थारे महल बंगले कोठी न्यारे-न्यारे मरदाने और जनाने मेरे अन्न, वस्त्र का टोटा सै, थारै तरह-तरह के खाणे थारे धन माया के भरे खजाने, मेरे धोरै ना एक पाई थारे धन माया के कोष भरे, और नौकर रहैं रुखाळे कर्जा खस्म मर्द का हो मेरे वक्त टलैं सैं टाळे तेरे पिता नै कर दिए चाळे, तूं निरधन गेल्यां ब्याही मेरै ठौड़ ठिकाणा कोन्या तूं कित दर-दर फिरया करैगी बण म्हं शेर बघेरे बोलैं तू उनतै डरया करैगी मेरे साथ म्हं भरया करैगी राजबाला खूब तवाई बड़े आदमी कहया करैं ना टोटा किसे का मीत कहै ‘बाजे भगत’ धर्म शास्त्र सारे राखै जीत अपने कैसे तैं करया करैं प्रीत बैर और अस्नाइ

या लगै भाणजी तेरी, इसनै मतना मारै

या लगै भाणजी तेरी, इसनै मतना मारै कहूं जोड़ कै हाथ तूं इस पै दया करै नै और किसे का दोष नहीं तकदीर मेरी हेट्टी सै नौ महीने तक बोझ मरी या मेरे उदर लेटी सै या एक बेटी सै मेरी, मत जुलम गुजारै क्यों करता आत्मघात, तूं इस पै दया करै नै मेरी बातों पै कंस भाइ, तू कती ध्यान न धरता कानां पर कै टाळै सै, मेरा बोल तेरै ना जरता क्यों करता डुब्बा-ढेरी, मैं रहूं क्यां कै सहारै बाळक मारे सात, तू इस पै दया करै नै मेरे बाळक मारण का तनै बुरा ले लिया चसका कै दिन खातिर जुलम करै भाई जीना सै दिन दस का बता या किसका सै के लेहरी मत सिर नै तारै आखिर कन्या की जात, तू इस पै दया करै नै ऋषि मुनी और योगी मात तनैं ध्यावैं सै बह्म ज्ञानी सन्त छज्जू दीप चन्द उन कवियों नै मानी वरदान भवानी, देहरी जाण म्हारी होगी सारै ये हरदेवा की करामात तू इस पै दया करै नै

लाड करण लगी मात, पूत की कौळी भरकै

लाड करण लगी मात, पूत की कौळी भरकै हुई आजादा शोक और भय से, गात म्हं खुशी हो गई ऐसे जैसे, धन निधरन के लग्या हाथ, खुश हुए न्यौळी भरकै आज वे परसन्न होगे हरि, आत्मा ठण्डी हुई मेरी कद तेरी, चढ़ती देखूंगी बारात, बहू आवै रोळी भरकै तेरे बिन अधम बीच लटकूं थी, नाग जैसे मणि बिन सिर पटकूं थी पूत बिन भटकूं थी, दिन रात, आया सुख झोळी भरकै बाजे राम चरण सिर डारै, भवानी सबके कारज सारै मारै, नुगरयां कै गात, ज्ञान की गोळी भरकै

साची बात कहण म्हं सखी होया करै तकरार

साची बात कहण म्हं सखी होया करै तकरार दगाबाज बेरहम बहन ना मरदां का इतवार रंगी थी सती प्रेम के रंग म्हं, साथ री बिपत रूप के जंग म्हं दमयन्ती के संग म्हं किसा नळ नै करया ब्यौहार आधी रात छोडग्या बण मैं ल्हाज शरम दी तार सखी सुण कै क्रोध जागता तन म्हं, मरद जळे करैं अन्धेरा दिन म्हं चौदहा साल दुख भोगे बण म्हं, ना तज्या पिया का प्यार, फेर भी राम नै काढी घर तै, वा सीता सतवंती नार बात हमनै मरदां की पाग्यी , घमण्ड गरूर करै मद भागी, बिना खोट अंजना त्यागी, करया पवन नै अत्याचार, काग उड़ाणी बणा दई, हुया इसा पवन पै भूत सवार खोट सारा मरदां मैं पाया, शकुंतला संग जुल्म कमाया गन्धर्व ब्याह करवाया दुष्यंत नै, कर लिए कौल करार, शकुंतला ना घर मैं राखी, बण्या कौमी गद्दार

करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिनां की बात

करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिनां की बात राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ – टेक साथ मेरी धींगताणा बण रहया सै इसा के तू महाराणा बण रहया सै न्यू बोल्या घणा के स्याणा बण रहया सै राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिनां की बात राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ करी बाप मेरे नै बेईमानी हो अपनी खो बैठा ज़िंदगानी न्यू बोल्या समय होया करे आणी जाणी या माणस के ना हाथ राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिनां की बात राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ ("राजबाला-अजीत सिंह" किस्से से)

ओर किसे का दोष नहीं या हुई करमा की हाणी

ओर किसे का दोष नहीं या हुई करमा की हाणी। धोती न तीत्तर लेग्ये मैं खड़या उघाड़ा नंग राणी।।टेक।। बिपता म्हं बिपता पडग्यी इब गम की घूंट पिए तू। मैं बेवस्त्र खड्या ओट बिड़े की साची मान लिए तू। मेरे तै पीठ फेर दमयन्ती एक यो काम किए तू। पर्दा कर ल्यूंगा अपनी आधी साडी मन्ने दिए तू। सुख दुख की साथी सै तन्नै या पड़ैगी बात निभाणी।।1।। जैसे पिंजरे शेर घिरै पति तेरा बिपत फंद म्हं फहग्या। जूए के जल की बाढ़ बुरी मैं भूल बीच म्हं बहग्या। ओर किसे का दोष नहीं जो कर्म करा मन्ने दहग्या। हमने तीत्तर मतना समझै मेरे तै एक पक्षी न्यूं कहग्या। हम जुए आले पासे सा वो इसी बोल ग्या बाणी।।2।। मैं तीत्तर पकड़ण चाल पड़्या धर्म परण तै हटग्या। तेरी बात कोन्या मानी हिंसा हठ धर्मी पै डटग्या। राज छुट्या कंगाल बण्या मेरा भाव भरम सब घटग्या। या किसे देवता की माया सै राणी मन्ने बेरा पटग्या। कोए खोटा कर्म होया मेरे तै न्यु होई कर्म म्हं हाणी।।3।। कहै बाजे भगत भगवान बिना या बिपत हटण की कोन्या। देहां गैल्या बितैगी या सहज कटण की कोन्या। करूँ तेरा भी ख्याल या चिंता कति मिटण की कोन्या। झाड़-2 बेरी होग्या किते जगाह डटण की कोन्या। मेरे घात का हाल इसा जणु पिग्या भांग बिन छाणी।।4।। ("नल-दमयंती" किस्से से)

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