पद - राग सारंग : भक्त कबीर जी
Pad Raag Sarang : Bhakt Kabir Ji in Hindi
यहु ठग ठगत सकल जग डोलै, गवन करै तब मुषह न बोलै॥ तूँ मेरो पुरिषा हौं तेरी नारी, तुम्ह चलतैं पाथर थैं भारी। बालपनाँ के मीत हमारे, हमहिं लाडि कत चले हो निनारे॥ हम सूँ प्रीति न करि री बौरी, तुमसे केते लागे ढौरी॥ हम काहू संगि गए न आये, तुम्ह से गढ़ हम बहुत बसाये॥ माटी की देही पवन सरीरा, ता ठग सूँ जन डरै कबीरा॥394॥ धंनि सो घरी महूरत्य दिनाँ, जब ग्रिह आये हरि के जनाँ॥टेक॥ दरसन देखत यहु फल भया, नैनाँ पटल दूरि ह्नै गया। सब्द सुनत संसा सब छूटा, श्रवन कपाट बजर था तूटा॥ परसत घाट फेरि करि घड़ा काया कर्म सकल झड़ि पड़ा॥ कहै कबीर संत भल भाया, सकस सिरोमनि घट मैं पाया॥395॥