नचारी : मैथिली लोकगीत

Nachaari : Maithili Lokgeet

	

अओ शिवशंकर त्रिपुरारी

अओ शिवशंकर त्रिपुरारी कओन विधि निमहब हो बाबा, बिपति पड़ल सिर भारी धरहि प्रतिज्ञा केलौं बाबा, कामरु लेल उठाई जँ एहि बेर भोला पार लगाएब, आयब फेरू अगारी भक्त अहाँक पुकारि रहल अछि, राखब लाज विचारी बनि सेवक हम द्वार ठाढ़ छी, बनल हीन दुखियारी मनक आस पूरल नहि दानी, कयल कतबो सेवकाई जाबत धैर्य धरब अपने पर, ताबत ठाढ़ दुआरी अओ शिवशंकर त्रिपुरारी

एहन सन धनवानक नगरीमे बाबा

एहन सन धनवानक नगरीमे बाबा बना देलहुँ भिखारि नहि मांगल कैलासपुरी हम, झाड़ीखंड ओ बाड़ी नहि मांगल विश्वनाथक मंदिर, ने हम महल अटारि बतहबा बना देलौँ भिखारि एक मोन होइए जटा तोड़ि, नोचि लितहुँ सभ दाढ़ी बसहा बरद के डोरी धय मारितहुँ पैना चारि बाबा बना देलौँ भिखारि दोसर मोन होइए, अहाँके बिकोटितौँ धऽकऽ मरम पर हाथ से अपने वियाहलौँ अनपूर्णासँ, देखलौँ नयना चारि बाबा बना देलौँ भिखारि

तीन नयन सँ सुतला महादेव

तीन नयन सँ सुतला महादेव सभ धन लए गेल चोर आई हे माई, पर हे परोसिन शिव जी के दियनु जगाइ गे माई धन मे धन मल, बसहा बरद छल आर छल भांगक झोरी, गे माई खोजि-जोहि लायब बसहा बरद हम कहाँ सँ लायब भंगझोरी, गे माई भनहि विद्यापति गाओल इहो थिका त्रिभुवन नाथ गे माई कहू-कहू आहे सखि शम्भु उदेश कतहु ने भेटला हमरो महेश देखलहुँ शिवके घुमैत मशान डिमडिम डमरू बसहा असवार कहू-कहू आहे सखि शम्भु उदेश देखलहुँ हर के घुमैत कैलाश गले बीच विषधर, त्रिशूल भाल कहू-कहू आहे सखि शम्भु उदेश कार्तिक गणपति छथिन अज्ञान, कोना हम छोड़ि शिव के खोजब मशान, कहू-कहू आहे सखि शम्भु उदेश

देखहुँ हो शिवशंकर योगी

देखहुँ हो शिवशंकर योगी, अति विचित्र विरागी अंग भस्म सिर गंग सम्हारे, भाल चन्द्र विराजी बूढ़ बरद पर करथि सवारी, भाङ-घथूर अहारी कटि कोपीन पहिरि हर घूमथि, उपर बघम्बर धारी अर्धअंग श्री गौरी राजे, देखितहिं मन भ्रमकारी कार्तिक-गणपति दुइ जन बालक, तिनकहुँ गतिअति न्यारी मोर-मूस चढ़ि ईहो दुहु घूमथि, घरके सुरति बिसारी कहथि महारूद्र, भजहुँ एहि शिवकेँ, इहो छथि त्रिभुवन हितकारी

पूजा के हेतु शंकर आयल छी हम पुजारी

पूजा के हेतु शंकर आयल छी हम पुजारी जानी ने मंत्र-जप-तप, पूजा के विधि ने जानी तइयो हमर मनोरथ, पूरा करू हे दानी चुप भए किए बइसल जी, खोलू ने कने केबारी बाबा अहाँके महिमा, बच्चेसँ हम जनइ छी दर्शन दिअऽ दिगम्बर, दर्शन केर हम भिखारी हे नाथ हम अनाथे, वर दय करू सनाथे मिनती करू नमेश्वर, कर जोड़ि दुनू हाथे डामरु कने बजाउ, गाबइ छी हम नचारी

बम-बम भैरो हो भूपाल

बम-बम भैरो हो भूपाल अपनी नगरिया भोला खेबि लगाबऽ पार कथी केर नाव-नवेरिया, कथी करूआरि कोने लाला खेबनहारे, कोन उतारे पार सोने केर नाव-नवेरिया, रूपे करूआरि भैरो लाला खेबनहारे, भोला उतारे पार जँ तोहें भैरो लाला खेबि लगायब पार मोतीचूर के लडुआ चढ़ायब परसाद हाथी चलै, घोड़ा चलै, पड़ै निशान बाबा के कमरथुआ चलै, उठौ घमसान छोटे-मोटे भैरो लाला हाथीमे गुलेल शशिधर के दोगे-दोगे रहथि अकेल

बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी

बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया अहाँ के दुअरिया ना अइलों बड़ बड़ आस लगायल होहियो हमरा पर सहाय एक बेरी फेरी दियौ गरीब पर नजरिया, अहाँ के दुअरिआ ना। १। हम बाघम्बर झारी ओछायब डोरी डमरू के सरियाएब कखनो झारी बुहराब बसहा के डगरिया, अहाँ के दुअरिया ना। २। कार्तिक गणपति गोद खेलायब कोरा कान्हा पे चढ़ायब गौरा-पारबती से करबेन अरजिया, अहाँ के दुअरिया ना। ३। हम गंगाजल भरी भरी लायब, बाबा बैजू के चढ़ायब बेलपत चन्दन चढ़ायब फूल केसरिया, अहाँ के दुअरिया ना।४। कतेक अधम के अहाँ तारलों, कतेक पतित के उबारलों बाबा एक बेर फेरी दियौ हमरो पर नजरिया, अहाँ के दुअरिया ना।५। काशीनाथ नचारी गवैया माता पारवती के सुनवइया, बाबा एक बेर फेरी दियौ हमरो पर नजरिया, अहाँ के दुअरिया ना।६। बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया अहाँ के दुअरिया ना

भोला नेने चलू हमरो अपन नगरी

भोला नेने चलू हमरो अपन नगरी अपन नगरी यो कैलास पुरी पारबती के हम टहल बजायब नित उठि नीर भरब गगरी बेलक पतिया फूल चढ़ायब नित उठि भांग पिसब रगड़ी भनही विद्यापति सुनू हे मनाइनि इहो थिका दानीक माथक पगड़ी

भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए

भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए बिसरायल छी दुनियाँ सऽ ठोकरायल छी जे सभ गेल अहाँक द्वार, क्यो नहि भेल विमुख सरकार बाबा हमरे बेर से भांग खाय भकुआयल छी बाबा धरब अहाँपर ध्यान, पूजब शिवशंकर भगवान बाबा अहाँक चरण मे हम सब लेपटायल छी जेहन कातिक-गनपति, तेहने हम अयलहुँ शरणागत बाबा राखी चाहे बुराबाी, आब हम थाकल छी की हेत अयलहुँ द्वार, किछु नहि पूछै छी सरकार बाबा प्रेम मगन रस भांग पीबि मन्हुआयल छी

यो अहाँ बाबा बैदनाथ

यो अहाँ बाबा बैदनाथ कते के कयलहुँ सनाथ अयलहुँ हमहूँ अनाथ, अहाँक नगरियामे नेने गंगाजल केर भार ढूढंल जंगल आर पहाड़ अयलहुँ हमहूँ अनाथ, अहाँक नगरियामे नेने फूल बेलपात ताकी जंगल आ कैलाश अयलहुँ हमहूँ अनाथ, अहाँक नगरियामे नेने चानन ओ अक्छत ताकी जंगल आ कैलास अयलहुँ हमहूँ अनाथ, अहाँक नगरियामे

शिव हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा

शिव हेरब तोर बटिया कतेक दिनमा मृत्तिका के कोड़ि-कोड़ि बनायल महादेव, सुख के कारण शिव पूजत महेश, कतेक दिनमा तोड़ल मे बेलपत्र, सेहो सूखि गेल जिनका लेल तोड़ल, सेहो रूसि गेल, कतेक दिनमा काशी में ताकल, ताकल प्रयाग ओतहि सुनल शिव गेला कैलाश, कतेक दिनमा सबहक बेर शिव लिखि पढ़ि देल हमरहि बेर कलम टुटि गेल हे, कतेक दिनमा भनहि विद्यापति सुनू हे महेश दरिद्रहरण करू मेटत कलेश, कतेक दिनमा शिव हेरब तोर बटिया, कतेक दिनमा

शिव हो उतरब पार कओने विधि ना

शिव हो उतरब पार कओने विधि ना भरल-पूरल अछि नहि परिवार सपनहु सुख नहि, चिन्ता सवार नहि हमरा रूप अछि, ने धनक शृंगार तन अति खिन अछि, फूटल कपार नहि हम मण्डन, नहि कालिदास नहि हम विद्यापति, उगना खबास जौं दरशन नहि पायब तोहार जन्म बितायब तोरहि दुआर

सभहक दुख अहाँ हरै छी भोला

सभहक दुख अहाँ हरै छी भोला, हमरा किए बिसरै छी यो हमहूँ सेवक अहीं के भोला, कोनो विधि निमहै छी यो कपारो फूटल, बेमायो फाटल, किन्तु हम चलै छी यो द्वारे ठाढ़ अहांके हमहूँ, पापी जानि टारै छी यो सेवक अहाँक पुकारि रहल अछिद्व झाड़खण्ड बैसल छी यो आबो कृपा करू प्रभु हमरा पर, दुखिया देखि भुलै छी यो त्रिभुवन नाथ दिगम्बर भोला, सभटा अहाँ जनै छी यो

हटलो ने मानय त्रिपुरारी हो विपति बड़ भारी

हटलो ने मानय त्रिपुरारी हो विपति बड़ भारी खूजल बसहाके डोरी कोना पकड़ब चड़ि गेल फूल-फूलबारी, हो विपति बड़ भारी अंगने-अंगने सखि सब उलहन दै छथि कतेक सहब अति गारी, हो विपति बड़ भारी भनहि विद्यापति सुनू हे गौरी दाई इहो छथि त्रिशुलधारी, हो विपत्ति बड़ भारी जय शिवशंकर भोले दानी, क्षमा मंगै छी तोरे सँ अपराधी पातक हम भारी, तैं कनै छी भोरे सँ तोहर शरण तेजि ककरा शरणमे जायब हे शंकरदानी दयावान दाता तोरा सन, के त्रिलोक मे नहि जानी जाधरि नहि ताकब बमभोले, हम चिचिआएब जोरे सँ अपना लय फक्कड़ भंगिया, किन्तु तोहर अनुचर भरले कोसे-कोसे नामी तूँ शंकर, सेवक पर सदिखन ढ़रले जनम भेल माया तृष्णा मे, से तृष्णा नहि पूर भेलै कामना केर लहरि मे बाबा, जीवन एहिना दूरि भेलै हे दुखमोचन पार लगाबऽ, हम दुखिया छी ओरे सँ पूजन विधि नहि जानी हम हे यैह जपि जपि कऽ ध्यान धरी कर्म चक्रकेर जीवन भरि हम, पेटे लेल ओरियान करी हे ज्योतीश्वर पार लगाबह, हम दुखिया छी ओरे सँ

हे भोला हमर अनमोला, हमर दुखहारी

हे भोला हमर अनमोला, हमर दुखहारी आब दर्शन दियऽ त्रिपुरारी नाथ, नैया पड़ल मझधार यो नाथ, क्यो नञि उतारै पार अय गौरी के बर त्रिशुलधारी आब दर्शन दिअ त्रिपुरारी नाथ, दुख नहि सहल जाइ आब यो हर, राखू शरण सरकार यो अय अशरण ढरण, दीन-दुखीक हरण सुखकारी आब दर्शन दियऽ त्रिपुरारी

हे हर विपति पड़ल सिर भारी

हे हर विपति पड़ल सिर भारी अन्न-बसन बिनु तन-मन बेकल, पुरजन भेल दुखारी हे अपन कि आन कान नहि सूनय, गूनय जानि भिखारी हे मंगने कहय हाथ अछि खाली, रहितो द्वार बखारी हे गंग नियर बसु गायब हम हँसि बनब जे तोर पुजारी हे अछैत मनोरथ सभ भेल बेरथ, बनलहुँ अन्त भिखारी हे लिखल-पढ़ल कत बात गढ़ल कत, किछुओ ने भेल हितकारी हे शशिनाथ माथ पद टेकल, आबहु लएह उबारी हे

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