लगुन : बुन्देली लोकगीत

Lagun : Bundeli Lok Geet

	

कोरे कोरे कागज मँगाओ राजा बाबुल

कोरे कोरे कागज मँगाओ राजा बाबुल सो सुध बुध लगुन लिखाओ हो रम्मा। सुरन गौ को गोबर मँगाओ राजा बाबुल सो ढिक धर अँगन लिपाओ हो रम्मा। गज मोतिन के चौक पुराओ राजा बाबुल सो कंचन कलश धराओ हो रम्मा। चंदन पटरी डराओ राजा बाबुल सो अमृत अरग दिबाऔ हो रम्मा। पाँच सुपारी हरदी की गाँठें राजा बाबुल सो मुहर अढ़ाई डराओ हो रम्मा। सुरन गौ कौ गोबर न पूजै मोरी बेटी। सो गौआ कौ गोबर मँगाओ हो रम्मा। गज मोतिन के चौक न पूजै मोरी बेटी सो चून के चौक पुराओ हो रम्मा। कंचन चौक न पूजै मोरी बेटी सो माटी के कलश धराओ हो रम्मा। चंदन पटरी न पूजै मोरी बेटी सो छेवले की पटरी डराओ हो रम्मा। अमृत अरग न पूजै मोरी बेटी सो गंगाजल अरग दिवाऔ हो रम्मा। सोने की मोहरें न पूजै मोरी बेटी। सो रूप रूपैया डराओ हो रम्मा।

फूलौ है पंचरंग फूल सबई

फूलौ है पंचरंग फूल सबई रंग फूलियौ, फूलौं कुसंभ रंग फूल कृस्न सिर सोहियौ। चंदन की चार पलकिया महल बिच डारियौ। पौड़ें यशोदा के लाल सबई सुख मानियौ। भीकम के पाँचऊ पुत्र छठई बेटी रूकमिन, रूकमिन भई वर जोग इन्हें वर ढूँढ़ियौ। कोऊ कहै दीनानाथ तो कोऊ कहै दीवावंद कौं कोऊ कहै शिशुपाल चन्देरी के राव कौं। आजुल कहै दीनानाथ तौ आजी कहै दीनावंद कौ, काकुल कहै शिशुपाल चन्देरी के राव कौं। कोरे से कागज मँगाओ हरद की गठिया पीरी सीं, गौअन कौ गोबर मँगाओ सो आँगन लिपवाइयौ। सोने की मुहर डराऔ सो बेटी की लगुन करौ। सुघर से बम्मन बुलाओ सो लगुन लिखवाइयौ, कच्ची सूत लपेटो ऊपर हरी दूब है। बुलाओ सखी दो चार तो मंगल गवाइयौ, सखियाँ मंगल गायें तौ धिया अनमनी भई। आँसू चुयें दिन रात तौ ढुर ढुर पौंछियौ, कैसी बेटी अनमनी कैसे अँसुआ ढारियौ। कहौ तौ मैया मोरी अटा से गिर परैं, कहौ तो जहर विस खायें असुर संग न चलैं। काहे कौ बेटी मोरी अटा से गिरौ, काहै कौ जहर विस खाओ असुर ही लिखे लिलार चतुर वर का करै। इतनी जो सुनकै बेटी बम्मन कै गई, अरे अरे बाप के पुरोहित इक विनती मोरी सुनौ। किसन कौं दियौ तुम पाती हमारी कही तुम करौ, जो दैहैं पिता भीसम सो हमसे लै लियौ। अरे अरे रूकमनि बेटी तू मों खों फँसाहै, सुनहै पिता भीकम तौ विरग छुटाहैं। काहे के कगदा करे काहे की मस करी मस, काहे की करी लिखनिया तो पाती लिख भेजिहै। अंचल फाड़ कागज करौ कजरा की करी मस, छिगुंरी की करी लेखनिया सो लिख दीने दस बोल। कित के तुम बम्मन कित कौं जात हौ, कौना की लयें तुम पाती कौना कौं देत हौ। रूकमनि के हम बम्मन द्वारका हम आये हैं, रूकमनि की लयैं पाती किसना कौं देत हैं। बाँच पाती फटत छाती कठिन बोल रूकमनि लिखे, साँझ आहौ कुँआरी पइहो भोर तो बियाही मिलौं। आई है असुर बरात नगर खलबल फरे, कुँअल गये हैं सूख महल भोजन घटे। हती ऊजरी रैन अंधेरी हो गई, हती सुफल की गैल कंटीली हो गई। बुलाओ सखी दो चार असुर वर देखियो, देखे असुर जू के रूप सखी डर भागियौ। आई है किसन बरात नगर आनन्द भये, कुँअल गये उमड़ाय महल भोजन बढ़े। हती अंधेरी रैन उजेरी हो गई, हती कंटीली गैल सुफल हो गई। बुलाओ सखी दो चार तो किसनाजू के रूप देखियें देख किसनजू के रूप सखी सब मोहिये। सोने के कंकन हाथ मोतिन की मुदरी, इनमें है रूकमनी बेई तुरत पहिचानियौ। हाथ पकर तुरत रूकमन कृस्न ने रथ बैठारियौ, रूकम ने बाँधे हथियार तो पीछे गरआइयौ। किसन ने लीने हैं बाँध तो खम्भ लटकाइयौ, रूकमन करै दरयाफ भैयन खम्भ न बाँधियो। बिन आरे की भीत तौ लागत भियाउनी। बिन भैया की तौ बैन फिरत दिवाउनी। बिन बछरा की गाय तो फिरत दिवाउनी, बिन पूत की माय तौ फिरत दिवाउनी। बिन सारन ससुराल सो संगै कौ चलै, बिन सारन ससुराल सो जीजा को कहै। औरत है त्रिया जात तो रूकम रूकम करै, तब तौ लिखत ती पाती अब विनती करै। पहुँचे द्वारका में जाय तो धान बुआइहैं, दैहैं धान कौ नेग तौ सारे कहाइहैं। जिय आवै रूकमनि बियाह तौ गाई सुनाइयौ। कटहैं जनम के पाप सुनहैं सुख पाइयौ। कै गुँइया तुम कीनै उपवास के तुम व्रत करे, कै गुँइया दीनै गउ के दान सो कृष्णा वर मिले। न गुँइया हम कीने उपवास न कछु व्रत करे, तुमहि सखिन की भाग कृस्ना वर मिले।

इन वारे बनरे की लगुन हो आई

इन वारे बनरे की लगुन हो आई। लगुन हो आई बागन बिलमाई। सो होती आवाजें आजुल दरवाजें, रानी आजी के द्वारें। इन वारे बनरे... सो होती आवाजें बाबुल दरवाजे रानी मैया के द्वारे।

सो आज मोरे राम जू खों लगुन

सो आज मोरे राम जू खों लगुन चढ़त है। लगुन चढ़त है आनन्द बढ़त है। सो आज मोरे... कानन कुण्डल मोरे रामजू खों सोहें, सो गालन बिच मुतियन लर रूरकत है। केशर खौर मोरे रामजू खों सोहे सो गर बिच गोप जंजीर लसत है। कंकन चूरा मोरे राम जू खों सोहे सो हातन बिच गजरा दरशत है। रामजू के दरसन खों जियरा ललचत है। सो आज मोरे...

इन रघुनंदन धनुष उठाये

इन रघुनंदन धनुष उठाये। धनुष उठाये बारी सिया को ब्याय लाये। माथे सेहरो बाँधों राजा बनरे सो कलियन बीच बारी सिया ब्याय लाये। सो इन... चंदन खौर काढ़ौ बारे बनरे सो टिपकिन बीच वारी सिया ब्याय लाये सो इन... कानन कुण्डल पहनों बारे बनरे सो मोतिन बिच बारी सिया कौ ब्याय लाये इन रघुनन्दन... मुख भर बिरिया चावौ बारे बनरे सो लाली बिच वारी सिया ब्याय लाये इन रघुनंदन... हाथन कंकन बाँधो राजा बनरे सो गजरन बिच वारी सिया ब्याय लाये इन... चरनन माहुर लगाऔ बारे बनरे सो लाली बिच वारी सिया ब्याय लाये इन... इन रघुनंदन धनुष उठाये धनुष उठाये वारी सिया कौं ब्याय लाये।

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