लगनी : मैथिली लोकगीत

Lagni : Maithili Lokgeet

	

चारू दिस सूखी हो गेल

चारू दिस सूखी हो गेल, कमल कुम्हलाय गेल आरे सुखि गेल गोरी के करेजिया रे की घर लागय बिजुवन, अंगना अन्हारी राती आरे पहु परदेश तेजि गेला रे की जांत तऽ चलबे ने करै, मूसर उठबे ने करै आरे सासु बैरिनियाँ गरिया पढ़ै रे की के मोरा हीत होयत, पहु के उदेश लाओत आरे आब नहि पति जी के देखब रे की सासू जे मरि जेती, ननदि ससुरारि जेती आरे तुलसी देखिय, धैरज बान्हब रे की चुप रहू गोरी तोहें, मन मे सबूर लिअ आरे आओत तोरो मोन भावन रे की

जाहि बाटे हरि गेला

जाहि बाटे हरि गेला, दुभिया जनमि गेल कि आहे ऊधो, दुभिया जनमिते बिजुवन लागल रे की अपनो ने आबथि हरि, लिखियो ने भेजथि पांती कि आहे ऊधो, बटिया जोहैते छतिया फाटल रे की जँ नहि अओताह हरि, मरब जहर घोरि कि आहे ऊधो, मरब जहर-बिख पान रे की एक तऽ हम बारि कुमारी, दोसर हरि के प्यारी कि आहो रामा, भंगिया घोटैते मोर मन ऊबल रे की एक तऽ राजा के बेटी, संग मलिनियां चेरी कि आहो रामा, दिन भरि बेलपात कोना तोड़ब रे की फूल लोढ़ऽ गेलौं बाड़ी, अंचरा लटकलै ठाढ़ी कि आहो रामा, शिव बिनु अंचरा के उतारत रे की चहुँ दिस ताकथि गौरी, कतहु ने देखथि जोगी कि आहो रामा, कतहु ने सुनिऐ डमरू बाजन रे की बसहा चढ़ल आबथि, नाथ दिगम्बर मोर कि आहो रामा, शिव के देखैते अंचरा छूटल रे की

दुइ मिलि गेलिऐ हे द्योरे

दुइ मिलि गेलिऐ हे द्योरे एसगर एलिऐ रे की आरे स्वामीनाथ कहमा नराओल रे की तोहरो के स्वामी हे भौजी बड़ रंग-रसिया आरे बिजुवन खेलै छऽ शिकारहि रे की कहमा मारलहुँ हे द्योरे, कहमा नराओल कओने बिरछी ओठङाओल रे की बाटहि मारलहुँ हे भौजी, बाटे नराओल आरे कदम बिरिछ ओठङाओल रे की एक कोस गेलै गोरी, दुई कोस गेलै आरे तेसरहि स्वामीनाथ भेटल रे की जँओ आहे स्वामीनाथ सत के बिअहुआ आरे आंचरे सँ अगिया उठाबहु रे की पयर सँ जे उठलै अग्नि, अंचरा पकड़लक आरे दुनू मिलि खिरलीह अकासे रे की जँ हम बुझितहुँ हे भौजी, एते छल-बुधिया आरे अंचरा पकड़ि बिलमाबितहुँ रे की

नदिया के तीरे-तीरे

नदिया के तीरे-तीरे वन डोले मीठे-मीठे शीतल वसन, तन झामर रे की पिया के लिखल पाती हहरय मोर छाती मरद दरद नहि जानय रे की एक तऽ जे विरहिन दोसर शरीर खिन तेसर विरह केर भातल रे की नदिया के तीरे-तीरे वन डोले मीठे-मीठे शीतल वसन तन झामर रे की

नहाय-सुनाय उतिमा भीड़ चढ़ि बैसलि

नहाय-सुनाय उतिमा भीड़ चढ़ि बैसलि उतिमा झाड़ै छै नामी केशिया रे की घोड़बा चढ़ल अबै जालिम सिंह रसिया उतिमा सुरतिया देखि लोभयलै रे की कहाँ गेले किये भेल होरिल सिंह सिपहिया उतिमा के कय दियौ दान रे की केशिया झाड़ैते उतिमा भैया आगू ठाढ़ि ीोली भौजो कहै कुबोलिया रे की अगिया लगेबौ उतिमा तोरो नामी केशिया बजर खसेबौ सुरतिया रे की कहाँ गेल कीये भेल गाम कोतबलबा दुइ बोझ करची कटयबै रे की एतबा वचन सुनलनि होरिल सिंह सिपहिया झट दय डोलिया फनाबै रे की एक कोस गेली उतिमा, दुइ कोस गेली तेसरे मे लागल पियास रे की गोर लागू पैंया पडू अगिला कहरिया चुरु एक पनिया पियाबऽ रे की एक चुरु पील उतिमा, दोसर चुरू पील तेसरे मे खीरय पताल रे की हम ने जनलियौ उतिमा, तोहें डुबि मरबें डेरबा पइसि इज्जति लितियौ रे की बाबा कुल तारले उतिमा, भैया कुल तारले रखले बियहुआ के मान रे की

पढ़ल पंडित अहां, पंडित हे पंडित

पढ़ल पंडित अहां, पंडित हे पंडित पोखरिक दिन गुनि दियौ रे की पोखरिक दिनमा सुदिन दिन छै पोखरी मंगै छै जयलछ बेटी रे की मचिया बैसल अहां सासू बड़ैतिन बाबा खुनल पोखरि, देखब रे की एमकी लेआओन पुतहू जुनि तोहें जाहू दोसरे लेआओन पोखरि देखब रे की जूअबा खेलैत तोहें देओर दुलरुआ बाबा क्रीड़ओल पोखरि देखब रे की एमकी लीेआओन भौजो जुनि तोहें जाहू दोसरे लेआओन पोखरि देखब रे की पलंगा सुतल तोहें पिया निरमोहिया बाबा कोड़ायल पोखरि देखब रे की तोहें तऽ जाइ छैं धनी अपन नैहरबा हम जाइ छी मोरंग देस रे की आगू-आगू घीबक घैल, पाछू जयलछ चलि भेल बाबा के पोखरिया रे की कहमां बैसयबै घीबक घैल कहमां बैसयबै जयलछ बेटी रे की दुअरे बैसयबै घीबक घैल पोखरी बैसयबै जयलछ बेटी रे की पयर जे देलनि जयलछ, डांड़ डुबी गेली तेसरे मे खीरल पताल रे की

पिया परदेश गेलै

पिया परदेश गेलै, सभ सुख लय गेलै रोपि गेलै अमुआं के गाछ रे की फरीय - पकीय अमुआं, अधरस चुबि गेलै कोना हम रखबै जोगाय रे की नामी-नामी केशिया मोर, जीव के जंजाल भेलै अधिक सुरति जीब-काल रे की एक मोन होइए, जामीन धसि मरितहुँ नञि तऽ जहर - बिख खइतहुँ रे की के मोर एहि जग मे हीत-धन होयत पिया भेल डुमरी के फूल रे की

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