कीर्त्तन : मैथिली लोकगीत

Kirtan : Maithili Lokgeet

	

कृष्ण कृष्ण कऽ द्रोपदी करथि रोदना

कृष्ण कृष्ण कऽ द्रोपदी करथि रोदना कृष्ण अहाँ बिना लाज बांचत कोना सभा बिच द्रोपदी करथि रोदना कृष्ण कनिएक चीर बढ़ाउ अहाँ दुष्ट कौरव के क्यो नहि देलक मना पांचो पाँडव सहित चलू वन रहना कर्म विधान लिखथि विधना पांचो पाँडव सँ शकुनि केलथि वंचना

कहीं भीजत होइहैं भगवान

कहीं भीजत होइहैं भगवान, प्रेम-रस बुन्दिया मे कहमा से उठलै रामा कारी रे बदरबा, कहमा बरसि गेल मेघ अयोध्या से उठलै रामा कारी रे बदरबा, मिथिला बरसल मेघ कहीं भीजत... किनका के भीजइ रामा, लाली रे चदरिया किनका के भीजनि पटोर, प्रेम-रस बुन्दिया मे कहीं भीजत... राम जी के भीजइ रामा, लाली रे चदरिया सीया जी के भीजनि पटोर, प्रेम रस बुन्दिया मे कहीं भीजत होइहैं भगवान, प्रेम-रस बुन्दिया मे

कैकेयी के अज्ञासँ राम वन गेला

कैकेयी के अज्ञासँ राम वन गेला सीता ओ लछुमन सेहो संग भेला सुर के नाचबऽ लय, निशिचर के मारऽ लय रामजी गेला बनबास, काटल रावण के दसो कपार सुरसरि के तट पर जखन राम गेला केवट सँ भेलिन बहुत झमेला किछु नहि केलक ओ, चरण दबेलक ओ केलक अपन कुल उद्धार, काटल रावण के दसो कपार पंचवटी मे डेरा खसौलनि भरत-शत्रुध्न सेहो भेंट भेलनि राम के समझाबऽ लय, राम के बुझाबऽ लय रामजी गेला बनबास, काटल रावण के दसो कपार हाथक अंगुठी सेहो फेकि देलनि ई हाल सुग्रीव प्रभु केँ सुनौलनि सीता केँ ताकऽ लय, लंका सँ आनऽ लय चलला राम सुकुमार, काटल रावण के दसो कपार चौदह बरस राम बनहि बितौलनि बनहि मे शबरी के अँईठ बइर खयलनि लछुमन, वैदेही सँ, परम सनेही सँ भेलनि कष्ट अपार, काटल रावण के दसो कपार साधु के भेख धऽ रावण अबैया सीता पुनीत के हरलक मुदैया सीता कहथि धीर, नयन सँ बहनि नीर कहलनि प्राण आधार, काटल रावण के दसो कपार जग के बुझाबऽ लय, जग के समझाबऽ लय बिष्णु लेलनि अवतार, काटल रावण के दसो कपार

घूमे राम-लखन दुनू भइया

घूमे राम-लखन दुनू भइया, नदी के तीरे-तीरे ना किनका बिनु रे सून अयोध्या, किनका बिनु चौपाया किनका ले, रे मोरा सून रसोइया, आब के भेजन बनाइ राम बिनु मोरा सून अयोध्या, लछुमन बिनु चौपाया सीता लए मोरा सून रसोइया, के देत भोजन बनाइ नदी के तीरे-तीरे ना कओन गाछ तर आसन वासन, कओन गाछ तर डेरा कओन गाछ तर भीजैत हेता, राम-लखन दुनू भइया नदी के तीरे-तीरे ना चानन गाछ तर आसन वासन, चम्पा गाछ तर डेरा अशोक गाछ तर भीजैत हेता, राम-लखन दुनू भइया नदी के तीरे-तीरे ना

दशरथ प्राण तेजु, कैकेयी समाद भेजु रे

दशरथ प्राण तेजु, कैकेयी समाद भेजु रे आब के राजा जी के जरयतै हो दुलरुआ रामचन्द्र वन गेला भरत जी गाम छथि कहाँ गेली किए भेली कैकेयी माता झटपट भेजु ने समाद हो दुलरुआ जखने समदिया समाद लए पहुँचल पूछऽ लागल कुशल समाद हो दुलरुआ एक कुशल कहू माता तीनू रनिया दोसर कुशल कहू अयोध्या हो दुलरुआ पिताजी कुशल बौआ कहलो ने जाइ अछि सून भेल अयोध्या नगर हो दुलरुआ जखन भरत जी नगर सँ बाहर भेल नाना जी सँ मांगल विदाइ हो दुलरुआ जखन भरत जी अवध बीच अयलनि आइ किए नग्र उदास हो दुलरुआ आइ जे दशरथ जी प्राा जे तेजलनि ताहि हेतु नग्र उदास हो दुलरुआ एतबा वचन जब सुनलनि भरत जी खसला चित्ते मुरछाइ हो दुलरुआ कौशिल्या जे पानि लाउ कैकेयी जे मुह पोछु, आब के राजा जरेतै हो दुलरुआ

देखलहुँ ने सुनलहुँ जमाय हे

देखलहुँ ने सुनलहुँ जमाय हे, मिथिलापुर बसि कऽ गोर लागू पैंया पडू़ सिया के सजनमा इहो मांग दिअ सिनुराय हे, हमरो घर चलि कऽ माता के तेजब पिता के तेजब तेजब हम घर द्वार हे, तोहरो संग चलि कऽ प्रेम वचन सुनि बोले ब्रजनन्दन द्वापर रचायब रास हे, वृन्दावन बसि कऽ ऐसो किओ जबहिं मुसहरनी ब्रज मे भेली गुवालिन हे, ठाकुर जन कहि कऽ

धन धन सीताजी के फुलवरिया

धन धन सीताजी के फुलवरिया जहाँ अये साँवरिया माथे मुकुट शोभे काने कुण्डल डोले अंखियामे शोभे कजरिया जहाँ आयल साँवरिया मृदु मुसकान करे तिरछी नजरि मारे सभा बीच खिचले धनुषिया जहाँ अयला साँवरिया सुन्दर रूप देखि सुधि-बुधि गेलै भूलि आब ने सोहाए घर दुअरिया जहाँ आयल साँवरिया जुलफी कपोलन शोभे सीताके मनमोहे सखि सब करत पुकरिया जहाँ आयल साँवरिया

रहि-रहि कऽ जिया ललचाय हो

रहि-रहि कऽ जिया ललचाय हो, मुरलिया के धुन सुनि मुरलिया के धुन सुनि, बसुरिया के धुन सुनि, रहि-रहि... ब्रह्मा त्यागल ब्रह्मलोक केँ, शिवजी तेजल कैलाश हो राजा छोड़ल राजपाट केँ, रानी छोड़ल शृंगार हो, मुरलिया ... गइया छोड़ल घासो चरब, बछडू छोड़ल हुंकार हो, मुरलिया...

राज बगियामे देखल दुइ चोर के

राज बगियामे देखल दुइ चोर के एक श्यामल एक गोर के ना काँखमे फूल तोड़ि राखय, तखन सखि सबके ताकय देखल मुसकैत दुनू ठोर के, एक श्यामल... आँखिये-आँखिये ताकय, ताकि सखि सभक मन मोहय बर होइहें सीया के रघुवर श्याम हे, एक श्यामल फूल लयला मुनि के पास, ठाढ़ भेला चुपचाप मुनि बुझल मनक बात ओहि चोर के, एक श्यामल... मुनि दिन्ह आशीर्वाद, पुरल सभक मनक आश जनक छथि बड़ उदास प्राण देखि के, एक श्यामल... अयला बड़े-बड़े बीर, तोड़ि नहि सकल धुन-तीर सभ चलि भेला अपन हिम्मत छोड़ि के, एक श्यामल... कहथि मुक्तेश्वर राय, राजा गेला घबराय दियनु मिलाय धनुषा तोड़ि के, एक श्यामल...

श्यामल पहुनमा बिनु निन्दियो ने भावे

श्यामल पहुनमा बिनु निन्दियो ने भावे, सुनू हे सजनी मनमा चोरौने नेने जाय नीको नहि लागे मोरा, दिन और रतिया, सुनू हे सजनी दुअरो अंगनमा ने सोहाय सीया जी के पाबी भेल, मोन परसनमा, सुनू हे सजनी भेलथिन विधाता बड़ सहाय लतिका स्नेह गाबे, किछुओ ने भावे, सुनू हे सजनी प्रभु पर सँ दिल नहि जाय, सुनू हे सजनी

सोना के खराम चढ़ि

सोना के खराम चढ़ि, ठाढ़ भेला रामचन्द्र गृह अपना आहे हुकुम दिऔ माता कैकेयी, जेता वन रहना किनकर इहो पुरपाटन, किनकर गृह अपना आहे किनका पड़ल विपतिया, कि जेता वन रहना दशरथ के इहो पुरपाटन, कैकेयी के गृह अपना आहे सीता के पड़लनि विपतिया, राम जाइ छथि वन रहना अयोध्या के राजा बौआ, अहां जाइ छी केना आहे हमहूँ तऽ जाइ छी वनवास, वन रहना किनबै मे जादूपति छुरिया, कि हतबैमे प्राण अपना आहे राम लखन सन पुत्र, कि सेहो जाइ वन रहना

हे कमलनयन, हे करुणामय

हे कमलनयन, हे करुणामय, अपराध बहुत हम कयने छी जौं आन हमर स्वामी रहितथि, नहि जानि की कयने रहितथि हे केहन भरल अहाँ करुणामय, हम कयक बेर अजमौने छी सिद्धान्त स्नेहलतासँ करू, भवसिन्धु सँ निश्चय कयने रहितहुँ हे केहन क्षमा सँ भरल छी अहाँ, हम तकर परीक्षा कयने छी आम फड़ैत कटहर अमृत घट, पान चुबैत गरल के केहन भरल अहाँ करूणामय, हम कयक बेर अजमौने छी

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