Kaushal : Bindesh Kumar Jha

कौशल : बिंदेश कुमार झा

जीवन में कौशल की आवश्यकता

जिस प्रकार भोजन में नमक की आवश्यकता होती है । ठीक उसी प्रकार से हमारे जीवन में कौशल की आवश्यकता होती है। बिना नमक के भी खाने को खाया जा सकता है और बिना कौशल की भी जीवन जिया जा सकता है । किंतु खाने में जो महत्व नमक का है , उतना ही महत्व हमारे जीवन में कौशल का भी है। जितना महत्व एक गाड़ी में ईंधन का होता है उतना ही महत्व हमारे जीवन में कौशल का भी होता है। हां बिना ईंधन के भी गाड़ी को चलाया जा सकता है । बहुत से तरीके हैं। धक्का लगाकर या किसी अन्य गाड़ी की सहायता से। शायद दूसरा तरीका आपको पसंद ना आए। क्योंकि यह हमारी काम को और कठिन बनती है। ठीक उसी प्रकार से अगर हमारे जीवन में कौशल नहीं है ,तो यह हमारे जीवन जीने की कुशलता को कठिन बना देती है। जीवन जीने के कौशल बहुत तरीके के हैं। यह बातचीत करने का कौशल, समस्याओं के समाधान निकालने अन्य आदि कौशल की सूची है। आवश्यकता अनुरूप ही कौशल की आवश्यकता होती है। कुछ कुशल हम अपने जीवन काल में स्वयं ही सीख जाते हैं और कुछ हमें विशेष रूप से सीखना पड़ता है। हमारे अंदर कौन सी कौशल विशेष रूप से समृद्ध होगी या नहीं यह इस बात पर भी नेवर करता है कि हम कि माहौल में है। क्योंकि वातावरण कौशल के पिता होते हैं। हमारी आत्मा कौशल की जननी होती है। यदि हमारे पास एक अच्छा वातावरण नहीं है तो हम अपने वातावरण का निर्माण स्वयं ही कर सकते हैं। असंभव कार्य कोई बना है क्या? बस हमारे भीतर एक इच्छा शक्ति होनी चाहिए बाकी पहाड़ों को काट के रास्ता बनाना मुश्किल तो नहीं। हमारे भीतर जूजू कौशल हैं वह हमारी पारिवारिक स्थिति का परिचय भी देती है। विभिन्न प्रकार के हमारे ज्ञान के स्तर का मापन भी है। आजकल नौकरियां भी कॉलेज से प्राप्त डिग्रियों पर नहीं मस्तिष्क में प्राप्त कौशल के आधार पर दिया जाता है। कागजों पर किसी का अनुसरण करना आसान है लोहा तो तब मन जब वह अनुसरण हमारी व्यक्तित्व में हो।

संचार का कौशल

यदि मनुष्य आजीवन अकेला ही रहे तो इसे इस कौशल की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ।अपने आसपास विभिन्न गतिविधियों के लिए अन्य लोगों पर आश्रित है। इसके लिए बात करने का कौशल आना अनिवार्य है।

संचार के माध्यम से हम एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। परिणाम स्वरुप अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। आवश्यक नहीं यह स्वार्थ आर्थिक लाभ पर ही हो कई बार यह अन्य भावपूर्ण रूप से भी प्रभावित हो सकती है। छात्र जीवन में शिक्षा पद्धति में सबसे पहले बात करना ही सिखाया जाता है। क्योंकि जब तक हम अपने मन की भाव को सामने वाले के समक्ष नहीं रखेंगे ,तब तक सामने वाला हमारी बातों को कैसे समझेंगे। हां जो व्यक्ति बोल नहीं पाते हैं, वह भी संचार करते हैं ,अपनी गतिविधियों के द्वारा। यदि सामने वाले व्यक्ति में बात करने के तरीके का सही ढंग ना हो तो वह हमारी योग्यता पर सवाल खराब कर सकता है। शायद यह भी संभव है कि हम अपने संबंध के स्तर को ही को दें। ज्यादातर लोगों का ऐसा मानना है कि बातचीत करने के कौशल की आवश्यकता दफ्तर और विद्यालय आदि अन्य स्थानों पर ही होती है। लेकिन इस कौशल की आवश्यकता हमें अपनी दैनिक जीवन में भी है। हमारे दैनिक जीवन में अगर हम इस मामले में कुशल हैं तो शायद हमें समाज से पहले से भी अधिक प्रेम सम्मान और सहयोग मिले। ज्यादातर नौकरी के इंटरव्यूज के लिए सबसे पहले व्यक्ति के बातचीत करने के कौशल कोई ध्यान में लिया जाता है ।क्योंकि ऐसा मानना है कि जिस व्यक्ति में बातचीत करने का कौशल है उसे अधिक शिक्षित समझा जाता है। जो व्यक्ति बातचीत की कौशल को समझ सकता है तो आखिर वह शिक्षा का महत्व क्यों नहीं समझ पाएगा। इसी कारण नौकरियों के इंटरव्यू में बातचीत करने के तरीके पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हमारे सामाजिक जीवन में भी अगर हमारे बातचीत करने का तरीका शानदार हो ,तो समाज की अन्य व्यक्ति भी हमसे संचार करने के लिए उत्सुक होते हैं। और हमें भी अनेक प्रकार के अनुभवों का अनुसरण मिलता है। "विद्या ददाती विनयम" संस्कृत का यह श्लोक बताती है कि शिक्षा से कैसे हमें विनय प्राप्त होता है। थोड़ी गहरे स्तर से सोचें तो यहां पर शिक्षा गंभीरता से हमारे बातचीत करने की कौशल को प्रभावित करती है। एक व्यक्ति जिसने पूर्ण रूप में शिक्षा प्राप्त की हो उसके व्यवहार में दिखाई पड़ता है। लेकिन यह व्यवहार में क्या दिखाई पड़ता है हमारा रूप या हमारा रंग । शायद जब में रखें नोटों के गड्डी। नहीं हमारा शिष्टाचार बात करने का सही तरीका लोगों से व्यवहार करने का तरीका। मधुबनी में एक बहुत सुंदर कहावत है "यही मुंह पान खिला सकता है और यही मुंह जूता भी" विभिन्न पुस्तकों में भी बातचीत करने का सही महत्व तो कहावत और लोक कथाओं से ही प्रचलित हो जाती है। इस सूची में हम हमारे संतो को कैसे छोड़ दें जो बोलते हैं

" ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए,
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए."

हम शब्दों में मर्यादा और और गरिमा रखकर सामने वाले को प्रभावित कर सकते हैं।

नेतृत्व का कौशल

कुछ और भी महत्वपूर्ण कौशल हैं जो सिर्फ कुछ ही लोग में देखने को मिलती है। नेतृत्व करने का कौशल कौशल की सूची में एक अहम स्थान पर आता है। ऐसा व्यक्ति जो दूर तक देख सकता है। किसी भी चीज के लाभ और हानी को देख सकता है । वह हर बात के सही पक्ष और उसके विपक्षों के बारे में सोचता है। उनके बीच संभावनाओं को देखता है। ना जाने कितने कौशल की आवश्यकता होती है मात्र इस एक कुशल को बनाने में । नेतृत्व करने वाला व्यक्ति प्रशंसा का भी हकदार होता है और वह व्यक्ति लोगों से प्राप्त निंदा का भी हकदार होता है। इन दोनों ही पक्ष को संभाल के चलना नेतृत्व का एक मुख्य कार्य में आता है। एक समूह में जब बहुत सारे व्यक्ति होते हैं। हर व्यक्ति अपने स्वयं का पक्ष रखकर अपने स्वयं विपक्ष की लाभ और हानी को प्रस्तुत कर सकता है। लेकिन जो व्यक्ति नेतृत्व करता है वह सभी के बात को एक सही दिशा देने का कार्य करता है। गंतव्य पर पहुंचने की जिम्मेदारी तो चालक की ही होती है। हां मैं अन्य कर्मचारियों के योगदान पर प्रश्न नहीं उठा रहा। एक घर की छत न जाने कितनी बरसात प्रचंड सूर्य की रोशनी को झेलती है। हालांकि उसको भी दीवारों की सहायता प्राप्त हुई है। लेकिन इन दीवारों को एक दिशा देने का कार्य भी तो नेतृत्व करने वाले छत ने हि किया है। कई बार नेतृत्व करने वाले व्यक्ति पर हमें क्रोध आ जाता है हम उसके पदवी को अहंकार की चादर से ढक देते हैं। क्योंकि हम एक दिशा में देख रहे होते हैं। नेतृत्व करने वाला व्यक्ति की बातें कठोर हो सकती हैं लेकिन हमें भी उसकी स्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिए। नेतृत्व करना इतना आसान कार्य नहीं जितना कि हम शब्दों में से बता रहे हैं। यह गुण बहुत कम लोग में पाए जाते हैं इसीलिए हर समूह में नेतृत्व करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम होती है।