काश्वी (कविताएँ) : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री

Kashvi (Poems) : Jyoti Narendra Shastri


नूतन वर्ष आया है

कोयल कूके डाली-डाली, भंवरों ने पुष्पों पर गूंजाया है, चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा, देखो भाई ! नूतन वर्ष आया है । टहनियो ने किया है नए पत्तों से श्रृंगार, चारों तरफ चल रही सुरभि मंद बहार, प्रेम से पुलकित है तन का रोम-रोम, समाप्त हो चुका मन का विराग । नूतन वर्ष,परिवर्तन नव, प्रकृति ने भी किया श्रृंगार, देखकर लगता है वसुधा को, मानो पहना हो पुष्पों का हार । कही होती फसल की कटाई, कही बसंत अपना रूप दिखाती है, पतझड़ के बाद आए नए फूल और पत्ते उम्मीदों की नई ज्योति जगाती है ।

राव तुलाराम

आर्यावर्त परतंत्र हुआ, दासत्व बेड़िया जकड़ डाली । फूट डालो और राज करो अंग्रेजो ने नीति बना डाली । सकल सामंत, भूप, नृपति, अंग्रेजो के सामने हाथ बांधे खड़े थे । कुछ मातृभूमि के दीवाने, देश की आन पर खड़े थे । अहीरवाल का लंदन रेवाड़ी कहलाता था, यदुकुल का गरुड़ ध्वज मुक्त गगन में फहराता था । राज्य हड़प की नीति अंग्रेजो ने अपनाई थी, रेवाड़ी रियासत के कुछ गाँवों की जागीरे कब्जाई थी । अपनी गलत नीतियों से अंग्रेजो ने, प्रजा को विद्रोही बना लिया था । तुलाराम की मातृभूमि पर कब्जा करके, सोये सिंह को जगा दिया था । शौर्य, तेज, देशभक्ति सब उसकी जाति थे, खड़ग, बरछी, तलवार सब उसकी विपदा के साथी थे । तलवारों की झंकारों में वह पला-बढ़ा था, मातृभूमि की रक्षा को लेकर मानो उसको विधाता ने गढ़ा था । अजानबाहु राव तुलाराम जब चलता था, ऐसा लगता था मानो स्वयं काल मचलता था । उसके अतुलित प्रचण्ड का महाकाल साक्षी था, मातृभूमि की रक्षा में वह स्वयं विरुपाक्षी था । यदुकुल का अंश इस समर बेला में आया था, हजारों अंग्रेजो का रक्त अपनी शमशीर से बहाया था । जिधर जाता उधर रुंड-मुंड पड़ जाते थे, हाहाकार मच जाता जब तुलाराम स्वयं युद्ध में आते थे । नसीबपुर की भूमि पर, काल नाच रहा प्रचण्डी पर । जिधर जाता तुलाराम उधर कोहराम मच जाता था, शौर्य देखकर लगता मानो काल स्वयं युद्ध मे आता था । युद्ध भूमि गुंज रही ललकारों से, दादा किशन के जंगी नारो से । पंद्रह हजार अंग्रेजो के सामने पांच हजार अहीर थे, मातृभूमि के दीवाने सभी युद्ध में अतुलित वीर थे । एक तरफ था जेरार्ड खड़ा, दूसरी तरफ तुलाराम हठीला । सन सत्तावन का संग्राम आज इतिहास लिख रहा था, तुलाराम के रूप में स्वयं मानो मृत्यु का देवता लड़ रहा था । तुला ने अपने घोड़े को अंग्रेजो की तरफ बढ़ा दिया था, लॉर्ड जेरार्ड का सर झटके में ही गिरा दिया था । तुला के समर में आते ही अंग्रेजो का दिल घबरा जाता था, उसके शौर्य की गाथाओ से लंदन भी दहल जाता था । सत्तावन की क्रांति के तुलाराम अग्रिम योद्धा कहलाये थे, रूस के जार से सहायता लेने भारत के दूत बनकर आये थे । आजादी की रक्षा करते करते तुला पंच महाभूतों में विलीन हुआ, मातृभूमि का बेटा आज अपनी मिट्टी में लीन हुआ ।

ए चाँद अगले बरस फिर आना

हाथों को मेहंदी से लाल कर जाना, मस्तक पर कुमकुम लगा जाना, कंगन से शरीर पर बेशक ढक जाना, पर ए चाँद अगले बरस फिर आना । मस्तक पर रहे सदा पिया का हाथ, बना रहे सात जन्मों का साथ, ऐसा मुझे एक वरदान दे जाना, पर ए चाँद अगले बरस फिर आना । मेरी खुशियों को किसी की नजर ना लगाना, मेरे प्रियतम की सदा तुम उम्र बढ़ाना, सदा सुहागन रहूं ऐसा एक वरदान दे जाना, पर ए चाँद अगले बरस फिर आना । भूखी प्यासी रहूंगी दिन भर की बेकरार मत करना, ए चाँद तुम आने में ज्यादा रात मत करना, भूखी प्यासी तो कोई सजनी फिर भी रह जाएगी, पिया मिलन की दूरियां वह कैसे सह पाएगी । ए चाँद अगले बरस तुम फिर आना । जीवन की हर खुशी श्रृंगार पिया से है, आभूषण प्रियतम से है, मेहंदी महावर पिया से है, मेरे घर के आंगन का कोना-कोना सदाबहार पिया से है, ए चाँद अगले बरस तुम फिर आना । ए चाँद तुमसे एक वरदान मांगती हूं, तेरी ज्योति में पिया का दीदार चाहती हूं, जब तक जिउ सुहागन बनकर जिउ, तुझसे ताउम्र सौलह श्रृंगार का एक वरदान मांगती हूँ । ए चाँद अगले बरस फिर आना ।

चंद्रयान 3

दुनिया को लोहा एक बार, फिर से भारत ने मनवाया है । चन्द्रमा की सतह पर चंद्रयान 3 का सॉफ्ट लैंड करवाया है । चंदा मामा की राखी, धरती माता ने भिजवाई है । आज के दिन की तिथि इसरो ने, इतिहास में दर्ज करवाई है । लैंडर विक्रम से बाहर, रोवर प्रज्ञान आया है । अपनी ताकत का लोहा, आज भारत ने फिर मनवाया है । कुछ दिनों के अंधेरे के बाद, आज उजाला हो पाया है । सकल विश्व को छोड़कर, आज भारत ने चाँद पर तिरंगा फहराया है ।

पिता का त्याग

पहली बार जब मै इस दुनिया में आई थी, खुशी से तुम्हारी आँखे डबडबाई थी । मेरे पैदा होने की खुशी में पापा, तुमने शहर भर को मिठाई खिलाई थी । दिनभर काम करने से थक जाते थे तुम, हाथों में पड़े छालो को तुम सबसे छिपाते थे । मुझे अभी भूख नही है ऐसा कहकर अपने हिस्से की रोटी खिलाते थे, सबके सोने के बाद खुद पानी पीकर सो जाते थे । मेरी स्कूल की महंगी फीस भरने के लिए ताकि पूरे हो मेरे सपने, तुम थके बदन उन्ही मैले कुलचे कपड़ो मे ही निकल जाते थे । बचपन में मुझ पर पड़ी डांट अब समझ आती है, वो डांट भी तुम मेरी भलाई के लिए लगाते थे । मैने देखा है पापा तुम्हे रातभर जागते हुए, मैने देखा है पापा तुम्हे संतान के सपनो के पीछे भागते हुए । थोड़े से काम से थक जाते थे तुम, फिर भी देखा है पापा मैने तुम्हे काम के पीछे भागते हुए । कन्यादान के बाद जब मेरी विदाई का वक्त आया था, अपने आँसू छूपाते हुए तुमने जूठा ही मुस्कुराया था । मुझे अपनी आँगन की नन्ही कली कहते थे तुम, नन्ही कली को आँगन से विदा करके कितने गम सीने में दबाये थे तुमने । मैने देखा है पापा तुम्हे मेरे सपनो को पुरा करने के लिए उनके पीछे भागते हुए ।

चाय और तुम

गर्म गर्म चाय की चुस्किया और साथ है तुम्हारा, जाने कितने दिनों बाद हाथो में हाथ है तुम्हारा । क्या बात है तुम्हारे हाथों की बनी चाय में, चाय की चुस्कियों में ही जिंदगी का सफर कट जाये हमारा । चाय सी कड़क होनी चाहिए मोहब्बत हमारी, हर चुस्कियों में रिश्ता गहरा हो हमारा । चाय की तलब और तेरी यादो का सफर, विरह में बेरुखी से जलता है कलेजा हमारा । इजहार ए इश्क भी तुमसे लाजमी था, मुझे याद है चाय से ही सफर शुरु हुआ था हमारा ।

बचपन के दिन सुहाने

बचपन के वो दिन भी कितने सुहाने थे, थोड़ी हक़ीक़त, थोड़ा जुमला,ओर कुछ अफसाने थे । इसे नादानियाँ समझो या कहो समझदारी का दौर, इस जवानी से अच्छे तो बचपन के वो गुज़रे ज़माने थे । बरसात के मौसम में कागज की कश्ती बनाते थे, कटती पतंग को लूटने गाँव के आखिरी छोर तक जाते थे । जात-पात, ऊंच-नीच के सब बंधनों को भूलकर, सबसे स्नेह-प्रेम और भाईचारा निभाते थे । गमो से कोशो दूर प्रेम की धुन गाते थे, दौड़ते-दौड़ते गाँव के कई चककर लगाते थे, कभी फिसल जाते थे पांव कीचड में ही तो कभी रेत पर भी सरपट दौड़ लगाते थे । कभी चंदा मामा के लिए रात भर जागते थें, तो कभी तितली को पकड़ने के लिए भागते थे । कभी दादी-नानी परियो की कहानी सुनाती थी, तो कभी माँ लोरी गा कर के सुलाती थी । खत्म हुआ बचपन, आई जवानी, वो दिन भी कितने सुहाने थे । इस जवानी से अच्छा बचपन के वो नादानियों भरे गुजरे अफसाने थे ।

नानी

होश आया जब पहली बार, तब खुद को तेरे आँचल में पाया था । संसार का समस्त प्रेम मुझ पर, नानी तुमने ही लुटाया था । कभी ना डांटा तुमने मुझे, कहते फूल सी सुकुमारी थी । नाना की मै आँख का तारा, मामाओ की राज दुलारी थी । गर्मी की छुटियो में कभी-कभी, मेरे मम्मी पापा मुझे घर ले आते थे । मेरी याद में नानी तुम, नाना संग नीर बहाते थे । कभी जब मै पड़ती थी बीमार, तुम रात भर नहीं सो पाते थे । मेरी चिंता में नानी तुम, कितने दुबले हो जाते थे । शादी के बाद अब नानी के घर, एक बार ही जाना हुआ । देख कर नानी के उस आँगन को जिंदा मेरा बचकाना हुआ । नानी बोली तू नहीं तों मुझे, तेरी एक तस्वीर दे जा । उस तस्वीर को मै हर रोज निहारती रहूंगी, तेरी यादो को मेरे मन के कोने में संवारती रहूंगी ।

मुलाकाते मोहब्बत की

मुलाकाते मोहब्बत के लिए हुए जा रही है, ना जाने कितनी सौगाते वों प्यार के लिए लिये जा रही है । कभी वो गीत गाकर दिल को बहला रही है, तों कभी इत्र से वातावरण को महका रही है । कभी इजहारे इश्क जता रही है, कभी इकरारे इश्क बता रही है । ये हसीन राते इश्क के लिए होती, इसी कसमकस में जिंदगी बीती जा रही है । प्यार की महफिल और दिलकश नजर आती, अगर सारी कायनात मोहब्बत के लिए होती । उम्र नफरत में बीती जा रही है आदम की, ज्योति अगर सारी बात मोहब्बत के लिए होती ।

कभी जो हमारी एक आह से

कभी जो हमारी एक आह से सिहर जाते थे, आज वो हमारे गम को भी अनदेखा कर जाते है । जी भर के देखा करते थे जो कभी, आज उन्हे पल भर भी देखना गवारा नहीं । कभी जो नही देख सकते थे चेहरे पर पड़ी सिकन को भी, आज वो हमारी दर्द भरी चीख को सुनकर भी निकल जाते है । खता बस हमसे इतनी हुई की उन्हे बेहिसाब प्यार दिया, उन्हे खर्च होने वाली एक एक मिनट का हिसाब मांग लिया । प्यार में परायापन भी जरूरी है ज्योति, ज्यादा अपनापन दिखाओ तों पराया कर जाते है ।

सरहद की दूरिया

मुमकिन है अगर तुम मिटा सकते हों नफ़रत को, मगर दों मुल्को के बीच की सरहद कभी मिटाई नहीं जाती । तुम बांटते रहे शहरभर में अमनो-चमन, मगर सरहद पर मोहब्बत की खुशबु कभी फैलाई नहीं जाती । की हमने उन्हे आसियाना दिया, ढेर सारी सौगाते दी, पर ये जन्मभर की नफरते भुलाई नहीं जाती । मोहब्बत की खुशबु नहीं फैलेगी इन फिजाओ में, जब तक नफरत की दीवार गिराई नहीं जाती । इंसान इंसानियत का कत्ल करती रहेगी, जब तक सरहद पर मोहब्बत की लौ जलाई नहीं जाती ।

इश्क का टूटा पत्थर

तुम्हारी दी हुई सौगाते याद आती है, दिल में एक तूफान सा जगा जाती है । तुम कहते थे मै चाँद हूँ तुम्हारा, अब तुम्हारे इश्क से भी महरूम नजर आती है । हम टूट कर डूब गयें तेरे आसियाने में, पर तुम्हे अब मेरी सूरत भी कहा नजर आती है । जैसे मै इश्क के घरौंदे का टूटा पत्थर हूँ, तुम्हारी याद मुझे ड़गर से खींच लाती है । इश्क बड़ी जालिम चीज है ज्योति, इसमे दुनिया मुरौवत नजर नहीं आती है ।

दिया और बाती

सुरज को जरा ढल जाने दों, अंधेरे को फैल जाने दो, आकाश में तारों को टिमटिमाने दो, दिया और बाती का मिलन हो जाने दों । जलती है बाती, दीया सहारा बन जाता है । दोनो के सहयोग से, तम भाग जाता है । कभी लड़ता जुगनू अंधेरे से, कभी शमा परवाने से मिलने आती है, जलते जलते तम को हरते बाती भी दिये में विलीन हो जाती है । दिया और बाती महज वस्तु नहीं, जीवन के दर्शन को समझाते है । दिये की तरह मिट्टी से उपजते है हम सब, और मिट्टी में मिल जाते है ।

मै एक शिक्षिका हूँ

कक्षा में मै विधार्थियों को, जब उनका पाठ पढ़ाती हूँ । मेहनत के रास्ते से उन्हे, तरक्की की सीढ़ियों का पथ दिखाती हूँ । शिक्षा के बिना जीवन में अंधकार है, बिना शिक्षा सब कुछ बेकार है । कोई रह नहीं जाये शिक्षा से विहीन, इसलिए घर-घर जाकर शिक्षा की जोत जगाती हूँ । मेरे विधार्थी पढ़ लिखकर, एक दिन भारत को महान बनाएंगे । गहरे सागर में जाकर मोती ढूंढ लाएंगे, या सृजन का बीज बोकर चाँद पर जाएंगे । जीवन के उलझनों से निकलकर, उन्हे सृजन की राह पर ले जाती हूँ । हां मै एक शिक्षिका हूँ ! मै विधार्थियों में नव सृजन के बीज उगाती हूँ ।

दस्तक-ए-वक़्त

लोग अपने वायदे से मुकरते जा रहे है, वक्त के साथ कुछ लोग बदलते जा रहे है । कभी जो निभाते थे रिश्तो में ईमानदारी, आजकल वो हर रिश्ते में बेईमानी निभाते जा रहे है । बदलते वक्त में पुराने लम्हें छुटते जा रहे है, कुछ अपने ही रंग दिखाते जा रहे है । जिंदगी है अपनों की पहचान भी लाजमी है, हर कोई अपने चेहरे के पीछे नकाब लगाते नजर आ रहे है । बुरे वक्त की दस्तक करवाता है रिश्तो की पहचान, कुछ अपनों के भी नकाब हटते जा रहे है ।

पति और पत्नी

पति और पत्नी का रिश्ता, जैसे हो दिया और बाती । एक दूजे के सुख के साथी, एक दूजे के विपद के साथी । कभी लड़ते है, कभी झगड़ते है, कभी एक दूसरे को मनाते है । सात फेरो की डोर को वो, अंतिम सांस तक निभाते है । ना जाने कितने मौसम बीते, ना जाने कितने रिश्ते बनाये । पीकर गम एक दूजे का, दोनो परस्पर खुशिया लुटाये । पति संभालता घर को, तों पत्नी लक्ष्मी स्वरूपा बन जाती है । कुल परम्परा का पालन करके, मर्यादा में हर रीत निभाती है । कभी भूख को, कभी प्यास को, वह सबसे छिपाती है, मीत बनकर साथ देती है पति का, तों संतान को धूप छाँव से बचाती है । पति और पत्नी का रिश्ता, जैसे हो दिया और बाती । एक दूजे के सुख के साथी, एक दूजे के विपद के साथी ।

प्रवासी बेटा

आहट तेरे कदमो की सुनने को बेकरार से है, तेरे विदेश जाने के बाद तेरे माँ बाप उदास से है । तुझे याद करते है, अश्कों से नीर बहाते है । तेरी सलामती की फरियाद कर आते है । आँगन तुम बिन सुना है, घर का आँगन मुरझा गया है । अलौकिक ज्योति से चमकता था घर, अब सब जगह अंधेरा छा गया है । तुम्हारे बूढ़े माँ बाप की जिंदगी, अब इंतजार में ही जा रही है । बचपन में बैठते थे तुम जिस साईकिल पर, उस की आगे लगी छोटी सीट तुम्हे बुला रही है । तेरे बचपन की कुछ निशानियां, अब उनके जीने का सहारा है । एक बार तु लौट कर आ जा, सिवा तेरे कुछ नहीं गवारा है ।

तुमसे जुदा होकर

तुमसे दूर आ गयें है अब हम खफा होकर, तुम्हे अब भी होश नहीं आया हमसे जुदा होकर । शायद मै तुम्हारे लिए जरूरी तों नहीं था, फासला बढ़ा लिया तुमने मुझसे जुदा होकर । कभी याद तों आते होंगे तुझे भी मेरी मोहब्बत के अफसाने, मै भी जी रही हूँ अब तुमसे जुदा होकर । कुछ तों बाते अहसासों की भी थी, कभी तों याद आये होंगे तुम्हे हम तन्हा होकर । बेकरारी सी है, दिल नादान सा है, घुटन सी होती है अब तुमसे जुदा होकर ।

ससुराल की पहली होली

आज ससुराल की पहली होली आई है, जीवन में कुछ नये बदलाव लाई है । आसान कहा होता है कुछ दिनों में बहुत कुछ बदल जाना, अपना घर छोड़ कर ससुराल के रीति रिवाज अपनाना । आज शादी के बाद पहली होली आई है । ससुराल की पहली होली पिया के संग, होली का रंग बिखेर रहा जीवन में उमंग, चुपके से आये पिया, हाथों में था रंग लाल, डाल दिया मुझ पर रंग और हो गई मै लाल, इस कदर उसने मेरी पकड़ी कलाई, मै चाह कर भी वहा से भाग नहीं पाई । देवर ननद सब ताक रहे थे, रंग लगाने को झाक रहें थे, मै रंगो से बचती फिरती दौड़ी, और वो सब मेरे पीछे भाग रहे थे, क्या बताऊ सखी आ रही थी मुझे लाज, पर मै नहीं सम्हाल पाई खुद को आज । छा गया मुझ पर इस कदर फाल्गुन का रंग, याद रहेगा मुझे ससुराल का होली का पहला रंग, जीवन में आया उल्लास और उमंग, फीका ना पड़ने पाए कभी खुशियों का रंग । आज ससुराल की पहली होली आई है । जीवन में नई खुशिया लाई है ।

चेहरा तुम्हारा

तुम्हे देखने से नजरें हटती कहा है, तेरी सूरत के अलावा और सूरत जचती कहा है । ललाट पर सिलवटे सी पड़ी है तुम्हारे, जो तुम्हारे चेहरे को फबती कहा है । पूनम का सा नूर आया है अब तुम्हारे चेहरे पर, उदासिया भला यहाँ ठहरती कहा है । अप्रतिम सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हो गयें हो तुम, तुम्हारे जैसी सूरत अब बनती कहा है । तुम्हारे चेहरे के सिवा कुछ और नजर नहीं आता मुझे, तुम्हे पाने के अलावा मेरी हसरत ही क्या है ।

नाम तुम्हारा

रोज लिखती हूँ हाथो पर नाम तुम्हारा, फिर भी मिटता नहीं गम हमारा । इन आंसुओ की तपन हर चीज को मिटा देती है, बस एक दूर नहीं होता दर्द हमारा । कभी थामते थे तुम इन हाथो को, अब हाथो पर नजर नहीं आता हाथ तुम्हारा । कभी आँखो मे देखा करती थी सपने, एक सपनो का संसार हो हमारा । बेसुध सोती पीड़ाओ मे आस ड़गर की ना छोडूंगी, किस्मत से भी चुरा लूंगी मै नाम तुम्हारा ।

भावना

भावनाये घर परिवार को बसाती है, भावनाये संसार को जीना सीखाती है । भावना है तों मनुज मनुज लगता है, भावना विहीन शून्य और अंधकार है । आनंदित होता मन का कोना, प्रेम का संचार करवाती है । साँसों के तार की डोर भी, बिन भावनाओं के नहीं चल पाती है । कार और व्यवहार मे, वाणिज्य और व्यापार में । जीवन मे उमंग भर जाती है, भावनाये ही मनुष्य को समाज से जोड़ पाती है । पूजा, भक्ति आराधना में, अपने इष्ट की प्रार्थना में । साधक की साधना में, वस्तुओ की विपासना में । प्रत्येक में उल्लास जगाती है, भावनाएं ही मनुज को मनुज बनाती है ।

मैं आर्यावर्त की हिंदी हूँ

मैं आर्यावर्त की हिंदी हूँ, हिंदुस्तान का गुणगान हूँ मै । कभी सूर में, कभी रहीम में, तुलसी के मानस का गान हूँ मै । प्रेमचंद का उपन्यास हूँ मै, छंद, सुरों का विन्यास हुँ मै । भाषाओ के भाल की मै बिंदी हूँ, भारत की पहचान मै हिंदी हूँ । सरिताओ के निर्मल धारा सी, मै सदियों से बहती आई, कभी निराला, कभी दिनकर की, रचनाओ में मैने चमक दिखाई । इस विशद विस्तृत जग का, अप्रतिम काव्य संसार हूँ । लेखकों की लेखनी, और कवियों की कल्पनाओ थी, मै कभी खत्म ना होने वाली उड़ान हूँ । मै आर्यावर्त की हिंदी हूँ, मै भारत की पहचान हूँ ।

पुराना ख़त

खत खोले तुम्हारे पुराने, याद आई वो कहानी पुरानी । तेरे अहसासों से संजीदा रहा दिल मेरा, आँखो से मेरी बहा पानी । मै खिलती रही कली की तरह, तूम भँवरे की तरह गुनगुनाते रहे । मैने हर फूल को सजा दिया तुम्हारे लिए, तुम उस गुलशन से भी वफा निभाते रहे । वो आसमान से छिंटकती चाँदनी, और उसमे बहती अमृत धारा । उनमे सितारों से झिलमिल थे तुम, जहां दिल ले गये हमारा । हमारे जुदा होने पर आसमान का, आखिरी सितारा भी रोया था । रात मैने काटी थी जागकर, खत पढ़ कर तु भी ना सोया था ।

नग्न हुई मानवता

नग्न हुई मानवता, देश शर्मशार हुआ । कुछ दरिंदो के कारण, ये कैसा त्राण हुआ । स्त्रियों को देवी मानने वाले, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते जानने वाले । संस्कृति आज शर्मशार हो गई, आज बच्चिया दरिंदो के सामने लाचार हो गई । रोज चिल्लाने वालों मे भी, अब चुप्पी सी छाई है । ध्यान शायद घटना पर गया नहीं, या हलक में जुबान अटक आई है । सत्ता के लालच मे कुछ लोग, संस्कृति का वजूद खो रहे है । विरोध करना चाहिए था जिनको गलत का, वो नफरत के बीज बो रहे है ।

मेरा इंतज़ार

बेताबी भरा अब मेरा इंतज़ार लगता है, मुझे शायद उसका भी अधूरा सा ख्वाब लगता है । मयस्सर है अधूरी मोहब्बत मेरी हो जाये पुरी, वो भी अपने महबूब को खोने से डरता है । उसके भी अरमान उड़ा देते होंगे नींद को, मुझे पास ना पाकर वो उदास सा लगता है । मेरी परछाई उसके पास आती हुई सी मालूम होंगी, मुझे बाहो मे ना पाकर वो बेताब सा लगता है । कुछ हासिल हुई, कुछ बाकी है मंजिल, मेरा इंतजार मुझे अधूरी किताब सा लगता है ।

मेरी ख़्वाहिशे

रंग बिरंगी तितलियाँ उड़ रही, मेरे घर के आँगन मे । झूम झूम कर आ रही बरखा, मदमाते सावन मे । रंग बिरंगे फूलो से लदी, डालिया भी अब अपने शबाब पर है । ठिठक कर चल रही है टहनियो पर, मेरी ख़्वाहिसे पुरा होने के इंतजार मे है । कभी धरा पर, कभी क्षितिज पर, तो कभी अंबर मे दिख जाती है । हकीकत मे न सही, सपनो मे ही सही, अधूरी ख़्वाहिशे जिंदगी में रंग भर जाती है ।

घाव और लगाव

घाव देने वालों से लगाव नहीं किया जाता, चुभने वाले रिश्तो से निबाह नहीं किया जाता । तकलीफ ना हो इसलिए सह लेते है हर सितम को, दर्द अगर बदतर हो तो चुप रहने का गुनाह नहीं किया जाता । तंग रास्ता सा है उसके घर का, बस पाना थोड़ा मुश्किल भरा है । जब देखती हूँ उसे किसी और के साथ, सीने पर एक घाव सा लगा है । आईने मे भी आती है परछाई नजर उसकी, उसका अक्स हर जगह नजर आता है । कभी तकलीफ होती थी उसे मुझे तकलीफ मे देखकर, अब उसे मेरा घाव भी नजर नहीं आता है ।

दिल्ली हुई पानी-पानी

दिल्ली हुई पानी-पानी, आसमान से आई बरखा तूफानी । टूट गये नए नवेरे रोड, बेपर्दा हुई विकास की निशानी । दिल्ली हुई पानी - पानी । कार, रिक्शा, ऑटो और इंसान, सब तिनके सा बह रहा है । दिल्ली के बदलते विकास की कहानी, सड़को पर रुका पानी कह रहा है । यमुना नदी पर भी है खतरे का निशान, पानी के निकास का नहीं है कोई सामान । जगह-जगह बच्चों के लिए भी स्विमिंग पुल बन गये है, यात्राएं ठप हुई, सबके काम अटक गये है । दिल्ली हुई पानी-पानी ।

खाली बरामदा

कभी गुंजा करती थी जहा, बच्चों की किलकारी । कभी खेला करते थे जहाँ हाथी और घोड़े की सवारी । शाम होते होते सब इक्क्ठे हो जाते थे, मिलकर अपने दुःख-सुख की बतियाते थे । बैठे-बैठे जमघट मे सबको घंटो बीत जाते थे । अपनी उदासी को जहाँ हँसी मे बदल कर जाते थे । खाली पड़ा वह बरामदा अपना दुःख बता रहा है, सबकी किलकारियों के साथ वह भी खिलखिलाना चाह रहा है । गये थे कुछ परिंदे यहां से बड़े होकर, अब वह सुना बरामदा उनके बचपन की स्मृतियों को संजो रहा है ।

न्यूज कवरेज

कैमरे मे बंद न्यूज की, अब कवरेज दिखाई जा रही है । हादसे मे मरे थे दस-बीस लोग, लेकिन आकड़ो की संख्या 100 पार बताई जा रही है । समाचार से ज्यादा अखबारों मे भी, विज्ञापनो की भरमार है । किसी गरीब का सच दिखा नही सकते, पूंजीपतियों के सामने मेरे देश का मीडिया लाचार है । बीमारी से ज्यादा आदमी, बीमारी की खबरों से मर जाता है । फैलती है मौसमी वायरल की बीमारी, हमारा मीडिया उसे महामारी बताता है । दो देशो के आपसी युद्ध मे भी, ऐसे हालात् बन जाते है । मिसाइल चलने से भले ही कोई मरे या बच्चे, पर कमजोर दिल वाले समाचार से जरूर डर जाते है ।

बूढ़े होते जा रहे है गाँव

बूढ़े होते जा रहे है गाँव, जैसे कर रहे है किसी का इंतजार । वर्षो पहले गये थे कमाने शहर मे, गाँव से लोग चार । यहां की पुरानी हवेलिया पड़ी है सुन्नी, जैसे किसी का करना हों दीदार । चेतनाहीन सा हों गया है करनीकोट का बरगद का पेड़, अब वहा कोई बच्चा नही खेलता, किसी भी तरह का खेल । सतोलिये के पत्थरो को भी, अब जंग सी लगती जा रही है । सब रहते है व्यस्त अपने कामो मे, आपस मे मिलने की फुसरत किसी को नही मिल पा रही है । फिर भी यहां आकर अच्छा लगता है, मै अक्सर भूल जाती हूँ मेरे गमो को गाँव मे आकर । शहरों की इमारतो से कही अच्छा है बरगद का पेड़, अच्छा लगता है उसकी ठांव पाकर ।

सपनो का बोझ (कविता)

सपनो का बोझ लिए हुए वह चल रहा था, वह अकेले ही सबसे निपट रहा था । यह मत करो, वहाँ मत जाओ, उन सबको वह कबसे सुन रहा था । उसकी भी कुछ इच्छाएं थी, उसके भी कुछ अरमान थे । उनका होना मायने नही रखता, पुरा करना परिजनों का फरमान था । अब उसकी जिंदगी उसकी ना थी, उसे पूरे करने घर वालों के सपने थे । सपनो को पुरा करने के लिए, पीछे छूट रहे कुछ उसके अपने थे । मै क्रिकेटर बनूंगा यह सपना उसने पाला था, इंजीनियर बनना तु यह घरवालों के आदेश का हवाला था । उसकी इच्छाएं उसके मन मे दबकर रह गई, सपनो के बोझ के से खुद की इच्छाए सिमट गई ।

भारत भूमि (कविता)

सरिता, सिंधु, हिम, दिवाकर, करता गौरव गान रत्नाकर । हर्षित होते सकल जन, भारत भूमि मे जन्म पाकर । कही गंगा, यमुना अपना नाद सुनाती है, कही कोशी,महानंदा रौद्र रूप दिखाती है । कही गूँजती वेदो की ऋचाये, कही अजान की आवाज आती है । कही महावीर स्वामी का अहिंसा परमो धर्म, कही गोविंद गुरु की सीख सिखाई जाती है । स्नेह प्रेम से रहते सब यहां, कही विद्वेषिता नही दिखाई देती है । नही द्वेष है आपस मे किसी का, सबसे भाईचारा, नेह, सम्मान यहाँ । वीरो के बलिदानो से गूंजते, मातृभूमि के गुणगान यहां । पत्थर-पत्थर, मिट्टी का हर कण, शौर्य की गाथा गाता है । कही गूंजती राम नाम की धुन, कही कोई गीता का श्लोक सुनाता है । त्यौहारो की धूम यहां, हर मौसम इठलाता है । भारत की शान है तिरंगा, मुक्त गगन मे लहराता है । विश्वगुरु था वैदिक भारत, सोने की चिड़िया कहलाता था । दुनिया के प्रत्येक देश से विधार्थी, यहाँ अध्ययन करने आता था ।

साजन का दीदार

हम कब तुमसे उपहार मांगते है, हम तों थोड़ा सा प्यार मांगते है । मुमकिन है अगर तुम दे सको अपने हिस्से की खुशिया, हम तो तुमसे तुम्हारे गमो का व्यापार मांगते है । एक अरसा सा हों गया तुम्हे देखे हुए, इन आँखो से साजन का दीदार मांगते है । कही तुम बदल नही जाओ, बहक नही जाये तुम्हारे कदम, ताउम्र साजन के प्रेम का इजहार मांगते है । बैचेनी सी है अब तुम्हारे बिना, इसलिए दिल का करार मांगते है । विरह की अवधि पड़ रही है लम्बी, इन आँखो से साजन का दीदार मांगते है ।

मानसिकता का गुलाम

सुना है यहां शहर में काम ही काम है, जिंदगी की मुश्किलों को हल करने वाले रास्ते तमाम है । काम करने वाले को मिल जाता है पलभर में काम, निठल्ला आदमी यहां आकर भी नाकाम है । कोई दिन रात चला रहा है कुदाली, कोई काम ना करने वाली अपनी मानसिकता का गुलाम है । कोई सरकारी ओहदे के लिए कर रहा तैयारी, तों किसी के पास पद के साथ-साथ लगाम भी है । कोई चल रहा है तपती धूप में नंगे पाँव, तो किसी के पास सुविधा तमाम है । कोई अपनी इच्छाशक्ति से खुद को कर रहा है बदलने की कोशिश, तो कोई अपनी मानसिकता का गुलाम है ।

ससुर जी

पहली बार जब मै ससुराल आई थी, बाबूजी कही तुम्हारे कदमो की आहट ना पाई थी । एक नजर भर घर को देखा हार टंगी हुई तुम्हारी एक तस्वीर नज़र आई थी । पिता का दूसरा रूप होते है ससुर, यह मम्मी ने बताया था । पर दूसरे पिता का सुख कहा मेरे भाग्य में आया था । एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा। सादर सासु ससुर पद पूजा ॥ रामचरितमानस की यह उक्ति सास-ससुर के बारे में माताजी ने बतलाई थी । एक आँगन से जब कोई बेटी, दूसरे घर में आती है । माँ-बाप के प्रतिरूप में वह, सास ससुर को देख पाती है । माँ तों नजर आई मुझे, पर तुम्हारी कही ठाह नहीं पाई । तुम्हारा आशीर्वाद ना पाकर बाबूजी, मेरी आँखे भर आई ।

माँ

बिना मांगे भी चुपके से, एक और रोटी मेरी थाली में सरका देती है । वो मेरी माँ है जनाब, अपने हिस्से का खाना मुझे खिला देती है । पढ़ी लिखी नहीं है वो बिल्कुल भी, पर मेरी किताबों को ठिकाने पर सजा देती है । दुनियादारी की तमाम बाते, वह मुझे बातो ही बातो में सीखा देती है । ससुराल से जब कभी, मेरा मायके आना होता है । माँ प्यार से मुझे अपने पास बिठाती है, सुर्ख पड़े केंशुओ को वह कंघी से सजाती है । उदास चेहरा देखकर वह, वह मेरे दुःखो को जान जाती है । देकर मुझे अपने हिस्से की खुशिया, मेरे हिस्से का गम पी जाती है । देकर अपने हाथो की थपकिया, तुमने बचपन में सुलाया था । सकल प्रेम संसार का माँ, तुमसे ही पाया था । जीवन की इस उधेड़बून में, मै जब भी कही खो जाती हूँ । कोई और रहे या ना रहे माँ, मै तेरा साथ पथ पर पाती हूँ ।

ख़ुशबु और ख़्याल तुम्हारा

तुम्हारी खुशबु से महक रहे है हम, तुम्हारे आने से चहक रहे है हम । दिल के हर कोने में यादे है तुम्हारी, तुम्हारे ना आने से बहक रहे थे हम । तुम किसी सितारों सी झिलमिलाती, किसी चाँद की तरह गहक रहे थे हम । उफ्फ तुम्हारी यादे,और ये उल्फत । खुद को तुम पर लुटाते जा रहे थे हम । तुम्हारी मोहब्बत और तसव्वुर का ये आलम, बिना तेरे सबसे महरूम होते जा रहे है हम

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