ज्योनार के गीत : बुन्देली लोकगीत

Jyonaar Ke Geet : Bundeli Lok Geet

	

पहिले सरसुत बुध मनाऊँ

पहिले सरसुत बुध मनाऊँ दूजे गुरू गोविन्द मनाऊँ। गढ़ पर्वत सें उतरी गंगा काटत कोट विलासत लंका। लंका जीत राम घर आये नगर अजुद्धा बजत बधाये। लिखिया लगुन जनकपुर सें आई राजा दशरथ जू के हाथ धराई। सजी है बरात जनकपुर आई देखन उमही नगर की लुगाई। बाजत ढोल शहनिया न्यारी रामतूलन की लगी तुतकारी। राम कुँवर जब गलियन आये गलियन गर्द उड़ावत आये। राम कुँवर जब नदियन आये सोने की नाव जनक डलवाये। राम कुँवर जब बागन आये सब वृक्ष न मिल सीस नवाये। राम कुँवर जब कुँअलन आये चंदन पटरी जनक डरवाये। राम कुँवर जब अथाइन आये सब पंचन मिल सीस झुकाये। राम कुँवर जब डेरन आये सोने जनवासे जनक डरवाये। राम कुँवर जब पौरन आये कंचन कलश जनक धरवाये। राजा जनकजू ने टीका कीनौ सोने के सूत जनेऊ दीनौ। दशरथ चढ़ाये की सब शोभा ल्याये सबरेऊ गानौ सोने को ल्याये पाटहु पाट मिसरो ल्याये और जलन्धर फरिया ल्याये। राम कुँवर जब भाँवरन आये मुतियन चौक जनक पुरवाये। पलट राम जब डेरन आये रसोई की जुगत जनक करवाये। ऐसी विध सों तपियो रसोई जाँ माछी मकरी न हांइँ ऐसी सुघर रसोइन आई सपर खोर धोती धो ल्याई। ब्रह्मा न्यौते विष्णु न्यौते राम लखन चारऊ भैया न्यौते। चंदा सूरज दोऊ भैया न्यौते गंगा जमुन दोऊ बैनें न्यौती बारहु वन की वनस्पति न्यौती छत्तीसउ कोट के देवता न्यौते। भूलें होंय खबर कर लियौ रूठे होय मना सब लियौ। अम्बा की पातर छेवले के दोना सोने की सींक संवारे रूच दोना। भात बनौ जैसें बेला कैसी कलियाँ असी कोस नों महकत जाय। बरोला परोसे जैसे चक्र बिहारी मड़ोला परोसे टिहुनी संभारी। खाँड जो परसी मुठी बगरई ऊपर घी की धार लगाई। घिया जो परसो जैसे लौंगें गारीं सबरी सभा में महकत जाई। भूले होय सो खबर कर लियो रूठे होय मना सब लियो। ज्ञानी होंय सो गारी सुनवै मूरख होय सो भात समैंटें।

बरनत बनत न काउ तरा सें

बरनत बनत न काउ तरा सें जा कच्ची ज्योनार। भले जू। चारू चौक चारउ छत ऊपर दई आसनी डार भले जू। चरन पखार बिठार दइ है बर बरात इक बार भले जू। दो दो दुनिया दो दो दोना परसत लगी न वार भले जू। निरमल जल परसत हिय हरषत केवड़ौ देत बहार भले जू। बरा बड़े बूड़न के हाथन शोभा देत अपार भले जू। कढ़ी पकौड़ी कोंच मगोड़ी परसत कका सम्हार भले जू। माड़े मंजु मौसिया परसत फूफा फुलका चारू भले जू। छोटे मामा भात भाव सें मँझले परसत दार भले जू। जेठे मामा घीउ कों परसत नैक न टूटे धार भले जू। हँस हँस परसत फिरत प्रेम सें लै शक्कर सिरदार भले जू। आम अचार रामरस चटनी परसत नातेदार भले जू। प्रेमी परम परौसी पापड़ पाछें रहे निकार भले जू। परसा पूरी भई इतै उत दूल्हे सजगौ थार भले जू। अग्या होत मचलगौ दूल्हा समझावै नर नाह भले जू। मों माँगौ दऔ नेग प्रेम सें का नों करैं बखान भले जू। भोजन करत सजन मन ही मन कहें जोई सुख सार भले जू।

चार रंग के चार सिंहासन

चार रंग के चार सिंहासन चारों पै बैठारे जी। पूरी कचौरी बड़ा दही के परसी विविध खटाई भले जू। हलुआ इमरती बालूशाही गुझिया नुक्तीदार बनाई भले जू। खाजा खुरमा गरम जलेबी पापड़ पुआ सोहाय भले जू। दूध औ रबड़ी मक्खन मिश्री मोहन भोग मलाई भले जू। विविध अचार मुरब्बा चटनी कोउ करि सकै न गिनाई भले जू। भटा रतालू घुइयाँ परसी औ परस दई दाना मैथी भले जू। छप्पन प्रकार के भोजन बने हैं हरषें सभी बराती भले जू। मन हुलसाय जनकजू बोले जीमहु चारउ भैया भले जू।

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