जहाँ कोई सरहद न हो : हरभगवान चावला
Jahan Koi Sarhad Na Ho : Harbhagwan Chawla



तस्वीरों के पीछे

हम रोज दीवारों पर टँगी तस्वीरों को मुस्कुराते हुए देखते हैं पर हम नहीं जानते इन तस्वीरों के पीछे कितनी मकड़ियों और छिपकलियों ने अपने घर बसा लिए हैं।

टिड्डीदल

तुम्हारे बाजरे के खेतों में टिड्डीदल उतर आया है उठो, जागो! तुम्हारे खेत उजाड़ देगी तुम्हारी नींद इस बार टिड्डीदल नहीं आया है किसी और महाद्वीप से इस दल की विलक्षण टिड्डियाँ अपनी ही राजधानी में पली-बढ़ी हैं खाने से ज़्यादा विखेरना इन टिड्डियों की फ़ितरत है उठो! सुबह होने का इन्तज़ार मत करो रात-भर सो गए तो उजड़ जाएँगे तमाम खेत टिड्डियाँ एक-एककर सारे दानों को मिट्टी में मिला देंगी इस तरह कि पीढ़ियों लगे रहोगे समेटे नहीं जाएँगे दाने उठो! घरों से बाहर आओ कनस्तर जुटाओ जैसे भी हो शोर मचाओ अब इसके सिवा कोई रास्ता नहीं बचा है।

पुरस्कार

इस बार भी मैं चुप रहा जैसे चुप रहता आया था हर क़त्ल पर मुझे मेरे इस गूँगेपन का पुरस्कार तो दो मेरे आक़ा!

आस्था

दुष्कर्म और हत्या का आरोपी कोई धर्मगुरु जब स्वयं को मासूम बताते हुए न्यायपालिका में पूरी आस्था व्यक्त करे तो कृपया अभिधा पर न जाएँ उसके इस कथन में दो व्यंजनाएँ निहित हैं- पहली- मुंसिफ़ों के ईमान को ख़रीदने की पुरज़ोर कोशिशें जारी हैं दूसरी- अनुयायी सड़कों पर उतरने के लिए कमर कस लें।

शूद्र- एक

शूद्र के पैर में काँटा लगे तो ब्राह्मण रोए वैश्य दवा करे क्षत्रिय सुरक्षा का विश्वास दिलाए पर काँटा शूद्र ही के पैर में लगे।

शूद्र – दो

ब्राह्मणों को ज्ञान दो क्षत्रियों को बल दो वैश्यों को धन दो शूद्रों के पाप क्षमा कर दो ओ कृपालु ईश्वर!

बुत

भगत सिंह की किताबें तुम रखो उनके विचार भी तुम्हीं रख लो हमें तो उसका चेहरा भर दे दो हमारे बुततराश उसको शानदार बुत में बदल देंगे।

डरो

धर्म से डरो धर्मयोद्धाओं से डरो युद्ध से डरते हुए भी युद्ध करो इस या उस धार्मिक ख़ेमे के सेनानी बनो धर्मयोद्धा जहाँ कहें, वहाँ तनो मारो या मरो ज़रूरी है कि युद्ध करो जिस दिन तुम्हारा डर ग़ायब हुआ न धर्म रहेगा न धर्मयोद्धा और न युद्ध।

बच्चे खेलते रहे

बच्चे खेल रहे थे गिल्ली-डंडा धर्मयोद्धाओं ने गोलियाँ बरसाईं बच्चे छलनी हुए पर खेलते रहे धर्मयोद्धाओं ने बम बरसाए बच्चों के चिथड़े उड़ गए पर बच्चे खेलते रहे धर्मयोद्धाओं ने तमाम नदियों के पानी का बहाव खेल के मैदान की ओर मोड़ दिया नदियों का पानी ख़त्म हो गया मैदान जस की तस आबाद रहा झल्लाए धर्मयोद्धा आग हो गए वे आग का खेल खेलने लगे सब तरफ़ आग थी आग में जलते बच्चों की चीख़ें थीं बेक़ाबू आग में जल गए धर्मयोद्धा भी बच्चे खेलते रहे हमेशा की तरह।

जंगल में

जंगल में बाघों के बीच वर्चस्व के लिए अक्सर होते रहते हैं भीषण युद्ध इन युद्धों को देखते हुए थम जाती हैं हमारी साँसें हर युद्ध के दौरान हमें लगता है ज़रूर मारा जाएगा कोई न कोई बाघ पर आश्चर्य! युद्ध बाघों के बीच होता है और मारे हर बार हिरण जाते हैं हिरणों की बोटियों की दावत में शामिल होते हैं सब प्रतिद्वंद्वी बाघ एक साथ अपने हिस्से की ताक में उनके आसपास ही मंडराते हुए मौजूद रहते हैं भेड़िए और लकड़बग्घे।