इदं न मम : भवानी प्रसाद मिश्र

Idam Na Mum : Bhawani Prasad Mishra



इदं न मम

बड़ी मुश्किल से उठ पाता है कोई मामूली-सा भी दर्द इसलिए जब यह बड़ा दर्द आया है तो मानता हूँ कुछ नहीं है इसमें मेरा !

तुम्हारी छाया में

जीवन की ऊष्मा की याद भी बनी है जब तक तब तक मैं घुटने में सिर डालकर नहीं बैठूँगा सिकुड़ा–सिकुड़ा भाई मरण तुम आ सकते हो चार चरण छलाँगें भरते मेरे कमरे में मैं ताकूँगा नहीं तुम्हारी तरफ़ डरते–डरते आँकूँगा जीवन की नयी कोई छाँव तुम्हारी छाया में!

पश्चाताप

मैं तुम्हें सूने में से चुन लाया क्या करते तुम अकेले झेलते झमेले हवा के थोड़ी देर हिलते डुलते उसके इशारों पर और शायद फिर बिखर जाते यों मैं फूल कदाचित ही चुनता हूँ मगर अकेले थे तुम वहां कम से कम दो होंगे यहाँ अभी अभी मेरे मन में मगर यह खटका आया कि जाये मुमकिन है कोई तितली और न पाए वह तुम्हें वहां जहाँ तुम उसे मिल जाते थे या गूंजे हिर-फिर कर कोई भौंरा आसपास परेशानी में यह खटका अभी अभी मेरे मन में आया है सोच में पढ़ गया हूँ क्या जाने मैं तुम्हें ठीक लाया या नहीं लाया

समयगंधा

तुमसे मिलकर ऐसा लगा जैसे कोई पुरानी और प्रिय किताब एकाएक फिर हाथ लग गई हो या फिर पहुंच गया हूं मैं किसी पुराने ग्रंथागार में समय की खुशबू प्राणों में भर गई उतर आया भीतर अतीत का चेहरा बदल गया वर्तमान शायद भविष्य भी ।

सुतंतुस

जैसे किसी ने मन के बखिए उघेड़ दिए सब खुल गया लगा मैं कुल का कुल गया भीतर कुछ भी बचा नहीं है तब मैंने यह मानकर कि भीतर मन के सिवा और-और तत्व होंगे उन तत्वों को टेरा बाहर के जाने हुए तत्वों का रूख़ भी भीतर की तरफ़ फेरा और अब सब रफ़ू किया जा रहा है समूचा जीवन नये सिरे से जिया जा रहा है!

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