Vikas Kumar Giri
विकास कुमार गिरि

विकास कुमार गिरि की रचनाएँ

1. आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे

आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे
कलयुगी गोपियों को फिर से नचा दे
आके कान्हा तू फिर से बंशी बजा दे

कर रहे भष्ट्राचार और भष्ट्राचारियों को तू सजा दे
बढ़ रहे अत्याचार और अत्याचारियों को मिटा दे
आके कान्हा फिर तू फिर से बंशी बजा दे

बात बात पे होती है गंगा, यमुना की सफाई की बात रे
हुई न आज 70 बरसो में साफ रे
फिर से तू आके इसे निर्मल करवा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे

लाज तू इस कलयुगी द्रोपदी का बचा दे
लचरे और लाचार हुए कानून व्यवस्था का सुधार करवा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे

फिर से तू वही धुन तू सुना दे
आर्यावर्त के लोगो को फिर से झुमा दे
वेरी हो गए लोग एक दूसरे के
उसको आके प्रेम का पाठ पढ़ा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे

अब तो मोहे लगी तोह पे ही आस रे
दुनिया का एकमात्र तू ही विशवाश रे
आके इस युग कलयुग का उद्धार करवा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे.....

2. चंदा मामा बहुत सताते

चंदा मामा बहुत सताते
कभी दिखते कभी बादलों में छुप जाते
अब और मुझे तडपाओ ना
तुम जल्दी आ जाओ ना

आज छुट्टी का दिन है,
तुम दिन में ही आ जाओ ना
मैं भी किसी को नहीं बताऊँ
तुम भी किसी को मत बताओ ना
तुम जल्दी आ जाओ ना

शाम हो गई इंतजार करते करते
आँखे तरस गए है तेरे दीदार को
अब और इंतज़ार करवाओ ना
तुम जल्दी आ जाओ ना

3. एक नजर देख तो ले मेरे यार

एक नजर देख तो ले मेरे यार
नही तो सारा सजना सवरना हो जाएगा बेकार
एक बार तो करले मेरा दीदार
एक नजर देख तो ले मेरे यार

आज मैं बन ठन के तेरे लिए हुई हु तैयार
तेरे ना देखने से, ये बिंदिया चूड़ी कंगन
सारा पहनना हो जाएगा बेकार
आज ही किये है मैंने सोलह श्रृंगार
एक नजर देख तो ले मेरे यार

तू क्यों नाराज है मुझसे मेरे यार
तेरे ना देखने से,मेरे दिल को ना आये करार
कही मैं तड़प ना जाऊं तेरे एक झलक पाने को
एक नजर देख तो ले मेरे यार

4. अब तो आ जाओ मेरे साजन

जब घनघोर बारिश की बुँदे गिरती है मेरे आंगन में
मैं छोटे कद की लड़की, कमर तक डूब जाती हूं
बारिशो की पानी में
लाख कोशिश करती हूं अपने आप को बचाने में
फिर भी बच नहीं पाती हूं
बारिशो की पानी में
अब तो आ जाओ मेरे साजन

अब कभी नहीं रूठूंगी मेरे साजन
अब तेरे कुछ कहने से कभी ना भाग के जाउंगी दूसरे आँगन
अब ना कोई दिक्कत होगी मुझको मानाने में
अब तो आ जाओ मेरे साजन

छेड़ने लगे है मुझे गली मोह्हले के लड़के
घूरने लगे है मुझे गावँ के निकम्मे निठल्ले
कही मैं बिगड़ ना जाऊं युहीं छेडख़ानी में
अब तो आ जाओ मेरे साजन

माफ़ करदे जो गलती हो गई मुझसे नादानी में
सावन ऐसे गुजर ना जाए युहीं आनाकानी में
जुदाई अब सही ना जाए इस भरी जवानी में
अब तो आ जाओ मेरे साजन

5. हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ

भूखे, गरीब,बेरोजगार, अनाथो और लाचार की दास्तान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

एक ही कपड़े में सारे मौसम गुजारनेवाले
सूखा,बाढ़ और ओले से फसल बर्बाद होने पर रोने और मरनेवाले
कर्ज में डूबे हुए उस अन्नदाता किसान की जुबान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

मैं भगत, सुभाषचन्द्र और आज़ाद जैसा भारत माँ के सपूत तो नहीं
लेकिन इन्हें सिर्फ जन्म और मरण दिन पर याद करने वाले और आँशु बहाने वाले,
उन्हें इन सपूतों की याद दिलाने
फिर से बलिदान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

मजहब के नाम पर ना हो लड़ाई
जाती धर्म के नाम पर ना हो किसी की पिटाई
सब मिल-जुलकर रहे भाई भाई
जाती धर्म से ऊपर उठने के लिए इम्तिहान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

सीमा पर देश के लिए लड़नेवाले
अपनी जान की परवाह किए बिना
देश पर मर मिटने वाले
मैं देश के ऐसे वीरों को सलाम लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

सब के पास हो रोज़गार और अपना व्यापार
देश मुक्त हो ग़रीबी, बेरोजगारी,बलात्कार और भष्ट्राचार
मैं देश के लोगो के सपने और अरमान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

6. माँ

माँ अगर तू जन्म न देती तो मैं दुनिया ही न देख पाता
माँ तू खुद भूखी रहकर खिलाई ना होती तो मैं भूखा ही रह जाता
अगर तू चलना न सिखाती तो मैं चल नहीं पाता
माँ अगर तू लोरी गा के सुनाइ ना होती तो मैं चैन से सोया नहीं होता|

जब तेरी तबियत ख़राब हो तो पूछने पर 'ठीक हूँ' बताना
जब मेरी तबियत ख़राब हो तो तेरा तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाना
मेरी तबियत ख़राब देख कर काश तू छुप के रोइ न होती|

माँ अगर तू स्कूल न भेजती तो मैं अनपढ़ ही रह जाता
अगर तू घर पर ना पढ़ाती तो मैं अज्ञानता के अंधकार में भटकता ही रह जाता
माँ तेरा ऐहसान कभी चुकाया नहीं जा सकता|

याद है मुझे बोर्ड के परीक्षा के समय तेरा रोज 4-5 बजे सुबह को जगाना
और मेरा बार-बार उठ कर सो जाना
माँ अगर तू बार-बार उठाई ना होती तो
मैं यौवन के मधुर सपनों में खोया ही रह जाता
माँ तू जगाइ न होती तो मैं सोया ही रह जाता|

7. शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है

जब से तुम रूठी हो तब से दिल ये टूटा है
अब मैंने जाना है लोग इसमें क्यों बीमार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

जबसे तुमसे ना मिला हूँ ना नींद है बस खुमार है
ना जाने ये कैसा पागलपन, कैसा ये बुखार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

जबसे ना देखा हूँ ना चैन ना क़रार है
ज़हर जुदाई का डस रहा बार-बार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

तुझको पा लूँ तुझे अपना बना लूँ
मेरे दिल की यही पुकार है
कब तेरे से मिलूँ कैसे तुझको मनाऊं
तुझसे मिलने के लिए मेरा दिल ये बेक़रार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

8. तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ

मैं अकेला थक सा जाता हूँ फिर जब तेरी कदमो की सुनता हूँ आहट,
जब याद आती है तेरी चाहत
इस जूनून में मैं हजार बार तोड़ दूँ
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ|

मैं कमजोर सा महसूस करने लगा हूँ फिर जब सुनता हूँ तेरी पाजेब की छन-छन,
तेरी चूड़ियों की खन-खन
ये मुझे देती है हिम्मत और ताकत
अब न सुने कोई प्रेमी अपने प्रेमिका की चीख पुकार
इस गुस्से में धरती क्या पूरा आसमान ख़ोद दूँ
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ|

"ऐ पहाड़ इतने सालों से कर रहा हूँ मेहनत अब तो तू दे दे रास्ता,
लोगो को आने जाने में होती है दिक्कत
कोई तो मेरी सुनता नहीं,
लेकिन अब तुझसे है इस मांझी की आखरी गुज़ारिश और तुझे है मेरी फाल्गुनिया का वास्ता
मैं अपनी जान को यही पर कर दुंगा कुर्बान
अब मेरी इज्जत तेरे हाथों में
कही मेरे प्यार का नाम हो जाए ना बदनाम."

अब अकाल पड़े आंधी आए या तूफान
चाहे कफ़न में हो जाऊ मै दफ़न
अगर तू प्यार से नहीं माना तो मरते-मरते भी मैं तेरा सारा अकड़ तोड़ दूँ
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ|

9. कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म

कैसा ये रीति-रिवाज बना
जो लड़कियों के लिए अभिशाप बना
इसकी वजह से न जाने कितनी लड़कियां चढ़ जाती है फांसी
क्या तुझमे औकात नहीं है खुद की शादी करने की
या तेरे पास पैसे नहीं है खुद से कुछ खरीदने की
कब तक दहेज़ के लिए लड़कियों और उनके माँ बाप को करते रहोगे तंग
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म

क्या दहेज़ में मिले इन पैसो से उन लड़कियों को जिंदगी भर खिला दोगे
कब तक अपनी झूठी शान के लिए लड़कियों को जिंदा जलाते रहोगे
कब तक दहेज़ के लिए लड़कियों को करते रहोगे शमशान में जिन्दा दफ़न
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म

अपने देश की थी एक सती नारी
जो अपने पति के जान के लिए यमराज से भी लड़ गई थी बेचारी
कब तक दीवाली और दशहरे पर लक्ष्मी दुर्गा और कन्याओं को पूजने का ढोंग करते रहोगे तुम
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म

कब तक प्रताड़ित करते रहोगे इन लड़कियों को
थोड़ा सा तरस खाओ इन पर तुम
क्या उसे ही है तुम्हारी जरुरत
कब करोगे इस बीमार मानसिकता को खत्म
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म

10. दोस्त तू ही सोना चांदी रे

दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....

कभी जो मैं रुठूँ तो तू मनाए
कभी जो तू रूठे तो मैं मनाऊं
चलती रहे इसी तरह जिन्दगानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....

खेल-खेल में कभी तू जीते
तो कभी मै हारूँ
कभी तू प्यार से मुझे मारे
तो कभी मै तुझे मारूँ
कभी तू मेरे साथ करे शरारत कभी करे मनमानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....

ये सोना चांदी तो धातु ऐसी
जिनकी बाजारों मे लगती कीमत
जिसके पास हो पैसे उन्हें ही इसे
खरीदने की होती चाहत इनसे तो हमारी दोस्ती अच्छी
जिसमें न है रंग, वर्ण और जाती-धर्मों का बंधन
जिनकी लगती हो बाजारों में कीमत
उनसे क्या दिल लगानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....

जब कोई दिक्कत हो तो तू ही काम आए
कठिन परिस्तिथियों में तू हमें समझाए
अच्छे काम के लिए तू हमेशा सराहे
तो कभी किसी के सामने मेरा मजाक उड़ाए
मै आज जो कुछ भी हूँ दोस्त तेरी ही मेहरबानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....

11. छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई

छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई
फिर से हो जाओ एक हिन्दू, मुस्लिम,सिख,ईसाई
किसी के बहकावे में हम नहीं आएंगे भाई
अब हम नहीं करेंगे कभी भी लड़ाई

बहुत हुई जाति, धर्म और मज़हब के नाम पर लड़ाई
राजनीती करने वाले और दूसरे मुल्कों ने
हमें लड़ा के हम लोगो में दूरियां बढ़ाई
अब हम मिलकर रहेंगे अपने हक़ के लिए लड़ेंगे
क्योंकि बहुत सही हमने जुदाई
अब हम नहीं करेंगे कभी भी लड़ाई

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई

12. मेरे गुरुवर

दुनिया में होते हैं ये सबसे महान
जिसका करते हैं सभी गुणगान
"गुरु विश्वामित्र, वशिष्ठ, अत्रि"
जिसको पूजते स्वयं भगवान

जैसे सूरज आकर करता है अंधकार को दूर
उसी तरह ये भी हर किसी की जिंदगी में आकर
ज्ञान के प्रकाश को फैलाते भरपूर

इनमें कोई नहीं होती है लालसा
ये बस इतना चाहें कि मेरा शिष्य हो सबसे अच्छा
अधर्म, अनीति गलत कर्मो से रहे हमेशा दूर
जीवन के पथ पर कभी न हो मेरा शिष्य मजबूर

इनकी एक ही इच्छा शिष्य मेरा पढ़-लिख कर बने महान
देश-विदेश में मेरे द्वारा दिए गए फैलाये वो ज्ञान
ऐसे गुरु को शत शत प्रणाम

13. लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है

लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है,
बिजली की चकाचौंध में मैंने बच्चे को बिगड़ते देखा है,
जिनमे होती है हिम्मत उनको कुछ कर गुजरते देखा है,
जिनको होती है दिक्कत उनको हालात बदलते देखा है,
फूक-फूक के रखना कदम मेरे दोस्तो,
छिपकली से भी जयादा मैंने इंसानो को रंग बदलते देखा है,
बहुत ईमानदारी से पढ़ के तैयारी करते हैं, मेरे देश के बच्चे,
लेकिन कुछ भ्रष्टलोगो को इनके भविष्य से खिलवाड़ करते देखा है,
जूनून में ही कुछ कर जाते हैं या बन जाते हैं कुछ लोग,
बाकी को तो मैंने सड़को पे भटकते देखा है

14. तेरी बेवफ़ाई की खुशबू तुम्हारे इशारे से अब आ ही गई है

दिल की बस यही तमन्ना थी, अब लब पर
आ ही गई है,
होठ कुछ कहे या न कहे इशारे सब कुछ
समझा ही गई है,
तुमने कहा था की सिर्फ ये दोस्त है मेरा
समंदर अब तो साहिल से टकरा ही गई है

मैं वादे पे कायम हूँ, तुझे वादों पे कायम रहना था
कहाँ गई वो कसमे जिसमें संग जीना और मरना था

तुम ये मत कहो कि अभी भी मै जान हूँ तेरी
तेरी बेवफ़ाई की खुशबू तुम्हारे इशारे से अब आ ही गई है
मत फरियाद करो मुझसे ना मुझे याद करो तुम
प्यार अगर फिर से हो गया तो मर ही जायेंगे हम

वफ़ा जिन्दा है कही तो उसे दफ़न कर देंगे हम
अगर फिर से जन्म लेंगे तो तुम्हारी कसम
प्यार कभी ना करेंगे हम

15. चुनावी मेंढक

फिर से निकलेंगे चुनावी मेंढक इस चुनाव में,
वो घोषणाओं के पुल बांधेंगे,
लोगो को लालच देकर बहलायेंगे और फुसलायेंगे,
सभी जाति-धर्मों के लोगों से अलग -अलग मिलकर
उनका दुखड़ा गाएंगे,
नीले सियार के वेश में आकर खुद को शेर बताएँगे,
चुनाव जीतने के लिए ये दंगा भी करवाएंगे,
फिर से होंगे नए-नए वादे, जुमलों का अंबार लगेगा
झूठ फरेब की बातों से कालनेमि का दरबार सजेगा,
जो अभी तक भेड़ियों जैसे मौन थे!
वो रावण जैसे चीखेंगे और चिल्लायेंगे,
खुद को आवाम का हितैषी भी बताएँगे,
चुनाव जीत कर ये फिर से पांच साल के लिए
चूहे के बिल में घुस जायेंगे।
सोच समझ कर वोट करना गर तुमको राष्ट्र बचाना है।
अपने नागरिक होने का तुमको फर्ज निभाना है।।

16. क्या होती है माँ

तुझे कुछ होने पर जिसका
कलेजा छलनी हो जाता
वो होती है माँ

खुद जमीन पर सोकर
तुझे अपनी बिस्तर पर सुला दे
वो होती है माँ

खुद कितनी भी तकलीफ में हो
बस तुम्हे देखकर मुस्करा दे
वो होती है माँ

खुद कितनी भी भूखी हो
लेकिन तुम्हे अपने हिस्से का
भी खाना खिला दे
वो होती है माँ

खुद कभी स्कूल ना गई हो
लेकिन तुम्हे पढ़ाने के लिए
अपनी पूरी जिंदगी लगा दे
वो होती है माँ

चाहे उसके बच्चे कितने भी बदमाश हो
लेकिन उसे बुरा कहने पर
पूरी दुनिया से लड़ जाए
वो होती है माँ

17. कोरोना का कहर

कोरोना का कहर
क्या लिखूं
ये बेवजह कोरोना का कहर लिखूं
या लाशों का शहर लिखूं
लोगो का तड़पना लिखूं या
दवाई के लिए लोगो का भटकना लिखूं या
ऑक्सीजन की कमी से लोगो का मरना लिखूं
क्या लिखूं क्या लिखूं

ये बारिश बन कर बीमारियों का
बरसना लिखूं
या बादलों का गरजना लिखूं
डर डर के जी रहे लोगो की
हरबराहट लिखूं या
कोरोना के डर से लोगो
की घबराहट लिखूं
क्या लिखूं क्या लिखूं

लाशों का सौदा लिखूं या
सुनसान पड़े घर का चिरौंदा लिखूं
सरकार की लाचारी लिखूं या
इंसान का पैसे कमाने की
मानसिक बीमारी लिखूं
गीता का श्लोक लिखूं या
प्रकृति का प्रकोप लिखूं
क्या लिखूं क्या लिखूं

18. क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं

ले कटोरा हाथ में चल दिया हूं फूटपाथ पे
अपनी रोजी रोटी की तलाश में
मैं भी पढना लिखना चाहता हूं साहब
मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूं साहब
मैं भी खिलौनो से खेलना चाहता हूं साहब
रुक जाता हूं देखकर अपनी हलात को
क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं।

सबसे मैं मिन्नते और फरियाद करता हूं,
कभी किसी की गालियां तो कभी
किसी का फटकार सुनता हूं
बस दो वक्त की रोटी की तलाश में
मन नहीं करता फिर भी विवश होकर
खड़ा हो जाता उसी फूटपाथ पे
क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं।

वर्षो से बैठा हूं मैं किसी की मदद की
आश में
फिर जब किसी को नहीं पाता हूं अपने
आस-पास में
तो फिर से लग जाता हूं अपने दिनचर्या की
शुरुआत में
जब कुछ समझ में नहीं आता तो फिर से
खड़ा हो जाता हूं उसी फूटपाथ पे
क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं।

फुटपाथ से ही शुरू होती है मेरी जिंदगी
वही पर होती है ख़तम
मैं इसी चौराहे का राजा और इसी चौराहे
का रंक
जब कोई हम उम्र को देखता हूं गाड़ियो से
जाते हुए
तो खो जाता हूं उसी के ख्वाब में
अब नहीं रहता किसी की आश्वासन या विश्वास में
बस दो वक्त की रोटी की तलाश में
फिर से खड़ा हो जाता हूं उसी फुटपाथ पे
क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं।