सूक्ष्म जन्म का अंग : संत दादू दयाल जी

Suksham Janam Ka Ang : Sant Dadu Dayal Ji

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवत:।
वन्दनं सर्व साधावा, प्रणामं पारंगत:।।1।।
दादू चौरासी लख जीव की, प्रकृतियें घट माँहि।
अनेक जन्म दिन के करे, कोई जाणे नाँहि।।2।।
दादू जेते गुण व्यापें जीव को, ते ते ही अवतार।
आवागमन यहु दूर कर, समर्थ सिरजनहार।।3।।
सब गुण सब ही जीव के, दादू व्यापैं आइ।
घट माँहीं जामे मरे, कोइ न जाणे ताहि।।4।।
जीव जन्म जाणे नहीं, पलक-पलक में होय।
चौरासी लख भोगवे, दादू लखे न कोय।।5।।
अनेक रूप दिन के रे, यहु मन आवे-जाय।
आवागमन मन का मिटे, तब दादू रहै समाय।।6।।
निश वासर यहु मन चले, सूक्ष्म जीव संहार।
दादू मन थिर कीजिए, आत्मा लेहु उबार।।7।।
कबहूँ पावक कबहूँ पाणी, धार अम्बर गुण वाय।
कबहँ कुंजर कबहूँ कीड़ी, नर पशुवा ह्नै जाय।।8।।
शूकर श्वान सियाल सिंघ, सर्प रहैं घट माँहि।
कुंजर कीड़ी जीव सब, पांडे जाणैं नाँहि।।9।।
।।इति सूक्ष्म जन्म का अंग सम्पूर्ण।।

  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण काव्य रचनाएँ : संत दादू दयाल जी
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)