शब्द राग केदार : संत दादू दयाल जी

Shabd Raag Kedar : Sant Dadu Dayal Ji

शब्द राग केदार संत दादू दयाल जी
(गायन समय सायं 6 से 9 रात्रि)

1 (गुजराती भाषा) दीपचन्दी ताल

म्यारा नाथ जी, तारो नाम लेवाड़ रे, राम रतन हृदय मों राखे।
म्हारा वाहला जी, विषया थी वारे।टेक।
वाहला वाणी ने मन मांहे म्हारे, चिंतवन तारो चित राखे।
श्रवण नेत्रा आ इन्द्री ना गुण, म्हारा मांहेला मल ते नाखे।1।
वाहला जीवाड़े तो राम रमाड़े, मनें जीव्यानो फल ये आपे।
तारा नाम बिना हूँ ज्यां-ज्यां बंधयो, जन दादू ना बंधान कापे।2।

2 उत्सव ताल

अरे मेरे सदा संगाती रे राम, कारण तेरे।टेक।
कंथा पहरूँ भस्म लगाऊँ, वैरागिनि ह्नै ढूँढँ रे राम।1।
गिरिवर बासा रहूँ उदासा, चढ शिर मेरु पुकारूँ रे राम।2।
यहु तन जालूँ यहु मन गालूँ, करवत शीश चढाऊँ रे राम।3।
शीश उतारूँ तुम पर वारूँ, दादू बलि-बलि जाऊँ रे राम।4।

3 गजताल

अरे मेरा अमर उपावणहार रे, खालिक आशिक तेरा।टेक।
तुम सौं राता, तुम सौं माता, तुम सौं लागा रँग रे खालिक।1।
तुम सौं खेला, तुम सौं मेला, तुम सौं प्रेम स्नेह रे खालिक।2।
तुम सौं लेणा, तुम सौं देणा, तुम हीं सौं रत होइ रे खालिक।3।
खालिक मेरा, आशिक तेरा, दादू अनत न जाइ रे खालिक।4।

4 गजताल

अरे मेरे समर्थ साहिब रे, अल्लह, नूर तुम्हारा।टेक।
सब दिशि देवे, सब दिशि लेवे,
सब दिशि वार न पार रे अल्लह।1।
सब दिशि कर्ता, सब दिशि हरता,
सब दिशि तारणहार रे अल्लह ।2।
सब दिशि वक्ता, सब दिशि श्रोता,
सब दिशि देखणहार रे अल्लह।3।
तू है तैसा कहिए ऐसा,
दादू आनन्द होइ रे अल्लह।4।

5 मल्लिकामोद ताल

हाल असां जो लालड़े, तो के सब मालूमड़े।टेक।
मंझे खामा मंझ बराला, मंझे लागी भाहिड़े।
मंझे मेड़ी मुच थईला, कैं दरि करिया धाहड़े।1।
विरह कसाई मुं गरेला, मंझे बढै माइहड़े।
सीखों करें कवाब जीला, इये दादू जे ह्याहड़े।2।

6 मल्लिकामोद ताल

पिवजी सेती नेह नवेला, अति मीठा मोहि भाव रे।
निश दिन देखूँ बाट तुम्हारी, कब मेरे घर आवे रे।टेक।
आइ बणी है साहिब सेती, तिस बिन तिल क्यों जावे रे।
दासी को दर्शन हरि दीजे, अब क्यों आप छिपावे रे।1।
तिल-तिल देखूँ साहिब मेरा, त्यों-त्यों आनंद अंग न मावे रे।
दादू ऊपर दया करी, कब नैनहुँ नैन मिलावे रे।2।

7 (गुजराती भाषा) राजमृगांक ताल

पीव घर आवे रे, वेदन म्हारी जाणी रे।
विरह संताप कौण पर कीजे, कहूँ छूँ दु:ख नी कहाणी रे।टेक।
अंतरजामी नाथ म्हारो, तुज बिण हूँ सीदाणी रे।
मंदिर म्हारे केम न आवे, रजनी जाइ बिहाणी रे।1।
तारी बाट हूँ जोइ थाकी, नेण निखूटया पाणी रे।
दादू तुज बिण दीन दुखी रे, तूँ साथी रह्यो छे ताणी रे।2।

8 राजमृगांक ताल

कब मिलसी पिव गृह छाती, हूँ औराँ संग मिलाती।टेक।
तिसज लागी तिसही केरी, जन्म-जन्म नो साथी।
मीत हमारा आव पियारा, ताहरा रंग नी राती।1।
पीव बिना मने नींद न आवे, गुण ताहरा लै गाती।
दादू ऊपर दया मया कर, ताहरे वारणे जाती।2।

9 राज विद्याधार ताल

म्हारा रे वाहला ने काजे, हृदय जोवा ने हूँ धयान धारूँ।
आकुल थाये प्राण म्हारा, कोने कही पर करूँ।टेक।
संभार्यो आवे रे वाहला, वेहला एहों जोई ठरूँ।
साथीजी साथे थइ ने, पेली तीर पार तरूँ।1।
पिव पाखे दिन दुहेला जाये, घड़ी बरसां सौं केम भरूँ।
दादू रे जन हरिगुण गातां, पूरण स्वामी ते वरूँ।2।

10 झपताल

मरिये मीत विछोहे, जियरा जाइ अंदोहे।टेक।
ज्यों जल विछुरे मीना, तलफ-तलफ जिव दीन्हा,
यों हरि हम सौं कीन्हा।1।
चातक मरे पियासा, निश दिन रहै उदासा,
जीवे किहि विश्वासा।2।
जल बिन कमल कुम्हलावे, प्यासा नीर न पावे,
क्यों कर तृषा बुझावै।3।
मिल जिन विछुरो कोई, विछुरे बहु दुख होई,
क्यों कर जीवें जन सोई।4।
मरणा मीत सुहेला, बिछुरन खरा दुहेला,
दादू पिव सौं मेला।5।

11 त्रिताल

पीव हौं, कहा करूँ रे,
पाइ परूँ के प्राण हरूँ रे, अब हौं मरणे नाँहिं डरूँ रे।टेक।
गालि मरूँ कै जाल मरूँ रे, कैं हौं करवत शीस धारूँ रे।1।
खाइ मरूँ कै घाइ मरूँ रे, कैं हौं कत हूँ जाइ मरूँ रे।2।
तलफ मरूँ कै झूर मरूँ रे, कै हौं विरही रोइ मरूँ रे।3।
टेर कह्या मैं मरण गह्या रे, दादू दुखिया दीन भया रे।4।

12 (गुजराती भाषा) त्रिताल

वाहला हूँ जाणूँ रे रँग रमिये, म्हारो नाथ निमिष नहिं मेलूँ रे।
अन्तरजामी नाह न आवे, ते दिन आव्यो छेलो रे।टेक।
वाहला सेज हमारी एकलड़ी रे, तहँ तुजने केम ना पामू रे।
अ दत्ता अमारो पूरबलो रे, तेतो आव्यो सामो रे।1।
बाहला म्हारा हृदया भीतर केम न आवे,
मने चरण विलम्ब न दीजे रे।
दादू तो अपराधी थारो, नाथ उधारी लीजे रे।2।

13 पंचमताल

तूं छे मारो राम गुसांई, पालवे तारे बाँधी रे।
तुझ बिना हूँ आंतरे रवल्यो, कीधी कमाई लीधी रे।टेक।
जीऊँ जेटला हरि बिना रे, देहड़ी दुख दाधी रे।
एणे अवतारे कांई न जाण्यूँ, माथे टक्कर खाधी रे।1।
छूट को म्हारो क्यारे थाशे, शक्यो न राम अराधी रे।
दादू ऊपर दया मया कर, हूँ तारो अपराधी रे।2।

14 पंचमताल

तूं ही तूं तन माहरे गुसांई, तूं बिना तूं केने कहूँ रे।
तूं त्यां तूं ही थई रह्यो रे, शरण तम्हारे जाय रहूँ रे।टेक।
तन-मन माँहे जोइये त्यां तूं, तुज दीठां हूँ सुख लहूँ रे।
तूं त्यां जेटली दूर रहूँ रे, तेम-तेम त्यां हूँ दु:ख सहूँ रे।1।
तुम बिन म्हारो कोई नहीं रे, हूँ तो ताहरा वण बहूँ रे।
दादू रे जण हरि गुण गातां, मैं मेल्हूँ म्हारो मैं हूँ रे।2।

15 त्रिताल

हमारे तुम ही हो रखपाल,
तुम बिन और नहीं को मेरे, भव दुख मेटणहार।टेक।
वैरी पंच निमष नहिं न्यारे, रोक रहे जम काल।
हा जगदीश दास दुख पावे, स्वामी करहूँ सँभाल।1।
तुम बिन राम दहैं ये द्वन्द्वर, दशों दिश सब साल।
देखत दीन दुखी क्यों कीजे, तुम हो दीन दयाल।2।
निर्भय नाम हेत हरि दीजे, दर्शन परसन लाल।
दादू दीन लीन कर लीजे, मेटहु सब जंजाल।3।

16 त्रिताल

ये मन माधाव बरज बरज,
अति गति विषयों सौं रत, उठत जु गरज-गरज।टेक।
विषय विलास अधिक अति आतुर, विलसत शंक न मानैं।
खाइ हलाहल मगन माया में, विष अमृत कर जानैं।1।
पंचन के सँग बहत चहूँ दिश, उलट न कबहूँ आवे।
जहँ-जहँ काल यह जाइ तहँ-तहँ, मृग जल ज्यों मन धावे।2।
साधु कहैं गुरु ज्ञान न माने, भाव भजन न तुम्हारा।
दादू के तुम सजन सहाई, कछु न बसाइ हमारा।3।

17 पंचम ताल

हाँ हमारे जियरा राम गुण गाइ, एही वचन विचारि मान।टेक।
केती कहूँ मन कारणैं, तूं छाडी रे अभिमान।
कह समझाऊँ बेर-बेर, तुझ अजहूँ न आवे ज्ञान।1।
ऐसा संग कहाँ पाइए, गुण गावत आवे तान।
चरणों सौं चित राखिए, निश दिन हरि का धयान।2।
वे भी लेखा देहिंगे, आप कहावैं खान।
जन दादू रे गुण गाइए, पूरण है निर्वाह।3।

18 पंचम ताल

बटाऊ! चलणा आज कि काल्ह,
समझि न देखे कहा सुख सोवे, रे मन राम सँभाल।टेक।
जैसे तरुवर वृक्ष बसेरा, पक्षी बैठे आय।
ऐसे यहु सब हाट पसारा, आप आपको जाय।1।
कोई नहिं तेरा सजन संगाती, जनि खावे मन मूल।
यहु संसार देख जनि भूले, सब ही सेमल फूल।2।
तन नहिं तेरा, धान नहिं तेरा, कहा रह्यो इहिं लाग।
दादू हरि बिन क्यों सुख सोवे, काहे न देखे जाग।3।

19 प्रति ताल

जात कत कद को मातो रे,
तन धान योवन देख गर्वानो, माया रातो रे।टेक।
अपणो हि रूप नैन भर देखे, कामिणि को संग भावे रे।
बारंबार विषय रत माने, मरबो चित्ता न आवे रे।1।
मैं बड आगें और न आवे, करत केत अभिमाना रे।
मेरी-मेरी करि-करि फूल्यो, माया मोह भुलाना रे।2।
मैं-मैं करत जन्म सब खोयो, काल सिरहाणे आयो रे।
दादू देख मूढ नर प्राणी, हरि बिन जन्म गँवायो रे।3।

20 त्रिताल

जागत को कदे न मूसे कोई,
जागत जान जतन कर राखे, चोर न लागू होई।टेक।
सोवत साह वस्तु नहिं पावे, चोर मूसे घर घेरा।
आस-पास पहरे को नाँहीं, वस्तैं कीन्ह नबेरा।1।
पीछे कहु क्या जागे होई, वस्तु हाथ तैं जाई।
बीती रैन बहुर नहिं आवे, तब क्या करि है भाई।2।
पहले ही पहरे जे जागे, वस्तु कछु नहिं छीजे।
दादू जुगति जान कर ऐसी, करना है सो कीजे।3।

21 त्रिताल

सजनी रजनी घटती जाइ,
पल-पल छीजे अवधि दिन आवे, अपनो लाल मनाइ।टेक।
अति गति नींद कहा सुख सोवे, यहु अवसर चल जाय।
यहु तन बिछुरे बहुर कहँ पावे, पीछे ही पछताय।1।
प्राण पति जागे सुन्दरि क्यों सोवे, उठ आतुर गह पाइ।
कोमल वचन करुणा कर आगे, नख-शिख रहु लपटाइ।2।
सखी सुहाग सेज सुख पावे, प्रीतम प्रेम बढाइ।
दादू भाग बड़े पिव पावे, सकल शिरोमणि राइ।3।

22 दादरा

कोई जाणे रे मरम माधाइये केरो,
कैसे रहै करे का सजनी, प्राण मेरो।टेक।
कौन विनोद करत री सजनी, कवनन संग बसेरो?
संत साधु गमि आये उनके, करत जु प्रेम घणेरो।1।
कहाँ निवास वास कहँ, सजनी गवन तेरो?
घट-घट माँहीं रहै निरंतर, ये दादू नेरो।2।

23 त्रिताल

मन वैरागी राम को, संग रहे सुख होइ हो।टेक।
हरि कारण मन जोगिया, क्यों हि मिले मुझ सोइ।
निरखण का मोहि चाव है, क्योंहीं आप दिखावे मोहि हो।1।
हिरदै में हरि आव तूं, मुख देखूँ मन धोइ।
तन-मन में तूंहीं बसे, दया न आवे तोहि हो।2।
निरखण का मोहि चाव है, ए दुख मेरा खोइ।
दादू तुम्हारा दास है, नैन देखण को रोइ हो।3।

24 त्रिताल

धारणी धार बाह्या धूतो रे, अंग परस नहिं आपे रे।
कह्यो हमारो कांई न माने, मन भावे ते थापे रे।टेक।
वाही-वाही ने सर्वस लीधो, अबला कोइ न जाणे रे।
अलगो रहे येणी परि तेड़े, आपनड़े घर आणे रे।1।
रमी-रमी ने राम रजावी, केन्हों अंत न दीधो रे।
गोप्य गुह्य ते कोइ न जाणे, एबो अचरज कीधो रे।2।
माता बालक रुदन करंतां, वाही-वाही ने राखे रे।
जेवो छे तेवो आपणपो, दादू ते नहिं दाखे रे।3।

25 राजमृगांक ताल

सिरजनहार तैं सब होइ,
उत्पति परले करे आपे, दूसर नाँहीं कोइ।टेक।
आप होइ कुलाल करता, बूँद तैं सब लोइ।
आप कर अगोचर बैठा, दुनी मन को मोहि।1।
आप तैं उपाइ बाजी, निरख देखे सोइ।
बाजीगर को यहु भेद आवे, सहज सौंज समोइ।2।
जे कुछ कीया सु करे, आपे, येह उपजे मोहि।
दादू रे हरि नाम सेती, मैल कुश्मल धोइ।3।

26 राजमृगांक ताल

देहुरे मंझे देव पायो, वस्तु अगोचर लखायो।टेक।
अति अनूप ज्योति पति, सोई अंतर आयो।
पिंड ब्रह्मांड सम, तुल्य दिखायो।1।
सदा प्रकाश निवास, निरंतर, सब घट माँहिं समायो।
नैन निरख नेरो, हिरदै हेत लगायो।2।
पूरब भाग सुहाग सेज सुख, सो हरि लेन पठायो।
देव को दादू पार न पावे, अहो पै उनहीं चितायो।3।

।इति राग केदार सम्पूर्ण।

  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण काव्य रचनाएँ : संत दादू दयाल जी
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)